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Kejriwal ने मोदी को चुनौती देने में फिर जल्‍दबाजी कर दी

    • आईचौक
    • Updated: 13 फरवरी, 2020 05:26 PM
  • 13 फरवरी, 2020 05:26 PM
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अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) और उनके साथी आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय राजनीति (Delhi Election to National Politics) में उतरने के मजबूत संकेत दे रहे हैं - मतलब ये हुआ कि अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (AAP to challenge PM Narendra Modi) को चुनौती देने का इरादा कर लिया है - फिलहाल तो ये मुमकिन नहीं लगता!

अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) 2014 में वाराणसी लोक सभा सीट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (AAP to challenge PM Narendra Modi) के खिलाफ चुनाव लड़ कर हार चुके हैं. वही अरविंद केजरीवाल अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह से मुकाबले करते हुए दिल्ली की जंग दोबारा जीत चुके हैं - और इस जीत ने केजरीवाल और उनके साथियों को जोश से भर दिया है.

अरविंद केजरीवाल के भाषण और आम आदमी पार्टी के नेताओं के रिएक्शन सहित बैनर-पोस्टर के जरिये अब यही मैसेज देने की कोशिश हो रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने की तैयारी शुरू होने वाली है. ये तो सबको मालूम है कि अरविंद केजरीवाल विरोध की मजबूत आवाज रहे हैं - और अब अपनी आवाज की गंभीरता को समझने भी लगे हैं. अब अरविंद केजरीवाल कुछ भी नहीं बोल देते कि आगे चल कर हर किसी से माफी मांगते रहना पड़े. अरविंद केजरीवाल अब ऐसी बातें भी नहीं करते जिन्हें मुद्दा बनाकर उनके विरोधी घेरने की कोशिश करें.

लेकिन क्या जबान पर काबू पा लेने और दिल्ली की सत्ता में वापसी भर से अरविंद केजरीवाल अब सीधे राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज कर सकते हैं?

हाल फिलहाल तो ये कतई मुमकिन नहीं है. जहां तक 2014 के आम चुनाव की बात है, वक्त तो काफी है - लेकिन पूरे देश में संगठन खड़ा करना और मोदी की मौजूदा लोकप्रियता को पार कर अपनी बेहतर मौजूदगी दर्ज करा पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है.

देश की राजनीति दिल्ली जैसी नहीं है

अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में जीत जरूर हासिल कर ली है, लेकिन अभी के अभी वो चाहें तो पंजाब में पहले के मुकाबले किसी बेहतर स्थिति में नहीं पहुंच सकते. अरविंद केजरीवाल ने हरियाणा विधानसभा की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषण की थी. कुछ सीटों पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार चुनाव लड़े भी, लेकिन दिल्ली से कोई भी नेता चुनाव प्रचार करने तक नहीं गया. सारा इंतजाम स्थानीय नेताओं के हवाले छोड़ दिया गया था. ऐसा इसलिए भी क्योंकि अरविंद केजरीवाल और उनके करीबी साथी दिल्ली चुनाव...

अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) 2014 में वाराणसी लोक सभा सीट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (AAP to challenge PM Narendra Modi) के खिलाफ चुनाव लड़ कर हार चुके हैं. वही अरविंद केजरीवाल अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह से मुकाबले करते हुए दिल्ली की जंग दोबारा जीत चुके हैं - और इस जीत ने केजरीवाल और उनके साथियों को जोश से भर दिया है.

अरविंद केजरीवाल के भाषण और आम आदमी पार्टी के नेताओं के रिएक्शन सहित बैनर-पोस्टर के जरिये अब यही मैसेज देने की कोशिश हो रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने की तैयारी शुरू होने वाली है. ये तो सबको मालूम है कि अरविंद केजरीवाल विरोध की मजबूत आवाज रहे हैं - और अब अपनी आवाज की गंभीरता को समझने भी लगे हैं. अब अरविंद केजरीवाल कुछ भी नहीं बोल देते कि आगे चल कर हर किसी से माफी मांगते रहना पड़े. अरविंद केजरीवाल अब ऐसी बातें भी नहीं करते जिन्हें मुद्दा बनाकर उनके विरोधी घेरने की कोशिश करें.

लेकिन क्या जबान पर काबू पा लेने और दिल्ली की सत्ता में वापसी भर से अरविंद केजरीवाल अब सीधे राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज कर सकते हैं?

हाल फिलहाल तो ये कतई मुमकिन नहीं है. जहां तक 2014 के आम चुनाव की बात है, वक्त तो काफी है - लेकिन पूरे देश में संगठन खड़ा करना और मोदी की मौजूदा लोकप्रियता को पार कर अपनी बेहतर मौजूदगी दर्ज करा पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है.

देश की राजनीति दिल्ली जैसी नहीं है

अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में जीत जरूर हासिल कर ली है, लेकिन अभी के अभी वो चाहें तो पंजाब में पहले के मुकाबले किसी बेहतर स्थिति में नहीं पहुंच सकते. अरविंद केजरीवाल ने हरियाणा विधानसभा की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषण की थी. कुछ सीटों पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार चुनाव लड़े भी, लेकिन दिल्ली से कोई भी नेता चुनाव प्रचार करने तक नहीं गया. सारा इंतजाम स्थानीय नेताओं के हवाले छोड़ दिया गया था. ऐसा इसलिए भी क्योंकि अरविंद केजरीवाल और उनके करीबी साथी दिल्ली चुनाव की तैयारियों में दिन रात एक किये हुए थे. पंजाब और गोवा में कामयाबी न मिलने के चलते ही आप नेतृत्व ने ऐसा किया होगा और उसका फायदा भी मिला.

दिल्ली में अरविंद केजरीवाल बुनियादी चीजों बिजली-पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़े - क्या दूसरे राज्यों में इन मुद्दों पर चुनाव जीता जा सकता है? वैसी ही सूरत में जीता जा सकता है जब जातीय समीकरण और लोगों को जोड़ने वाली बाकी चीजें भी सपोर्ट करती हों. बीजेपी और मोदी समर्थक आप को वोट देने के लिए दिल्ली वालों को लगातार कोस रहे हैं - ये कहते हुए कि मुफ्तखोरी के लिए वे अरविंद केजरीवाल के साथ चले गये. देश में एक बड़ा तबका यही मान रहा है कि दिल्ली के लोगों ने शाहीन बाग पर ध्यान नहीं दिया. दिल्ली के लोगों को कश्मीर जैसे मसले की परवाह नहीं रही. दिल्ली के लोग पाकिस्तान की भाषा बोलने वालों की हकीकत से वाकिफ नहीं रहे - ये सब सिर्फ सोशल मीडिया पर नहीं लोगों की जबान पर है जिसे फोन पर या चाय-पान की दुकानों पर हो रही बहसों में सुना जा सकता है. दिल्ली से बाहर ऐसी ही माहौल है जिसमें अरविंद केजरीवाल अभी तो मिसफिट ही होंगे.

मोदी से मुकाबले के लिए केजरीवाल को लंबा सफर तय करना होगा

ऐसा भी नहीं कि दिल्ली में वोटों का बंटवारा पूरे देश से अलहदा है. दिल्ली में भी क्षेत्रीयता, भाषा और कुछ कुछ जातीय समीकरणों का प्रभाव है - लेकिन दूसरे राज्यों जैसा नहीं है. जिस तरह के जातीय राजनीतिक समीकरण यूपी और बिहार जैसे राज्यों में हैं या ऐसे दूसरे फैक्टर बाकी राज्यों में है वो दिल्ली की राजनीतिक हालत से बिलकुल अलग है. 2014 में ये काफी हद तक संभव हो सकता था कि अरविंद केजरीवाल वाराणसी पर फोकस नहीं होते तो आम आदमी पार्टी का और बेहतर प्रदर्शन हो सकता था. आखिर लोक सभा की चार-चार सीटें वो पंजाब में जीते ही थे - लेकिन दिल्ली में कोई कमाल नहीं दिखा सके. तब राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा बना था और कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए 2 सरकार पूरी तरह घिरी हुई थी.

2014 का 2019 में तो यही अरविंद केजरीवाल दिल्ली में आम आदमी पार्टी को एक भी सीट नहीं दिला पाये - प्रधानमंत्री मोदी से मुकाबले से पहले अरविंद केजरीवाल चाहें तो दिल्ली में आप की तीसरी पोजीशन का फिर से विश्लेषण कर सकते हैं - तमाम सवालों के जवाब आसानी से मिल जाएंगे.

आप को मीलों का सफर तय करना होगा

अगर वास्तव में आम आदमी पार्टी पुराने अनुभवों से सीख लेकर नये सिरे से राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति में कूदने का मन बना रही है तो उसे तैयारियां भी वैसी ही करनी होंगी - और तभी वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और बीजेपी की टीम को टक्कर दे सकती है. वरना, दोबारा औंधे मुंह गिरने पर कोई उठाने वाला भी नहीं मिलेगा. कुछ ऐसे कारण जो आप नेतृत्व को फिलहाल निराश कर सकते हैं. हालांकि, सतत तैयारी, सुधार और बदलाव के साथ उनसे पार भी पाया जा सकता है.

1. विवादित चीजों से बचने की जरूरत है: अरविंद केजरीवाल की झोली एक बार फिर दिल्ली वालों ने लगभग पहले की ही तरह विधायकों से भर दी है, जिसे नये तरीके से हैंडल करने की जरूरत होगी. विधायकों को मंत्री बनाना संभव न था, इसलिए अरविंद केजरीवाल ने 20 MLS को संसदीय सचिव बनाया था - पूरे पांच साल वो विवादों के इर्द गिर्द ही घूमते रहे. एक बार फिर से ये मुश्किल अरविंद केजरीवाल के सामने खड़ी हो चुकी है और उस पर तत्काल प्रभाव से समझदारी दिखानी होगी.

2. नेताओं की सही पहचान जरूरी: राजनीति में शैक्षिक योग्यता मायने नहीं रखती, लेकिन फर्जी डिग्री तो अपराध है. जितेंद्र सिंह तोमर को केजरीवाल ने कानून मंत्री बनाया था और आखिर तक बचाव करते रहे - जब पुलिस ने चार्जशीट फाइल की तब जाकर पल्ला झाड़े. इस बार जितेंद्र सिंह तोमर का टिकट काट तो लिया लेकिन उनकी पत्नी प्रीति तोमर अब विधायक बन चुकी हैं. सोमनाथ भारती, अमानतुल्ला खान और ऐसे कई आप विधायक रहे जो पूरे पांच साल अलग अलग वजहों से विवादों में बने रहे.

3. क्षेत्रीय पार्टियों की चुनौती से निबटना: हर राज्य में किसी न किसी क्षेत्रीय पार्टी का दबदबा है. आप को सबसे पहले तो वे रास्ते खोजने होंगे जिनके जरिये वो लोगों में पैठ बना सके और उनका सपोर्ट हासिल हो सके.

4. गठबंधन के बगैर नहीं चलने वाला: राष्ट्रीय स्तर पर भले ही एक सत्ता पक्ष और दूसरा विपक्ष नजर आ रहा हो, लेकिन ये तो साबित हो चुका है कि कोई भी एक पार्टी पूरे देश में एकछत्र राज नहीं कर पाने की स्थिति में है. बीजेपी जरूर स्वर्णिम काल के लिए संघर्ष कर रही है, लेकिन जो हाल है सबके सामने है. ऐसे में गठबंधन की राजनीति ही राष्ट्रीय राजनीति की हकीकत है. अरविंद केजरीवाल गठबंधन की राजनीति में अभी बिलकुल कच्चे खिलाड़ी लगते हैं. आम चुनाव के दौरान कांग्रेस और केजरीवाल ऐसे बातें कर रहे थे जैसे एक दूसरे को छका रहे हों. गठबंधन को लेकर हरियाणा की सत्ता में अब शामिल हो चुकी JJP के साथ भी ऐसी बातचीत की चर्चा रही, लेकिन वो चर्चा से कभी आगे नहीं बढ़ सकी.

5. AAP का संगठन खड़ा करना होगा: आप के पास अभी दिल्ली से बाहर कहीं भी जमीनी स्तर पर मजबूत संगठन नहीं है. आम आदमी पार्टी को बीजेपी और RSS कार्यकर्ताओं से मुकाबले की बड़े स्तर पर तैयारी करनी होगी. वरना, अमित शाह के बूथ लेवल मैनेजमेंट से मुकाबला बेहद मुश्किल होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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