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प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में इस बार NOTAबनेगा मेयर!

    • अनुराग तिवारी
    • Updated: 11 नवम्बर, 2017 11:12 AM
  • 11 नवम्बर, 2017 11:12 AM
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काशी में निकाय चुनाव हैं और ये शहर खुद प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र होने के चलते काफी महत्वपूर्ण है. ऐसे में सभी पार्टियों ने अपनी तरफ से जान लड़ा दी है कि उनका प्रत्याक्षी जीते. मगर इस चुनाव में काशी के लोगों के अपने कुछ विशेष प्लान हैं.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र होने के चलते काशी चुनावों में हर पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन जाती है. यूपी विधान सभा चुनावों में भी बीजेपी के खिलाफ हवा बनते देख प्रधानमंत्री को यहां तीन दिनों तक चुनाव प्रचार करना पड़ा. इस बार नगर निकाय चुनावों में मेयर पद के लिए सभी राजनैतिक दलों के प्रत्याशियों की घोषणा होते ही बड़ी संख्या में लोगों ने निराशा व्यक्त की है. इसके चलते आम वोटर इस बार नोटा के रूप में अपने मताधिकार का प्रयोग करने का मन बना रहा है.

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में सोशल मीडिया पर जागरूकता कैम्पेन चलाने वाली ‘सांप’ पार्टी एक बार फिर चर्चा में है. ‘सांप’ पार्टी ने नगर निकाय चुनावों में मतदाताओं से नोटा का प्रयोग अधिक से अधिक संख्या में करने की अपील की है. इस ग्रुप के सदस्यों का कहना है कि किसी भी पार्टी ने काशी की गरिमा के अनुरूप मेयर पद का प्रत्याशी घोषित नहीं किया है.

पार्टियों द्वारा वाराणसी को लगातार नकारे जाने से जनता काफी नाराज है

‘सांप’ पार्टी के महासचिव आनंद शर्मा का कहना है, 'आखिर कब तक जनता थोपा हुआ प्रतिनिधि चुनेगी, समाज के ईमानदार और जिम्मेदार लोगों को आगे लाया जाना चाहिए. अगर राजनैतिक दल ऐसा नहीं करते हैं तो हमें मजबूरन नोटा का इस्तेमाल करना होगा.' वे कहते हैं कि पिछले 22 साल से काशी में बीजेपी के ही मेयर रहे हैं और सभी ने विकास के नाम पर बनारस शहर का शोषण किया है. जिस तरह से राजनैतिक पार्टियों ने अपनी महिला उमीदवारों की घोषणा की है, उसे लेकर वे इस निकाय चुनाव को किटी पार्टी का नाम देते हैं.

वहीं इस सोशल मीडिया ग्रुप के संस्थापक और अध्यक्ष ब्रिजेश चन्द्र पाठक का कहना है, “#NOTA एक उत्तम विकल्प. जब पार्टियां प्रत्याशी को जनता के ऊपर...

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र होने के चलते काशी चुनावों में हर पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन जाती है. यूपी विधान सभा चुनावों में भी बीजेपी के खिलाफ हवा बनते देख प्रधानमंत्री को यहां तीन दिनों तक चुनाव प्रचार करना पड़ा. इस बार नगर निकाय चुनावों में मेयर पद के लिए सभी राजनैतिक दलों के प्रत्याशियों की घोषणा होते ही बड़ी संख्या में लोगों ने निराशा व्यक्त की है. इसके चलते आम वोटर इस बार नोटा के रूप में अपने मताधिकार का प्रयोग करने का मन बना रहा है.

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में सोशल मीडिया पर जागरूकता कैम्पेन चलाने वाली ‘सांप’ पार्टी एक बार फिर चर्चा में है. ‘सांप’ पार्टी ने नगर निकाय चुनावों में मतदाताओं से नोटा का प्रयोग अधिक से अधिक संख्या में करने की अपील की है. इस ग्रुप के सदस्यों का कहना है कि किसी भी पार्टी ने काशी की गरिमा के अनुरूप मेयर पद का प्रत्याशी घोषित नहीं किया है.

पार्टियों द्वारा वाराणसी को लगातार नकारे जाने से जनता काफी नाराज है

‘सांप’ पार्टी के महासचिव आनंद शर्मा का कहना है, 'आखिर कब तक जनता थोपा हुआ प्रतिनिधि चुनेगी, समाज के ईमानदार और जिम्मेदार लोगों को आगे लाया जाना चाहिए. अगर राजनैतिक दल ऐसा नहीं करते हैं तो हमें मजबूरन नोटा का इस्तेमाल करना होगा.' वे कहते हैं कि पिछले 22 साल से काशी में बीजेपी के ही मेयर रहे हैं और सभी ने विकास के नाम पर बनारस शहर का शोषण किया है. जिस तरह से राजनैतिक पार्टियों ने अपनी महिला उमीदवारों की घोषणा की है, उसे लेकर वे इस निकाय चुनाव को किटी पार्टी का नाम देते हैं.

वहीं इस सोशल मीडिया ग्रुप के संस्थापक और अध्यक्ष ब्रिजेश चन्द्र पाठक का कहना है, “#NOTA एक उत्तम विकल्प. जब पार्टियां प्रत्याशी को जनता के ऊपर थोपने लगे तो जनता को भी अपने मताधिकार का उपयोग करते हुए नोटा बटन को ही वोट देना चाहिए. क्यों ना इस अभियान की शुरुआत देवाधिदेव की नगरी काशी से ही हो? क्यों ना बिल्ली के गले में घण्टी काशीवासी ही बांधे?

वे इस मुद्दे पर कई सवाल खड़े करते हैं, 'बहुत समय से राजनैतिक दलों द्वारा नगर प्रथम व्यक्ति के लिए जो भी दावेदार प्रस्तुत किये जा रहे हैं वो इस सबसे प्राचीन नगरी, सांस्कृतिक नगरी एवम आध्यात्मिक नगरी के प्रतिष्ठा के अनुरूप नही है ऐसा क्यों? राजनैतिक दलों द्वारा इतना भद्दा मजाक नगर वासियों से क्यो? काशी का प्रथम व्यक्ति बाबा विश्वनाथ, काशी नरेश और डोमराज के मर्यादा के अनुरूप क्यों नहीं? वे राजनैतिक दलों को चेतावनी देते हुए कहते हैं, 'अगर आप राजनैतिक दल के लोग बनारस के प्रतिष्ठा के साथ इसी प्रकार से खेलने खेलेंगे तो चुनाव आयोग ने भी जनता को एक अधिकार दे रखा है NOTA का.'

अगर बात सिर्फ इन दोनों व्यक्तियों तक ही सीमित रहती तो यह एक ग्रुप की भावना कही जा सकती थी, लेकिन अब धीरे-धीरे काशी में लेकर जगह-जगह चर्चाएं भी होने लगी हैं कि उपर से थोपे गए कैंडिडेट्स की जगह क्यों न नोटा का बटन दबा कर पॉलिटिकल पार्टीज को एक कड़ा सन्देश दिया जाए.

हालांकि चुनावों में नोटा के वोट सबसे अधिक होने के बावजूद सभी कैंडिडेट्स में सबसे अधिक वोट पाए कैंडिडेट को ही विजयी घोषित किया जाएगा. इस पर सांप पार्टी के अध्यक्ष का कहना है कि अगर ऐसा होता है तो वे इस चुनाव को कोर्ट में भी चुनौती दे सकते हैं ताकि चुनाव फिर से हो और पोलिक्टिकल पार्टीज योग्य और जमीनी उम्मीदवारों को खड़ा करें. ब्रिजेश चन्द्र पाठक चुनाव आयोग से अपील भी करते हैं कि NOTA को प्रभावशाली तरीके के लागू किया जाए.

वे कहते हैं कि यदि इस बार के चुनावों में 50 प्रतिशत से ज्यादा वोटर NOTA का बटन दबाएं तो चुनाव रद्द करा दुबारा वोटिंग कराई जानी चाहिए और जिन उम्मीदवारों के खिलाफ वोटर्स ने NOTA को वोट दिया है, उन्हें चुनाव लड़ने से आजीवन प्रतिबंधित किया जाना चाहिए. पाठक एक अनुसार यदि ये NOTA को लेकर यह सुधर नहीं होते हैं तो NOTA का विकल्प देने का कोई मायने नही है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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