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क्या 'इज्जतघर' बनवा लेने भर से बीएचयू की छात्राओं की इज्जत भी सुरक्षित हो जाएगी?

    • आईचौक
    • Updated: 23 सितम्बर, 2017 04:16 PM
  • 23 सितम्बर, 2017 04:16 PM
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वैसे तो प्रधानमंत्री के बयान में 'इज्जत' और 'इज्जतघर' जैसे शब्द अलग प्रसंग में आये हैं - और बीएचयू की छात्राओं के आंदोलन से वो सीधे सीधे कनेक्ट भी नहीं होता. बात इज्जत की भी शायद इस रूप में नहीं होती अगर छात्राएं आंदोलन नहीं कर रही होतीं - और उसके चलते प्रधानमंत्री का रूट नहीं बदला गया होता.

पहले विवाद और फिर बवाल. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी दौरे से पहले खासा विवाद हुआ और उनके शहर में कदम रखने से पहले ही बवाल शुरू हो गया. बवाल तब शुरू हुआ जब बीएचयू की छात्राओं ने बदसलूकी की शिकायत की तो एक्शन के बजाय उन्हें नसीहतें सुनने को मिलीं.

विवाद के चलते मुस्लिम महिलाओं से संवाद का कार्यक्रम रद्द हो गया - और छात्राओं के बवाल के कारण प्रशासन को पीएम रूट में बदलाव करना पड़ा. प्रधानमंत्री दुर्गाकुंड में देवी दर्शन किये और तुलसी मानस मंदिर होकर भी चले गये, लेकिन बीएचयू की छात्राएं लंका पर मालवीय प्रतिमा के पास रात भर डटी रहीं - अपनी इज्जत खातिर.

इज्जत के लिए

अपनी इज्जत खातिर सड़क पर उतरी बीएचयू की छात्राओं की शिकायत नयी नहीं हैं. ऐसा भी नहीं कि ऐसी घटना पहली बार हुई है - और उस पर बीएचयू प्रशासन के रिएक्शन का रवैया कोई नया है. ऐसे कई मामले पुलिस तक पहुंचे हैं और आरोपी के खिलाफ एक्शन भी लिया गया है.

बीबीसी से बातचीत में आंदोलन में शामिल एक छात्रा आकांक्षा का कहना था, "विश्वविद्यालय प्रशासन से शिकायत करने पर उल्टा हमसे सवाल पूछा जाता है कि रात में या बेतुके टाइम में बाहर निकलती ही क्यों हो?"

एक आंदोलन इज्जत के लिए...

आकांक्षा का कहना था कि छेड़खानी और विश्वविद्यालय प्रशासन के इस रवैये के विरोध में उन्होंने पिछले एक महीने से अपना सिर मुंडवा रखा है. छात्राओं के इस आंदोलन में नयी बात ये है कि उनका गुस्सा फूट पड़ा है. छात्राएं सड़क पर उतर आयी हैं - और उनके आंदोलन के चलते प्रधानमंत्री को रास्ता बदलना पड़ रहा है. नयी बात ये है कि कैंपस से बाहर भी उनकी आवाज गूंजने लगी है. नयी बात ये है कि उनके आंदोलन को सपोर्ट करने कैंपस के साथ साथ शहर की लड़कियां भी पहुंचने लगी हैं.

इसी बीच...

पहले विवाद और फिर बवाल. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी दौरे से पहले खासा विवाद हुआ और उनके शहर में कदम रखने से पहले ही बवाल शुरू हो गया. बवाल तब शुरू हुआ जब बीएचयू की छात्राओं ने बदसलूकी की शिकायत की तो एक्शन के बजाय उन्हें नसीहतें सुनने को मिलीं.

विवाद के चलते मुस्लिम महिलाओं से संवाद का कार्यक्रम रद्द हो गया - और छात्राओं के बवाल के कारण प्रशासन को पीएम रूट में बदलाव करना पड़ा. प्रधानमंत्री दुर्गाकुंड में देवी दर्शन किये और तुलसी मानस मंदिर होकर भी चले गये, लेकिन बीएचयू की छात्राएं लंका पर मालवीय प्रतिमा के पास रात भर डटी रहीं - अपनी इज्जत खातिर.

इज्जत के लिए

अपनी इज्जत खातिर सड़क पर उतरी बीएचयू की छात्राओं की शिकायत नयी नहीं हैं. ऐसा भी नहीं कि ऐसी घटना पहली बार हुई है - और उस पर बीएचयू प्रशासन के रिएक्शन का रवैया कोई नया है. ऐसे कई मामले पुलिस तक पहुंचे हैं और आरोपी के खिलाफ एक्शन भी लिया गया है.

बीबीसी से बातचीत में आंदोलन में शामिल एक छात्रा आकांक्षा का कहना था, "विश्वविद्यालय प्रशासन से शिकायत करने पर उल्टा हमसे सवाल पूछा जाता है कि रात में या बेतुके टाइम में बाहर निकलती ही क्यों हो?"

एक आंदोलन इज्जत के लिए...

आकांक्षा का कहना था कि छेड़खानी और विश्वविद्यालय प्रशासन के इस रवैये के विरोध में उन्होंने पिछले एक महीने से अपना सिर मुंडवा रखा है. छात्राओं के इस आंदोलन में नयी बात ये है कि उनका गुस्सा फूट पड़ा है. छात्राएं सड़क पर उतर आयी हैं - और उनके आंदोलन के चलते प्रधानमंत्री को रास्ता बदलना पड़ रहा है. नयी बात ये है कि कैंपस से बाहर भी उनकी आवाज गूंजने लगी है. नयी बात ये है कि उनके आंदोलन को सपोर्ट करने कैंपस के साथ साथ शहर की लड़कियां भी पहुंचने लगी हैं.

इसी बीच प्रधानमंत्री का एक बयान आया है - 'जिसे भी अपनी इज्जत की चिंता है, वो जरूर इज्जतघर बनाएगा'.

इज्जतघर जरूरी है

वैसे तो प्रधानमंत्री के बयान में 'इज्जत' और 'इज्जतघर' जैसे शब्द अलग प्रसंग में आये हैं - और बीएचयू की छात्राओं के आंदोलन से वो सीधे सीधे कनेक्ट भी नहीं होता. बात इज्जत की भी शायद इस रूप में नहीं होती अगर छेड़खानी की घटना के बाद छात्राएं आंदोलन नहीं कर रही होतीं - और उसकी वजह से प्रधानमंत्री का रूट नहीं बदलना पड़ा होता.

श्रमदान जरूरी है...

दरअसल, स्वच्छता अभियान के तहत जिस शहंशापुर गांव में प्रधानमंत्री मोदी ने श्रमदान किया वहां शौचालय को इज्जतघर नाम दिया गया है. प्रधानमंत्री मोदी को ये नाम बहुत पसंद आया और उन्होंने इसके लिए यूपी की योगी सरकार की तारीफ की और बधाई भी दी.

प्रधानमंत्री ने कहा - क्योंकि ये शौचालय की घर के बहू-बेटियों की इज्जत है और हम सभी को अपने घरों में इस इज्जत घर का निर्माण कराना चाहिए. अब जिसको इज्जत की चिंता है वह जरूर इज्जतघर बनाएगा, इज्जतवान बनेगा.

बिलकुल सही बात है. गांव की उन महिलाओं के लिए जिन्हें शौचालय के अभाव में बाहर जाना पड़ता है उनके लिए सही मायने में ये इज्जतघर ही है. शौच के लिए बाहर जाने वाली महिलाओं के साथ बदसलूकी और यहां तक कि बलात्कार की घटनाएं भी दर्ज की गयी हैं. उन महिलाओं की इज्जत की हिफाजत के लिए निश्चित तौर पर शौचालय इज्जतघर साबित होंगे - और इसमें किसी के लिए जरा भी शक की गुंजाइश नहीं बचती.

जहां सोच, वहां शौचालय और वहीं इज्जत!

अब भी एक सवाल का जवाब नहीं मिल रहा - क्या 'इज्जतघर' बनवा लेने भर से बीएचयू की छात्राओं की इज्जत भी सुरक्षित हो जाएगी? वैसे बीएचयू रोमियो स्क्वॉड के कार्यक्षेत्र के दायरे से बाहर है क्या?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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