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आस्था पर बीजेपी के दोहरे मायने और कांग्रेस की चुप्पी

    • खुशदीप सहगल
    • Updated: 28 अक्टूबर, 2018 04:36 PM
  • 28 अक्टूबर, 2018 04:36 PM
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केरल के सबरीमला के अयप्पा मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बावजूद बीजेपी इसका विरोध कर रही है. 'बीजेपी के शाह' कह रहे हैं कि कोर्ट ऐसे फैसले सुनाए कि जिनका पालन हो सके.

क्या आस्था पर दोहरे मायने हो सकते हैं? केरल में कुछ और महाराष्ट्र में कुछ और? सबरीमला विवाद पर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने केरल में जाकर जो कुछ कहा, उससे तो कुछ ऐसे ही संकेत निकलते हैं.

केरल के सबरीमला के अयप्पा मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बावजूद बीजेपी इसका विरोध कर रही है. 'बीजेपी के शाह' कह रहे हैं कि कोर्ट ऐसे फैसले सुनाए कि जिनका पालन हो सके. केरल में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार है. वहां की चुनावी राजनीति में सिवाय एक विधानसभा सीट जीतने के बीजेपी का कोई वजूद नहीं रहा. जैसे की पश्चिम बंगाल वैसे ही केरल में भी बीजेपी साम्प्रदायिकता के कार्ड को निर्लज्जता के साथ खेल कर हिन्दू वोटों में पैठ बनाने की कोशिश कर रही है. इस रास्ते में उसे कोर्ट के फ़ैसलों की भी परवाह नहीं.

अमित शाह सबरीमला पर आस्था के साथ हैं तो महाराष्ट्र में भाजपा कोर्ट के साथ

मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर इसी बीजेपी का रुख़ महाराष्ट्र में बिल्कुल दूसरा हो जाता है. क्योंकि वहां उसकी खुद की सरकार है. हाल के वर्षों में अहमदनगर का शनि शिंगणापुर मंदिर हो या कोल्हापुर का महालक्ष्मी देवी मंदिर में क्या हुआ वो भी जान लीजिए.

कोर्ट के आदेश के बाद महिलाओं को शनि शिंगणापुर में शनिदेव पर तेल चढ़ाने और महालक्ष्मी देवी मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश की इजाज़त मिली. यहां कोर्ट के आदेश को बीजेपी वाली फडणवीस सरकार ने ही लागू कराया. यहां वो भक्तों की आस्था का वो सवाल आड़े नहीं आया जिसका हवाला अमित शाह केरल में जाकर दे रहे हैं और उल्टे सुप्रीम कोर्ट को ही नसीहत दे रहे हैं.

इसी तरह का कुछ मामला मुंबई की हाजी अली दरगाह का था. वहां भी दो साल पहले तक अंदरूनी हिस्से में प्रवेश पर पाबंदी थी, जो कोर्ट के आदेश के बाद हटी. सवाल...

क्या आस्था पर दोहरे मायने हो सकते हैं? केरल में कुछ और महाराष्ट्र में कुछ और? सबरीमला विवाद पर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने केरल में जाकर जो कुछ कहा, उससे तो कुछ ऐसे ही संकेत निकलते हैं.

केरल के सबरीमला के अयप्पा मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बावजूद बीजेपी इसका विरोध कर रही है. 'बीजेपी के शाह' कह रहे हैं कि कोर्ट ऐसे फैसले सुनाए कि जिनका पालन हो सके. केरल में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार है. वहां की चुनावी राजनीति में सिवाय एक विधानसभा सीट जीतने के बीजेपी का कोई वजूद नहीं रहा. जैसे की पश्चिम बंगाल वैसे ही केरल में भी बीजेपी साम्प्रदायिकता के कार्ड को निर्लज्जता के साथ खेल कर हिन्दू वोटों में पैठ बनाने की कोशिश कर रही है. इस रास्ते में उसे कोर्ट के फ़ैसलों की भी परवाह नहीं.

अमित शाह सबरीमला पर आस्था के साथ हैं तो महाराष्ट्र में भाजपा कोर्ट के साथ

मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर इसी बीजेपी का रुख़ महाराष्ट्र में बिल्कुल दूसरा हो जाता है. क्योंकि वहां उसकी खुद की सरकार है. हाल के वर्षों में अहमदनगर का शनि शिंगणापुर मंदिर हो या कोल्हापुर का महालक्ष्मी देवी मंदिर में क्या हुआ वो भी जान लीजिए.

कोर्ट के आदेश के बाद महिलाओं को शनि शिंगणापुर में शनिदेव पर तेल चढ़ाने और महालक्ष्मी देवी मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश की इजाज़त मिली. यहां कोर्ट के आदेश को बीजेपी वाली फडणवीस सरकार ने ही लागू कराया. यहां वो भक्तों की आस्था का वो सवाल आड़े नहीं आया जिसका हवाला अमित शाह केरल में जाकर दे रहे हैं और उल्टे सुप्रीम कोर्ट को ही नसीहत दे रहे हैं.

इसी तरह का कुछ मामला मुंबई की हाजी अली दरगाह का था. वहां भी दो साल पहले तक अंदरूनी हिस्से में प्रवेश पर पाबंदी थी, जो कोर्ट के आदेश के बाद हटी. सवाल ये कि राजनीतिक सुविधा के मुताबिक कोर्ट के आदेशों पर स्टैंड क्यों? संविधान कहता है कि कोर्ट के फ़ैसलों को लागू कराना सरकारों की ज़िम्मेदारी है. फिर यहां आस्था के तर्क देकर ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश क्यों?

मान लीजिए कल को अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला बीजेपी की राजनीति के प्रतिकूल आया तो क्या अमित शाह फिर ये तर्क देंगे कि कोर्ट वही फैसले सुनाएं जिनका पालन हो सके. सबरीमला पर ऐसा बयान दे कर क्या शाह ने अयोध्या पर कोर्ट को एडवांस में नसीहत देने की कोशिश की?

कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियां केरल में सबरीमला मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने को तैयार नहीं चलिए बीजेपी का स्टैंड तो उसकी राजनीति के आधार पर समझ आता है लेकिन मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को क्या हुआ है? खुद को सेक्युलरिज्म का अलम्बरदार बताने वाली कांग्रेस पर इन दिनों सॉफ्ट हिन्दुत्व तारी है. इसी वजह से वो केरल में सबरीमला जैसे मुद्दों पर खुल कर नहीं बोल रही है. केरल में फिलहाल सीपीएम की अगुआई वाला LDF और कांग्रेस के नेतृत्व वाला DF, दो ही अहम पॉलिटिकल प्लेयर हैं. लेकिन कांग्रेस ने बीजेपी का सेक्युलरिज्म के मोर्चे पर डट कर सामना नहीं किया तो इसका वहां भी बंगाल जैसा हाल ना हो जाए. सॉफ्ट हिन्दुत्व का कार्ड कांग्रेस के लिए कहीं ऐसा साबित ना हो.

न ख़ुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम, न इधर के हुए न उधर के हुए रहे दिल में हमारे ये रंज-ओ-अलम न इधर के हुए न उधर के हुए...

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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