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किसके इशारे पर सीबीआई में मची उथल-पुथल

    • आर.के.सिन्हा
    • Updated: 28 अक्टूबर, 2018 11:44 AM
  • 28 अक्टूबर, 2018 11:44 AM
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सीबीआई के दो हाई प्रोफाइल अफसरों आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना की आपसी खुन्नस से जुड़े इस केस का भी शीघ्र समाधान होना चाहिए. देश को आखिर यह तो पता चलना ही चाहिए कि असली गुनाहगार कौन है?

निश्चित रूप से केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के दो शिखर अफसरों के बीच कुत्तों-बिल्ली की तरह एक-दूसरे से सरेआम आक्रमण करने से देश की प्रमुख जांच एजेंसी सीबीआई की छवि तार-तार हो गई है. अगर इनमें आपस में कोई विवाद और टकराव के बिन्दु थे भी, तब भी उन्हें मिल-बैठकर आसानी से सुलझाया जा सकता था. पर इन्होंने 'अहम' के टकराव में सरकारी अधिकारी की सीमाओं, मर्यादाओं और आचार संहिता को नहीं समझा. इनके आचरण के कारण सीबीआई की साख मिट्टी में मिल गई है. क्या कभी इन दोनों ने यह भी सोचा कि इनकी 'महाभारत' से सीबीआई की साख किस हद तक गिर जाएगी?

सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने एक-दूसरे पर जमकर करप्शन के आरोप लगाए. आरोप लगाना सबसे आसान और उसे सिद्ध करना सबसे कठिन होता है. यह टेढ़ी खीर सीबीआई के शीर्ष अफसर कैसे भूल गए. दोनों में शुरू से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा था. पर इस बार तो विवाद सारी हदें ही पार कर गया. ये सड़कछाप 'टुच्चे मवालियों' की अंदाज में लड़ते रहे. जाहिर है कि इनके इस रवैये के कारण सीबीआई का पूरा कामकाज महीनों तक प्रभावित होता रहा.

आलोक वर्मा और राकेश आस्थाना के बीच की लड़ाई से सीबीआई पर प्रश्नचिन्ह लग गया है

इस बीच के घटनाक्रम में सीबीआई ने राकेश अस्थाना के खिलाफ घूस लेने के मामले में एफआईआर तक दर्ज करा दी. सीबीआई में आरसी यानी रेगुलर देस या एफआईआर को दर्ज करने की एक जटिल प्रक्रिया होती है जिसमें कई बार तो वर्षों लग जाते हैं. पहले आरोप सीबीआई के संज्ञान में आने पर 'पी.ई.' या प्रिलिमिनरी इन्क्वारी (प्राथमिक जांच) की प्रक्रिया शुरू होती है. टीम गठित होती है. जांच के हर स्टेज पर मिले साक्ष्य को सीबीआई का लीगल सेल ठोक-ठेठाकर पक्की तरह जब सन्तुष्ट हो जाता है तभी आरसी होता है. राकेश अस्थाना पर मीट कारोबारी मोईन कुरैशी से...

निश्चित रूप से केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के दो शिखर अफसरों के बीच कुत्तों-बिल्ली की तरह एक-दूसरे से सरेआम आक्रमण करने से देश की प्रमुख जांच एजेंसी सीबीआई की छवि तार-तार हो गई है. अगर इनमें आपस में कोई विवाद और टकराव के बिन्दु थे भी, तब भी उन्हें मिल-बैठकर आसानी से सुलझाया जा सकता था. पर इन्होंने 'अहम' के टकराव में सरकारी अधिकारी की सीमाओं, मर्यादाओं और आचार संहिता को नहीं समझा. इनके आचरण के कारण सीबीआई की साख मिट्टी में मिल गई है. क्या कभी इन दोनों ने यह भी सोचा कि इनकी 'महाभारत' से सीबीआई की साख किस हद तक गिर जाएगी?

सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने एक-दूसरे पर जमकर करप्शन के आरोप लगाए. आरोप लगाना सबसे आसान और उसे सिद्ध करना सबसे कठिन होता है. यह टेढ़ी खीर सीबीआई के शीर्ष अफसर कैसे भूल गए. दोनों में शुरू से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा था. पर इस बार तो विवाद सारी हदें ही पार कर गया. ये सड़कछाप 'टुच्चे मवालियों' की अंदाज में लड़ते रहे. जाहिर है कि इनके इस रवैये के कारण सीबीआई का पूरा कामकाज महीनों तक प्रभावित होता रहा.

आलोक वर्मा और राकेश आस्थाना के बीच की लड़ाई से सीबीआई पर प्रश्नचिन्ह लग गया है

इस बीच के घटनाक्रम में सीबीआई ने राकेश अस्थाना के खिलाफ घूस लेने के मामले में एफआईआर तक दर्ज करा दी. सीबीआई में आरसी यानी रेगुलर देस या एफआईआर को दर्ज करने की एक जटिल प्रक्रिया होती है जिसमें कई बार तो वर्षों लग जाते हैं. पहले आरोप सीबीआई के संज्ञान में आने पर 'पी.ई.' या प्रिलिमिनरी इन्क्वारी (प्राथमिक जांच) की प्रक्रिया शुरू होती है. टीम गठित होती है. जांच के हर स्टेज पर मिले साक्ष्य को सीबीआई का लीगल सेल ठोक-ठेठाकर पक्की तरह जब सन्तुष्ट हो जाता है तभी आरसी होता है. राकेश अस्थाना पर मीट कारोबारी मोईन कुरैशी से रिश्वत लेने के आरोप हैं. लेकिन, जांच की प्रक्रिया बिना पूरी किये एक वरिष्ठ अधिकारी पर आरसी लाना शर्मनाक है. दूसरी तरफ, सरकार ने आलोक वर्मा और अस्थाना को फिलहाल छुट्टी पर भेज दिया है.

इसी घमासान से जुड़े एक अन्य घटनाक्रम में खुद सीबीआई ने अपने ही एसआईटी यानी विशेष जांच दल के डीसीपी को सीबीआई दफ्तर में ही उनके खुद अपने ही चेम्बर से गिरफ्तार कर लिया. उनके कमरे से 7 मोबाइल फोन भी बरामद किए जिससे कहा जाता है कि वो मोइन कुरैशी से बात किया करते थे. ये सारी घटनाएं अकल्पनीय हैं. सीबीआई को इस भयावह स्थिति से निकलने की जरूरत है. सीबीआई के दो हाई प्रोफाइल अफसरों आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना की आपसी खुन्नस से जुड़े इस केस का भी शीघ्र समाधान होना चाहिए. देश को आखिर यह तो पता चलना ही चाहिए कि असली गुनाहगार कौन है? गुनाहगार को किसी भी स्थिति में बख्शा भी नहीं जाना चाहिए. तभी सीबीआई अपनी साख कायम कर पायेगा.

जरा सोचिए कि तमाम सरकारी अफसरों, मंत्रियों से जुड़े करप्शन के मामलों को उजागर करने वालों पर ही घूस खाने के आरोप लगना अपने आप में कितना अप्रत्याशित है. वर्मा और अस्थाना साहबानों के बीच चले विवाद से अब समझ में आ रहा है कि आखिर क्यों कॉमनवेल्थ खेल घोटाला और आदर्श हाउसिंग घोटालों की फाइलें बरसों से आगे नहीं बढ़ पा रहीं? इन दोनों घोटालों में खरबों रुपये की रिश्वत खाई गई और इन घोटालों में कई बड़े नामी गिरामी, भरी-भरकम नाम शामिल हैं. इसके बावजूद कुछ पता ही नहीं चल रहा है कि इन मामलों की जांच कहां तक पहुंची?  

ये दो केस तो उदाहरण मात्र थे. इन दोनों घोटालों ने देश को हिलाकर रख दिया था. इसके पहले बोफोर्स बेस और यूनियन कार्बाइड केस की लीपापोती जग-जाहिर है. इन दोनों मामलों में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की संलिप्तता और सीबीआई पर अनावश्यक दबाब के आरोप लगते रहे हैं. जब सरकार ने इन केसों की जांच की जिम्मेदारी सीबीआई को सौंपी तो लगा कि चलो अब दूध का दूध और पानी का पानी हो ही जाएगा. यानी जांच से सीबीआई इन केसों के दोषियों के नाम उजागर कर देगी. पर यदि देश की आला जांच एजेंसी के नंबर एक और दो अफसर ही आपस में भिड़ते रहेंगे तो जांच क्या खाक होगी? इस स्थिति में कॉमनवेल्थ खेलों और आदर्श घोटालों के गुनाहगार तो दिल से खुश होंगे. वे तो यही चाहते हैं कि जब तक सीबीआई के अफसर आपस में लड़ते रहेंगे, तब तक तो वे सुरक्षित ही हैं.

सीबीआई के पास अभी 9 हजार केस पेंडिग पड़े हैं

वर्मा और अस्थाना के बीच का तो विवाद सीबीआई के भीतर फैली भयानक सड़ांध को सिद्ध कर रहा है. यह दुर्गन्ध बता रही है कि सीबीआई में सब कुछ सही नहीं है. इसका तो सबसे पहले पता तब चला गया था जब इसके पूर्व डायरेक्टर रंजीत सिन्हा पर 2 जी केस में अनिल धीरूभाई अंबानी समूह के आला अफसरों से बार-बार मिलने के सीधे आरोप लगे थे. यह भी आरोप है कि ये अफसर रंजीत सिन्हा के 2 जनपथ स्थित सरकारी आवास में जाकर उनसे मिलते भी थे. सघन जांच से पता चला था कि रंजीत सिन्हा से अनिल अंबानी समूह के अफसरों ने 50 बार मुलाकात की थी. बहुचर्चित 2 जी घोटाले में अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस टेलीकाम की भूमिका की सीबीआई जांच कर रही थी. अभी तक कर ही रही है. न जाने कबतक करती रहेगी.

आपको याद ही होगा कि फरवरी 2015 में शारदा घोटाले में गिरफ्तार किए गए पूर्व सांसद मतंग सिंह के मसले में 'ऊपर से' दखलअंदाजी करने के कारण अनिल गोस्वामी को केंद्रीय गृह सचिव पद से हटा दिया गया था. अनिल गोस्वामी पर पूर्व केंद्रीय मंत्री मतंग सिंह की गिरफ्तारी रोकने के लिए सीबीआई को प्रभावित करने का आरोप लगा था. वे भी सीबीआई के अपने कुछ खास अफसरों से लगातार बात कर रहे थे, ताकि मतंग सिंह को मदद की मिले. तो कहीं न कहीं लगता है कि सीबीआई के भीतर कुछ अफसर घूस के बदले बहुत कुछ देने को तैयार और तत्पर रहते हैं.

अब नोएडा के आरुषि तलवार के कत्ल के केस को ही ले लें. इस केस में भी सीबीआई की जांच सवालों के घेरे में ही रही थी. सीबीआई 2 जी केस में किसी भी आरोपी के खिलाफ आरोप सिद्ध करने में अबतक तो नाकाम रही ही है.

दरअसल सीबीआई में कई स्तरों पर सुधार करने की आवश्यकता है. सीबीआई में स्टाफ की भी घोर किल्लत बताई जाती है. इन हालातों में सीबीआई किस तरह से व्यापम फर्जीवाड़े जैसे हजारों केसों की जांच कर सकेगी? व्यापम घोटाले में तो हजारों आरोपी बताये जाते हैं. इनमें से 400 तो फरार हैं. जाहिर है कि इतने बड़े केस की जांच करना कोई बच्चों का खेल तो है नहीं. सीबीआई पर शारदा घोटाले के कारण भी काम का बहुत दबाव है. वर्तमान में सीबीआई के पास करीब 9 हजार केस पेंडिंग हैं. जिनकी वह छानबीन कर रही है. इन सभी मामलों को सुलझाने के लिए उसे 1400 और पेशेवर अनुसंधानकर्ताओं की जरूरत है. ताजा स्थिति तो यह है कि उसके पास करीब 20 फीसद स्टाफ की कमी है. सीबीआई को जांच अधिकारियों और विधि विशेषज्ञों की सख्त कमी महसूस हो रही है. स्टाफ की भारी कमी के कारण ही सीबीआई का काम सही तरह से नहीं हो रहा है. हाई प्रोफाइल केस लटके पड़े हुए हैं. उनकी रफ्तार से जांच नहीं हो पा रही है.

जब देश की प्रमुख जांच एजेंसी के ऊपर ही भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगेंगे तो देश की जनता फिर किसके ऊपर यकीन करेगी. निर्विवाद रूप से सीबीआई को पटरी पर लाना ही होगा. आखिर ये भारत सरकार की प्रमुख जांच एजेंसी है. इसकी छवि की बहाली के लिए हर संभव प्रयास करने होंगे. हालांकि इसमें लंबा वक्त लगेगा. फिलहाल तो समझ में ही नहीं आ रहा कि जिस सीबीआई पर पंजाब नेशनल बैंक के 12,000 करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले की जांच करने की भी जिम्मेदारी है, वह किस तरह से अपना काम कर रही होगी. इस केस में गीतांजलि जेम्स के मालिक मेहुल चोकसी भी फंसे हुए हैं. ये भी पता लगाया जाना चाहिए कि किसके इशारे पर सीबीआई में यह उथल-पुथल मचवाई जा रही है? इससे किसको राजनीतिक लाभ मिल रहा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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