• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

महिलाओं के लिए ये कैसी लड़ाई जिसे महिलाओं का ही समर्थन नहीं

    • डॉ नीलम महेंन्द्र
    • Updated: 26 अक्टूबर, 2018 10:27 PM
  • 26 अक्टूबर, 2018 10:27 PM
offline
सबरीमला मंदिर में अंदर जाने को लेकर जो विरोध चल रहा है उसमें सिर्फ पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं. पर क्यों? आखिर महिलाओं के लिए दिए गए ऑर्डर को महिलाएं ही क्यों नकार रही हैं.

मनुष्य की आस्था ही वो शक्ति होती है जो उसे विषम से विषम परिस्थितियों से लड़कर विजयश्री हासिल करने की हिम्मत देती है. जब उस आस्था पर ही प्रहार करने के प्रयास किए जाते हैं, तो प्रयासकर्ता स्वयं आग से खेल रहा होता है, क्योंकि वह यह भूल जाता है कि जिस आस्था पर वो प्रहार कर रहा है, वो शक्ति बनकर उसे ही घायल करने वाली है.

पहले शनि शिंगणापुर, अब सबरीमला. बराबरी और संविधान में प्राप्त समानता के अधिकार के नाम पर आखिर कब तक भारत की आत्मा, उसके मर्म, उसकी आस्था पर प्रहार किया जाएगा?

आज सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठ रहा है कि संविधान के दायरे में बंधे हमारे माननीय न्यायालय क्या अपने फैसलों से भारत की आत्मा के साथ न्याय कर पाते हैं? क्या संविधान और लोकतंत्र का उपयोग आज केवल एक दूसरे की रक्षा के लिए ही हो रहा है? कहीं इनकी रक्षा की आड़ में भारत की संस्कृति के साथ अन्याय तो नहीं हो रहा?

सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर विरोध महिलाएं ही कर रही हैं

यह सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि यह बेहद खेदजनक है कि पिछले कुछ समय से उस देश में महिलाओं के लिए पुरुषों के समान अधिकारों की मांग लगातार उठाई जा रही है जिस देश की संस्कृति में सृष्टि के निर्माण के मूल में स्त्री पुरूष दोनों के समान योगदान को स्वयं शिव ने अपने अर्धनारीश्वर के रूप में व्यक्त किया हो.

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमला मंदिर में महिलाओं को संविधान से मिलने वाले उनके अधिकारों के मद्देनजर उन्हें प्रवेश देने का आदेश जारी किया, लेकिन खुद महिलाएं ही इस आदेश के खिलाफ खड़ी हो गईं. महिला अधिकारों के लिए लड़ी जाने वाली यह कौन सी लड़ाई है जिसे महिलाओं का ही समर्थन प्राप्त नहीं है? आपको याद होगा कि यह फैसला 4:1 के बहुमत से आया था जिसमें एकमात्र महिला जज इंदु मल्होत्रा ने...

मनुष्य की आस्था ही वो शक्ति होती है जो उसे विषम से विषम परिस्थितियों से लड़कर विजयश्री हासिल करने की हिम्मत देती है. जब उस आस्था पर ही प्रहार करने के प्रयास किए जाते हैं, तो प्रयासकर्ता स्वयं आग से खेल रहा होता है, क्योंकि वह यह भूल जाता है कि जिस आस्था पर वो प्रहार कर रहा है, वो शक्ति बनकर उसे ही घायल करने वाली है.

पहले शनि शिंगणापुर, अब सबरीमला. बराबरी और संविधान में प्राप्त समानता के अधिकार के नाम पर आखिर कब तक भारत की आत्मा, उसके मर्म, उसकी आस्था पर प्रहार किया जाएगा?

आज सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठ रहा है कि संविधान के दायरे में बंधे हमारे माननीय न्यायालय क्या अपने फैसलों से भारत की आत्मा के साथ न्याय कर पाते हैं? क्या संविधान और लोकतंत्र का उपयोग आज केवल एक दूसरे की रक्षा के लिए ही हो रहा है? कहीं इनकी रक्षा की आड़ में भारत की संस्कृति के साथ अन्याय तो नहीं हो रहा?

सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर विरोध महिलाएं ही कर रही हैं

यह सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि यह बेहद खेदजनक है कि पिछले कुछ समय से उस देश में महिलाओं के लिए पुरुषों के समान अधिकारों की मांग लगातार उठाई जा रही है जिस देश की संस्कृति में सृष्टि के निर्माण के मूल में स्त्री पुरूष दोनों के समान योगदान को स्वयं शिव ने अपने अर्धनारीश्वर के रूप में व्यक्त किया हो.

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमला मंदिर में महिलाओं को संविधान से मिलने वाले उनके अधिकारों के मद्देनजर उन्हें प्रवेश देने का आदेश जारी किया, लेकिन खुद महिलाएं ही इस आदेश के खिलाफ खड़ी हो गईं. महिला अधिकारों के लिए लड़ी जाने वाली यह कौन सी लड़ाई है जिसे महिलाओं का ही समर्थन प्राप्त नहीं है? आपको याद होगा कि यह फैसला 4:1 के बहुमत से आया था जिसमें एकमात्र महिला जज इंदु मल्होत्रा ने इस फैसला का विरोध किया था. क्योंकि यह विषय कानूनी अधिकारों का नहीं बल्कि धार्मिक आस्था का है और इसी धार्मिक आस्था पर प्रहार करने के उद्देश्य से विरोधी ताकतों द्वारा जानबूझकर इस मुद्दे को संवैधानिक अधिकारों के नाम पर विवादित करने का कृत्य किया गया है. वे भलीभांति जानते हैं कि विश्व के किसी भी कानून में इस विवाद का हल नहीं मिलेगा. व्यक्ति में अगर श्रद्धा और आस्था है, तो गंगा का जल "गंगा जल" है नहीं तो बहता पानी. इसी प्रकार वो एक मनुष्य की आस्था ही है जो पत्थर में भगवान को देखती भी है और पूजती भी है. लेकिन क्या दुनिया का कोई संविधान या कानून उस जल में गंगा मैया के आस्तित्व को या फिर उस पत्थर में ईश्वर की सत्ता को सिद्द कर सकता है?

यही कारण है कि न्यायालय के इस फैसले को उन्ही महिलाओं के विरोध का सामना करना पड़ रहा है जिनके हक में उसने फैसला सुनाया है. शायद इसीलिए कोर्ट के इस आदेश से प्रशासन के लिए भी बड़ी ही विचित्र स्थिति उत्पन्न हो गई है क्योंकि मंदिर में वो ही औरतें प्रवेश चाहती हैं जिनकी न तो अय्यपा में आस्था है ना ही सालों पुरानी इस मंदिर की परंपरा में. जबकि जो महिलाएं अय्यपा के प्रति श्रद्धा रखती हैं, वो कोर्ट के आदेश के बावजूद ना तो खुद मंदिर में जाना चाहती हैं और न ही किसी और महिला को जाने देना चाहती हैं. तो यह महिलाओं का कौन सा वर्ग है जो अपने संवैधानिक अधिकारों के नाम पर मंदिर में प्रवेश की अनुमति चाहता है इस बात को समझने के लिए आप खुद ही समझदार हैं. अगर इसे अर्बन नक्सलवाद का ही एक रूप कहा जाय तो भी गलत नहीं होगा. क्योंकि यह पहला मौका नहीं है जब मंदिर पर हमला किया गया हो.

हाँ, लेकिन इसे पहला बौद्धिक हमला अवश्य कहा जा सकता है क्योंकि इसमें मंदिर के भौतिक स्वरूप को हानी पहुचाने के बजाय लोगों की सोच, उनकी आस्था पर प्रहार करने का दुस्साहस किया गया है. इससे पहले 1950 में मंदिर को जलाने का प्रयास किया गया था. और दिसंबर 2016 में मंदिर के पास 360 किलो विस्फोटक पाया गया था. आशंका है कि यह विस्फोटक सामग्री 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद विध्वंस का बदला लेने के लिए लाई गई थी लेकिन प्रशासन और स्थानीय लोगों की जागरूकता से अनहोनी होने से बच गई और यह देश विरोधी ताकतें अपने लक्ष्य में नाकामयाब रहीं.

जब इन लोगों की इस प्रकार की गैरकानूनी कोशिशें बेकार हो गईं तो इन्होंने कानून का ही सहारा लेकर अपने मंसूबों को अंजाम देने के प्रयास शुरू कर दिए. वैसे इनकी हिम्मत की दाद देनी चाहिए कि अपनी देश विरोधी गतिविधियों के लिए ये देश के ही संविधान का उपयोग करने का प्रयत्न कर रहे हैं. लेकिन ये लोग यह भूल रहे हैं कि जिस देश की संस्कृति का परचम पूरे विश्व में लगभग 1200 साल की ग़ुलामी के बाद आज भी गर्व से लेहरा रहा है, उस देश की आस्था को कानून के दायरे में कैद करना असंभव है. यह साबित कर दिया है केरल की महिलाओं ने जो कोर्ट के फैसले के सामने दीवार बनकर खड़ी हैं.

ये भी पढ़ें-

सबरीमला दर्शन: 41 दिन का कठिन व्रत माहवारी वाली महिलाओं के लिए नहीं है

7 मंदिर जहां पुरुषों को जाने और पूजा करने की है मनाही!


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲