• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

सोशल मीडिया: वेलकम प्रियंका गांधी, बाय-बाय राहुल !

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 24 जनवरी, 2019 06:50 PM
  • 23 जनवरी, 2019 04:14 PM
offline
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में उतारना भले ही कांग्रेस की तरह से बड़ा दाव माना जा रहा हो मगर सोशल मीडिया पर एक बड़ा वर्ग है जो इसे राहुल गांधी की नाकामी के तौर पर देखता है.

2019 लोकसभा चुनाव में तीन महीने का समय ही बचा है. मगर जिस तरह से राजनीतिक ताने बाने बुने जा रहे हैं, इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि जीत के लिए सभी दल साम, दाम, दंड, भेद सब एक करने वाले हैं. कांग्रेस ने शुरुआत कर दी है. प्रियंका को पार्टी की ओर से पूर्वी उत्तर प्रदेश का महासचिव नियुक्त किया गया है. वे फरवरी के पहले सप्ताह से यह जिम्मेदारी संभालेंगी. उन्‍हें ये जिम्‍मेदारी ऐसे समय दी गई है, जब 2014 की हार के बाद कांग्रेस इस आम चुनाव में वापसी की कोशिश कर रही है. यूपी में तो उसके पास दो ही सीटें (अमेठी और रायबरेली) हैं. और मोदी विरोधी सपा-बसपा गठबंधन में उसे जगह भी नहीं मिली है. सियासी रूप से प्रियंका के सामने भले कड़ी चुनौती हो, लेकिन उनकी इस नियुक्ति का विश्‍लेषण करने वालों के जितने मुंह हैं, उतनी बातें.

प्रियंका का सक्रिय राजनीति में आना और पूर्वी उत्तर प्रदेश का पदाधिकारी बनाए जाना साफ बता देता है कि पार्टी ने एक बड़ा दाव खेला है. हालांकि, ऐसा दाव वह यूपी और लोकसभा चुनाव से पहले प्रियंका को लेकर अकसर खेलती आई है. प्रियंका की इस नियुक्ति पर वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मोतीलाल वोरा का कहना है कि, प्रियंका जी को दी गई जिम्मेदारी काफी अहम है. इसका असर केवल पूर्वी उत्तर प्रदेश पर ही नहीं, बल्कि अन्य जगहों पर भी पड़ेगा.

प्रियंका के सक्रिय राजनीति में आने को सोशल मीडिया पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं आ रही हैं

पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रियंका को लांच करना, 2019 के आम चुनावों में कांग्रेस को कितना फायदा देगा इसका फैसला समय करेगा. मगर कांग्रेस पार्टी के इस फैसले को जिस तरह सोशल मीडिया पर देखा जा रहा है वो ये साफ कर देता है कि इसका कोई बहुत बड़ा फायदा पार्टी को नहीं मिलने वाला है. ऐसा इसलिए क्योंकि प्रियंका...

2019 लोकसभा चुनाव में तीन महीने का समय ही बचा है. मगर जिस तरह से राजनीतिक ताने बाने बुने जा रहे हैं, इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि जीत के लिए सभी दल साम, दाम, दंड, भेद सब एक करने वाले हैं. कांग्रेस ने शुरुआत कर दी है. प्रियंका को पार्टी की ओर से पूर्वी उत्तर प्रदेश का महासचिव नियुक्त किया गया है. वे फरवरी के पहले सप्ताह से यह जिम्मेदारी संभालेंगी. उन्‍हें ये जिम्‍मेदारी ऐसे समय दी गई है, जब 2014 की हार के बाद कांग्रेस इस आम चुनाव में वापसी की कोशिश कर रही है. यूपी में तो उसके पास दो ही सीटें (अमेठी और रायबरेली) हैं. और मोदी विरोधी सपा-बसपा गठबंधन में उसे जगह भी नहीं मिली है. सियासी रूप से प्रियंका के सामने भले कड़ी चुनौती हो, लेकिन उनकी इस नियुक्ति का विश्‍लेषण करने वालों के जितने मुंह हैं, उतनी बातें.

प्रियंका का सक्रिय राजनीति में आना और पूर्वी उत्तर प्रदेश का पदाधिकारी बनाए जाना साफ बता देता है कि पार्टी ने एक बड़ा दाव खेला है. हालांकि, ऐसा दाव वह यूपी और लोकसभा चुनाव से पहले प्रियंका को लेकर अकसर खेलती आई है. प्रियंका की इस नियुक्ति पर वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मोतीलाल वोरा का कहना है कि, प्रियंका जी को दी गई जिम्मेदारी काफी अहम है. इसका असर केवल पूर्वी उत्तर प्रदेश पर ही नहीं, बल्कि अन्य जगहों पर भी पड़ेगा.

प्रियंका के सक्रिय राजनीति में आने को सोशल मीडिया पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं आ रही हैं

पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रियंका को लांच करना, 2019 के आम चुनावों में कांग्रेस को कितना फायदा देगा इसका फैसला समय करेगा. मगर कांग्रेस पार्टी के इस फैसले को जिस तरह सोशल मीडिया पर देखा जा रहा है वो ये साफ कर देता है कि इसका कोई बहुत बड़ा फायदा पार्टी को नहीं मिलने वाला है. ऐसा इसलिए क्योंकि प्रियंका चेहरा तो हैं मगर उनमें वो बात नहीं कि वो पीएम को सीधी टक्कर दे सकें.

आइये नजर डालते हैं कुछ ऐसे ट्वीट्स और फेसबुक पोस्ट पर. जो ये अपने आप बता देते हैं कि, राहुल गांधी ने शुरुआत ठीक ठाक की है और अब उन्हें भाजपा की तरफ से बड़ा दाव झेलने को तैयार हो जाना चाहिए.

प्रियंका के सक्रिय राजनीति में प्रवेश को लेकर लगातार रिएक्शन आ रहे हैं. इन रिएक्शंस पर यदि गौर किया जाए तो एक बड़ा वर्ग जो ये मानता है कि अगर चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस को प्रियंका गांधी को मैदान में लाना पड़ा है तो ये और कुछ नहीं बस राहुल गांधी की हार है.

ध्यान रहे कि पूर्वी उत्तर प्रदेश भाजपा का गढ़ है. जहां एक तरफ पीएम मोदी वाराणसी से सांसद है तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी गोरखपुर और आस पास के जिलों में मजबूत पकड़ रखते हैं. ऐसे में किसी ब्रह्मास्त्र के रूप में प्रियंका को पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी देना ये बता देता है कि कांग्रेस ने अपनी पहली बड़ी चाल चल दी है देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इसका क्या तोड़ निकालती है.

ये भी पढ़ें -

प्रियंका वाड्रा की पोस्टर लगाकर इमोशनल 'बेइज्‍जती'

गांधी परिवार के लिए पहली बार पहेली बन गई है रायबरेली

राहुल गांधी फॉर्म में आ चुके हैं, मगर 2019 में कप्तानी पारी खेलने पर संदेह है


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲