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सोनिया गांधी की कथनी और करनी में फर्क

    • आलोक रंजन
    • Updated: 30 दिसम्बर, 2017 12:14 PM
  • 30 दिसम्बर, 2017 12:14 PM
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सोनिया गांधी के संन्यास के बाद उनके मौजूदा रवैये को देखकर ये कहना बिल्कुल भी गलत नहीं है कि उनकी कथनी और करनी में एक बड़ा अंतर नजर आ रहा है.

सोनिया गांधी ने 20 नवंबर 2017 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग में कहा था कि नरेंद्र मोदी की सरकार अपने अहंकार में हैं और ये भी आरोप लगाया कि केंद्र सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में रुकावट पैदा करने की कोशिश कर रही है. ये भारतीय राजनीति और संसदीय प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं है. उन्होंने उस दौरान ये भी कहा था अगर सरकार चाहती है कि लोकतंत्र के मंदिर को बंद करके विधानसभा चुनावों से पहले संवैधानिक उत्तरदायित्वों से बच जाएगी तो यह गलत है. संसद के मंच पर सवाल पूछे जाने चाहिए चाहें वो उच्च पदों पर भ्रष्टाचार के सवाल हो या फिर मंत्रियों के हितों के टकराव और संदिग्ध रक्षा सौदों से जुड़े सवाल हो. सरकार ने शीतकालीन सत्र को उसके आयोजन के समय नहीं बुलाकर एक असामान्य कदम उठाया है.

गोवा में छुट्टी मनाती सोनिया गांधी को देखकर कहा जा सकता है कि वो कह कुछ रही हैं, कर कुछ रही हैं

बीजेपी ने सोनिया गांधी के तीखे हमले के बाद कांग्रेस पर तुरंत पलटवार किया था. अरुण जेटली ने जवाब देते हुए कहा था कि पहले भी चुनावों के मद्देनजर संसद सत्र का वक्त बदला जाता रहा है. इसमें नया कुछ नहीं है. कांग्रेस पार्टी खुद कई बार ऐसा कर चुकी है. यह तो पहले से चली आ रही परंपरा है जो कई बार अमल में लायी जा चुकी है. साथ में उन्होंने ये भी कहा था कि संसद का शीतकालीन सत्र जरूर होगा और तब कांग्रेस बेनकाब हो जाएगी.

इस बार संसद का शीतकालीन सत्र 15 दिसंबर 2017 से शुरू हुआ है और जो 5 जनवरी 2018 तक चलेगा. जिस सोनिया गांधी ने बीजेपी पर संसद का शीतकालीन सत्र में रुकावट पैदा करने का आरोप लगाया था, जिसने संसद के प्रति बीजेपी की आस्था को लेकर सवाल उठाये थे वो खुद जब संसद में ट्रिपल तलाक़ को लेकर महत्वपूर्ण बहस हो रही थी तो नदारद थी. जिसने बीजेपी को शीतकालीन सत्र समय पर नहीं बुलाने पर...

सोनिया गांधी ने 20 नवंबर 2017 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग में कहा था कि नरेंद्र मोदी की सरकार अपने अहंकार में हैं और ये भी आरोप लगाया कि केंद्र सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में रुकावट पैदा करने की कोशिश कर रही है. ये भारतीय राजनीति और संसदीय प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं है. उन्होंने उस दौरान ये भी कहा था अगर सरकार चाहती है कि लोकतंत्र के मंदिर को बंद करके विधानसभा चुनावों से पहले संवैधानिक उत्तरदायित्वों से बच जाएगी तो यह गलत है. संसद के मंच पर सवाल पूछे जाने चाहिए चाहें वो उच्च पदों पर भ्रष्टाचार के सवाल हो या फिर मंत्रियों के हितों के टकराव और संदिग्ध रक्षा सौदों से जुड़े सवाल हो. सरकार ने शीतकालीन सत्र को उसके आयोजन के समय नहीं बुलाकर एक असामान्य कदम उठाया है.

गोवा में छुट्टी मनाती सोनिया गांधी को देखकर कहा जा सकता है कि वो कह कुछ रही हैं, कर कुछ रही हैं

बीजेपी ने सोनिया गांधी के तीखे हमले के बाद कांग्रेस पर तुरंत पलटवार किया था. अरुण जेटली ने जवाब देते हुए कहा था कि पहले भी चुनावों के मद्देनजर संसद सत्र का वक्त बदला जाता रहा है. इसमें नया कुछ नहीं है. कांग्रेस पार्टी खुद कई बार ऐसा कर चुकी है. यह तो पहले से चली आ रही परंपरा है जो कई बार अमल में लायी जा चुकी है. साथ में उन्होंने ये भी कहा था कि संसद का शीतकालीन सत्र जरूर होगा और तब कांग्रेस बेनकाब हो जाएगी.

इस बार संसद का शीतकालीन सत्र 15 दिसंबर 2017 से शुरू हुआ है और जो 5 जनवरी 2018 तक चलेगा. जिस सोनिया गांधी ने बीजेपी पर संसद का शीतकालीन सत्र में रुकावट पैदा करने का आरोप लगाया था, जिसने संसद के प्रति बीजेपी की आस्था को लेकर सवाल उठाये थे वो खुद जब संसद में ट्रिपल तलाक़ को लेकर महत्वपूर्ण बहस हो रही थी तो नदारद थी. जिसने बीजेपी को शीतकालीन सत्र समय पर नहीं बुलाने पर बड़े-बड़े पाठ पढ़ाये थे, वे सत्र के दौरान ही छुट्टियां मना रही हैं.

ट्वीट की गयी एक तस्वीर में उन्हें गोवा में साइकिल चलाते हुए और मुस्कुराते हुए देखा जा सकता है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सोनिया गांधी क्रिसमस के बाद वाले दिन यानी 26 दिसंबर को गोवा रवाना हुई थीं. हाल ही में राहुल गांधी को सोनिया गांधी की जगह कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया हैं. शायद यही कारण है कि वो राजनीति से धीरे-धीरे सन्यास ले रही हैं. अपने स्वस्थ्य को लेकर भी उन्हें हमेशा कुछ न कुछ परेशानी हाल फ़िलहाल में होती रही है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि कोई भी व्यक्ति जब तक लोकसभा सांसद का पद धारण करता है वो एक्टिव पॉलिटिक्स से रिटायर नहीं होता है.

अगर उन्होंने सरकार पर आरोप लगाए तो संसद सत्र के दौरान उन्हें सदन में उपस्थित जरूर रहना चाहिए था. उन्हें अगर छुट्टी में जाना भी था तो सत्र खत्म होने के बाद जाना चाहिए था. जाहिर है संसद से गैरहाजिरी उनकी कथनी और करनी के फर्क को बखूबी उजागर करता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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