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कर्नाटक राज्यपाल के एक फैसले ने कैसे थर्ड फ्रंट को जिन्दा कर दिया

    • आईचौक
    • Updated: 17 मई, 2018 10:51 PM
  • 17 मई, 2018 10:51 PM
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कर्नाटक चुनावों के मद्देनजर मची उथल पुथल को देखकर सवाल उठता है कि क्या इस राजनीतिक घमासान के बाद थर्ड फ्रंट का अस्तित्व में आना संभव है?

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों के आने के बाद सरकार बनाने को लेकर जो खींचतान चल रही थी, उस खींचतान को कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला के द्वारा बीजेपी के पक्ष में किये गए फैसले ने इस देश में एक बार फिर से थर्ड फ्रंट की संभावनाओं को बल देने का काम किया है. गौरतलब है की कर्नाटक चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत ना मिलने पर कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार बनाने को लेकर राज्यपाल वजुभाई वाला से मुलाक़ात की थी, तथा ये मांग की थी कि उनके पास बहुमत है तो सर्वप्रथम उन्हें सरकार बनाने का मौका दिया जाये, लेकिन वजुभाई वाला ने बीजेपी को सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते सरकार बनाने के लिए मंजूरी दी तथा 15 दिन का समय बहुमत साबित करने के लिए दिया.

तमाम गुणा गणित के बाद आखिरकार बीएस येदियुरप्पा को गवर्नर द्वारा शपथ दिलवा ही दी गई

कर्नाटक के राज्यपाल के इस निर्णय के बाद कांग्रेस पार्टी सर्वोच्च अदालत भी गयी तथा इसके साथ-साथ देश के तमाम राजनैतिक दलों ने ने बीजेपी तथा केंद्र सरकार पर ये आरोप लगाया की बीजेपी संविधान का मखौल उड़ा रही है, औऱ सरकार बनाने के लिए हर तरह के अनैतिक तरीके अपना रही है.

सर्वाधिक लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने राज्यपाल के इस फैसले को लोकतंत्र की हत्या की संज्ञा तक दे डाली.

इसके अतिरिक्त बसपा सुप्रीमो मायावती ने तो इसे संविधान को बर्बाद करने तथा लोकतंत्र को तबाह करने की साज़िश करार दिया. वहीं केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने इसे भारतीय लोकतंत्र के लिए एक दुखः भरा दिन बताया, और उन्होंने कहा की इस तरह के निर्णय से राजनीति...

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों के आने के बाद सरकार बनाने को लेकर जो खींचतान चल रही थी, उस खींचतान को कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला के द्वारा बीजेपी के पक्ष में किये गए फैसले ने इस देश में एक बार फिर से थर्ड फ्रंट की संभावनाओं को बल देने का काम किया है. गौरतलब है की कर्नाटक चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत ना मिलने पर कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार बनाने को लेकर राज्यपाल वजुभाई वाला से मुलाक़ात की थी, तथा ये मांग की थी कि उनके पास बहुमत है तो सर्वप्रथम उन्हें सरकार बनाने का मौका दिया जाये, लेकिन वजुभाई वाला ने बीजेपी को सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते सरकार बनाने के लिए मंजूरी दी तथा 15 दिन का समय बहुमत साबित करने के लिए दिया.

तमाम गुणा गणित के बाद आखिरकार बीएस येदियुरप्पा को गवर्नर द्वारा शपथ दिलवा ही दी गई

कर्नाटक के राज्यपाल के इस निर्णय के बाद कांग्रेस पार्टी सर्वोच्च अदालत भी गयी तथा इसके साथ-साथ देश के तमाम राजनैतिक दलों ने ने बीजेपी तथा केंद्र सरकार पर ये आरोप लगाया की बीजेपी संविधान का मखौल उड़ा रही है, औऱ सरकार बनाने के लिए हर तरह के अनैतिक तरीके अपना रही है.

सर्वाधिक लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने राज्यपाल के इस फैसले को लोकतंत्र की हत्या की संज्ञा तक दे डाली.

इसके अतिरिक्त बसपा सुप्रीमो मायावती ने तो इसे संविधान को बर्बाद करने तथा लोकतंत्र को तबाह करने की साज़िश करार दिया. वहीं केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने इसे भारतीय लोकतंत्र के लिए एक दुखः भरा दिन बताया, और उन्होंने कहा की इस तरह के निर्णय से राजनीति में हॉर्स ट्रेडिंग को बढ़ावा मिलेगा.

माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि गोवा मणिपुर और मेघालय में सबसे बड़ी पार्टियों को सरकार बनाने का न्योता नहीं दिया गया, इसलिए इसी नियम का कर्नाटक में भी पालन किया जाना चाहिए था. इसके साथ-साथ येचुरी ने कहा कि मोदी जानबूझकर लोकतंत्र के सिद्धांतों और मानदंडों को नष्ट कर रहे हैं.

इस मुद्दे पर लालू प्रसाद यादव के पुत्र और बिहार के पूर्व चीफ मिनिस्टर तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर हमला बोला, तेजस्वी ने अपने ट्वीट में कहा की, बीजेपी कर्नाटक में हॉर्स ट्रेडिंग को बढ़ावा दे रही है, बीजेपी लोकतंत्र में एक ख़तरनाक परिपाटी स्थापित कर रही है, हर मामले में चित भी इनकी पट भी इनकी हेड भी इनका टेल भी इनका. इन्होंने लोकतंत्र का मज़ाक बना कर रख दिया है.

 

डीएमके नेता एमके स्टालिन ने कहा कि हम सभी ने देखा कि प्रधान मंत्री मोदी ने तमिलनाडु में गवर्नर के कार्यालय का दुरुपयोग कैसे किया, कर्नाटक में भी यही किया गया है, यह पूरी तरह से लोकतंत्र और कानून के शासन के खिलाफ है, हम इसकी निंदा करते हैं. कर्नाटक के मुद्दे पर बीजेपी की सहयोगी शिवसेना ने भी थर्ड फ्रंट के संभावित सहयोगियों के सुर में हां से हां मिलाते हुए बीजेपी पर निशाना साधा.

राज्यपाल वजुभाई वाला के द्वारा जो फैसला दिया गया उस फैसले के खिलाफ कांग्रेस तो थी ही, इसके अतिरिक्त थर्ड फ्रंट के जितने भी संभावित दल हैं. सभी ने एक सुर में राज्यपाल के साथ-साथ बीजेपी के ऊपर भी निशाना साधा. इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम में एक बात साफ़ तौर देखने को मिली कि बीजेपी के खिलाफ थर्ड फ्रंट अब पहले से ज्यादा एकजुट है.

अखिलेश यादव और मायावती ने आगामी आम चुनावों के लिए हाथ मिला कर इसके संकेत दे दिए हैं, इसके साथ ममता बनर्जी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चन्द्रशेखर रॉव के द्वारा हाल फिलहाल थर्ड ग्रांट में जान फुकंने का प्रयास भी किया जा रहा है. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू हो या डीएमके नेता एम के स्टॉलिन सभी लोग थर्ड फ्रंट की पुरजोर वकालत करते रहे हैं.कर्नाटक राज्यपाल के एक फैसले ने कैसे थर्ड फ्रंट को जिन्दा कर दिया.

कंटेंट - वेद प्रकाश सिंह इंटर्न इंडिया टुडे

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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