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सुप्रीम कोर्ट के दो फैसले जो येदियुरप्‍पा का खेल बना या बिगाड़ सकते हैं

    • अशोक उपाध्याय
    • Updated: 17 मई, 2018 09:57 PM
  • 17 मई, 2018 09:57 PM
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कर्नाटक के 'नाटक' के बीच चलिए आपको इतिहास के पन्नों से दो घटनाओं के बारे में बताएं जहां सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों के बहुमत साबित करने के मामले में दखल दिया और उसका नतीजा क्या निकला.

कर्नाटक चुनावों में उठापटक के बाद आज जब बीएस येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है तो कई सवाल खड़े हो रहे हैं. एक ओर जहां कांग्रेस गोवा, मणिपुर का हवाला देकर चीत्कार कर रही है तो वहीं दूसरी ओर भाजपा जोड़ तोड़ में लग गई है. येदियुरप्पा के शपथग्रहण को रोकने के लिए आधी रात को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई करवाई गई. तो भी कुछ हाथ न लगा.

अब राज्यपाल ने येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने के लिए 15 दिनों का समय दिया है. उधर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के निर्णय पर तो रोक लगाने से मना कर दिया है लेकिन उन्होंने वो चिट्ठी जरुर मंगाई है जिसके आधार पर राज्यपाल ने भाजपा को सरकार बनाने का न्योता दिया. उस चिट्ठी को पढ़ने के बाद कोर्ट कल सुबह 10.30 बजे सुनवाई करेगी.

ऐसे में चलिए आपको इतिहास के पन्नों से दो घटनाओं के बारे में बताएं जहां कोर्ट ने दखल दिया और उसका नतीजा क्या निकला :

झारखंड: कम सीटें लाकर भी शिबू बुलाए गए थे सरकार बनाने के लिए

2 मार्च 2005 को झारखंड मुक्ति मोर्च के अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. झारखंड के तात्कालीन राज्यपाल सैयद सिब्ते रज़ी ने उन्हें बहुमत साबित करने के लिए 19 दिनों का समय दिया.

यहां कांग्रेस के राज्यपाल ने संविधान और नैतिकता को ठेंगा दिखाया था

सुप्रीम कोर्ट-

9 मार्च 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने प्रोटेम स्पीकर को आदेश दिया कि शिबु सोरने दो दिनों के भीतर यानी 11 मार्च तक सदन में बहुमत साबित करें.

भाजपा का तर्क-

इस पर भाजपा का तर्क था कि जेएमएम को बहुमत साबित करने के लिए बहुत ज्यादा समय दे दिया है जिससे की विधयाकों की खरीद फरोख्त का खतरा बढ़ गया है. राज्यपाल ने लोकतंत्र की हत्या की है....

कर्नाटक चुनावों में उठापटक के बाद आज जब बीएस येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है तो कई सवाल खड़े हो रहे हैं. एक ओर जहां कांग्रेस गोवा, मणिपुर का हवाला देकर चीत्कार कर रही है तो वहीं दूसरी ओर भाजपा जोड़ तोड़ में लग गई है. येदियुरप्पा के शपथग्रहण को रोकने के लिए आधी रात को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई करवाई गई. तो भी कुछ हाथ न लगा.

अब राज्यपाल ने येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने के लिए 15 दिनों का समय दिया है. उधर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के निर्णय पर तो रोक लगाने से मना कर दिया है लेकिन उन्होंने वो चिट्ठी जरुर मंगाई है जिसके आधार पर राज्यपाल ने भाजपा को सरकार बनाने का न्योता दिया. उस चिट्ठी को पढ़ने के बाद कोर्ट कल सुबह 10.30 बजे सुनवाई करेगी.

ऐसे में चलिए आपको इतिहास के पन्नों से दो घटनाओं के बारे में बताएं जहां कोर्ट ने दखल दिया और उसका नतीजा क्या निकला :

झारखंड: कम सीटें लाकर भी शिबू बुलाए गए थे सरकार बनाने के लिए

2 मार्च 2005 को झारखंड मुक्ति मोर्च के अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. झारखंड के तात्कालीन राज्यपाल सैयद सिब्ते रज़ी ने उन्हें बहुमत साबित करने के लिए 19 दिनों का समय दिया.

यहां कांग्रेस के राज्यपाल ने संविधान और नैतिकता को ठेंगा दिखाया था

सुप्रीम कोर्ट-

9 मार्च 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने प्रोटेम स्पीकर को आदेश दिया कि शिबु सोरने दो दिनों के भीतर यानी 11 मार्च तक सदन में बहुमत साबित करें.

भाजपा का तर्क-

इस पर भाजपा का तर्क था कि जेएमएम को बहुमत साबित करने के लिए बहुत ज्यादा समय दे दिया है जिससे की विधयाकों की खरीद फरोख्त का खतरा बढ़ गया है. राज्यपाल ने लोकतंत्र की हत्या की है. उन्होंने सरकार बनाने के लिए सबसे बड़ी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन को आमंत्रित न करके लोकतंत्र का मजाक बनाया है. एनडीए के पास 36 सीट होने के बावजूद, सरकार बनाने के लिए जेएमएम-कांग्रेस जिनके पास 26 सीटें थी को बुलाया गया.

नतीजा-

बहुमत साबित करने के लिए 19 दिन का समय घटकर 2 दिन रह गया और सरकार गिर गई.

गोवा: जब अल्‍पमत वाली भाजपा सरकार बनाने में कामयाब हुई

12 मार्च 2017 को गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने मनोहर परिकर को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई और 15 दिन में बहुमत साबित करने के लिए कहा.

13 सीटें लाकर भी सरकार बना डाली और नैतिकता की दुहाई दे रहे

सुप्रीम कोर्ट-

14 मार्च 2107 को सुप्रीम कोर्ट ने गोवा सरकार को 48 घंटों को भीतर सदन में बहुमत साबित करने का आदेश दिया.

कांग्रेस का तर्क-

• राज्यपाल सरकार ने सरकार बनाने के लिए सबसे बड़ी पार्टी को आमंत्रित करने के संवैधानिक नियम का पालन नहीं किया. कांग्रेस ने गोवा में 40 विधानसभा सीटों में से 17 जीती थी. लेकिन फिर भी राज्यपाल ने बीजेपी को आमंत्रित किया, जिसने 13 सीटें जीतीं थीं.

• बीजेपी ने बहुमत जुटाने का दावा किया है जो कि "देर रात हुई राजनीतिक जोड़ तोड़ का नतीजा है. यह जनादेश का अनादर है और राज्यपाल के ऑफिस का दुरुपयोग करते हुए सत्ता हासिल करने की कोशिश."

• राज्यपाल का निर्णय पूरी तरह से दुर्भाग्यपूर्ण और पक्षपातपूर्ण है. और इसे जल्दबाजी में लिया गया है.

नतीजा-

19 दिनों का समय घटकर 2 दिन रह गया. सरकार ने बहुमत साबित कर दिया.

अब सुप्रीम कोर्ट के पास ये दोनों फैसले हैं और येदियुरप्‍पा के भाग्‍य का फैसला करने के लिए इनमें से किसी को भी रेफर कर सकते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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