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आंखों के सामने अफगानिस्तान को बर्बाद होते देखना मन में टीस पैदा करता है!

    • रीवा सिंह
    • Updated: 15 अगस्त, 2021 09:46 AM
  • 15 अगस्त, 2021 09:46 AM
offline
अफ़ग़ानिस्तान टूटने की कगार पर है. विडम्बना यही है कि अमेरिका, रूस, चीन सरीखे न्यूक्लियर पावर से लैस देशों ने दोहन ही चुना है और जो मदद करना चाहते हैं वे इस स्थिति में हैं ही नहीं. हम टूटकर बिखरते देख रहे हैं हौसलों से भरे उस देश को और सिर्फ़ देखते जा रहे हैं.

अफ़ग़ानिस्तान की हालत मन को बेबसी से भर रही है. आंखों के सामने एक देश को बर्बाद होता देख रहे हैं और देखने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे हैं हम. लगता है कोई आकर बचा ले उसे इस क़यामत से. अमेरिका को जो करना था कर के बोरिया-बिस्तर समेट चुका है. रूस उस देश की सीमा पर सैन्य परीक्षण कर रहा है. पाकिस्तान ख़ुद तालिबान की ओर झुका है. चीन को ख़ास दिलचस्पी नहीं है क्योंकि रेवेन्यु जेनेरेट होने का कोई मौका नहीं दिख रहा.

भारत अपनी स्थिति जानता है, वहां बहुत बड़ा निवेश है अपने देश का, सब डूबता नज़र आ रहा है. हमने जो एयरक्राफ़्ट बतौर तोहफ़ा दिया था वह भी तालिबान ने हथिया लिया है.

हर बीतते दिन के साथ अफगानिस्तान के हालात बद से बदतर हो रहे हैं

79% क्षेत्र पर कब्ज़ा है ही. इससे बदतर हालात क्या होंगे कि बदहाली में भी डटकर सामना करने वाली अफ़ग़ान सरकार ने ख़ुद तालिबान को सरकार में जगह देने की पेशकश की है.

एक देश है जिसका उत्थान होना था, जो ऊर्जा से भरपूर है, जिसने उम्मीद से देखना शुरू किया था. उसे तहस-नहस किया जा रहा है और समूचा विश्व तमाशबीन बना बैठा है. अमेरिका ने हमेशा से निजी स्वार्थ के लिए दूसरे देशों का इस्तेमाल किया है.

विडम्बना यही है कि अमेरिका, रूस, चीन सरीखे न्यूक्लियर पावर से लैस देशों ने दोहन ही चुना है और जो मदद करना चाहते हैं वे इस स्थिति में हैं ही नहीं. हम टूटकर बिखरते देख रहे हैं हौसलों से भरे उस देश को और सिर्फ़ देखते जा रहे हैं. युगों के विकास का हासिल क्या है? सभ्यताओं का इससे अधिक पतन कैसे होता?

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अफ़ग़ानिस्तान की हालत मन को बेबसी से भर रही है. आंखों के सामने एक देश को बर्बाद होता देख रहे हैं और देखने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे हैं हम. लगता है कोई आकर बचा ले उसे इस क़यामत से. अमेरिका को जो करना था कर के बोरिया-बिस्तर समेट चुका है. रूस उस देश की सीमा पर सैन्य परीक्षण कर रहा है. पाकिस्तान ख़ुद तालिबान की ओर झुका है. चीन को ख़ास दिलचस्पी नहीं है क्योंकि रेवेन्यु जेनेरेट होने का कोई मौका नहीं दिख रहा.

भारत अपनी स्थिति जानता है, वहां बहुत बड़ा निवेश है अपने देश का, सब डूबता नज़र आ रहा है. हमने जो एयरक्राफ़्ट बतौर तोहफ़ा दिया था वह भी तालिबान ने हथिया लिया है.

हर बीतते दिन के साथ अफगानिस्तान के हालात बद से बदतर हो रहे हैं

79% क्षेत्र पर कब्ज़ा है ही. इससे बदतर हालात क्या होंगे कि बदहाली में भी डटकर सामना करने वाली अफ़ग़ान सरकार ने ख़ुद तालिबान को सरकार में जगह देने की पेशकश की है.

एक देश है जिसका उत्थान होना था, जो ऊर्जा से भरपूर है, जिसने उम्मीद से देखना शुरू किया था. उसे तहस-नहस किया जा रहा है और समूचा विश्व तमाशबीन बना बैठा है. अमेरिका ने हमेशा से निजी स्वार्थ के लिए दूसरे देशों का इस्तेमाल किया है.

विडम्बना यही है कि अमेरिका, रूस, चीन सरीखे न्यूक्लियर पावर से लैस देशों ने दोहन ही चुना है और जो मदद करना चाहते हैं वे इस स्थिति में हैं ही नहीं. हम टूटकर बिखरते देख रहे हैं हौसलों से भरे उस देश को और सिर्फ़ देखते जा रहे हैं. युगों के विकास का हासिल क्या है? सभ्यताओं का इससे अधिक पतन कैसे होता?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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