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ये हैं वे 5 नेता जिनके सपने 2017 में परवान चढ़ने से पहले ही टूट गये

    • आईचौक
    • Updated: 29 दिसम्बर, 2017 11:00 AM
  • 29 दिसम्बर, 2017 11:00 AM
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आडवाणी की आखिरी आस भी 2017 में टूट गयी और शशिकला के कारनामों ने तो सीएम की कुर्सी पर बैठने के सपने को मिट्टी में मिलाते हुए जेल ही भिजवा दिया.

प्रेम कुमार धूमल के घाव तो अभी हरे हरे हैं, कोई लालकृष्ण आडवाणी से पूछे - 2017 की यादों को वो किस तरह संजो कर रखेंगे? तीन साल पहले बीजेपी के सत्ता में आते ही मार्गदर्शक मंडल में भेज दिये गये आडवाणी की आखिरी आस भी 2017 में टूट गयी.

धूमल और आडवाणी जैसे ही भारतीय राजनीति में कई और भी नेता जिनका सपना एक ही झटके में टूट गया - और वे सोचते रहे, 'मेरी कश्ती वहां डूबी जहां पानी बहुत कम था.'

लालकृष्ण आडवाणी

लालकृष्ण आडवाणी को तकरीबन हर मौके पर मौजूद देखा जाता है. मगर, उनके हाव भाव एक से ही रहते हैं. ऐसा लगता है कि उनके मन में एक ही बात चल रही हो, छवि बदलने के लिए जिन्ना नाम के जिन्न के चक्कर में नहीं पड़ते तो जी के तमाम जंजाल से यूं ही बच जाते.

बहुत याद आओगे 2017

2017 के राष्ट्रपति चुनाव पर उनकी आखिरी उम्मीद टिकी हुई थी. अचानक सोशल मीडिया पर मैसेज वायरल होने लगे कि गुजरात में सोमनाथ ट्रस्ट की मीटिंग में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आडवाणी को राष्ट्रपति बनाने के संकेत दिये. बाद में पता चला असलियत तो कुछ और ही रही. दरअसल, जिस मीटिंग को लेकर ऐसी चर्चा की चर्चा हो रही थी, उसमें मौजूद एक अफसर ने बताया कि वहां इस मुद्दे का तो जिक्र तक न हुआ.

फिर खबर आई की बाबरी मस्जिद केस में आडवाणी पर भी मुकदमा चलेगा. रही सही उम्मीद उस दिन टूट गयी जब बीजेपी की ओर से बिहार के तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोविंद को एनडीए का राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार घोषित कर दिया गया. 2017 ने आडवाणी की उम्मीदों के ताबूत में आखिरी कील ठोक दिया जो उन्हें आजीवन सालता रहेगा.

प्रेम कुमार धूमल

आडवाणी के जख्म तो थोड़े भर भी चुके होंगे, प्रमे कुमार धूमल के तो बिल्कुल ताजा हैं. अव्वल तो उन्हें बीजेपी...

प्रेम कुमार धूमल के घाव तो अभी हरे हरे हैं, कोई लालकृष्ण आडवाणी से पूछे - 2017 की यादों को वो किस तरह संजो कर रखेंगे? तीन साल पहले बीजेपी के सत्ता में आते ही मार्गदर्शक मंडल में भेज दिये गये आडवाणी की आखिरी आस भी 2017 में टूट गयी.

धूमल और आडवाणी जैसे ही भारतीय राजनीति में कई और भी नेता जिनका सपना एक ही झटके में टूट गया - और वे सोचते रहे, 'मेरी कश्ती वहां डूबी जहां पानी बहुत कम था.'

लालकृष्ण आडवाणी

लालकृष्ण आडवाणी को तकरीबन हर मौके पर मौजूद देखा जाता है. मगर, उनके हाव भाव एक से ही रहते हैं. ऐसा लगता है कि उनके मन में एक ही बात चल रही हो, छवि बदलने के लिए जिन्ना नाम के जिन्न के चक्कर में नहीं पड़ते तो जी के तमाम जंजाल से यूं ही बच जाते.

बहुत याद आओगे 2017

2017 के राष्ट्रपति चुनाव पर उनकी आखिरी उम्मीद टिकी हुई थी. अचानक सोशल मीडिया पर मैसेज वायरल होने लगे कि गुजरात में सोमनाथ ट्रस्ट की मीटिंग में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आडवाणी को राष्ट्रपति बनाने के संकेत दिये. बाद में पता चला असलियत तो कुछ और ही रही. दरअसल, जिस मीटिंग को लेकर ऐसी चर्चा की चर्चा हो रही थी, उसमें मौजूद एक अफसर ने बताया कि वहां इस मुद्दे का तो जिक्र तक न हुआ.

फिर खबर आई की बाबरी मस्जिद केस में आडवाणी पर भी मुकदमा चलेगा. रही सही उम्मीद उस दिन टूट गयी जब बीजेपी की ओर से बिहार के तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोविंद को एनडीए का राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार घोषित कर दिया गया. 2017 ने आडवाणी की उम्मीदों के ताबूत में आखिरी कील ठोक दिया जो उन्हें आजीवन सालता रहेगा.

प्रेम कुमार धूमल

आडवाणी के जख्म तो थोड़े भर भी चुके होंगे, प्रमे कुमार धूमल के तो बिल्कुल ताजा हैं. अव्वल तो उन्हें बीजेपी आलाकमान हिमाचल प्रदेश में सीएम का उम्मीदवार भी नहीं घोषित करना चाहते थे, लेकिन मोदी कनेक्शन का इस्तेमाल कर उन्होंने ये बाधा पार कर ली. अमित शाह ने धूमल को सीएम कैंडिडेट घोषित कर दिया था. सर्वे से लेकर हर फीडबैक से मालूम था कि कांग्रेस शासन को लेकर लोगों के सत्ता विरोधी रुख के चलते बीजेपी की सरकार बननी तय है. ऐसे में धूमल के सीएम नहीं बन पाने का कोई स्कोप नजर नहीं आ रहा था, लेकिन हाय री किस्मत, बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में बहुमत का आंकड़ा हासिल कर लिया और उसका सीएम कैंडिडेट अपना ही चुनाव हार गया. अपनी बदकिस्मती को धूमल उम्र भर तो कोसेंगे ही 2017 को तो शायद ही कभी भुला पायें.

मनोज सिन्हा

2017 ने जिनके साथ क्रूर मजाक किया उनमें केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा भी शुमार हैं. यूपी विधानसभा चुनाव बीजेपी ने मोदी के चेहरे के साथ लड़ा और भारी जीत हासिल की. जब मुख्यमंत्री बनाने की बारी आई तो रेस में सबसे आगे चल रहे केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने दोबारा यूपी का सीएम बनने से इंकार कर दिया. काफी मान मनौव्वल के बाद भी जब राजनाथ नहीं माने तो, मनोज सिन्हा के नाम पर राय बनी. अंदर की कहानी जो भी हो लेकिन जब मनोज सिन्हा बनारस पहुंचे और काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन किया तो चर्चाएं और कयास यकीन में बदलने लगे. लोग मान कर चल रहे थे कि मनोज सिन्हा ही चीफ मिनिस्टर की कुर्सी संभालने जा रहे हैं - बस शपथ लेना बाकी रहा.

मेरी कश्ती वहां डूबी जहां...

जैसे ही शपथ लेने की बारी आई, किस्मत अचानक दगा दे गयी - बीजेपी से खबर आई की योगी आदित्यनाथ यूपी के नये सीएम होंगे. साल 2017 का वो पल भुलाना सिन्हा के लिए लंबे अरसे तक मुश्किल होगा.

श्यामदेव रॉय चौधरी

जो शख्स सात बार विधायक रहा हो, अपने इलाके में हद से ज्यादा लोकप्रिय हो और बेदाग छवि के साथ राजनीति की हो - उसके भी तो कुछ अरमान रहे होंगे. श्यामदेव रॉय चौधरी दादा को यूपी विधानसभा चुनाव में अपना टिकट कटने का मलाल तो रहा ही, सबसे ज्यादा इस बात का कि उन्हें इस बारे में बताया तक न गया. आखिर तक उनका एक ही सवाल था - 'बगैर मुझे बताये ऐसा क्यों किया गया?'

'ये हाथ मुझे दे दादा...'

श्यामदेव रॉय चौधरी को बीजेपी मुख्यमंत्री भले न बनाती, लेकिन कोई बड़ी जिम्मेदारी तो दे ही सकती थी. मगर, बीजेपी ने तो विधानसभा के लिए उनका टिकट ही काट दिया. बिलकुल वैसे ही जैसे दिल्ली में लालकृष्ण आडवाणी के साथ व्यवहार किया गया.

दादा को टिकट न मिलने पर उनके समर्थकों ने खूब बवाल किया. बीजेपी कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी को अपने ही संसदीय क्षेत्र में डेरा डालना पड़ा और रोड शो करने पड़े थे.

एक वाकया और हुआ जब प्रधानमंत्री मोदी दर्शन के लिए काशी विश्वनाथ मंदिर जा रहे थे तो रास्ते में दादा को किनारे खड़ा देखा. मोदी ने उनका हाथ पकड़ा और साथ खींच कर अंदर ले गये. जाहिर है दादा को 2017 की ये दोनों बातें कभी नहीं भूल पाएंगी.

वीके शशिकला

जयललिता के करीबी और सबसे भरोसेमंद ओ पन्नीरसेल्वम से जबरन इस्तीफा लेकर शशिकला ने खुद तमिलनाडु का मुख्यमंत्री बनने की पूरी तैयारी कर ली थी. विधायकों ने उन्हें एआईएडीएमके का नया नेता भी चुन लिया था, तभी सुप्रीम कोर्ट के हथौड़े ने न सिर्फ अरमानों पर पानी फेर दिया, बल्कि उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

2017 दगाबाज रे...

कहां शशिकला के नया सीएम बनने की बात चल रही थी और कहां सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें दोषी मानते हुए बेंगलुरू की विशेष अदालत के फैसले पर मुहर लगा दी. सुप्रीम कोर्ट ने चार साल की सजा के अलावा 10 करोड़ रूपये का जुर्माना भी लगा दिया. जिस बात का वो बरसों से इंतजार कर रही थीं, 2017 ने एक झटके में बहा दिया.

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लालकृष्ण आडवाणी को राष्ट्रपति बनाने की कहानी का सच

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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