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लालकृष्ण आडवाणी को राष्ट्रपति बनाने की कहानी का सच

    • गोपी मनियार
    • Updated: 15 मार्च, 2017 08:16 PM
  • 15 मार्च, 2017 08:16 PM
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सोमनाथ ट्रस्ट की मीटिंग में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खुद वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को राष्ट्रपति बनाने के संकेत दिये हैं. मगर इस प्रचार के पीछे सच कुछ और ही है. पढ़िये पूरी कहानी...

इन दिनों सोशल मीडिया पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवानी को राष्ट्रपति बानाने कि बात ने काफी जोर पकड़ा है. इतना ही नहीं सोशल मीडिया में यहां तक मैसेज वायरल हो रहे हैं कि गुजरात के सोमनाथ में हुई सोमनाथ ट्रस्ट कि मीटिंग में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खुद वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को राष्ट्रपति बनाने के संकेत दिये हैं. मगर इस प्रचार के पीछे सच कुछ और ही है. पढ़िये पूरी कहानी...

सोमनाथ वो जगह है जहां से 1992 में लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या यात्रा की शुरुआत की थी - और उनकी उस यात्रा के सारथी कोई और नहीं बल्कि नरेन्द्र मोदी ही थे. यात्रा के जरिये आडवाणी प्रधानमंत्री की कुर्सी पहुंचना चाहते थे, लेकिन इसे संयोग कहें या किस्मत अब उनके लिए राष्ट्रपति की कुर्सी का फैसला भी वही नरेन्द्र मोदी लेंगे.

क्या हुआ था सोमनाथ ट्रस्ट की मीटिंग में

इसी महीने की 8 तारीख को सोमनाथ ट्रस्ट की मीटिेंग अपने इतिहास में पहली बार सोमनाथ में हुई थी. इस मीटिंग में नरेन्द्र मोदी, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, सोमनाथ ट्रस्ट के अध्यक्ष केशुभाई पटेल, बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व चीफ सेक्रेटरी पीके लहरी के अलावा समिति ट्रस्ट के 2 और सदस्य मौजूद थे. मीटिंग की शुरुआत ही इसी बात से हुई कि सोमनाथ ट्रस्ट के अध्यक्ष केशुभाई पटेल का कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्हें दोबारा अध्यक्ष बनाया जाये. खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ही इस बात का प्रस्ताव रखा. साथ ही सोमनाथ ट्रस्ट के आगे का एजेंडा भी मीटिंग में चर्चा के लिए रखा गया. इसमें सोमनाथ मंदिर में दर्शन करने आने वाले लोगों के लिये पीने के पानी की समस्या, सोमनाथ तक ट्रेन की कनेक्टिविटी, त्योहारों पर बढ़ती दर्शनार्थियों की तादाद और उनके लिए सुविधाएं. जैसे कई मुद्दों पर चर्चा हुई. मीटिंग करीब एक घंटे तक चली.

पूर्व चीफ सेक्रेटरी पीके लहरी के मुताबिक मीटिंग में सोमनाथ ट्रस्ट के एजेंडा के अलावा किसी भी दूसरे मुद्दे को लेकर कोई बातचीत हुई ही...

इन दिनों सोशल मीडिया पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवानी को राष्ट्रपति बानाने कि बात ने काफी जोर पकड़ा है. इतना ही नहीं सोशल मीडिया में यहां तक मैसेज वायरल हो रहे हैं कि गुजरात के सोमनाथ में हुई सोमनाथ ट्रस्ट कि मीटिंग में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खुद वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को राष्ट्रपति बनाने के संकेत दिये हैं. मगर इस प्रचार के पीछे सच कुछ और ही है. पढ़िये पूरी कहानी...

सोमनाथ वो जगह है जहां से 1992 में लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या यात्रा की शुरुआत की थी - और उनकी उस यात्रा के सारथी कोई और नहीं बल्कि नरेन्द्र मोदी ही थे. यात्रा के जरिये आडवाणी प्रधानमंत्री की कुर्सी पहुंचना चाहते थे, लेकिन इसे संयोग कहें या किस्मत अब उनके लिए राष्ट्रपति की कुर्सी का फैसला भी वही नरेन्द्र मोदी लेंगे.

क्या हुआ था सोमनाथ ट्रस्ट की मीटिंग में

इसी महीने की 8 तारीख को सोमनाथ ट्रस्ट की मीटिेंग अपने इतिहास में पहली बार सोमनाथ में हुई थी. इस मीटिंग में नरेन्द्र मोदी, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, सोमनाथ ट्रस्ट के अध्यक्ष केशुभाई पटेल, बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व चीफ सेक्रेटरी पीके लहरी के अलावा समिति ट्रस्ट के 2 और सदस्य मौजूद थे. मीटिंग की शुरुआत ही इसी बात से हुई कि सोमनाथ ट्रस्ट के अध्यक्ष केशुभाई पटेल का कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्हें दोबारा अध्यक्ष बनाया जाये. खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ही इस बात का प्रस्ताव रखा. साथ ही सोमनाथ ट्रस्ट के आगे का एजेंडा भी मीटिंग में चर्चा के लिए रखा गया. इसमें सोमनाथ मंदिर में दर्शन करने आने वाले लोगों के लिये पीने के पानी की समस्या, सोमनाथ तक ट्रेन की कनेक्टिविटी, त्योहारों पर बढ़ती दर्शनार्थियों की तादाद और उनके लिए सुविधाएं. जैसे कई मुद्दों पर चर्चा हुई. मीटिंग करीब एक घंटे तक चली.

पूर्व चीफ सेक्रेटरी पीके लहरी के मुताबिक मीटिंग में सोमनाथ ट्रस्ट के एजेंडा के अलावा किसी भी दूसरे मुद्दे को लेकर कोई बातचीत हुई ही नहीं. इसी बात को और पुख्‍ता केशुभाई पटेल ने किया. उन्‍होंने जोर देकर कहा कि बैठक में राष्ट्रपति पद को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई. बैठक में जब मोदी और आडवाणी मौजूद रहे, केशुभाई और लहरी भी वहीं थे. इसलिए उनकी बात को इस बात का प्रमाण माना जा सकता है कि राष्‍ट्रपति पद के लिए आडवाणी का नाम आगे करने की बात सिर्फ कयास भर है.

सोमनाथ मंदिर ट्रस्‍ट की बैठक, जिससे उठा देश के राष्‍ट्रपति पद को लेकर बड़ा कयास..

हालांकि दिलचस्प बात तो ये है कि मीटिंग से ठीक एक दिन पहले ही लालकृष्ण आडवाणी सोमनाथ पहुंच गये थे. सोमनाथ में होने के बावजूद जिस वक्त प्रधानमंत्री वहां लोगों को संबोधित कर रहे थे, उस मंच पर आडवाणी की मौजूदगी नहीं थी. इतना ही नही जब प्रधानमंत्री मोदी, केशुभाई और अमित शाह पूजा के लिये सोमनाथ मंदिर में गये तो सोमनाथ मंदिर गये तब भी आडवाणी मौजूद नहीं थे. सच तो ये है कि आडवाणी सीधे ट्रस्ट की मीटिंग में ही दिखाई दिये.

वैसे इस मीटिंग के जरिये आडवाणी को राष्ट्रपति बनाने की बात को तूल देने को जानकार एक सोची समझी राजनीति के तौर पर भी देखते हैं. राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो आडवाणी और मोदी के बीच जो नजदीकियां थीं, वो गुजरते वक्त के साथ दूरी में तब्दील हो चुकी हैं जो मीडिया और लोगों से छुपी भी नहीं है.

आडवाणी पार्टी के सीनियर नेता होने के नाते अगर उन्हें राष्ट्रपति बनाये जाने कि बात अगर फैलती है हो सकता हे कि आडवाणी को अच्छा लगे कि उनकी सिनियॉरिटी को पार्टी में स्थान मिल रहा है.

दूसरी वजह ये भी मानी जा रही है कि मोदी पार्टी में इतने बड़े नेता हो गये हैं कि पार्टी अब बीजेपी कि जगह मोदी के नाम से जाने जानी लगी है. ऐसे में पार्टी के दूसरे नेता जिन्हें मोदी का बढ़ता कद खटक रहा है वो भी आडवाणी से मिलते रहते हैं और पार्टी में नरेन्द्र मोदी की शिकायत करते रहते हैं. अब अगर उन्हें राष्ट्रपति बनाया जाता है तो आडवाणी अपनी पार्टी और दूसरे नेताओं से दूर हो जाएंगे जो मोदी के लिए अच्छी बात होगी क्योंकि संसदीय बोर्ड का सदस्य न होने के बावजूद पार्टी में उनकी राय सुननी पड़ती है.

अगर आडवाणी को राष्ट्रपति बनाया जाता है तो नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को पहला फायदा ये होगा कि वो पार्टी के अंदरुनी मामलों में दखलंदाजी नहीं करेंगे. साथ ही राष्ट्रपति होने की वजह से दूसरे नेता जो मोदी और शाह को अपने तरीके से काम करने में आड़े आते हैं उनके लिये भी कोई विकल्प नहीं बचेगा.

अब ये देखना भी काफी दिलचस्प रहेगा कि एक जमाने में जिसके नेतृत्व में बीजेपी ने रथयात्रा निकाली थी, जिसे प्रखर हिन्दू नेता माना जाता था उस आडवाणी को क्या देश के राष्ट्रपति जैसे अहम पद के लिये मोदी चुनेंगे?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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