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यूरिया वाला दूध पीने, इंजेक्शन वाली सब्जी खाने वाले मसाले में 'गधे की लीद' पर क्या बात करें!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 18 दिसम्बर, 2020 11:17 AM
  • 18 दिसम्बर, 2020 11:16 AM
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यूपी के हाथरस में गधे की लीद वाले मसाले से अचरज तब नहीं होना चाहिए जब हमने दूध, खोए, मिठाई के नाम पर यूरिया से लेकर चूने तक बहुत कुछ खाया हो. बाक़ी विवाद की बड़ी वजह मसाले की फैक्ट्री के मालिक का हिंदू युवा वाहिनी का मेम्बर होना है. आगे जनता समझदार है.

'मिलावट पर हाय तौबा,' ' हाथरस की मसालों की फैक्ट्री का जिक्र,' 'गधे की लीद,' 'हल्दी, मिर्च, धनिया पाउडर, खटाई, गरम मसाला... उफ्फ... न ये अच्छी बात नहीं है. बिल्कुल भी नहीं है. नहीं करना चाहिए ऐसा. कोई लाघ लपेट नहीं है बात शीशे की तरह साफ है. वो लोग जो गुड़ खाते हैं और 'शुगर' का बहाना देकर गुलगुले से परहेज करते हैं उन्हें तो हक़ ही नहीं है ये कहने का कि देश मिलावट खोरों की भेंट चढ़ चुका है. हिंदुस्तान में मिलावट कोई आज की थोड़े ही न है. पूरी पूरी फिल्में बन गयी हैं इसे लेकर. याद करिये अनिल कपूर की वो पिक्चर 'मिस्टर इंडिया' वो जो लाला था. खडूस, लालची, लाला क्या क्या नहीं करता था. चावल में सफेद कंकड़ डाल में पीले और काले कंकड़... फ़िल्म देखी न हमने आज भी जब केबल वाले मेहरबान हो जाते हैं तो दोपहर में दिखा ही देते हैं और हम भी पूरा एन्जॉय करते हुए मजे से देखते हैं. मिलावट पर बात हुई है तो पहले मैटर समझ लीजिए. मैटर कुछ यूं है कि यूपी के हाथरस में एक नकली मसाले बनाने वाली फैक्ट्री का भंडाफोड़ हुआ है. फैक्ट्री के मालिकान गधे की लीद, तेजाब और भूंसे की मदद से नामी गिरामी कंपनियों का मसाला तैयार करते और उन्हें धड़ल्ले से मार्केट में बेंचते. छापा पड़ा. अपराध सिद्ध हुआ अब जो आगे होगा या तो भगवान उसे जानें और इसके बाद अगर थोड़ा बहुत बच गया तो सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ क्यों कि गिरफ्तार अभियुक्त योगी आदित्यनाथ वाले संगठन 'हिंदू युवा वाहिनी' का लोकल नेता है.

हाथरस में नकली मसाले की फैक्ट्री की बात सामने आने पर सोशल मीडिया पर तरह तरह की बातें हो रही हैं

मिलावट वाली इस खबर पर यूं तो तरह तरह के तर्क दिये जा सकते हैं मगर क्या हमें हक़ है? नहीं ख़ुद सोचिए. गिरेबान चाक करके नहीं अपने गिरेबान में झांक के सोचिए. देश के हिंदू भाई दीवाली, होली याद करें इसी तरह...

'मिलावट पर हाय तौबा,' ' हाथरस की मसालों की फैक्ट्री का जिक्र,' 'गधे की लीद,' 'हल्दी, मिर्च, धनिया पाउडर, खटाई, गरम मसाला... उफ्फ... न ये अच्छी बात नहीं है. बिल्कुल भी नहीं है. नहीं करना चाहिए ऐसा. कोई लाघ लपेट नहीं है बात शीशे की तरह साफ है. वो लोग जो गुड़ खाते हैं और 'शुगर' का बहाना देकर गुलगुले से परहेज करते हैं उन्हें तो हक़ ही नहीं है ये कहने का कि देश मिलावट खोरों की भेंट चढ़ चुका है. हिंदुस्तान में मिलावट कोई आज की थोड़े ही न है. पूरी पूरी फिल्में बन गयी हैं इसे लेकर. याद करिये अनिल कपूर की वो पिक्चर 'मिस्टर इंडिया' वो जो लाला था. खडूस, लालची, लाला क्या क्या नहीं करता था. चावल में सफेद कंकड़ डाल में पीले और काले कंकड़... फ़िल्म देखी न हमने आज भी जब केबल वाले मेहरबान हो जाते हैं तो दोपहर में दिखा ही देते हैं और हम भी पूरा एन्जॉय करते हुए मजे से देखते हैं. मिलावट पर बात हुई है तो पहले मैटर समझ लीजिए. मैटर कुछ यूं है कि यूपी के हाथरस में एक नकली मसाले बनाने वाली फैक्ट्री का भंडाफोड़ हुआ है. फैक्ट्री के मालिकान गधे की लीद, तेजाब और भूंसे की मदद से नामी गिरामी कंपनियों का मसाला तैयार करते और उन्हें धड़ल्ले से मार्केट में बेंचते. छापा पड़ा. अपराध सिद्ध हुआ अब जो आगे होगा या तो भगवान उसे जानें और इसके बाद अगर थोड़ा बहुत बच गया तो सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ क्यों कि गिरफ्तार अभियुक्त योगी आदित्यनाथ वाले संगठन 'हिंदू युवा वाहिनी' का लोकल नेता है.

हाथरस में नकली मसाले की फैक्ट्री की बात सामने आने पर सोशल मीडिया पर तरह तरह की बातें हो रही हैं

मिलावट वाली इस खबर पर यूं तो तरह तरह के तर्क दिये जा सकते हैं मगर क्या हमें हक़ है? नहीं ख़ुद सोचिए. गिरेबान चाक करके नहीं अपने गिरेबान में झांक के सोचिए. देश के हिंदू भाई दीवाली, होली याद करें इसी तरह मुस्लिम ईद और बकरीद.क्या गारंटी है कि अभी जो मिठाई इसी दीवाली में खाई या फिर जो सिवाईं घर पर इस ईद बनाई और जिसकी फ़ोटो इंस्टाग्राम पर अपलोड कर तारीफ पाई.

क्या गारंटी कि उसमें इस्तेमाल दूध और खोया असली था? हो तो भी सकता है कि उसने यूरिया, चूना साबुन समेत कई तरह का माल पड़ा हो. कितना अजीब है न कि जनता इसको इग्नोर करते हुए 'लीद' के मद्देनजर बेवजह भावुक होकर हाथरस वाले मसालों पर अपनी मिट्टी पलीत करा रही है. दूध छोड़िए.

सब्जी और फल को ही देख लीजिए पूरे साल लौकी, खीरा, सेब, संतरे जैसी दीगर चीजें मिलती हैं. अभी आदमी ने इतने पुण्य भी नहीं किये हैं कि ईश्वर अपनी रहमत बरसाए और साल भर उसे ये आइटम मिलें. चिकन और अंडे का क्या हाल है कोई कसाई या पोल्ट्री फार्म वाला गर जो यार दोस्त हो तो उससे पूछ लो.

बात मिलावट की चल रही है तो चावल दाल को कैसे भूलें. कुछ दिन पहले की बात है खबर आई थी कि चीन से 'सस्ते' वाले चावल आ रहे हैं. प्लास्टिक के बने हुए. दाल का किस्सा तो हम अनिल कपूर वाली मिस्टर इंडिया में देख सुन चुके हैं.

हो सकता है कि हाथरस में लीद वाले मसाले की खबर के बाद लोगों का बीपी, शुगर, कोलेस्ट्रॉल बढ़ गया हो मगर भाईसाहब इस लाइन में तो आप आज नहीं बल्कि बहुत पहले ही आ चुके हैं. आलोचना कर रहे हैं तो पहले अपने जीवन को देखिए. अपनी उम्र को देखिए आप जो इतने बड़े यानी आलोचना लायक हुए हैं और आज छाती पीट रहे हैं तो अपनी डेली लाइफ में मिलावट की भूमिका को देखिए.

बाक़ी हाथरस मामले में जो गुनाहगार है यानी गिरफ्तार अभियुक्त उसका संगठन गिनाया जा रहा है. बार बार ये कहकर बात को एक अलग ही लेवल का रंग दिया जा रहा है कि वो हिंदू युवा वाहिनी का नेता है. सच में बड़ी क्यूट है इस देश की जनता.

असल में देखा जाए तो ये मामला भी इसलिए सुर्खियां बटोर रहा है क्योंकि जैसा देश का माहौल है हमें हर चीज में धर्म तलाशने की आदत हो गई है. इस मामले में भी बहस इसलिए हो रही है क्यों कि धर्म तलाशा गया है और अभियुक्त को हिंदूवादी नेता बताया गया है. मुद्दे में हिंदू मुस्लिम एंगल आ गया है तो बात फिर डाइवर्ट हो गई है.

तो मुद्दा नकली मसाले और उसपर शोर करते उससे भी बड़े नकली लोग हैं. नकली इसलिए क्योंकि मिलावट का माल खाकर डकार लेना तो हम हिन्दुस्तानियों की पुरानी रीत है. काश वो विरोध जो मामले पर आज हो रहा है ये तब हुआ होता जब उन्होंने जनवरी के जाड़े में खीरा देखा होता. या फिर उस वक़्त जब जून की गर्मी जला रही हो और इन्होंने मार्केट में ठेले पर सेब बिकता देखा होता. अच्छा हां अब हमें कोल्ड स्टोरेज वाला लॉजिक दिया जाएगा तो हम भी फिर वही बात कहेंगे कि सच में बेइंतेहा के क्यूट हैं आप और आपका विरोध और उसे करने का तरीका. 

बाकी बुजुर्ग कह कर जा चुके हैं कि जब जागो तब सवेरा इसलिए करिये विरोध गधे की लीद वाले मसाले का. यूं भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वाला क्लॉज तो है ही हमारे संविधान में इसके दम पर हमने बहुत कुछ किया है और आगे भी करेंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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