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इंसानों को लेकर कुत्तों की समझ पर हुए शोध पर कौन विश्वास करेगा?

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 12 दिसम्बर, 2020 10:40 PM
  • 12 दिसम्बर, 2020 10:40 PM
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कुत्तों को लेकर एक रिसर्च हुई है और उसमें जो दावे किये गए हैं वो चौंकाने वाले हैं. कहा गया है कि कुत्ते मनुष्यों द्वारा बोले गए शब्दों को तो समझ नहीं पाते हां लेकिन उन्हें इंसानों की आवाज का जरूर पता होता है. वो मालिक की आवाज़ पहचानते हैं.

No Tommy No, Bruno come baby, have food. Blacky don't go there... गांव देहात का आदमी देखे तो लगेगा कि कोई व्यक्ति किसी इंसान से मुखातिब है और कुल जमा इंग्लिश झाड़ रहा है. मगर ये बातचीत तब कॉमन है जब हम पार्क जैसी किसी पब्लिक प्लेस पर हों और सामने वाला अपने कुत्ते (Dogs ) को वॉक करा रहा हो. वाकई अजीब होता है लोगों का अपने कुत्ते को come, go, sit, play करना और इससे भी अजीब है हमारा उन्हें देखना. कभी कभी तो ऐसा भी होता है हम 'ग्रामर नाज़ी' बन जाते हैं और अगले की इंग्लिश में Tense और punctuation देखते हैं. तो गुरु सवाल ये है कि वो कुत्ता जिसके सामने हमने इंग्लिश बोल बोल के उसकी जिंदगी में पुदीना कर रखा है क्या वो इंग्लिश या वो भाषा जिसमें हम उससे बातें कर रहे वो उस भाषा कक समझ भी पा रहा है ? जवाब बहुत सीधा है नहीं. कुत्तों को लेकर एक शोध हुआ है और जो नतीजे आए हैं वो चौंकाने वाले हैं.

शोध में कहा गया है कि कुत्ते हमारी आवाज़ तो पहचानने की क्षमता रखते हैं लेकिन हमारी बातें उनके लिए कोई मायने नहीं रखतीं. हम क्या बोल रहे हैं. क्या कह रहे हैं इसका कुत्तों को कोई आईडिया नहीं है. शोध तो ये तक कह रहा है कि जब इंसान कुछ कह रहा होता है तो प्रायः कुत्ते उन बातों को इग्नोर करते हैं.

कुत्तों को लेकर एक दिलचस्प शोध हुआ है जिसके नतीजे चौंकाने वाले हैं

बात भले ही डॉग लवर्स को आहत कर गहरा आघात दे दे मगर भइया अब जो सच्चाई है उसे त्रिदेवों से लेकर पैगंबर मोहम्मद और ईसा मसीह तक कोई नहीं बदल सकता. सब लिखा गया है. सब लिखा जा चुका है. बात आगे बढ़ाने से पहले बता दें कि ये गैर जरूरी लेकिन तमाम मामलों में बहुत जरूरी ये शोध बुडापेस्ट की इयोटवोस लोरैंड यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने किया है.

रिसर्च में शामिल लोगों ने पाया है कि...

No Tommy No, Bruno come baby, have food. Blacky don't go there... गांव देहात का आदमी देखे तो लगेगा कि कोई व्यक्ति किसी इंसान से मुखातिब है और कुल जमा इंग्लिश झाड़ रहा है. मगर ये बातचीत तब कॉमन है जब हम पार्क जैसी किसी पब्लिक प्लेस पर हों और सामने वाला अपने कुत्ते (Dogs ) को वॉक करा रहा हो. वाकई अजीब होता है लोगों का अपने कुत्ते को come, go, sit, play करना और इससे भी अजीब है हमारा उन्हें देखना. कभी कभी तो ऐसा भी होता है हम 'ग्रामर नाज़ी' बन जाते हैं और अगले की इंग्लिश में Tense और punctuation देखते हैं. तो गुरु सवाल ये है कि वो कुत्ता जिसके सामने हमने इंग्लिश बोल बोल के उसकी जिंदगी में पुदीना कर रखा है क्या वो इंग्लिश या वो भाषा जिसमें हम उससे बातें कर रहे वो उस भाषा कक समझ भी पा रहा है ? जवाब बहुत सीधा है नहीं. कुत्तों को लेकर एक शोध हुआ है और जो नतीजे आए हैं वो चौंकाने वाले हैं.

शोध में कहा गया है कि कुत्ते हमारी आवाज़ तो पहचानने की क्षमता रखते हैं लेकिन हमारी बातें उनके लिए कोई मायने नहीं रखतीं. हम क्या बोल रहे हैं. क्या कह रहे हैं इसका कुत्तों को कोई आईडिया नहीं है. शोध तो ये तक कह रहा है कि जब इंसान कुछ कह रहा होता है तो प्रायः कुत्ते उन बातों को इग्नोर करते हैं.

कुत्तों को लेकर एक दिलचस्प शोध हुआ है जिसके नतीजे चौंकाने वाले हैं

बात भले ही डॉग लवर्स को आहत कर गहरा आघात दे दे मगर भइया अब जो सच्चाई है उसे त्रिदेवों से लेकर पैगंबर मोहम्मद और ईसा मसीह तक कोई नहीं बदल सकता. सब लिखा गया है. सब लिखा जा चुका है. बात आगे बढ़ाने से पहले बता दें कि ये गैर जरूरी लेकिन तमाम मामलों में बहुत जरूरी ये शोध बुडापेस्ट की इयोटवोस लोरैंड यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने किया है.

रिसर्च में शामिल लोगों ने पाया है कि कुत्तों में इंसानों जैसे सुनने की क्षमताएं तो हैं, और वे बोलने की आवाज पहचान सकते हैं लेकिन वे शब्दों की आवाज में अंतर करने में सक्षम नहीं होते हैं. कुत्ते केवल इंसान की आवाज पर प्रतिक्रिया देते हैं उनके शब्दों पर नहीं. ये बातें एक तरफ हैं और कुछ लोग दूसरी तरफ, जिनका मानना है कि कुत्ते उनके शब्दों पर रियेक्ट करते हैं. जैसा वो चाहते हैं उनके यदि प्यारे प्यारे पेट वैसा करके दिखाते हैं.

कुत्तों के इस व्यवहार को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने इलेक्ट्रोएनसैफ्लोग्राफी मेथड का सहारा लिया है जिसमें कुत्तों के दिमाग में होने वाली गतिविधियों की स्टडी की जाती है, इसमें कुत्तों के सिर पर चिपकने वाला इलेक्ट्रोड्स लगाया जाता है और कुत्ते पर नजर रखी जाती है. कुत्ता जिन गतिविधियों को करता है वो नोट होती हैं और निष्कर्ष निकाले जाते हैं.

यूं तो अपनी तरह के इस अनोखे शोध में तमाम बातें कही गई हैं जिसको जानने में न तो आपको दिलचस्पी है. और हम भी इस डॉग बिहेवियर को लेकर बहुत ज्यादा दुखी हैं तो हम भी कुछ ज्यादा नहीं कहेंगे. स्थिति जब ऐसी हो तो फिर शोध को लेकर अब क्या ही बात करना. हां मगर बात इसपर हो सकती है कि अब आगे क्या किया जाए. अब जो जीव हमारा कहा समझ ही नहीं रहा उससे दुनिया भर की गिटिर पिटिर करके क्या ही फायदा.

जिस बात पर हमें फोकस रखना है वो है हमारी वॉइस टोन. अब क्योंकि कुत्ते केवल वॉइस टोन ही समझते हैं तो क्यों न उसी पर ध्यान रखा जाए. कुत्तों को न तो Sit एंड Come से मतलब है न ही इधर आओ और बैठ जाओ से. आप चाहे जो करना हो कर लीजिए कुत्ता वही करेगा जो उसका मूड होगा.

बाकी इतनी बातों के बाद वो लोग राहत की सांसें ज़रूर ले सकते हैं जिन्हें कुत्ता तो पालना था मगर रेपिडेक्स और अंग्रेजी अखबार/ मैगज़ीन पढ़ - पढ़कर भी जो इंग्लिश बोलना नहीं सीख पाए. अब ऐसे लोग आराम और बिना किसी इधर उधर की टेंशन के कुत्ता पालकर उसे सोसाइटी के गार्डन या पार्क में वॉक कराने जा सकते हैं.

जाते जाते एक अंतिम बात कुत्ते के सामने इंग्लिश बोलकर आपका कद नहीं बढ़ेगा और ऐसा करके आप ज़माने की नजरों में केवल और केवल हंसी का पात्र बनेंगे. याद रहें सावधानी हटी दुर्घटना घटी और हां कुत्तों से इंग्लिश में गिटिर पिटिर करने वालों से पूर्णतः सावधान रहें.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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