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Ranveer Singh ने साबित किया ईश्वर की बनाई सबसे श्रेष्ठ कृति औरत ही नहीं, अबसे मर्द भी है!

    • नाज़िश अंसारी
    • Updated: 30 जुलाई, 2022 04:18 PM
  • 30 जुलाई, 2022 04:18 PM
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आलोचना का सामना कर रहे रणवीर सिंह के फोटोग्राफर की तारीफ होनी चाहिए. लेकिन कुढ़ कुढ़ के खाक़ हुआ जा रहा समाज. खैर, आप कुछ भी कहिये. कहते रहिये. रणवीर की तस्वीरों को सिर्फ हॉट कहना सतही होगा. वे कला और सौंदर्य का अप्रतिम नमूना हैं. और अश्लील तो कतई नहीं...

नेट पर न्यूज़ पढ़ने के लिए कोई साइट क्लिक कीजिये. सोनिया गांधी से ईडी के दफ़्तर में हुई पूछताछ पढ़ते ही बीच में कोई सुनहरे बालों वाली लड़की लटकते हुए वक्ष ले के आएगी. यह बताने कि फलां कंपनी की फलां क्रीम लीजिये. उभार बढ़ाईये. कॉन्फिडेंट रहिये. याने आप का मर्दाना समाज औरतों को बताता है उन्हें विट, ह्यूमर, ब्रिलिएंस से ज्यादा उभारों, और सब किनारों को तराशने की ज़रूरत ज्यादा है. यह भी मर्दों ने तय किया कि उनकी शेविंग क्रीम हो या अंडर वियर, विज्ञापन में औरत होनी चाहिए. उस पर उनके क्लीवेज, कमर, नाभि भी दिखनी चाहिए.

स्विट्ज़रलैंड की हंसी वादियों में हीरो जैकेट, जींस, मफलर में रहेगा. हिरोइन सिल्क की झीनी साड़ी में ही हॉट लगेगी. सत्यं शिवं सुंदरम की जीनत अमान से लेकर, शमशेरा की वाणी कपूर तक मर्दों ने औरत को हमेशा अधखुली, पूरी खुली देखना चाहा. नागिन ज़ुल्फें, गुदाज़ बाहें, जादू आंखें, रसीले होंठ, चंदन बदन, चंचल चितवन से अटे पड़े बॉलीवुड के पास करोड़ों गाने हैं.

पेपर मैगजीन के फोटोशूट के लिए भले ही रणवीर की आलोचना हो लेकिन उनकी तस्वीरों में सुंदरता तो झलक ही रही है

हिंदी साहित्य में बिहारीलाल की नायिका के वस्त्र सदैव इतने झीने रहे कि उसकी कंचुकी (ब्रा) दिखती रही. वहीं दाढ़ी टोपी धारी उर्दू वाले 'सौदा' भी नायिका की 'अंगिया' (ब्रा) के 'कटोरों' (कप) में उलझते रहे. ज़बान से ज़बान लड़ाते रहे. यह कला है. साहित्य है. सब पे आह है. वाह है.

औरत का निर्वस्त्र शरीर हमेशा से कला का सर्वोत्तम उदाहरण था. विदेशों में स्त्री- पुरुष के शरीरिक सौंदर्य की कलात्मकता में कोई अंतर नहीं. फिर 33 कोटि अर्धनंग देवी देवताओं वाले, खजुराहो, अजंता-अलोरा की गुफ़ाओं वाले देश में रनवीर के नग्न शरीर पर इतनी हाय तौबा क्यों मची है?

न्यूड फोटो...

नेट पर न्यूज़ पढ़ने के लिए कोई साइट क्लिक कीजिये. सोनिया गांधी से ईडी के दफ़्तर में हुई पूछताछ पढ़ते ही बीच में कोई सुनहरे बालों वाली लड़की लटकते हुए वक्ष ले के आएगी. यह बताने कि फलां कंपनी की फलां क्रीम लीजिये. उभार बढ़ाईये. कॉन्फिडेंट रहिये. याने आप का मर्दाना समाज औरतों को बताता है उन्हें विट, ह्यूमर, ब्रिलिएंस से ज्यादा उभारों, और सब किनारों को तराशने की ज़रूरत ज्यादा है. यह भी मर्दों ने तय किया कि उनकी शेविंग क्रीम हो या अंडर वियर, विज्ञापन में औरत होनी चाहिए. उस पर उनके क्लीवेज, कमर, नाभि भी दिखनी चाहिए.

स्विट्ज़रलैंड की हंसी वादियों में हीरो जैकेट, जींस, मफलर में रहेगा. हिरोइन सिल्क की झीनी साड़ी में ही हॉट लगेगी. सत्यं शिवं सुंदरम की जीनत अमान से लेकर, शमशेरा की वाणी कपूर तक मर्दों ने औरत को हमेशा अधखुली, पूरी खुली देखना चाहा. नागिन ज़ुल्फें, गुदाज़ बाहें, जादू आंखें, रसीले होंठ, चंदन बदन, चंचल चितवन से अटे पड़े बॉलीवुड के पास करोड़ों गाने हैं.

पेपर मैगजीन के फोटोशूट के लिए भले ही रणवीर की आलोचना हो लेकिन उनकी तस्वीरों में सुंदरता तो झलक ही रही है

हिंदी साहित्य में बिहारीलाल की नायिका के वस्त्र सदैव इतने झीने रहे कि उसकी कंचुकी (ब्रा) दिखती रही. वहीं दाढ़ी टोपी धारी उर्दू वाले 'सौदा' भी नायिका की 'अंगिया' (ब्रा) के 'कटोरों' (कप) में उलझते रहे. ज़बान से ज़बान लड़ाते रहे. यह कला है. साहित्य है. सब पे आह है. वाह है.

औरत का निर्वस्त्र शरीर हमेशा से कला का सर्वोत्तम उदाहरण था. विदेशों में स्त्री- पुरुष के शरीरिक सौंदर्य की कलात्मकता में कोई अंतर नहीं. फिर 33 कोटि अर्धनंग देवी देवताओं वाले, खजुराहो, अजंता-अलोरा की गुफ़ाओं वाले देश में रनवीर के नग्न शरीर पर इतनी हाय तौबा क्यों मची है?

न्यूड फोटो शूट 1991 में मिलिंद सोमण पहले ही करा चुके हैं. अपने जिस्म पर सांप लपेट कर. नील नितिन मुकेश, राहुल खन्ना, जॉन अब्राहम के अलावा कुछ साल पहले रिलीज़ "पीके" में आमिर खान भी अपने प्राइवेट पार्ट को ट्रांजिस्टर से ढकते नज़र आए थे. बाज़ार तब भी गर्म हुआ था. लेकिन सड़क पर हुड़दंग नहीं मची थी.

रणवीर सिंह पर यह जो मीम्स बन रहे. कपड़े पहुंचाए जा रहे हैं. दरसल यह सभ्यता और संस्कृति का बचाव नहीं, आपकी व्यक्तिगत खुन्नस है. खुन्नस आधे टकले और तोंद निकले उन ब्याहे, अ-ब्याहे, कम ब्याहे, न-ब्याहे लोगों की है, जिनके पीसी या मोबाईल के हिडेन फोल्डर में बिकनी पहनी, न पहनी लड़कियां हैं. जो उनकी ललचाई निगाहों से हर वक़्त निहारी जाती हैं.

अब जबकि उनकी औरतें रणवीर सिंह को देखकर आह भर रही हैं. उनके गंजे सिर, बढ़ी तोंद पर उचटती सी निग़ाह डालकर उन्हें उपेक्षित कर रही हैं. जलन स्वाभाविक है. बर्दाश्त नहीं हो रहा कि कैसे और क्यों उनकी स्त्रियां किसी सजीले मर्द को देखें. यह तो हुई पुरुषों के मन की बात.

रेखांकित करने वाली बात यह है कि. 'स्त्री-शरीर ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है' कहने वाला पुरुष, पुरुष के ही शारीरिक सौंदर्य को ख़ारिज क्यों करता है? स्त्रियों का शरीर दिखाना कला है. जेंडर इक्वालिटी के परिपेक्ष्य में पुरुष को क्यों कलात्मक नहीं होना है? क्या यह डर है?

गांव में कुंओं, तालाबों पर छोटी सी चड्ढी पहन नहाते, बॉक्सर पहनकर घर में टहलते, सड़क पर पेशाब करते, किसी के भी सामने पेंट की ज़िप के आस पास खुजलाते पुरुषों की तथाकथित इज़्ज़त की क्या रणवीर ने छीछालेदर कर दी है? तब जबकि 'तमसो माँ ज्योतिर्गमय' की तर्ज़ पर तस्वीर की 'मुख्य' जगहों पर प्रकाश पहुंचा ही नहीं है.

इस लिहाज़ से तो रणवीर के फोटोग्राफर की तारीफ होनी चाहिए. लेकिन कुढ़ कुढ़ के खाक़ हुआ जा रहा समाज खिसिया कर खंबा नोचने के बजाय रणवीर पर अश्लीलता के आरोप में मुक़दमे दर्ज़ हो रहे हैं. खैर, आप कुछ भी कहिये. कहते रहिये. रणवीर की तस्वीरों को सिर्फ हॉट कहना सतही होगा. वे कला और सौंदर्य का अप्रतिम नमूना हैं. और अश्लील तो कतई नहीं...

मैंने जिम में घंटों पसीना बहाकर तराश कर बनाए गए उस जिस्म को भरपूर निहारा और सोचा, ईश्वर की बनाई सबसे श्रेष्ठ कृति सिर्फ औरत ही नहीं... अबसे मर्द भी है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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