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राकेश टिकैत के आंसू यूं न निकले, सपने में पिक्चर दिखी, 'हीरो' योगी थे...

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 04 फरवरी, 2021 05:05 PM
  • 04 फरवरी, 2021 05:05 PM
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जो बात है गाजीपुर बॉर्डर पर राकेश टिकैत इसलिए नहीं रोए कि प्रोटेस्ट 'बेकार' रहा और धीरे धीरे करके किसान पंजाब की तरफ वापस कूच कर रहे हैं. बल्कि वो इसलिए रोए कि अगर ये आंदोलन आधे में ख़त्म हो गया तो सिर्फ वो ही है जिन्हें वापस यूपी लौटना है और जहां का निजाम योगी आदित्यनाथ के हाथों में है.

आदमी कितना ही बड़ा जगलर क्यों न हो जाए, कोयले की दलाली में हाथ तो काले हो ही जाते हैं. दिल्ली में 26 जनवरी के दिन जो कुछ भी हुआ और जिस तरह लाल किला तमाम तरह की अराजकता का हॉट स्पॉट बना. लोकतंत्र और संविधान की जो धज्जियां उड़ी अब क्या ही कहा जाए. मामला शर्मसार करने वाला था जिसके बाद तमाम लोगों के साथ साथ किसान नेता राकेश टिकैत पर भी एफआईआर हुई. कहा गया कि जो किसान पिछले दो महीने से शांति के साथ धरना दे रहे थे उन्होंने हिंसा को अंजाम सिर्फ इसलिए दिया क्योंकि राकेश टिकैत जैसे लोगों ने उन्हें भड़काया. चूंकि एफआईआर हो चुकी थी. तो पुलिस विशेषकर यूपी पुलिस जो अब तक सुस्त थी हरकत में आई और फिर गाजीपुर बॉर्डर पर सर्जिकल स्ट्राइक कर दी. यूपी पुलिस पर किसानों का आरोप है कि उसने सोते हुए किसानों को मारा। खाना बनाते और उसे खाते हुए किसानों को मारा. वहीं राकेश टिकैत इससे भी दो कदम आगे निकले और दिल्ली में 26 जनवरी के दिन जो अराजकता विरोध प्रदर्शन के नाम पर हुई उसका जिम्मेदार भाजपा वालों और दिल्ली पुलिस को माना. टिकैत मीडिया से बात करते करते फफक फफक कर रोए, बोका बोका के रोए, दहाड़ें मार के रोए.

गाजीपुर बॉर्डर पर बड़ी ही बेबसी से रोए राकेश टिकैत

राकेश टिकैत को इस तरह आंसुओं से भीगा देख पूरा देश हलकान हो गया. लोगों ने गिरोहबंदी कर ली. आंसुओं ने देश को दो धड़ों में बांट कर रख दिया. राकेश को रोए ठीक ठाक वक़्त गुजर चुका है. फिलहाल भले ही ग़ाज़ीपुर बॉर्डर से पुलिस बैक फुट पर चली गयी हो. मगर इस रोने धोने के खेल में इतना तो जरूर हुआ है कि राकेश टिकैत के आंसुओं ने इस पूरे आंदोलन को एक नई दिशा दे दी है और इसका उदाहरण मुज़फ्फरनगर में हुई महापंचायत है.

रोने धोने के बीच भले ही राकेश टिकैत ने ये...

आदमी कितना ही बड़ा जगलर क्यों न हो जाए, कोयले की दलाली में हाथ तो काले हो ही जाते हैं. दिल्ली में 26 जनवरी के दिन जो कुछ भी हुआ और जिस तरह लाल किला तमाम तरह की अराजकता का हॉट स्पॉट बना. लोकतंत्र और संविधान की जो धज्जियां उड़ी अब क्या ही कहा जाए. मामला शर्मसार करने वाला था जिसके बाद तमाम लोगों के साथ साथ किसान नेता राकेश टिकैत पर भी एफआईआर हुई. कहा गया कि जो किसान पिछले दो महीने से शांति के साथ धरना दे रहे थे उन्होंने हिंसा को अंजाम सिर्फ इसलिए दिया क्योंकि राकेश टिकैत जैसे लोगों ने उन्हें भड़काया. चूंकि एफआईआर हो चुकी थी. तो पुलिस विशेषकर यूपी पुलिस जो अब तक सुस्त थी हरकत में आई और फिर गाजीपुर बॉर्डर पर सर्जिकल स्ट्राइक कर दी. यूपी पुलिस पर किसानों का आरोप है कि उसने सोते हुए किसानों को मारा। खाना बनाते और उसे खाते हुए किसानों को मारा. वहीं राकेश टिकैत इससे भी दो कदम आगे निकले और दिल्ली में 26 जनवरी के दिन जो अराजकता विरोध प्रदर्शन के नाम पर हुई उसका जिम्मेदार भाजपा वालों और दिल्ली पुलिस को माना. टिकैत मीडिया से बात करते करते फफक फफक कर रोए, बोका बोका के रोए, दहाड़ें मार के रोए.

गाजीपुर बॉर्डर पर बड़ी ही बेबसी से रोए राकेश टिकैत

राकेश टिकैत को इस तरह आंसुओं से भीगा देख पूरा देश हलकान हो गया. लोगों ने गिरोहबंदी कर ली. आंसुओं ने देश को दो धड़ों में बांट कर रख दिया. राकेश को रोए ठीक ठाक वक़्त गुजर चुका है. फिलहाल भले ही ग़ाज़ीपुर बॉर्डर से पुलिस बैक फुट पर चली गयी हो. मगर इस रोने धोने के खेल में इतना तो जरूर हुआ है कि राकेश टिकैत के आंसुओं ने इस पूरे आंदोलन को एक नई दिशा दे दी है और इसका उदाहरण मुज़फ्फरनगर में हुई महापंचायत है.

रोने धोने के बीच भले ही राकेश टिकैत ने ये दावा किया हो कि इन आंसुओं की वजह बेबस किसानों पर पड़ी लाठियां हैं. लेकिन असली वजह कुछ और है. नहीं समझे ? रुकिए समझाते हैं. ग़ाज़ीपुर बॉर्डर कहां है? जवाब पता तो ठीक नहीं तो गूगल सर्च कर लीजिए. हमें पूरा यकीन है. टिकैत की आंखों से निकले आंसुओं की वजह यूपी पुलिस और सुरक्षाबलों का वो दस्ता है, जो मौके पर धीरे धीरे करके पहुंचा. ये दस्ता टिकैत के लिए उस फ़िल्म का ट्रेलर था जिसे देखा उन्होंने तब, जब उन्हें दिन भर की थकावट के बाद झपकी आई.

फ़िल्म का जिक्र होगा और बिल्कुल होगा। मगर इतना जरूर याद रखियेगा कि एक म्यान में दो तलवारें हरगिज़ नहीं रह सकतीं. सपने में टिकैत को पुलिस के आगे आगे हंसते मुस्कुराते यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ दिखे जिन्होंने इशारों इशारों में उन्हें समझा दिया कि जंगल में सिर्फ एक शेर होता है और वही रहता भी है. इतना समझते हुए टिकैत को इस बात का भी एहसास हो गया था कि अगर कुछ ऊंच नीच हो गयी तो ये पंजाब वाले किसान कैप्टन अमरिंदर सिंह की देख रेख में पंजाब की तरफ वापस कूच कर जाएंगे और किसान नेता के रूप में टिकट अकेले बचेंगे और अंत में लौटना तो उन्हें भी वापस यूपी ही है.

टिकैत के आंसू शायद इसलिए निकलें हों क्योंकि  उन्होंने सपना देखा हो और सपने में उन्हें यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ दिखे हों

आगे कुछ कहने बताने की जरूरत नहीं है. जनता समझदार है. गुजरे साल का वो वक़्त जब देश नागरिकता संशोधन कानून की आग में जल रहा था यूपी में सरकार ने दंगाइयों और अपने को एक्टिविस्ट कहने वालों के साथ क्या किया? किसी से छुपा थोड़े ही है.

ध्यान रहे कि नागरिकता संशोधन वाला बवाल और कार्रवाई दोनों ही पिछले साल जाड़े में शुरू हुई थी. अभी भी जाड़ा ही है. आज भी जब हिमालय से वाया हिमाचल और उत्तराखंड होते हुए हवा यूपी पहुंचती होगी उन बेचारों को पड़ी लकड़ी उठाने का असल मतलब समझ में आता होगा.

भविष्य क्या होगा पूरी पिक्चर टिकैत को सपनों में ही दिख गई थी. गृहमंत्री अमित शाह, पीएम मोदी और दिल्ली पुलिस क्या क्या करेंगे और कितना करेंगे ये तो बाद की बात थी. लेकिन जो यूपी के सीएम योगी करेंगे वो कहीं ज्यादा दुखदाई होगा. सपने में ही सही टिकैत इन सभी बातों को समझ गए थे. मीडिया के कैमरों और चैनल आईडी ने सोने पर सुहागा कर दिया. टपका दिए आंसू.

बहरहाल, राकेश टिकैत और इस किसान आंदोलन का भविष्य क्या होता है This question is a good question. मगर किसान नेता के रूप में एक डर तो उन्हें खुद है कि अब आने वाले वक़्त में उनकी हालत बिन पेंदी के लोटे जैसी होने वाली है. आने वाला वक़्त राकेश और उनके आंसुओं के लिए तो क्रूशियल है ही देशवासी भी एक हाथ में पॉपकॉर्न दूजे में कोल्ड ड्रिंक लेकर उसे देखेंगे और उसका पूरा लुत्फ़ लेंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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