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योगी आदित्यनाथ की सख्ती के बाद भी क्यों नहीं सुधर रही है उत्तर प्रदेश पुलिस?

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 30 जनवरी, 2021 07:26 PM
  • 29 जनवरी, 2021 08:32 PM
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वो कहावत आपने सुनी ही होगी कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है. लेकिन, पुलिस विभाग में एक मछली गंदी नहीं है. तालाब की सैकड़ों मछलियां, छोटी हों या बड़ी, गंदी ही नजर आती हैं. हालांकि, अच्छे लोग हर जगह होते हैं, तो यहां भी हैं.

पुलिस क्या है? बहुत ही सीधा सा सवाल है. लेकिन, पुलिस को समझ गए, तो इसका जवाब उतना ही घूमता जाएगा, जितना साईकिल का पहिया. गूगल पर पुलिस के दायित्व खोज रहा था. वहां पर पता चला कि पुलिस का मूल कर्तव्य कानून व्यवस्था व लोक व्यवस्था को स्थापित रखना और अपराध नियंत्रण व निवारण के साथ जनता से प्राप्त शिकायतों का निस्तारण करना है. इसके अलावा भी पुलिस के कई सारे दायित्व हैं. उत्तर प्रदेश के कानपुर का रहने वाला हूं, तो 'उत्तर प्रदेश पुलिस' अर्थात PP से भती-भांति परिचित भी हूं. सीधे और साफ शब्दों में कहा जाए, तो पुलिस एक ऐसा महकमा है, जिसके कंधों पर किसी चौराहे पर लगी पिकेट से लेकर प्रदेश स्तर तक का सबसे ज्यादा भार होता है. लेकिन, इस महकमे में अंदर तक घुसे भ्रष्टाचार के दीमक ने इसको खोखला बना दिया है. आइए आपको रूबरू कराते हैं पुलिस विभाग के ऐसे ही कुछ चेहरों से.

'लुटेरी' पुलिस

पुलिस विभाग का दायित्व जितना बड़ा है, उसकी छवि उतनी ही खराब है. कुछ समय पहले ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पूर्व संसदीय क्षेत्र और उनके गृहनगर गोरखपुर में बस स्टेशन से दो सर्राफा कारोबारियों के साथ लूट की घटना सामने आई थी. इस घटना के आरोपी असली 'पुलिसवाले' थे. इस लूट में शामिल एक दारोगा और दो सिपाहियों को गिरफ्तार कर लिया गया है. एसएसपी ने बताया कि 30 दिसंबर को शाहपुर इलाके में एक अन्य कारोबारी से हुई लूट भी इन्हीं आरोपियों ने की थी. ये मामला सीएम योगी के गोरखपुर से जुड़ा था, जिसकी वजह से इसे दबाया नहीं जा सका. ऐसे ही ना जाने कितने मामले यूपी के अन्य जिलों में घटते रहते हैं.

'मुखबिर' पुलिस 

कानपुर का बिकरू कांड अभी लोगों के जेहन में ताजा है. बीते साल दो जुलाई को बिकरू में अपराधी विकास दुबे और उसके गुर्गों ने मिलकर सीओ बिल्हौर देवेंद्र मिश्रा समेत आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर सनसनी फैला दी थी. इसके बाद पुलिस ने ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए 5 एनकाउंटर में विकास के 5 गुर्गों को ढेर कर दिया. वहीं, दुर्दांत हिस्ट्रीशीटर...

पुलिस क्या है? बहुत ही सीधा सा सवाल है. लेकिन, पुलिस को समझ गए, तो इसका जवाब उतना ही घूमता जाएगा, जितना साईकिल का पहिया. गूगल पर पुलिस के दायित्व खोज रहा था. वहां पर पता चला कि पुलिस का मूल कर्तव्य कानून व्यवस्था व लोक व्यवस्था को स्थापित रखना और अपराध नियंत्रण व निवारण के साथ जनता से प्राप्त शिकायतों का निस्तारण करना है. इसके अलावा भी पुलिस के कई सारे दायित्व हैं. उत्तर प्रदेश के कानपुर का रहने वाला हूं, तो 'उत्तर प्रदेश पुलिस' अर्थात PP से भती-भांति परिचित भी हूं. सीधे और साफ शब्दों में कहा जाए, तो पुलिस एक ऐसा महकमा है, जिसके कंधों पर किसी चौराहे पर लगी पिकेट से लेकर प्रदेश स्तर तक का सबसे ज्यादा भार होता है. लेकिन, इस महकमे में अंदर तक घुसे भ्रष्टाचार के दीमक ने इसको खोखला बना दिया है. आइए आपको रूबरू कराते हैं पुलिस विभाग के ऐसे ही कुछ चेहरों से.

'लुटेरी' पुलिस

पुलिस विभाग का दायित्व जितना बड़ा है, उसकी छवि उतनी ही खराब है. कुछ समय पहले ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पूर्व संसदीय क्षेत्र और उनके गृहनगर गोरखपुर में बस स्टेशन से दो सर्राफा कारोबारियों के साथ लूट की घटना सामने आई थी. इस घटना के आरोपी असली 'पुलिसवाले' थे. इस लूट में शामिल एक दारोगा और दो सिपाहियों को गिरफ्तार कर लिया गया है. एसएसपी ने बताया कि 30 दिसंबर को शाहपुर इलाके में एक अन्य कारोबारी से हुई लूट भी इन्हीं आरोपियों ने की थी. ये मामला सीएम योगी के गोरखपुर से जुड़ा था, जिसकी वजह से इसे दबाया नहीं जा सका. ऐसे ही ना जाने कितने मामले यूपी के अन्य जिलों में घटते रहते हैं.

'मुखबिर' पुलिस 

कानपुर का बिकरू कांड अभी लोगों के जेहन में ताजा है. बीते साल दो जुलाई को बिकरू में अपराधी विकास दुबे और उसके गुर्गों ने मिलकर सीओ बिल्हौर देवेंद्र मिश्रा समेत आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर सनसनी फैला दी थी. इसके बाद पुलिस ने ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए 5 एनकाउंटर में विकास के 5 गुर्गों को ढेर कर दिया. वहीं, दुर्दांत हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे को उज्जैन से गिरफ्तार कर कानपुर ला रही एसटीएफ के काफिले की एक गाड़ी पलट गई. इसके बाद विकास दुबे भी एनकाउंटर में मारा गया. ये सब पुलिस का गुड वर्क था. अब आते हैं असली खेल पर, मामले की जांच कर रही एसआईटी (SIT) की रिपोर्ट में कहा गया था कि 37 पुलिसकर्मियों को अपराधी विकास दुबे से संबंध रखने का दोषी पाया गया है. इस मामले में चौबेपुर के एसओ विनय तिवारी और सब-इंस्पेक्टर केके शर्मा को गिरफ्तार किया गया. बताया गया था कि इन लोगों ने ही विकास दुबे को उसके घर पर होने वाली पुलिस की दबिश की जानकारी दी थी. मामले में आईपीएस अनंत देव को भी निलंबित किया गया था.

'रंगदारी' मांगने वाली पुलिस

ये सब पुलिस विभाग के तालाब की छोटी मछलियां थीं. अब बात करते हैं, बड़ी मछलियों की. बीते साल सात सितंबर को क्रशर कारोबारी इंद्रकांत त्रिपाठी ने महोबा एसपी मणिलाल पाटीदार पर उगाही करने और धमकाने का आरोप लगाया था. इस मामले को लेकर इंद्रकांत का बनाया हुआ ऑडियो-वीडियो वायरल हुआ था. इसके दूसरे ही दिन आठ सितंबर को इंद्रकांत अपनी गाड़ी में गोली लगने से घायल मिले थे. 13 सितंबर को इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई थी. इस मामले में एसआईटी जांच में मणिलाल को दोषी पाया गया था. इसके अलावा आरोपित बर्खास्त एसओ देवेंद्र शुक्ल, बर्खास्त सिपाही अरुण यादव, आरोपित ब्रह्मदत्त, सुरेश सोनी फिलहाल जेल में बंद हैं. वहीं, आरोपित एसपी मणिलाल पाटीदार अभी भी फरार है और उस पर 50 हजार रुपये का इनाम घोषित है. पुलिस ने उन्हें भगोड़ा घोषित कर रखा है.

'रिश्वतखोर' पुलिस

पशुधन घोटाले के आरोपी निलंबित डीआईजी अरविंद सेन ने ठगी के आरोपियों को बचाने के लिए 35 लाख की रिश्वत ली थी. मामला कुछ ये था कि इंदौर के बिजनेसमैन मंजीत भाटिया से अप्रैल 2018 में कुछ लोग उनके आवास पर मिले. आरोपियों ने पशुपालन मंत्री के करीबी और उपनिदेशक पशुपालन का नाम बताकर सप्लाई का ठेका दिलाने की बात कही. मंजीत से ठेके के लिए आरोपियों ने नौ करोड़ से ज्यादा की रिश्वत ली. काफी समय बाद भी ठेका नहीं मिलने पर मंजीत भाटिया ने आरोपियों पर रुपये वापसी का दबाव बनाया. दबाव पड़ने पर आरोपियों ने अरविंद सेन से सांठगांठ की. अरविंद सेन ने आरोपियों को बचाने के एवज में 50 लाख रुपये मांगे थे, लेकिन 35 लाख में डील तय हो गई थी. इस रकम में पांच लाख अरविंद सेन के खाते में जमा हुए और 30 लाख नगद लिए गए थे. निलंबित डीआईजी पर 50 हजार का इनाम घोषित था. सेन ने हाल ही में सरेंडर किया है. वहीं, इस मामले में आईपीएस दिनेश चंद्र दुबे की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई थी. जिसके बाद उन्हें भी निलंबित कर दिया गया था.

'भ्रष्टाचारी' पुलिस

2019 में नोएडा के पूर्व एसएसपी वैभव कृष्णा ने पांच आईपीएस अधिकारियों अजय पाल शर्मा, सुधीर कुमार सिंह, राजीव नारायण मिश्रा, गणेश साहा और हिमांशु कुमार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे. हालांकि, अभी तक हुई जांच में सुधीर कुमार सिंह, राजीव नारायण और गणेश साहा के खिलाफ आरोप साबित नहीं हो सके हैं. वहीं, आईपीएस अजय पाल और आईपीएस हिमांशु कुमार के खिलाफ काफी साक्ष्य मिले थे. जिसकी वजह से इन पर विजिलेंस जांच की सिफारिश की गई थी. पूर्व एसएसपी वैभव कृष्णा पिछले एक साल से निलंबित चल रहे हैं. इस मामले की जांच अभी भी जारी है.

सीएम योगी भी नहीं लगा पा रहे लगाम

ये मामले चुनिंदा नहीं हैं. ऐसे कई मामले बीते वर्षों में सामने आए हैं. पुलिस महकमे के कई बड़े अधिकारियों से लेकर ट्रैफिक पुलिस का हवलदार भी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाते रहे हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति की वजह से इन अधिकारियों और पुलिसवालों को निलंबित कर दिया गया है. लेकिन, सवाल अब भी खड़ा हो रहा है कि निलंबन और जेल भेजे जाने के बावजूद पुलिस महकमे में भ्रष्टाचार खत्म क्यों नहीं हो रहा है. अपनी नीतियों को गंभीरता से लागू करने वाले सीएम योगी आदित्यनाथ को पुलिस विभाग में फैले भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए कुछ और कड़े फैसले लेने होंगे.

मेरा मानना है कि सीएम योगी को पुलिस सुधार की इस मुहिम में जनता को भी शामिल करना चाहिए. हालांकि, यूपी पुलिस इस सुधार मुहिम का समर्थन करने वाली जनता को भी गैंगस्टर लगाकर जेल भेज सकती है. यूपी पुलिस राज्य सरकार के अधीन है और इस पर फैसला सीएम योगी को ही करना है. वो कहावत आपने सुनी ही होगी कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है. लेकिन, इस विभाग में एक मछली गंदी नहीं है. तालाब की सैकड़ों मछलियां, छोटी हों या बड़ी, गंदी ही नजर आती हैं. हालांकि, अच्छे लोग हर जगह होते हैं, तो यहां भी हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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