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किसान आंदोलन अब दबे-छुपे नहीं, खुलेआम पॉलिटिकल है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 29 जनवरी, 2021 07:58 PM
  • 29 जनवरी, 2021 07:58 PM
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किसान आंदोलन को राजनीतिक सपोर्ट (Farmers Protest and Politics) तो पहले से ही हासिल था, हिंसा (Delhi Violence) को लेकर घिरे राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) के भावुक होते ही विपक्षी दलों की सीधी एंट्री हो गयी - अब सरकार के सामने तो किसान हैं, लेकिन पीछे विपक्ष खड़ा है.

अलग अलग राजनीतिक दौर में भावनाओं का रोल भी अलग होता है. मौजूदा राजनीतिक दौर में भावनाओं की भूमिका और भी बढ़ गयी है. किसान आंदोलन में भी जो भावनाएं सोशल मीडिया पर विरोध में उबल रही थीं, राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) के आंसुओं से भावनाओं का ऐसा प्रवाह हुआ कि देखते ही देखते गाजीपुर और टिकैत के गांव के बीच सौ किलोमीटर से ज्यादा का फासला सिमटता नजर आने लगा.

भावनाओं के इस खेल को राकेश टिकैत भी लगता है समझ गये और उनकी आंख से आंसू छलकते ही सपोर्ट में किसानों की भावनाएं उमड़ पड़ीं और योगी सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा. पंजाब से आने वाले किसानों को तो पहले से ही खालिस्तानी बताया जा रहा था. अकाली नेता हरसिमरत कौर इसी मुद्दे पर राहुल गांधी के सामने राजीव गांधी और इंदिरा गांधी की भी याद दिला चुकी हैं. दिल्ली हिंसा (Delhi Violence) के बाद किसान आंदोलन से जुड़े सभी लोग सोशल मीडिया पर देशद्रोही समझे और समझाये जाने लगे थे. मगर, राकेश टिकैत के भावुक होते ही लोगों की भावनाओं ने राजनीति का खेल और उलझा कर रख दिया है.

राकेश टिकैत को टीवी पर सिसकते हुए देखने के बाद माहौल ऐसा बदला कि मुजफ्फरनगर में महापंचायत का माहौल तो बना ही, नेताओं (Farmers Protest and Politics) के लगातार सपोर्ट के वादे भरे फोन आने शुरू हो गये. गाजीपुर बॉर्डर से पश्चिम बंगाल चुनाव तो दूर है ही, 2022 का विधानसभा चुनाव तो बहुत ही दूर है, लेकिन पंचायत चुनाव के नजदीक होने के चलते ही किसान आंदोलन ने राजनीति को बड़े ही नाजुक मोड़ पर पहुंचा दिया है.

खत्म होते होते कैसे आंदोलन ने जोर पकड़ लिया

26 जनवरी की हिंसा के बाद जैसे ही दिल्ली पुलिस हरकत में आयी, और किसान नेताओं को बैकफुट पर आना पड़ा और आंदोलन कमजोर पड़ने लगा था. गाजीपुर बॉर्डर पर भी प्रशासन के हरकत में आते ही किसानों के बीच माहौल में निराशा के भाव देखे जाने लगे थे.

भारी पुलिस सुरक्षा बलों की तैनाती के बीच पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी भी मौके पर पहुंच चुके थे. जगह खाली करने का नोटिस तो पहले ही दिया जा चुका...

अलग अलग राजनीतिक दौर में भावनाओं का रोल भी अलग होता है. मौजूदा राजनीतिक दौर में भावनाओं की भूमिका और भी बढ़ गयी है. किसान आंदोलन में भी जो भावनाएं सोशल मीडिया पर विरोध में उबल रही थीं, राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) के आंसुओं से भावनाओं का ऐसा प्रवाह हुआ कि देखते ही देखते गाजीपुर और टिकैत के गांव के बीच सौ किलोमीटर से ज्यादा का फासला सिमटता नजर आने लगा.

भावनाओं के इस खेल को राकेश टिकैत भी लगता है समझ गये और उनकी आंख से आंसू छलकते ही सपोर्ट में किसानों की भावनाएं उमड़ पड़ीं और योगी सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा. पंजाब से आने वाले किसानों को तो पहले से ही खालिस्तानी बताया जा रहा था. अकाली नेता हरसिमरत कौर इसी मुद्दे पर राहुल गांधी के सामने राजीव गांधी और इंदिरा गांधी की भी याद दिला चुकी हैं. दिल्ली हिंसा (Delhi Violence) के बाद किसान आंदोलन से जुड़े सभी लोग सोशल मीडिया पर देशद्रोही समझे और समझाये जाने लगे थे. मगर, राकेश टिकैत के भावुक होते ही लोगों की भावनाओं ने राजनीति का खेल और उलझा कर रख दिया है.

राकेश टिकैत को टीवी पर सिसकते हुए देखने के बाद माहौल ऐसा बदला कि मुजफ्फरनगर में महापंचायत का माहौल तो बना ही, नेताओं (Farmers Protest and Politics) के लगातार सपोर्ट के वादे भरे फोन आने शुरू हो गये. गाजीपुर बॉर्डर से पश्चिम बंगाल चुनाव तो दूर है ही, 2022 का विधानसभा चुनाव तो बहुत ही दूर है, लेकिन पंचायत चुनाव के नजदीक होने के चलते ही किसान आंदोलन ने राजनीति को बड़े ही नाजुक मोड़ पर पहुंचा दिया है.

खत्म होते होते कैसे आंदोलन ने जोर पकड़ लिया

26 जनवरी की हिंसा के बाद जैसे ही दिल्ली पुलिस हरकत में आयी, और किसान नेताओं को बैकफुट पर आना पड़ा और आंदोलन कमजोर पड़ने लगा था. गाजीपुर बॉर्डर पर भी प्रशासन के हरकत में आते ही किसानों के बीच माहौल में निराशा के भाव देखे जाने लगे थे.

भारी पुलिस सुरक्षा बलों की तैनाती के बीच पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी भी मौके पर पहुंच चुके थे. जगह खाली करने का नोटिस तो पहले ही दिया जा चुका था. खबर ये आने लगी थी कि राकेश टिकैत की गिरफ्तारी के साथ किसानों का जमावड़ा भी खत्म हो सकता है.

डंडे की बात करते वीडियो के वायरल होने और एक पुलिसकर्मी के ये शिकायत करने के बाद कि राकेश टिकैत ने भी हिंसा के लिए उकसाया था, भारतीय किसान यूनियन के नेता खासे दबाव में आ चुके थे और बार बार सफाई पेश किये जा रहे थे. मौके पर पहुंते प्रशासनिक अधिकारियों और राकेश टिकैत की बातचीत सहमति की तरफ बढ़ने लगी थी.

तभी राकेश टिकैत को किसी ने सूचना दी, अमर उजाला अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, एक बीजेपी विधायक अपने 100 से ज्यादा समर्थकों के साथ वहां पहुंच गये हैं. ये सुनते ही राकेश टिकैत अफसरों से हो रही बातचीत बीच में ही छोड़ दिये और माइक लेकर मंच पर पहुंच गये.

किसान आंदोलन में राकेश टिकैत का रोल कंधा मुहैया कराने जैसा है जहां बंदूक के ट्रिगर पर बंदूक का हाथ है

मंच से राकेश टिकैत ने किसान साथियों से कहा कि हमारे खिलाफ साजिश रची जा रही है. बोले, मुझे यहां से गिरफ्तार कर लिया जाएगा और मेरे साथ आये किसानों को पिटवाया जाएगा. राकेश टिकैत ने आरोप लगाया कि बीजेपी के विधायक नीचे गुंडागर्दी कर रहे हैं और प्रशासन हमारे साथ वार्ता कर रहा है. मंच पर बैठे किसानों स राकेश टिकैत बोल दिये कि अधिकारियों को जाने का रास्ता दे दिया जाये - अब आंदोलन जारी रहेगा.

राकेश टिकैत अब पूरे फॉर्म में आ चुके थे, 'मैं मंच पर ही फांसी लगा लूंगा, लेकिन अब ये मंच नहीं छोडूंगा - गोली खाएंगे, लाठी खाएंगे, लेकिन गुंडागर्दी नहीं करने देंगे. राकेश टिकैत ने यहां तक कह दिया कि तीनों कृषि कानून वापस नहीं लिये जाएंगे तो वो आत्महत्या कर लेंगे.

अफसर मंच से हट गये और, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, आला अधिकारियों को लखनऊ अपडेट दिया. अपडेट में सबसे बड़ी बात बीजेपी विधायक की मौके पर मौजूदगी रही. अफसरों ने अपने सीनियर को समझाया कि कैसे बन चुकी बात अचानक बिगड़ गयी. तभी लखनऊ से हिदायत मिलते ही विधायक भी मौके से खिसक लिये.

अमर उजाला अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, पूछे जाने पर बीजेपी विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने बताया, 'हां, धरनास्थल पर गये थे, लेकिन लखनऊ से फोन आने के बाद वहां से लौट आये.'

राकेश टिकैत के लिए ये बहुत बड़ा टर्निंग प्वाइंट था. फिर तो राकेश टिकैत के पास विपक्षी दलों के नेताओं के फोन पर फोन लगातार आने लगे. सबसे बड़ा सपोर्ट टिकैत को अपने इलाके से मिला. राकेश टिकैत के आंसू भरे वीडियो देखने के बाद, आरएलडी नेता चौधरी अजीत सिंह ने फोन पर ढाढ़स बंधाया कि वो बिलकुल परेशान न हों, उनके सपोर्ट में सब लोग साथ खड़े हैं. बाद में जयंत चौधरी गाजीपुर बॉर्डर पहुंचे और किसानों के साथ बैठ कर बातचीत भी की.

-जयंत चौधरी-

आरएलडी नेता जयंत चौधरी ने बताया अजीत सिंह की राकेश टिकैत के बड़े भाई नरेश टिकैत से भी बात हो गयी है. अजीत सिंह ने किसान नेताओं से कहा कि ये किसानों के जीवन मरण का सवाल है - सबको एक होना है, सबको साथ रहना है. भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने कहा कि राकेश टिकैत के आंसू बेकार नहीं जाएंगे.

राकेश टिकैत ने ये भी बताया कि यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी से भी बात हुई है. राहुल गांधी ने भी फौरन ही किसानों के सपोर्ट में खड़े रहने का ऐलान कर दिया था.

दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया भी गाजीपुर बॉर्डर पहुंच कर किसान आंदोलन में पार्टी की तरफ से हुई व्यवस्था का जायजा लिया. मनीष सिसोदिया ने बताया कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भेजा है जिनसे किसान नेताओं की बात हुई थी. मनीष सिसोदिया ने बताया कि पानी के टैंकर और अन्य इंतजाम किये गये हैं और बाकी किसी भी जरूरत के लिए दिल्ली सरकार सेवा में तत्पर है.

दिल्ली पुलिस के बिजली पानी की सप्लाई रोक देने के बाद राकेश टिकैत ने अनशन शुरू कर दिया था, बोले जब उनके गांव से पानी आएगा तभी पीयेंगे. बहरहाल, सुबह ही सुबह लोगों ने उनके गांव से पानी और मट्ठा भी पहुंचा दिया था.

और राजनीति प्रत्यक्ष तौर पर हावी हो गयी!

किसान आंदोलन के दौरान गाजीपुर, सिंघु और टिकरी बॉर्डर खासे चर्चित रहे. गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलन की वापसी के साथ ही, सिंघु बॉर्डर पर हिंसा का नया तांडव देखने को मिला है.

सिंघु बॉर्डर बड़े अजीब नजारे दिखे. वहां आंदोलन कर रहे किसान और स्थानीय लोगों के आमने सामने आने से स्थिति बिगड़ गयी. गणतंत्र दिवस की हिंसा और उसके बाद दिल्ली पुलिस के बदले रुख के बाद से ही खबरे आने लगी थी कि स्थानीय लोग किसानों पर जगह खाली करने का दबाव बना रहे हैं.

गाजीपुर बॉर्डर पर तो बीजेपी विधायक के साथ लोग पहुंचे ते, लेकिन सिंघु बॉर्डर पर तो सिर्फ उत्पाती भीड़ देखी गयी जो कभी पुलिस वालों के टेंट पर पत्थरबाजी कर रही थी तो कभी किसानों को निशाना बना कर. स्थिति को काबू करने के लिए पुलिस को आंसू गैस के गोले छोड़ने के साथ साथ लाठी भी चलानी पड़ी.

हिंसा और उपद्रव के दौरान पुलिस को कई बार मूकदर्शक बने भी देखा गया, जबकि स्थानीय लोगों की भीड़ किसानों की तरफ पत्थरबाजी करती रही. भीड़ के उपद्रव का शिकार पुलिसवाले भी हुए. एक एसएचओ तो तलवार से हमले में घायल हो गया. हमलावर को पुलिसवालों ने पकड़ तो लिया लेकिन कई और भी पुलिसवाले जख्मी हो गये.

सवाल ये है कि स्थानीय लोगों की भीड़ ने अचानक कैसे सिंघु बॉर्डर पर धावा बोल दिया?

ऐसा तो है नहीं कि किसानों का धरना अभी शुरू हुआ है कि लोगों को गुस्सा आया और हमला बोल दिये. ये किसान तो वहां धरने पर दो महीने से ज्यादा समय से बैठे हुए हैं. 26 जनवरी से पहले तो कहीं कोई ऐसी घटना सुनने को नहीं मिली थी, फिर अचानक क्या हुआ कि आस पास के युवकों ने सीधे हमला बोल दिया?

ऐसा तो नहीं कि जैसे गाजीपुर बॉर्डर पर बीजेपी विधायक पहुंचे थे और डांट पड़ने पर लौट गये, वैसे ही किसी और नेता के कहने पर सिंघु बॉर्डर पर भी लोग पहुंचे हों और फिर बेकाबू हो गये हों.

जैसे गाजीपुर बॉर्डर पर राजनीति की प्रत्यक्ष एंट्री हुई है, कुछ कुछ वैसे ही सिंघु बॉर्डर पर भी राजनीति की ही परोक्ष घुसपैठ महसूस हो रही है! ये भी कुछ ऐसे ही लगता है जैसे लॉकडाउन होने पर दिल्ली के नेताओं पर लोगों को बहकाने के आरोप लगे थे और लोग घरों से निकल कर घर लौटने के लिए बस पकड़ने आनंद बिहार और गाजियाबाद बस अड्डे पहुंच गये थे. मुंबई के रेलवे स्टेशन पर भी लोगों का ऐसे ही जमावड़ा लग गया था.

गाजीपुर में राकेश टिकैत से मुलाकात के बाद जयंत चौधरी मुजफ्फरनगर में किसानों की महापंचायत का रुख कर लिया था. आम आदमी पार्टी के राज्य सभा सांसद संजय सिंह भी महापंचायत में पहुंच गये - और राहुल गांधी प्रेस कांफ्रेंस कर मोदी सरकार को फिर से टारगेट कर रहे हैं. कहते हैं, 'किसानों के आंदोलन के साथ क्या चल रहा है, आप जानते हैं... किसानों को पीटा जा रहा है... उनको डराया जा रहा है.'

पहले की बात और थी, लेकिन अब किसान आंदोलन का मिजाज बदल चुका है. पहले किसान राजनीतिक दलों को आस पास फटकने नहीं दे रहे थे, लेकिन अब विपक्ष ने आंदोलन को करीब करीब हाइजैक कर लिया है - बदले हालात में किसान आंदोलन का नया शक्ल अख्तियार कर चुका है जिसमें पीछे विपक्षी दल हैं और सामने मोदी सरकार है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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