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House-training: नेताओं की खरीद-फरोख्त लीगल करने का वक़्त आ गया है

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 26 नवम्बर, 2019 11:25 AM
  • 26 नवम्बर, 2019 11:25 AM
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Maharashtra में अब Shiv Sena और NCP दोनों ही फ्लोर टेस्ट के भरोसे हैं. फ्लोर टेस्ट में MLA एक पोराभावी कारक होते हैं इसलिए आने वाले वक़्त में विधायकों की बिक्री को पूरी तरह से ऑनलाइन कर देना चाहिए.

जैसा की देश की जनता को उम्मीद थी. चुनाव होंगे. महाराष्ट्र (Maharashtra Government Formation) के लोगों के अच्छे दिन आएंगे. मगर अब तक नतीजा सिफर ही निकला है. प्रश्न बना हुआ है कि राज्य का अगला मुख्यमंत्री (Chief Minister Of Maharashtra) कौन होगा?  महाराष्ट्र के सियासी नाटक में, फ्रेम तो बदले जा रहे हैं. लेकिन क्लाइमेक्स अब भी दूर की कौड़ी है. क्या शरद और अजीत पवार (Ajit Pawar), क्या उद्धव (ddhav Thakarey) और देवेंद्र फडणवीस जैसे हालात हैं महाराष्ट्र से जुड़े सभी नेताओं के दिमाग में अपनी अलग पिक्चर चल रही है जिसके हीरो वो खुद हैं. मन में चल रही पिक्चर फ़साना है हकीकत वो है जो हमारे सामने है. बात कोर्ट कचहरी तक आ गई है. सुप्रीम कोर्ट, फ्लोर टेस्ट (Floor Test In Maharashtra) की बात कह चुका है. यानी अब जबकि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मामले का संज्ञान ले ही लिया है तो ये कहा जा सकता है कि अब जैसे जैसे दिन बढ़ेंगे जोड़ तोड़ की राजनीति अपने पूरे शबाब पर दिखेगी. सत्ता हासिल करने के लिए साम दाम दंड भेद सब एक किया जाएगा. बात क्योंकि फ्लोर टेस्ट की चल रही है तो बता दें कि जब ऐसे पेचीदा मसले पर बात सरकार बनाने की होती है, तो सबसे जरूरी मसाला चुने हुए 'विधायक' होते हैं. ये जरूरी न होते तो कौन इन्हें होटल ले जाता. इनकी मान मनव्वल करता. जो कहते वो देता. राजनीति के इस ट्विस्ट में (हां वही जब दलों को फ्लोर टेस्ट के माध्यम से अपनी शक्ति दर्शनी हो) विधायक वैसे ही जरूरी होते हैं जैसे चिकन कोरमा बनाने के लिए दही और प्याज की संतुलित मात्रा या फिर बिरयानी के लिए बढ़िया चावल.

शरद पवार और उद्धव ठाकरे की नैया अब फ्लोर टेस्ट ही पार कर सकता है

सियासत के इस खेल में जब प्रमुख दलों का प्राइमरी, सेकंड्री और टर्शरी उद्देश्य सत्ता की चाशनी में डूबी मलाई खाना हो...

जैसा की देश की जनता को उम्मीद थी. चुनाव होंगे. महाराष्ट्र (Maharashtra Government Formation) के लोगों के अच्छे दिन आएंगे. मगर अब तक नतीजा सिफर ही निकला है. प्रश्न बना हुआ है कि राज्य का अगला मुख्यमंत्री (Chief Minister Of Maharashtra) कौन होगा?  महाराष्ट्र के सियासी नाटक में, फ्रेम तो बदले जा रहे हैं. लेकिन क्लाइमेक्स अब भी दूर की कौड़ी है. क्या शरद और अजीत पवार (Ajit Pawar), क्या उद्धव (ddhav Thakarey) और देवेंद्र फडणवीस जैसे हालात हैं महाराष्ट्र से जुड़े सभी नेताओं के दिमाग में अपनी अलग पिक्चर चल रही है जिसके हीरो वो खुद हैं. मन में चल रही पिक्चर फ़साना है हकीकत वो है जो हमारे सामने है. बात कोर्ट कचहरी तक आ गई है. सुप्रीम कोर्ट, फ्लोर टेस्ट (Floor Test In Maharashtra) की बात कह चुका है. यानी अब जबकि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मामले का संज्ञान ले ही लिया है तो ये कहा जा सकता है कि अब जैसे जैसे दिन बढ़ेंगे जोड़ तोड़ की राजनीति अपने पूरे शबाब पर दिखेगी. सत्ता हासिल करने के लिए साम दाम दंड भेद सब एक किया जाएगा. बात क्योंकि फ्लोर टेस्ट की चल रही है तो बता दें कि जब ऐसे पेचीदा मसले पर बात सरकार बनाने की होती है, तो सबसे जरूरी मसाला चुने हुए 'विधायक' होते हैं. ये जरूरी न होते तो कौन इन्हें होटल ले जाता. इनकी मान मनव्वल करता. जो कहते वो देता. राजनीति के इस ट्विस्ट में (हां वही जब दलों को फ्लोर टेस्ट के माध्यम से अपनी शक्ति दर्शनी हो) विधायक वैसे ही जरूरी होते हैं जैसे चिकन कोरमा बनाने के लिए दही और प्याज की संतुलित मात्रा या फिर बिरयानी के लिए बढ़िया चावल.

शरद पवार और उद्धव ठाकरे की नैया अब फ्लोर टेस्ट ही पार कर सकता है

सियासत के इस खेल में जब प्रमुख दलों का प्राइमरी, सेकंड्री और टर्शरी उद्देश्य सत्ता की चाशनी में डूबी मलाई खाना हो तो विधायकों का महंगाई की ऊंची दरों की तरह ऊपर पहुंच जाना स्वाभाविक है. कह सकते हैं ऐसे समय में हमारे चुने हुए 'विधायक' कुछ कुछ प्याज की तरह होते हैं जिन्हें वही खरीद पाता है जिसकी जेब में मोटा पैसा होता है.

अब जबकि बात, विधायकों और उनकी खरीद फरोख्त की आ गई है. तो एक ऐसे वक़्त में जब सब कुछ ऑनलाइन हो गया हो विधायकों की बिक्री को भी ऑनलाइन कर ही देना चाहिए. यानी अब वो समय आ गया है जब फोन पर या इंटरनेट पर कुछ 'नेता कार्ट' जैसा हो. व्यवस्था कुछ ऐसी होनी चाहिए कि जब भी कोई नेता बने और चुनाव जीते उसके चुनाव जीतने के फ़ौरन बाद उसकी पूरी डिटेल यहां डाल देनी चाहिए. यदि ऐसा हो जाता है तो इससे कंफ्यूजन और समय दोनों ही बचेगा.

अच्छा जब ये सब हो रहा हो तो हमें कुछ अहम चीजों का भी ख्याल रखना होगा. इस बात को ऐसे भी समझ सकते हैं कि जब चुनाव जीते नेता, यानी हमारे चुने हुए विधायक की डिटेल इस प्लेटफोर्म पर डाली जाए तो सरकार बनाने में उसकी भूमिका को भी समझा जाए. वहां ये बताया जाए कि जिस नेता को बिक्री के लिए रखा गया है वो कितनी मजबूत स्थिति में है? जो प्राइस टैग, बिक्री के लिए रखे इस नेता के पास लगाया गया है ये उसके काबिल है भी या या नहीं.

अब वो वक़्त आ गया है जब विधायकों की बिक्री को ऑनलाइन कर देना चाहिए

पार्टियों की सुविधा और सुचिता के लिए ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट पर जब भी हम किसी नेता को बेचने के लिए डालें, तो डिस्क्रिप्शन में हर वो जानकारी हो जो खरीद फरोख्त की पूरी प्रक्रिया को प्रभावित करती है. यानी जिक्र हो कि नेता अपने भाषण से क्या क्या करा सकता है. ये किन किन जातियों को प्रभावित कर सकता है. ये सोशल मीडिया पर कितना सक्रिय है? सक्रिय है तो ये ऐसा क्या करेगा जिससे इसे खरीदने वाले दल को बड़ा फायदा हो.

चूंकि नेताओं की ऑनलाइन बिक्री का आईडिया हमें महाराष्ट्र में सुप्रीम कोर्ट की फ्लोर टेस्ट वाली बात के बाद आया है तो आगे कोई और बात करने से पहले हम साफ़ लहजे में कुछ बातों को स्पष्ट कर दें. महाराष्ट्र के मामले में जो सियासी ड्रामा चला है और जिस तरह का माहौल तैयार हुआ है सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं सम्पूर्ण देश इस बात को जानता है कि महाराष्ट्र में सत्ता की मलाई या तो उद्धव ठाकरे के हाथ में आयगी या फिर वो शरद पवार होंगे जो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर गुलगुला खाएंगे.

अब अगर इस पूरी प्रक्रिया पर हम ध्यान दें तो मिलता ही कि मुख्यमंत्री कोई भी बने, बिना विधायकों को रिझाए ये संभव नहीं है. बाकी ये बात उद्धव और शरद पवार भी जानते हैं कि मुख्यमंत्री तो उन्हें ही बनना है. अब विधायकों का क्या ? सवाल ये है कि जब CM के लिए उद्धव और शरद पांचों अंगुलियां घी में डाल सिर कढ़ाई में कर सकते हैं तो Why Should MLA's don't have all the fun. अधिकार तो इनका ही है. सरकार बनाने के लिए सबसे जरूरी कारक तो ये ही हैं.

बाकी बात विधायकों की खरीद फरोख्त की चल रही है तो चलते चलते ये भी बता दें कि यदि हमारे नेता बिक्री के लिए ऑनलाइन आ जाते हैं तो इससे भ्रष्टाचार की सम्भावना भी कम होगी. जो जिसे खरीदेगा कम से कम बता तो पाएगा कि माल की डिलीवरी तक उसका सौदा कितने का पड़ा, अपने सौदेपर उसने कितना जीएसटी चुकाया.

यूं तो हमारी कही ये बात एक खयाली पुलाव है जो शायद ही कभी पके. लेकिन अगर ये पक गया तो यकीनन भारतीय राजनीति को बड़ी सहूलियत होगी. उसे मन चाहे विधायक मिल जाएंगे और क्योंकि सब काम ईमानदारी से हुआ होगा तो आने वाले भविष्य में भी शायद ही कोई सवाल पूछ पाए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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