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शरद पवार की 'प्रेरणा' से ही बीजेपी को समर्थन दे सकते थे अजित पवार!

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 25 नवम्बर, 2019 06:13 PM
  • 25 नवम्बर, 2019 06:12 PM
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अजित पवार (Ajit Pawar) द्वारा डिप्टी सीएम (Maharashtra Government Formation) बनने के लिए भाजपा (BJP) को समर्थन देने को हर कोई लालच बता रहा है, लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिए कि जिस रास्ते पर अजित पवार चल रहे हैं, वो रास्ता शरद पवार (Sharad Pawar) ने ही 41 साल पहले दिखाया था.

सियासी गलियारे में लोग कहते हैं कि शरद पवार (Sharad Pawar) के मन में क्या चल रहा है ये कोई जान नहीं सकता. ये बात भी यूं ही नहीं कही जाती, बल्कि शरद पवार कई मौकों पर ये बात जता भी चुके हैं. मौजूदा हालात को ही ले लीजिए. शरद पवार ने कहा है कि उन्होंने महाराष्ट्र में सरकार (Maharashtra Government Formation) बनाने के लिए शिवसेना (Shiv Sena) से ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री पद की मांग की थी, लेकिन इस मसले पर मतभेद थे, जिसकी वजह से कोई सहमति नहीं हो सकी. अब आपको जानकर हैरानी होगी कि शुक्रवार की शाम को शरद पवार ने ही ये साफ किया था कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) को मुख्यमंत्री (Maharashtra CM) बनाए जाने पर सभी दल सहमत हो गए हैं और अब वही कह रहे हैं कि ढाई-ढाई साल की बात हो रही थी. दरअसल, शरद पवार ने इस सच से पर्दा तब उठाया, जब संजय राउत (Sanjay Raut) ने कहा कि अजित पवार (Ajit Pawar) ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले की बात कर रहे थे. बता दें कि शनिवार की सुबह अजित पवार ने भाजपा को समर्थन दिया था, जिसके बाद देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) ने मुख्यमंत्री पद की शपथ (Oath Ceremony) ले ली और अजित पवार खुद डिप्टी सीएम (Deputy CM) बन बैठे. तभी से अजित पवार को लेकर सवाल उठ रहे हैं. शरद पवार ने कह दिया है कि वह बहुमत सिद्ध नहीं कर पाएंगे. सवाल ये है कि आखिर अजित पवार ने रातोंरात ऐसा क्यों किया? डिप्टी सीएम बनने के लिए? या कोई और वजह भी है? खैर, जो भी हो, क्यों किया ये भी पता चल जाएगा, लेकिन किससे प्रेरणा मिली, ये जान लीजिए. उनकी प्रेरणा बने खुद शरद पवार, जिन्होंने खुद भी कांग्रेस (Congress) को धोखा दिया था.

जो रास्ता शरद पवार ने 41 साल पहले दिखाया था, अब उसी पर अजित पवार चल रहे हैं. 

अजित पवार द्वारा डिप्टी सीएम बनने...

सियासी गलियारे में लोग कहते हैं कि शरद पवार (Sharad Pawar) के मन में क्या चल रहा है ये कोई जान नहीं सकता. ये बात भी यूं ही नहीं कही जाती, बल्कि शरद पवार कई मौकों पर ये बात जता भी चुके हैं. मौजूदा हालात को ही ले लीजिए. शरद पवार ने कहा है कि उन्होंने महाराष्ट्र में सरकार (Maharashtra Government Formation) बनाने के लिए शिवसेना (Shiv Sena) से ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री पद की मांग की थी, लेकिन इस मसले पर मतभेद थे, जिसकी वजह से कोई सहमति नहीं हो सकी. अब आपको जानकर हैरानी होगी कि शुक्रवार की शाम को शरद पवार ने ही ये साफ किया था कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) को मुख्यमंत्री (Maharashtra CM) बनाए जाने पर सभी दल सहमत हो गए हैं और अब वही कह रहे हैं कि ढाई-ढाई साल की बात हो रही थी. दरअसल, शरद पवार ने इस सच से पर्दा तब उठाया, जब संजय राउत (Sanjay Raut) ने कहा कि अजित पवार (Ajit Pawar) ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले की बात कर रहे थे. बता दें कि शनिवार की सुबह अजित पवार ने भाजपा को समर्थन दिया था, जिसके बाद देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) ने मुख्यमंत्री पद की शपथ (Oath Ceremony) ले ली और अजित पवार खुद डिप्टी सीएम (Deputy CM) बन बैठे. तभी से अजित पवार को लेकर सवाल उठ रहे हैं. शरद पवार ने कह दिया है कि वह बहुमत सिद्ध नहीं कर पाएंगे. सवाल ये है कि आखिर अजित पवार ने रातोंरात ऐसा क्यों किया? डिप्टी सीएम बनने के लिए? या कोई और वजह भी है? खैर, जो भी हो, क्यों किया ये भी पता चल जाएगा, लेकिन किससे प्रेरणा मिली, ये जान लीजिए. उनकी प्रेरणा बने खुद शरद पवार, जिन्होंने खुद भी कांग्रेस (Congress) को धोखा दिया था.

जो रास्ता शरद पवार ने 41 साल पहले दिखाया था, अब उसी पर अजित पवार चल रहे हैं. 

अजित पवार द्वारा डिप्टी सीएम बनने के लिए अचानक भाजपा को समर्थन दे देने को हर कोई लालच बता रहा है, लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिए कि जिस रास्ते पर अजित पवार चल रहे हैं, उसकी नींव शरद पवार ने रखी है. बता दें कि शरद पवार ने 41 साल पहले सबसे कम उम्र का मुख्यमंत्री बनने के लिए कांग्रेस को धोखा दिया था.

1978: जब 38 विधायकों के साथ बगावत कर शरद पवार बने थे मुख्यमंत्री

इस बार अजित पवार द्वारा भाजपा को समर्थन देने को शरद पवार ने उनका निजी फैसला कहा है. जिस तरह आज शरद पवार अपनी पार्टी एनसीपी को शिवसेना और कांग्रेस के साथ मिलाते हुए सरकार बनाने की सोच रहे हैं, वैसा उन्होंने पहले भी किया था. 1978 में उन्होंने जनता पार्टी और पीजेंट वर्कर्स पार्टी के साथ गठबंधन की सरकार बनाई थी. आपातकाल के बाद जनवरी 1978 में पीएम इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को तोड़कर अलग पार्टी बनाई. अब एक इंदिरा गांधी की कांग्रेस थी और दूसरी थी सरदार स्वर्ण सिंह की कांग्रेस. शरद पवार ने सरदार स्वर्ण सिंह के साथ रहने का फैसला किया.

करीब महीने भर बाद ही वहां विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें इंदिरा गांधी की कांग्रेस को 65 सीटें मिलीं, जबकि दूसरी कांग्रेस को 69 सीटें मिलीं और जनता पार्टी ने 99 सीटें जीतीं. किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. फिर दोनों कांग्रेस एक साथ आईं और मिलकर सरकार बनाई. हालांकि, आपसी अनबन के चलते सरकार चलाने में दिक्कतें होने लगीं. इसके बाद शरद पवार ने कांग्रेस छोड़ने का फैसला किया और जनता दल के अध्यक्ष चंद्रशेखर ने उन्हें एक अच्छी डील दिला दी. शरद पवार ने विधायकों का समर्थन जुटाना शुरू कर दिया और 38 विधायकों के साथ नई सरकार बनाने के लिए कांग्रेस से अलग हो गए. इसके बाद वह महज 38 साल की उम्र में सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने. हालांकि, 1980 में इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में आईं और उनकी सरकार सत्ता से बाहर हो गई.

1986 में दोबारा कांग्रेस से जुड़े और 1999 में निकाले गए

जो शरद पवार कभी कांग्रेस से बगावत कर के अलग हुए थे, उन्होंने 1986 में दोबारा कांग्रेस का हाथ थाम लिया. बता दें कि 26 जून 1988 से 25 जून 1991 तक वह दो बार मुख्यमंत्री बने. 1999 में शरद पवार ने एक बार फिर बगावती सुर बुलंद किए. जब सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया तो शरद पवार के साथ-साथ पीए संगमा और तारिक अनवर ने भी विरोधी सुर छेड़ दिए. वह चाहते थे कि पीएम वही शख्स बने जो भारत का है. हालांकि, इसके बाद तीनों को पार्टी से निकाल दिया गया और तीनों ने 25 मई 1999 को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया.

जिस तरह शरद पवार ने मुख्यमंत्री पद के लिए 1978 में कांग्रेस को धोखा दिया था, वैसे ही अजित पवार ने 2019 में एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार को डिप्टी सीएम बनने के लिए धोखा दिया है. यानी शरद पवार से ही अजित पवार ने प्रेरणा ले ली और भाजपा को समर्थन दे दिया. अब उसी प्रेरणा के चलते आने वाले दिनों में वह वापस एनसीपी को समर्थन दे देंगे, जैसे शरद पवार ने कुछ सालों बाद फिर से कांग्रेस के शामिल होने का ऐलान किया था. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि जिस तरह शरद पवार को बाद में कांग्रेस ने निकाल फेंका था, अजित पवार का वो हश्र होता है या नहीं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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