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महंगी शादियों से दूर अपनी कसमों के साथ विवाह बंधन में आये Farhan Akhtar और Shibani Dandekar!

    • सरिता निर्झरा
    • Updated: 21 फरवरी, 2022 06:51 PM
  • 21 फरवरी, 2022 06:42 PM
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Farhan Akhtar-Shibani Dandekar Wedding: ये शादी अपने गेस्ट लिस्ट, हेलीकॉप्टर से फूलों की बारिश, देश विदेश से आये मेहमान या किसी महल को शादी के वेन्यू में बदलने केलिए खबर में नहीं बल्कि एक बेहद खूबसूरत कारण से लोगों की नज़र में है. फरहान और शिबानी ने अपने अपने धर्म को शादी का हिस्सा न बना कर केवल अपने परस्पर रिश्ते और प्यार को तरजीह दी है.

बॉलीवुड की शादियां कितनी भी लो-की रखने के इरादे से की जाएं सुर्ख़ियों में आ ही जाती हैं. फ़रहान अख्तर और शिबानी दांडेकर का विवाह खंडाला के फार्म हॉउस में हो गया. शादी अपने गेस्ट लिस्ट, हेलीकॉप्टर से फूलों की बारिश, देश विदेश से आये मेहमान या किसी महल को शादी के वेन्यू में बदलने केलिए खबर में नहीं बल्कि एक बेहद खूबसूरत कारण से लोग की नज़र में है. फरहान और शिबानी ने अपने अपने धर्म को शादी का हिस्सा न बना कर केवल अपने परस्पर रिश्ते और प्यार को तरजीह दी है. तो ये बंधन न तो निकाह से बंधेगा न ही महाराष्ट्र के रीती रिवाज़ों को मानते हुए विवाह के फेरे ही पड़ेंगे. ये दोनों अपनी ज़िंदगी के इस अनोखे दिन के लिए अपनी कस्मे खुद लिख चुके हैं और उन्ही वादो के साथ इस रिश्ते का आगाज़ करेंगे. मेहमानो में कुल जमा 50 मेहमान शामिल हैं जिनमे फ़िल्मी जगत के मानें जाने नाम हैं. ये इसलिए भी खास है कि आज के भारत की तस्वीर देखते हुए धर्म रिश्तों में अहम मुद्दा बनने लगा है.

अब कहने वाले कह सकते हैं कि 'ये सब है बॉलीवुड के चोंचले अरे जब तक ढोल नगाड़ा न बजे चार रिश्तेदार न आएं और पूरे रीती रिवाज का पालन न हो तो शादी कैसी? अब इस जुमले को डिकोड करते हैं. ढोल नगाड़े के साथ दोनों ओर की रस्मों को ऊपर रखने की होड़ होती है. हर रस्म नई जोड़ी की खुशहाली चाहती है लेकिन फिर भी 'हमारी' रस्म ज़रूर हो ये ज़ोर रहता है.

आखिरकार एक दूसरे के हो ही गए फरहान अख्तर और शिबानी दांडेकर

अगर जोड़े दो अलग प्रदेश, जाति या धर्म के हो तब तो कहना की क्या. इतनी काना-फूसी कि रिश्तेदारों में आप सारे सीरियलों की कहानी और किरदार देख लें. 'ए जिया क्रिस्टियानो के घर से हमरी लल्ली की हल्दी न आएगी? बताओ भला अरे हिंदी फ़िल्में तो देखे होंगे की पूरे अंग्रेज हैं? यही मारे हम अपने पड़ोस की मिश्राइन की...

बॉलीवुड की शादियां कितनी भी लो-की रखने के इरादे से की जाएं सुर्ख़ियों में आ ही जाती हैं. फ़रहान अख्तर और शिबानी दांडेकर का विवाह खंडाला के फार्म हॉउस में हो गया. शादी अपने गेस्ट लिस्ट, हेलीकॉप्टर से फूलों की बारिश, देश विदेश से आये मेहमान या किसी महल को शादी के वेन्यू में बदलने केलिए खबर में नहीं बल्कि एक बेहद खूबसूरत कारण से लोग की नज़र में है. फरहान और शिबानी ने अपने अपने धर्म को शादी का हिस्सा न बना कर केवल अपने परस्पर रिश्ते और प्यार को तरजीह दी है. तो ये बंधन न तो निकाह से बंधेगा न ही महाराष्ट्र के रीती रिवाज़ों को मानते हुए विवाह के फेरे ही पड़ेंगे. ये दोनों अपनी ज़िंदगी के इस अनोखे दिन के लिए अपनी कस्मे खुद लिख चुके हैं और उन्ही वादो के साथ इस रिश्ते का आगाज़ करेंगे. मेहमानो में कुल जमा 50 मेहमान शामिल हैं जिनमे फ़िल्मी जगत के मानें जाने नाम हैं. ये इसलिए भी खास है कि आज के भारत की तस्वीर देखते हुए धर्म रिश्तों में अहम मुद्दा बनने लगा है.

अब कहने वाले कह सकते हैं कि 'ये सब है बॉलीवुड के चोंचले अरे जब तक ढोल नगाड़ा न बजे चार रिश्तेदार न आएं और पूरे रीती रिवाज का पालन न हो तो शादी कैसी? अब इस जुमले को डिकोड करते हैं. ढोल नगाड़े के साथ दोनों ओर की रस्मों को ऊपर रखने की होड़ होती है. हर रस्म नई जोड़ी की खुशहाली चाहती है लेकिन फिर भी 'हमारी' रस्म ज़रूर हो ये ज़ोर रहता है.

आखिरकार एक दूसरे के हो ही गए फरहान अख्तर और शिबानी दांडेकर

अगर जोड़े दो अलग प्रदेश, जाति या धर्म के हो तब तो कहना की क्या. इतनी काना-फूसी कि रिश्तेदारों में आप सारे सीरियलों की कहानी और किरदार देख लें. 'ए जिया क्रिस्टियानो के घर से हमरी लल्ली की हल्दी न आएगी? बताओ भला अरे हिंदी फ़िल्में तो देखे होंगे की पूरे अंग्रेज हैं? यही मारे हम अपने पड़ोस की मिश्राइन की नंद के देवर के लड़के का रिश्ता भेजे रहे पर तुम तो बिटियन के मूड़े बैठायी हो तो झेलो.' हुहं 

'अरे भाभी अब सास बनने वाली है. अब तो रुबाब न मिलेगा आपका. लेकिन फिर भी साड़ियां पसंद करनी न आई आपको. इतनी हल्की हल्की साडी लाई हैं आप. माना आपकी बहुरानी मॉडर्न है शिफॉन पहनने वाली लेकिन भला हो आपका हमारे लिए तो बनारसी न सही चंदेरी ही ले लेती. खैर जाने दीजिये!'

और इनसे परे रीती रिवाज़ पर मौसियों और बुआओं की तना तनी का तमाशा अमूमन हर घर में होता है. 'ए भाभी भतीजी हमाई है. हम अपने इनसे कह कर दस दिनन पहिले एही मारे आये कि कोनो ऊंच नीच मजाल से हो जाये. तो माडो की रसम, कलसा गोठन कोहबर और फ़्लान ढिकान सब होइहें. अरे हमाई लाडो की शादी है और हां नेग कम हो तो चलेगा पर लेब ज़रूर. रसम की बात है. बुआ हैं हम न सोचेंगे तो कौन सोचेगा?'

और इस देहले पर अक्सर मौसियों के तीर भी चलते हैं, 'अब नेगचार की तो रहने दीजिये जिज्जी. हमाय दीदी जीजा पूरे खानदान के नखरे ही उठाते रहे जीवन भर और मजाल है दीदी को किसी ने इत्ता अरे इत्तु सा भी श्रेय दिया हो. लेकिन हमारा दिल जानता है. सगी बहने जो हैं हम. हमारी बिटिया की शादी में भी दामाद जी पहले हमसे मिले. वो क्या है की बंगलोर से फ्लाइट पहले दिल्ली आई फिर आगे चली तो... और हमने भी सोच फर्स्ट इम्प्रेशन अच्छा पड़े तो आगे हमारी बिटिया को ही फायदा होगा'

ऐसी तमाम बातें. उगते सूरज के साथ रस्मो का होना और धीमे धीमे दूर के रिश्तेदारों का मेला लगना. सालो से बिछड़ी बहनें सखियां मिल लेती थी और गिले शिकवे भी दूर होते थे और कुछ नई शिकायतें गांठ बंधती थी. इन बातो में तना तनी में मीठी बातें भी होती है, यादें भी और तानों की चुभन भी.

हालांकि अब हफ्ते भर वाला समय तो किसी के पास न रह गया और रिश्तेदार भी घर की छतों की जगह होटल के कमरे या एयर बीएनबी के बंगलो में रहना पसंद करते है लेकिन शिकायते सारी वैसी ही. और इन सबके बीच होती है ढेर सारी साज सजावट और फूंके जाते हैं पैसे.

महंगी शादियों का चलन और सजावट में अलग थीम की होड़ में शादी करवाने का काम एक बिजनेज के रूप में उभर आया है. मैचिंग आउटफिट से ले कर थीम वेडिंग डेस्टिनेशन वेडिंग. महंगे कार्ड्स, गिफ्ट्स, के साथ प्री वेडिंग फोटो शूट ,और मीट एन्ड ग्रीट पूल पार्टी, मेंहदी संगीत कॉकटेल शादी और कहीं कहीं तो आफ्टर पार्टी भी!

आपकी सोच और जेब जितनी बड़ी हो उतनी ही बड़ी शादी की धूम धाम! तो ऐसे में लो की शादी का फलसफा क्या वाकई बॉलीवुड के चोंचले ही हैं? ऐसा नहीं है आज भी कई जोड़े सादगी से शादी के बंधन में बंधने में यकीन करते है. भले ही वो बॉलीवुड के जोड़े न हो लेकिन इको फ्रेंडली कार्ड से ले कर री-साइकल डेकोर वाली शादियां देखने को मिल रही है.

कई दुल्हन अपनी मां या दादी की साड़ियां लहंगे को रिसाइकल करवा कर पहनने कर ओल्ड इज़ गोल्ड का लुक में जगमगाती है. दूल्हा दुल्हन मिलकर शादी की प्लानिंग करते हुए पर्यावरण और किसी खास समाजिक समस्या या कार्य को तरजीह देते भी मिलेंगे. कोविड के हालातों में भी घर के 25 -50 लोगो के साथ घर के या सोसाइटी के गार्डन में भी शादियां हुई.

दोनों परिवारों ने मिल कर एक रिसोर्ट बुक करा लिया और वहाँ साथ साथ हर रस्म का लुत्फ़ उठाया - ऐसी शादियां भी हुई और ये विवाह कहीं न कहीं यकीन दिलाते है की शादी ताम झाम और डी जे के संगीत का नाम नहीं बल्कि दो लोगो के आपसी समझ और ज़िंदगी को एक तरह से देखने के नज़रिये का नाम है. जहां इस दिन को यादगार बनाने के लिए लाखों के फूल लाइट और खाने की बर्बादी की ज़रूरत नहीं. फरहान और शिबानी भी ऐसे जोड़ो में अपना नाम शामिल कर रहे है. उन्हें इस नई शुरुआत की बहुत बधाई.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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