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रिश्वतकांड में फंसी आप पार्षद के 'आइडिया' में लगी क्रिएटिविटी की तारीफ होनी ही चाहिए!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 20 फरवरी, 2022 05:30 PM
  • 20 फरवरी, 2022 05:05 PM
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20,000 की रिश्वत लेने वाली 'आम आदमी पार्टी' की पार्षद ने जो किया वो सही है या गलत इस पर बात बाद में, लेकिन उसके आइडिया और उस आइडिया में लगी क्रिएटिविटी की तारीफ हर सूरत में होनी ही चाहिए.

नवंबर 2012. भले ही अपनी अपनी अपनी लाइफ में बिजी चल रहे लोगों को ये समय न याद हो. लेकीन जो लोग भी देश की राजनीति को थोड़ा बहुत समझते हैं, जानते हैं कि यही वो समय था जब देश के दरवाजे पर एक पार्टी के रूप में आम आदमी पार्टी ने दस्तक दी थी। अरविंद केजरीवाल को ईमानदारी का कीड़ा काट चुका था. भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाए गए अन्ना आंदोलन ने खूब मीडिया अटेंशन भी उन्हें दे दी थी. क्रांतिकारी संगी साथी पहले ही मिल चुके थे. केजरीवाल ने पार्टी बना ली. चुनाव चिह्न बना झाड़ू और बात यही हुई कि इसी झाड़ू से देश में फैले भ्रष्टाचार को साफ किया जाएगा. उस दौर में पूरा देश एक अलग ही लेवल पर ट्रांस में था. मुहल्ले का वो बनिया जो चावल में कंकड़ और वो दूधवाला जो दूध के नाम पर पानी बेचता था उन तक ने कहा कि, नहीं! बिल्कुल सही कह रहा है ये आदमी देश को ईमानदार होना चाहिए और भ्रष्टाचार की दीमक को जड़ से साफ हो जाना चाहिए.

आज भले ही टिप टॉप हो गए हों. लेकिन अगर उस दौर के केजरीवाल को याद करें. तो एक ऐसे आदमी की छवि हमारे दिमाग में बनती है जो बड़ी सी शर्ट, ऊंची पैंट और हवाई चप्पल पहनता था. अक्टूबर खत्म होते होते और नवंबर की शुरूआत में ही जो अपनी कनपटी पर मफलर बांध लेता था. ऐसा आदमी जो हमें हमारा अपना लगता था. तब हमें यही महसूस हुआ कि आम सा है तो क्या हुआ लेकिन 'गंगाधर ही शक्तिमान' है. ये दमराज किलविश को मारेगा. अंधेरे को खत्म करके उजाले का साम्राज्य स्थापित करेगा.

20000 की रिश्वत लेकर आप पार्षद ने पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की ईमानदारी की बातों की ऐसी तैसी कर दी है

ध्यान रहे उपरोक्त बातें 2012 की हैं आज 2022 चल रहा है और इन गुजरे हुए 10 सालों और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को देखें तो मिलता यही है कि फिल्म जो बनाई गई उसका...

नवंबर 2012. भले ही अपनी अपनी अपनी लाइफ में बिजी चल रहे लोगों को ये समय न याद हो. लेकीन जो लोग भी देश की राजनीति को थोड़ा बहुत समझते हैं, जानते हैं कि यही वो समय था जब देश के दरवाजे पर एक पार्टी के रूप में आम आदमी पार्टी ने दस्तक दी थी। अरविंद केजरीवाल को ईमानदारी का कीड़ा काट चुका था. भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाए गए अन्ना आंदोलन ने खूब मीडिया अटेंशन भी उन्हें दे दी थी. क्रांतिकारी संगी साथी पहले ही मिल चुके थे. केजरीवाल ने पार्टी बना ली. चुनाव चिह्न बना झाड़ू और बात यही हुई कि इसी झाड़ू से देश में फैले भ्रष्टाचार को साफ किया जाएगा. उस दौर में पूरा देश एक अलग ही लेवल पर ट्रांस में था. मुहल्ले का वो बनिया जो चावल में कंकड़ और वो दूधवाला जो दूध के नाम पर पानी बेचता था उन तक ने कहा कि, नहीं! बिल्कुल सही कह रहा है ये आदमी देश को ईमानदार होना चाहिए और भ्रष्टाचार की दीमक को जड़ से साफ हो जाना चाहिए.

आज भले ही टिप टॉप हो गए हों. लेकिन अगर उस दौर के केजरीवाल को याद करें. तो एक ऐसे आदमी की छवि हमारे दिमाग में बनती है जो बड़ी सी शर्ट, ऊंची पैंट और हवाई चप्पल पहनता था. अक्टूबर खत्म होते होते और नवंबर की शुरूआत में ही जो अपनी कनपटी पर मफलर बांध लेता था. ऐसा आदमी जो हमें हमारा अपना लगता था. तब हमें यही महसूस हुआ कि आम सा है तो क्या हुआ लेकिन 'गंगाधर ही शक्तिमान' है. ये दमराज किलविश को मारेगा. अंधेरे को खत्म करके उजाले का साम्राज्य स्थापित करेगा.

20000 की रिश्वत लेकर आप पार्षद ने पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की ईमानदारी की बातों की ऐसी तैसी कर दी है

ध्यान रहे उपरोक्त बातें 2012 की हैं आज 2022 चल रहा है और इन गुजरे हुए 10 सालों और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को देखें तो मिलता यही है कि फिल्म जो बनाई गई उसका टीजर (अन्ना आंदोलन) और ट्रेलर (आम आदमी पार्टी की स्थापना) दोनों ही बेहतरीन थे लेकिन फिल्म ... ( छोड़िए जाने दीजिए)

आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल करप्शन पर कैसा काम कर रहे हैं? गर जो इस बात को समझना हो तो दिल्ली का रुख कर लीजिए और आप पार्षद गीता रावत की गिरफ्तारी देख लीजिए. खबर है कि सीबीआई ने आम आदमी पार्टी की पार्षद को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार किया है. मामले पर जो जानकारी सीबीआई ने दी है उसके अनुसार आप पार्षद गीता रावत को 20 हजार रु की रिश्वत लेने के आरोप में सलाखों के पीछे किया गया है.

इस पूरे केस में दिलचस्प बात ये कि रिश्वत का पैसा एक मूंगफली वाले के जरिए आप पार्षद तक पहुंचाया गया था. मामला दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के विधानसभा क्षेत्र पटपड़गंज का है जहां विनोद नगर वार्ड से पार्षद गीता रावत ने पार्टी के साथ दगा की है. बताया जा रहा है कि यह रिश्वत अवैध रूप से अपने मकान की छत डालने के लिए ली गई थी.

मामले में जो खुलासा हुआ है उसके मुताबिक आप पार्षद गीता रावत मूंगफली विक्रेता सनाउल्लाह के जरिए रिश्वत ले रही थीं. मामले में सबसे मजेदार ये है कि सीबीआई ने जानकारी जुटाने के उद्देश्य से नोटों पर रंग लगाकर मूंगफली बेचने वाले को पैसे दिए थे. वह पैसे जैसे ही मूंगफली बेचने वाला गीता रावत को देने पहुंचा तो सीबीआई ने रंगे हाथ दोनों को पकड़ लिया. मौके पर तलाशी के बाद वही रंगे हुए नोट बरामद हुए.

सीबीआई की टीम मूंगफली विक्रेता और आप पार्षद को अपने साथ दफ्तर ले गई. इस मामले पर कितनी और किस हद तक राजनीति हो रही है? मामले पर दिल्ली बीजेपी क्या कह रही है? ट्विटर पर किस तरह के ट्वीट्स हो रहे हैं? कैसे ये मामला दिल्ली के मुख्यमंत्री के सुशासन और गुड गवर्नेंस के दावों की लंका लगा रहा है? इसपर तो चर्चा होती ही रहेगी. लेकिन जिस बात की तारीफ सच में होनी चाहिए वो है आप पार्षद का रिश्वत लेने का आइडिया और उसमें मूंगफली वाले की भूमिका.

बात सीधी और साफ है होने को तो रिश्वत लेना और देना दोनों ही क्राइम है लेकिन मामले को देखकर इतना तो साफ हो ही गया है कि आप पर्षद गीता रावत ने तबियत से अमिताभ बच्चन, शशि कपूर, विनोद खन्ना, राजेश खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद मेहरा के दौर की पिक्चरें देखी हैं. खुद याद करिए आप अस्सी के दौर की फिल्में 'बड़े लोग' छोटे लोगों के काम कुछ इसी अंदाज में करते थे और हीरो इन्हीं चीजों को देखकर बागी बन बगावत पर उतर सिस्टम के खिलाफ क्रांति करता था.

हो सकता है लोग आप पार्षद गीता रावत की आलोचना करें लेकिन जिस तरह इन्होंने काजू बादाम खाने के लिए मूंगफली वाले और उसके तराजू का सहारा लिया वो क्रिएटिविटी की पराकाष्ठा है और इसकी तारीफ होनी ही चाहिए. बाकी बात 20,000 रुपयों की हो तो जैसी महंगाई है आदमी सही माइलेज वाली एक पुरानी एक्टिवा भी शायद ही ले पाए.

बहरहाल, अब जबकि मामला सामने आ गया है तो ये कहना भी गलत नहीं है कि घर के भेदी ने केजरीवाल को दिन में तारे दिखवा दिए हैं. आगे लोग उनकी तमाम बातों पर विश्वास कर भी लें लेकिन जब जब वो भ्रष्टाचार की बात करेंगे गीता रावत, उनकी रिश्वत, मूंगफली, मूंगफली वाले को याद कर लोग शायद ही केजरीवाल की बातों पर यकीन कर पाएं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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