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यकीन मानिये, कबाब में हड्डी से कहीं ज्यादा बुरा है चाय में रूहअफजा!

    • सरिता निर्झरा
    • Updated: 16 जनवरी, 2022 07:47 PM
  • 16 जनवरी, 2022 07:47 PM
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फ्यूजन के नाम पर क्या कुछ हो रहा है उससे हम वाकिफ हैं. कपड़ों का और म्यूज़िक के फ्यूज़न के साथ फूड फ्यूज़न का नया शगल क्या क्या दिन दिखा रहा है. बाकी सब बर्दाश्त किया.नज़रंदाज़ किया पर चाय! यकीन करें अब तो ये मामला इश्क को रुसवा करने जैसा है.

कहतें हैं इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते. आप चाहे जिस भी उम्र के हो इस कड़कड़ाती ठंड में यकीनन इत्र डियो के मुश्क में डूब कर अपने शहर की किसी न किसी गली में इसके इश्क में चक्कर काटे होंगे. हिंदुस्तान में कौन है भला जो इसका दीवाना नहीं? न न कैटरिना नहीं! वो तो साड्डे कौशल साहब की नू हैगी. सन्नी? अरे कैसी गल्ला करदे पये हो. तीन तीन बच्चो और विलायती दामाद के साथ ब्याह में रची बसी अपनी कुड़ी हैगी. और अब ख़बरदार जो आलिया का नाम भी लिया. द कपूर के घर के चश्मों चराग का घर रौशन हो लिया - जब से आयी साथ आलिया! वाह वाह वाह वाह

साफ़ है कि चाय में रूह अफ़ज़ा ने टी लवर्स की भावना को आहत किया है

इसी बात पर एक और हो जाये. बोलो इरशाद!

इरसाद नहीं भई इर्शाद. श श- स नहीं. विश्व हिन्दी दिवस पर सबके व्हाट्सअप की खिड़की पीट पीट कर बधाई बोले होगे किन्तु सोझे स अउर श के अंतर् नाय जनतयो. बारहखड़ी पढ़े हो की बस, A फॉर एप्प्ले रटे हो! एकदम बढ़िया इश्किया माहौल बना रहे थे उहि में फाट पड़े स श लिहे दिहे. अच्छा शुरू से शुरू करते हैं और खुद ही बोलते हैं इर्शाद!

तुझे महसूस करने की कभी ख़्वाहिश जो होती है

तो प्याली चाय की हाथों मे अक्सर थाम लेता हूं

शुक्रिया शुक्रिया करम मेहरबानी. लिखते नहीं बस कभी जो बदलते शहर के मिजाज़ में पुरानी लज़्ज़त खोजते हुए चाय के पुराने अड्डों पर पहुंचते हैं तब बस खुद ब खुद लिखा जाता है. तो जनाब बात हो रही थी चाय की. जिसके बनाने का तरीका भी इश्क़ की रुमानियत के मज़े दे सकता है बशर्ते इश्क हो. ये होना न बहुत ज़रूरी होता है!

पतीली में पौना कप पानी मध्यम आंच पर उबाले बिलकुल जैसे माशूक को देख कर दिल में अरमान उबलने से लगे थे. फिर चाय की पत्तियों को पानी के हवाले कर दें...

कहतें हैं इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते. आप चाहे जिस भी उम्र के हो इस कड़कड़ाती ठंड में यकीनन इत्र डियो के मुश्क में डूब कर अपने शहर की किसी न किसी गली में इसके इश्क में चक्कर काटे होंगे. हिंदुस्तान में कौन है भला जो इसका दीवाना नहीं? न न कैटरिना नहीं! वो तो साड्डे कौशल साहब की नू हैगी. सन्नी? अरे कैसी गल्ला करदे पये हो. तीन तीन बच्चो और विलायती दामाद के साथ ब्याह में रची बसी अपनी कुड़ी हैगी. और अब ख़बरदार जो आलिया का नाम भी लिया. द कपूर के घर के चश्मों चराग का घर रौशन हो लिया - जब से आयी साथ आलिया! वाह वाह वाह वाह

साफ़ है कि चाय में रूह अफ़ज़ा ने टी लवर्स की भावना को आहत किया है

इसी बात पर एक और हो जाये. बोलो इरशाद!

इरसाद नहीं भई इर्शाद. श श- स नहीं. विश्व हिन्दी दिवस पर सबके व्हाट्सअप की खिड़की पीट पीट कर बधाई बोले होगे किन्तु सोझे स अउर श के अंतर् नाय जनतयो. बारहखड़ी पढ़े हो की बस, A फॉर एप्प्ले रटे हो! एकदम बढ़िया इश्किया माहौल बना रहे थे उहि में फाट पड़े स श लिहे दिहे. अच्छा शुरू से शुरू करते हैं और खुद ही बोलते हैं इर्शाद!

तुझे महसूस करने की कभी ख़्वाहिश जो होती है

तो प्याली चाय की हाथों मे अक्सर थाम लेता हूं

शुक्रिया शुक्रिया करम मेहरबानी. लिखते नहीं बस कभी जो बदलते शहर के मिजाज़ में पुरानी लज़्ज़त खोजते हुए चाय के पुराने अड्डों पर पहुंचते हैं तब बस खुद ब खुद लिखा जाता है. तो जनाब बात हो रही थी चाय की. जिसके बनाने का तरीका भी इश्क़ की रुमानियत के मज़े दे सकता है बशर्ते इश्क हो. ये होना न बहुत ज़रूरी होता है!

पतीली में पौना कप पानी मध्यम आंच पर उबाले बिलकुल जैसे माशूक को देख कर दिल में अरमान उबलने से लगे थे. फिर चाय की पत्तियों को पानी के हवाले कर दें बिलकुल वैसे ही जैसे इज़हार ए मोहब्बत से पहले खुद को खुदा के हवाले छोड़ देते हैं और मोहब्बत में डूबे खत.

... हां हां मेसेज जो भी हो आजकल. लाहौल विला इश्क में भी तकनीक! भाई मेसेज भेज लो स्नैपचैट कर लो. जो मन करे कर लो !

हां तो जो भी तुमको पसंद हो छोटी इलायची की मिठास या काली मिर्चका तीखापन या अदरक का कड़क स्वाद उसे डाल कर इश्किया चाय की रंगत देखो और फिर इस सुरमई शाम की रंगत में खालिस दूध- आधा कप ! फिर देखो स्याह रंग को सुनहरे में बदलते हुए. (डिस्क्लेमर - दिस इज इन रिफरेन्स टू टी नो रिफरेन्स ऑफ़ रेसियल कलर)

बस जरा देर का सब्र और माशूक की मुस्कुराहट सी ताज़गी देती 'चाय' तैयार. यूँ बनती है चाय. तभी तो हर शहर का अपना एक अड्डा होता है, जहां इसके चाहने वाले उम्र के हर मोड़ पर चक्कर काटते हैं. लखनऊ में शर्मा जी की चाय - हो या जयपुर वाले गुलाब जी की चाय या फिर आपणो अमदावाद मा लक्की रेस्टॉरेंट. जी जी जी चाय हिंदुस्तान में महज़ ड्रिंक या पेय पदार्थ नहीं बल्कि एहसास है. 

शायद मेरी शादी का ख्याल दिल में आया है

इसलिए ममी ने मेरी तुझे चाय पे बुलाया है

ये बॉलीवुड का बस एक गाना नहीं है बल्कि परम्परा को युगों युगो तक संजोने का तरीका है कि रिश्ते, चाय की प्यालियों पर बनते टूटते और संवरतें हैं.

बकौल सैयद सफदर 'एवज़ सिगरेट के सिगरेट चाय के चाय महीनों से हमारी दोस्ती है, ग्रीन टी, ब्लैक टी, लेमन टी, वो अंग्रेज़ीदां चमोमिल टी, अदरक वाली चाय इलायची वाली या अपनी खास मसाला चाय. नो शुगर, लेस शुगर और खड़ी चम्मच खलिस मीठी चाय! हाय देखी है कोई ऐसी हायली अडजस्टेबल डिश जो अमीरों में अमिर और गरीबों में गरीब बन जाती हो.

राहुल गांधी?अमा इंसान हैं वो. बकलोल नहीं भोले से. गुड़ लुकिंग हैं वो लेकिन ऑब्जेक्टिफिकेशन पर ऐतराज़ हैं हमें. लकड़ियों को ताड़ते हुए अधेड़ उम्र के मर्द नहीं शर्माते लेकिन हम उन जैसे तो नहीं बन सकते न. सो नो रेफेरेंस टू मिलिंद सोमन, विक्की कौशल, ऋतिक रौशन ! (उफ़्फ़्फ़ कॉम्पिटिशन इज गेटिंग हॉटर)

फोकस ऑन चाय

'चल एक चाय पिला / पिलाता/ पिलाती हूं.' पर हमारी ज़िंदगी की न जाने कितने गिरहें सुलझी है. दोस्ती बची है, माफीनामे स्वीकारें गए हैं. चाय पकौड़ा इस जस्ट नॉट ए डिश इट इज ए पास्ट विथ ब्राइट प्रेजेंट एंड शाइनिंग फ्यूचर.

अअअ.... वन मोर डिस्क्लेमर - 'इस पंक्ति को किसी भी राजनेता या पार्टी मेनिफेस्टो से जोड़ना पढ़ने वाले के निजी ज्ञान पर है. लिखने वाले का कोई दोष नहीं.

तो ऐसे में - यार, मेरे भाई, फ्यूशन कुकिंग के बादशाह, स्टार्टअप के फ्यूचर ऐसा मत कर. खुदा का वास्ता तुझको. अच्छा राम जी की सौं. चल दोनों को छोड़ तुझको मोहब्बत और इंसानियत का वास्ता मत कर - सरे आम चाय में रणबीर कपूर की ठुकराई रूह अफ़ज़ा ! कौन करता है ऐसा पाप. माना डेमोक्रेसी है लेकिन इतना तो समझ आजकल फ्रीडम औफ एक्सप्रेशन में इतनी भी फ्रीडम नहीं.

बेवजह रीच कम या अकाउंट ससपेंड हो गया तो ब्लैक लिस्ट न होना पड़े. सब कुछ अच्छा ,विकासशील और नया सा बनाने में कितना कुछ छूट रहा है, टूट रहा है और हम कर कुछ नहीं पा रहे लेकिन चाय? इस पर तो जनाब तलवारे निकल जाएंगी. यूं हाजी लक़ लक़ कह गए

मुझ को है मर्ग़ूब मय ज़ाहिद को शौक़-ए-चाए है

अपना अपना शग़्ल है और अपनी अपनी राय है

लेकिन इश्क और चाय पर राय हमेशा से एक रही है, कहतें हैं इश्क और चाय की मुश्क छुपाये नहीं छुपते.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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