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Coronavirus के दौर में कुत्तों का धरना, प्रदर्शन और समझौता-वार्ता!

    • प्रीति अज्ञात
    • Updated: 01 अप्रिल, 2020 07:32 PM
  • 01 अप्रिल, 2020 07:10 PM
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कोरोना वायरस के मद्देनजर हुए लॉक डाउन (Coronavirus Lockdown) में सब कुछ बंद है और इंसान अपने घर पर रहने को मजबूर है. स्थिति जब ऐसी हो तो इंसान तो इंसान जानवर तक खासी टेंशन में हैं जिन्हें खाना नहीं मिल रहा.

इन दिनों ली के कुत्तों की बड़ी मौज है. हमारी गली में दर्जन भर से अधिक तो पहले ही थे और हाल ही में कई पिल्लों के जन्म के बाद से रौनक और बढ़ गई है. अब सुबह वाहनों की आवाज की जगह इनकी भौं-भौं ने ले ली है. असल में हमारे घर के कॉर्नर पर खड़े हों तो वह चार पतली सड़कों का केंद्र बिंदु है. ये चौराहेनुमा स्थान कॉमन प्लॉट की तरह है लेकिन गलियों के अपने-अपने कुत्ता नेता हैं. क्या मज़ाल कि किसी को कोई एक इंच भी अपनी गली में क़दम रखने दे. तो सुबह-सुबह ये हाहाकार मचा अपना वही मसला निबटाते हैं और इस चक्कर में सारे एरिया के लोगों के मीठे स्वप्न मंज़िल तक पहुंचने के पहले ही विस्थापन का दर्द झेलते लगते हैं. दूध लेने जाओ तो मनुष्यों की संख्या से कहीं अधिक इन दिव्य आत्माओं के दर्शन का पुण्य लाभ मिलता है.

लॉक डाउन से इंसान तो इंसान जानवर तक परेशान हैं

अब चूंकि ये बहुमत में हैं तो इश-इश करने से तो सरकते नहीं. चिल्लाकर बोल नहीं सकते क्योंकि गला फट जाता है और उसके बाद खांसी निकल सकती है. जो निकल गई फिर तो पब्लिक इन कुत्तों से भी बदतर हालत कर देती है. ख़ैर....अभी सेंटीपना भूलकर कुत्तों पर कंसन्ट्रेट करते हैं. तो इनमें से अधिकांश तो फ़ैल-फैलकर सड़क पर चौड़े होकर चल रहे थे लेकिन दो-तीन तगड़े कुत्ते बड़े अपसेट थे.

मैंने कहा, 'अब काहे का रोना है? अब तो करोना है.' बोले, 'का बताएं! यही तो दुःख है. ज़िन्दग़ी से साला एडवेंचर ही ख़तम हो गया है. जब तक दो-चार मनुष्यों को दौड़ा नहीं लेते, हमारी तो गुडमॉर्निंग ही नहीं होती!' हमने कंधे पर हाथ रख सांत्वना देते हुए मासूमियत से पूछा, 'क्यों, आपके यहां सुबह व्हाट्सएप पे सुप्रभात भेजने का रिवाज़ नहीं है क्या?'

आप तो हंस दिए होंगे पर वो घुन्ना गया. आगे बोला,'बड़ी बोरिंग लाइफ है. बाइक और कार के...

इन दिनों ली के कुत्तों की बड़ी मौज है. हमारी गली में दर्जन भर से अधिक तो पहले ही थे और हाल ही में कई पिल्लों के जन्म के बाद से रौनक और बढ़ गई है. अब सुबह वाहनों की आवाज की जगह इनकी भौं-भौं ने ले ली है. असल में हमारे घर के कॉर्नर पर खड़े हों तो वह चार पतली सड़कों का केंद्र बिंदु है. ये चौराहेनुमा स्थान कॉमन प्लॉट की तरह है लेकिन गलियों के अपने-अपने कुत्ता नेता हैं. क्या मज़ाल कि किसी को कोई एक इंच भी अपनी गली में क़दम रखने दे. तो सुबह-सुबह ये हाहाकार मचा अपना वही मसला निबटाते हैं और इस चक्कर में सारे एरिया के लोगों के मीठे स्वप्न मंज़िल तक पहुंचने के पहले ही विस्थापन का दर्द झेलते लगते हैं. दूध लेने जाओ तो मनुष्यों की संख्या से कहीं अधिक इन दिव्य आत्माओं के दर्शन का पुण्य लाभ मिलता है.

लॉक डाउन से इंसान तो इंसान जानवर तक परेशान हैं

अब चूंकि ये बहुमत में हैं तो इश-इश करने से तो सरकते नहीं. चिल्लाकर बोल नहीं सकते क्योंकि गला फट जाता है और उसके बाद खांसी निकल सकती है. जो निकल गई फिर तो पब्लिक इन कुत्तों से भी बदतर हालत कर देती है. ख़ैर....अभी सेंटीपना भूलकर कुत्तों पर कंसन्ट्रेट करते हैं. तो इनमें से अधिकांश तो फ़ैल-फैलकर सड़क पर चौड़े होकर चल रहे थे लेकिन दो-तीन तगड़े कुत्ते बड़े अपसेट थे.

मैंने कहा, 'अब काहे का रोना है? अब तो करोना है.' बोले, 'का बताएं! यही तो दुःख है. ज़िन्दग़ी से साला एडवेंचर ही ख़तम हो गया है. जब तक दो-चार मनुष्यों को दौड़ा नहीं लेते, हमारी तो गुडमॉर्निंग ही नहीं होती!' हमने कंधे पर हाथ रख सांत्वना देते हुए मासूमियत से पूछा, 'क्यों, आपके यहां सुबह व्हाट्सएप पे सुप्रभात भेजने का रिवाज़ नहीं है क्या?'

आप तो हंस दिए होंगे पर वो घुन्ना गया. आगे बोला,'बड़ी बोरिंग लाइफ है. बाइक और कार के साथ दौड़ने में अपन की भी वर्ज़िश हो जाती थी और आंटी लोग को डरते देख बच्चों का एंटरटेनमेंट. अब तो दिन बड़ा सूना और निराश गुजर जाता है. तभी नन्हे पिल्ले ने असहमति दिखाते हुए कहा, 'नहीं पापा, मुझे तो आजकल ठीक लग रहा है. अभी कोई पत्थर नहीं मारता! पूंछ में लड़ी बम बांधकर हमारे दर्द पर हंसता नहीं. मेरा कोई भी दोस्त गाड़ी से कुचला नहीं! हां , थोड़ा खाने-पीने की दिक़्क़त है पर चलता है.'

हमने कहा, 'दिक़्क़त तो इसलिए है कि तुम लोगों में एटीट्यूड जरुरत से ज्यादा आ गया है. हम जब छोटे थे तो हमारी गली के कुत्ते तो रोटी, सब्जी, ब्रेड सब कुछ खा लेते थे. तुम लोग भूखे रह जाओगे पर चाहिए पारले-G ही. अब नहीं मिल रहा न, तो हम क्या करें?

तभी सभी पिल्लों ने मुझे घेर लिया और बोले, कोई बात नहीं! आंटी फ्रिज़ में टमाटर तो होंगे न! कल ही आपने मुंह पे पट्टा बांध के लूटे थे!' मैंने कहा, 'अबे गदहों, तुम सब की बुद्धि घास चरने चली गई है. वो मास्क था, उसे लगाकर लूटना नहीं होता है. स्वयं और दूसरों की रक्षा होती है.''ओह्ह! तो इसका मतलब, हिन्दी फिल्मों ने हमें गलत शिक्षा दी है.' सब एक स्वर में बोले. मैं सिर पकड़कर बैठ गई.'कोई न! आप तो लॉन में बिठाकर पहले की तरह पार्टी कराओ. टमाटर से स्किन पे ग्लो आता है.' और सब खी-खी कर मेरे पीछे चल पड़े. और भरो टमाटर फ्रिज़ में. बाक़ी सब बढ़िया है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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