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Coronavirus outbreak: 'वर्क फ्रॉम होम' नहीं बन सकता 'नया नार्मल'!

    • सचिन देव शर्मा
    • Updated: 26 मई, 2020 04:09 PM
  • 26 मई, 2020 04:09 PM
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कोरोना वायरस (Coronavirus) के चलते लोग अपने अपने घरों से ही काम करने को मजबूर हैं. कहा यही जा रहा है कि भविष्य में भी इसे बढ़ावा दिया जाएगा मगर ऐसे तमाम कारण हैं जो बता रहे हैं कि वर्क फ्रॉम होम (Work From Home) इंडिया (India) के लिहाज से कहीं से भी ठीक नहीं है और तमाम चीजें हैं जिसे ये प्रभावित करेगा.

कोविड-19 संकट के दौरान कॉर्पोरेट्स ‘वर्क फ्रॉम होम’ (Work From Home) को लेकर उत्साहित हैं. कयास लगाए जा रहे हैं कि ‘वर्क फ्रॉम होम’ मॉडल कोविड-19 के बाद भी कॉर्पोरेट जगत में काम करने का ‘न्यू नार्मल’ (New Normal) हो सकता है. लेकिन कॉरपोरेट्स को यह भी सोचना होगा कि यह उद्योग और साथ ही साथ अर्थव्यवस्था (Economy) को कैसे प्रभावित करेगा. यदि कंपनियां कोविड-19 संकट के बाद भी ‘वर्क फ्रॉम होम’ करने का निर्णय लेती हैं, तो कर्मचारियों को न तो वाहनों की आवश्यकता होगी और न ही पेट्रोल, डीजल, सीएनजी, औपचारिक कपड़े, जूते, सौंदर्य प्रसाधन, की आवश्यकता होगी. ऑफिस के काम से देश और विदेश आने-जाने का सिलसिला भी कम हो जाएगा. ट्रैफिक कम हो जाएगा और नई सड़कों व फ्लाईओवर्स की आवश्यकता भी कम हो जाएगी है. कॉर्पोरेट्स को ऑफिसियल स्पेस की आवश्यकता भी कम हो सकती है. यहां तक कि रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी की मांग भी कम हो सकती है क्योंकि ‘वर्क फ्रॉम होम’ की स्थिति में लोगों को अपने मूल शहरों से मेट्रो शहरों या औद्योगिक हब में बसने की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी. यह कई उद्योगों को प्रभावित कर सकता है जिसमें कोर सेक्टर जैसे पावर, स्टील, ऑयल एंड गैस, रियल एस्टेट, मैन्युफैक्चरिंग आदि और सर्विस सेक्टर जैसे एविएशन, ट्रांसपोर्ट, मॉल, रीटेल, होटल, रेस्टोरेंट्स आदि हो सकते हैं.

ऐसे कुछ और भी दुष्प्रभाव हो सकते हैं जिसे कॉर्पोरेट्स अभी सोच भी नहीं पा रहे हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि ये उद्योग पूरी तरह से बंद हो जाएंगे, लेकिन इन सभी उद्योगों में भारी गिरावट आ सकती है और इसलिए इन उद्योगों में लगे बहुत से लोग अपना रोजगार खो सकते हैं. यदि कोविड-19 संकट के बाद भी कॉर्पोरेट्स ‘वर्क फ्रॉम होम’ को प्रमोट करते हैं तो इसका मतलब है कि वे लगभग लॉकडाउन जैसी स्थिति में काम करने के लिए तैयार हैं.

कोविड-19 संकट के दौरान कॉर्पोरेट्स ‘वर्क फ्रॉम होम’ (Work From Home) को लेकर उत्साहित हैं. कयास लगाए जा रहे हैं कि ‘वर्क फ्रॉम होम’ मॉडल कोविड-19 के बाद भी कॉर्पोरेट जगत में काम करने का ‘न्यू नार्मल’ (New Normal) हो सकता है. लेकिन कॉरपोरेट्स को यह भी सोचना होगा कि यह उद्योग और साथ ही साथ अर्थव्यवस्था (Economy) को कैसे प्रभावित करेगा. यदि कंपनियां कोविड-19 संकट के बाद भी ‘वर्क फ्रॉम होम’ करने का निर्णय लेती हैं, तो कर्मचारियों को न तो वाहनों की आवश्यकता होगी और न ही पेट्रोल, डीजल, सीएनजी, औपचारिक कपड़े, जूते, सौंदर्य प्रसाधन, की आवश्यकता होगी. ऑफिस के काम से देश और विदेश आने-जाने का सिलसिला भी कम हो जाएगा. ट्रैफिक कम हो जाएगा और नई सड़कों व फ्लाईओवर्स की आवश्यकता भी कम हो जाएगी है. कॉर्पोरेट्स को ऑफिसियल स्पेस की आवश्यकता भी कम हो सकती है. यहां तक कि रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी की मांग भी कम हो सकती है क्योंकि ‘वर्क फ्रॉम होम’ की स्थिति में लोगों को अपने मूल शहरों से मेट्रो शहरों या औद्योगिक हब में बसने की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी. यह कई उद्योगों को प्रभावित कर सकता है जिसमें कोर सेक्टर जैसे पावर, स्टील, ऑयल एंड गैस, रियल एस्टेट, मैन्युफैक्चरिंग आदि और सर्विस सेक्टर जैसे एविएशन, ट्रांसपोर्ट, मॉल, रीटेल, होटल, रेस्टोरेंट्स आदि हो सकते हैं.

ऐसे कुछ और भी दुष्प्रभाव हो सकते हैं जिसे कॉर्पोरेट्स अभी सोच भी नहीं पा रहे हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि ये उद्योग पूरी तरह से बंद हो जाएंगे, लेकिन इन सभी उद्योगों में भारी गिरावट आ सकती है और इसलिए इन उद्योगों में लगे बहुत से लोग अपना रोजगार खो सकते हैं. यदि कोविड-19 संकट के बाद भी कॉर्पोरेट्स ‘वर्क फ्रॉम होम’ को प्रमोट करते हैं तो इसका मतलब है कि वे लगभग लॉकडाउन जैसी स्थिति में काम करने के लिए तैयार हैं.

माना ये भी जा रहा है कि, यदि कोरोना के इस दौर में वर्क फ्रॉम होम यूं ही चलता रहा तो ये पूरे देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा

लॉकडाउन 1.0 के दौरान, भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रति दिन लगभग 32000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ और अगर ‘वर्क फ्रॉम होम’ को बढ़ावा मिलता है, तो अर्थव्यवस्था को भविष्य में भी नुकसान उठाना पड़ सकता है. बड़े उद्योगों और उनसे जुड़े छोटे उद्योगों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ सकता है. ‘वर्क फ्रॉम होम’ लोगों की व्यवहारिक क्षमताओं पर भी प्रभाव डाल सकता है.

‘वर्क फ्रॉम होम’ के दौरान जो कार्य लोगों को दिया जाता है वे इसे भली-भाँति पूरा करते हैं, लेकिन यह सिर्फ उनके अच्छा काम करने की क्षमता को ही बढ़ाता है जबकि सामाजिक और भावनात्मक क्षमताओं जैसे कि टीमवर्क, पार्टनरशिप बना कर काम करना, कनफ्लिक्ट मैनेजमेंट, एंटरप्राइसिंग क्षमता का उतना विकास नहीं हो पाएगा जितना की ज़रूरत है.

‘वर्क फ्रॉम होम’ में कर्मचारी केवल काम को पूरा करने में ही सहज महसूस करने लगता है और उसको अपनी स्ट्रेटेजिक थिंकिंग को डेवलप करनी की ज़रूरत महसूस नहीं होती और इस प्रकार कम्पनीज़ को भविष्य में लीडरशिप पाइपलाइन बनाने में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. ‘वर्क फ्रॉम होम’ से कर्मचारियों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.

ऑनलाइन मीटिंग और वेबिनार के दौरान हेड फोन और ईयर फोन के एक ही बार में 60 मिनट से अधिक उपयोग से सुनने की क्षमता कम होना, टिनिटस, हाइपरकेसिस, चक्कर आना, कान में संक्रमण आदि जैसी बीमारियों हो सकती हैं. ‘वर्क फ्रॉम होम’ कर्मचारियों के एवरेज स्टेप्स को भी कम कर सकता है जो एक कर्मचारी एक दिन में ऑफिस जाने और वापस आने के दौरान चलता है.

ऑनलाइन मीटिंग टूल्स के माध्यम से बहुत अधिक मीटिंग करने से कर्मचारी की दृष्टि पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. ‘वर्क फ्रॉम होम’ कुछ सामाजिक और पारिवारिक पहलू को प्रभावित कर सकता है.कर्मचारी के घर पर होने के कारण परिवार कर्मचारी की अटेंशन चाहता है और कर्मचारी को भी ऐसा लगता है कि उसे परिवार की रोज़मर्रा के कार्यों में मदद करनी चाहिए.

यदि कर्मचारी परिवार की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाता तो यह परिवार के सदस्यों के बीच विवाद का कारण बन सकता है.‘वर्क फ्रॉम होम’ एक ऐसा उपाय है जिसने कोविड-19 आपातकाल के दौरान कॉर्पोरेट्स, उद्योगों व अर्थव्यवस्था की गति को कुछ सीमा तक बनाए रखने में सहायता की है लेकिन शायद यह कॉर्पोरेट्स व उद्योगों में काम करने का 'न्यू नार्मल' नहीं बन सकता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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