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काले धन के खिलाफ जंग जरूरी थी

    • स्नेहांशु शेखर
    • Updated: 13 नवम्बर, 2016 04:24 PM
  • 13 नवम्बर, 2016 04:24 PM
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करंसी बैन के इस फैसले के पीछे दो तर्क दिए जा रहे हैं. इन तर्कों पर बहस जितनी जरूरी है उतना ही जरूरी इन्हें समझना भी है.

भारत की अर्थव्यवस्था में काले धन की बहस कोई नई नहीं है, पर 8 नवंबर को मोदी सरकार द्वारा लिए गए फैसले ने एक नई बहस जरूर छेड़ दी है. रेल में, बाजार में, बैंक की लाइन में, एटीएम के बाहर से निराश होकर लौटते लोग अपनी-अपनी सूचना और जानकारी के आधार पर इस व्यापक बहस का हिस्सा बने हुए हैं. इस मुद्दे पर तो व्यापक सहमति है कि फैसला सटीक और सही है, पर इसे लागू करने के तरीके, इसकी तैयारियों को लेकर विश्लेषण के अपने-अपने तरीके हैं. इन विश्लेषणों के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने गोवा से यह भी स्पष्ट कर दिया कि फैसला लागू रहेगा और अगर कुछ लोग नहीं माने तो वे और कड़े फैसले के लिए तैयार रहें.

ये भी पढ़ें-500-1000 के नोट बैन, अफवाहें छुट्टा घूम रहीं

दरअसल, फैसला लिए जाने के पीछे के कारणों के समर्थन में दो तर्क दिए गए. एक तो देश के बाहर बैंकों में छिपे काले धन को वापस लाने की राह में जो कानूनी बाधाएं खड़ी हैं, उन्हें पार करने में तो शायद थोड़ा वक्त लगे, लेकिन घर के अंदर जो काला धन छिपा है, उसका आकार भी छोटा नहीं है. सरकारी आंकड़ों की मानें तो देश के अंदर छिपे काले धन का आकार भारत की कुल अर्थव्यवस्था का करीब 26 से 30 फीसदी के बीच है, जिसे कम कर करके नहीं आंका जा सकता है.

 सांकेतिक फोटो

लिहाजा इस धन को भी बाहर निकाला जाए. पिछले दिनों सरकार ने जब आय घोषणा योजना की शुरुआत की और लोगों से 30 सितंबर तक अपनी अघोषित आय को स्वेच्छा से बिना किसी कानूनी पचड़े में पड़े घोषित करने की अपील की, तब सरकार...

भारत की अर्थव्यवस्था में काले धन की बहस कोई नई नहीं है, पर 8 नवंबर को मोदी सरकार द्वारा लिए गए फैसले ने एक नई बहस जरूर छेड़ दी है. रेल में, बाजार में, बैंक की लाइन में, एटीएम के बाहर से निराश होकर लौटते लोग अपनी-अपनी सूचना और जानकारी के आधार पर इस व्यापक बहस का हिस्सा बने हुए हैं. इस मुद्दे पर तो व्यापक सहमति है कि फैसला सटीक और सही है, पर इसे लागू करने के तरीके, इसकी तैयारियों को लेकर विश्लेषण के अपने-अपने तरीके हैं. इन विश्लेषणों के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने गोवा से यह भी स्पष्ट कर दिया कि फैसला लागू रहेगा और अगर कुछ लोग नहीं माने तो वे और कड़े फैसले के लिए तैयार रहें.

ये भी पढ़ें-500-1000 के नोट बैन, अफवाहें छुट्टा घूम रहीं

दरअसल, फैसला लिए जाने के पीछे के कारणों के समर्थन में दो तर्क दिए गए. एक तो देश के बाहर बैंकों में छिपे काले धन को वापस लाने की राह में जो कानूनी बाधाएं खड़ी हैं, उन्हें पार करने में तो शायद थोड़ा वक्त लगे, लेकिन घर के अंदर जो काला धन छिपा है, उसका आकार भी छोटा नहीं है. सरकारी आंकड़ों की मानें तो देश के अंदर छिपे काले धन का आकार भारत की कुल अर्थव्यवस्था का करीब 26 से 30 फीसदी के बीच है, जिसे कम कर करके नहीं आंका जा सकता है.

 सांकेतिक फोटो

लिहाजा इस धन को भी बाहर निकाला जाए. पिछले दिनों सरकार ने जब आय घोषणा योजना की शुरुआत की और लोगों से 30 सितंबर तक अपनी अघोषित आय को स्वेच्छा से बिना किसी कानूनी पचड़े में पड़े घोषित करने की अपील की, तब सरकार को करीब 67 हजार करोड़ की आमदनी हुई. इतनी बड़ी रकम लोगों ने बैंकों में जमा कराई, लेकिन यह रकम सरकार के उम्मीदों के अनुरूप नहीं थी और तभी यह भी संकेत दे दिए गए थे कि सरकार कुछ बड़ा फैसला कर सकती है.

दूसरा तर्क दिया गया, जाली नोट का फैलता कारोबार. मकसद सिर्फ भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने तक सीमित नहीं था. देश के अंदर आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने के मकसद से सीमा पार, नेपाल और बांग्लादेश के रास्ते से जिस बड़े पैमाने पर जाली नोट का गोरखधंधा जारी था, उस पर लगाम लगाने के अब तक के उठाए गए कदम प्रभावी साबित नहीं हुए थे. बात आतंकवादियों तक सीमित नहीं थी, नक्सलियों को भी आर्थिक पनाह मिली हुई थी, जिसका इस्तेमाल हथियार-विस्फोटक खरीदने में धड़ल्ले से चल रहा था. कुछ छिटपुट धरपकड़ और गिरफ्तारियों से बात बनती नहीं दिख रही थी, ऐसे में कुछ अलग सोचने की जरूरत महसूस की जा रही थी.

सिक्योरिटी एजेंसियों के पास जो जानकारी है, उनके मुताबिक पाकिस्तान में एक पूरा नेटवर्क ही जाली नोट के गोरखधंधे से जुड़ा हुआ है और पाकिस्तान के अपनी करेंसी से ज्यादा जाली भारतीय नोट वहां तैयार हो रहे हैं. कुछ पाक बैंक नेपाल में स्थित अपने ब्रांच, खासकर जो भारत-नेपाल सीमा से सटे इलाकों में हैं, का इस्तेमाल भारत में जाली नोट को ट्रांसपोर्ट करने में लगे हुए हैं. सीमावर्ती इलाकों में एक लाख के जाली नोट की कीमत जहां 18 हजार रूपए के करीब है, कोलकाता, दिल्ली. मुंबई पहुंचते-पहुंचते इनकी कीमत 40-50 हजार प्रति एक लाख रूपए तक हो जाती है.

अभी जम्मू-कश्मीर में जुलाई से जो तमाशा जारी है , इनके बीच सिक्योरिटी एजेंसियों ने जो जानकारी इकट्ठा की है, वह भी कम चौंकाने वाले नहीं थे. हवाला के जरिए दुबई व कुछ अन्य रास्तों से पैसे घाटी में भेजे जा रहे हैं, ताकि माहौल का गरम रखा जाए. सिर्फ अगस्त-सितंबर में सिक्योंरियी एजेंसियों को घाटी में करीब 500 करोड़ के ट्रांजेक्शन की जानकारी मिली. ऐसे में कुछ ठोस और बड़े फैसले की जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही थी.

ऐसे में 8 नवंबर को मात्र चार घंटे की मोहलत पर जिस तरीके से 500 और एक हजार के नोट को बंद करने का फैसला लिया गया और उसके बाद जो प्रतिक्रिया दिख रही है, उससे एक बात से तय है कि फैसला सटीक था. मात्र तीन दिनों में अगर बैंकों में दो लाख करोड़ रूपए लोगों ने जमा कराए, जो घरों में छिपा कर रखे गए थे, तो इसका असर समझा जा सकता है. पैसा कैसा और किस रूप में बाहर आ रहा हैं लोगों को दिख रहा है.  लोग नदियों में, कूड़े में, गाड़ियों में, ड्राइवरों और मजदूरों के जनधन एकाउंट में पैसा फेंक रहे है, अब कहां से आ रहे हैं ये पैसे.

राजस्थान में मार्बल व्यापारी के यहां अगर 1600 करोड़ पकड़ा जा रहा है, झारखंड में पेट्रोल पंप से नक्सलियों के लाखों पकड़े जा रहे हैं, गुजरात में बिल्डर के यहां से हजारों करोड़ निकल रहे हैं, तो कुछ तो मजबूरी महसूस हो रही होगी, पैसा निकालने की. भविष्य के लिए संचित धन और संचित कर्म के सिद्धांत पर चलने वाले समूह की संचित आय बाहर आ रही है, उन्हें टैक्स भर बैंकों में जमा कराने का रास्ता सुझाया जा रहा है तो कुछ तो पेट में दर्द होगा. सवाल उठ रहे हैं कि इस कदम की क्या जरूरत थी, क्या इससे ब्लैक इकोनॉमी पर रोक लग पाएगी, फैसला लागू करने से पहले पूरी तैयारी क्यों नहीं की गई, घनकुबेर घर बैठे हैं, उद्घोगपति तो घर बैठे हैं, अपना ही पैसा निकालने के लिए आम आदमी को परेशान किया जा रहा है..वगैरह वगैरह. अब जरूरत क्यों थी, इसके लिए सरकार के पास पर्याप्त कारण हैं और जनता को भी महसूस हो रहा है. अब इस कदम से काले धन पर रोक लगेगी या नहीं, यह तो वक्त तय करेगा. फिलहाल अर्थशास्त्री मान रहे हैं कि फैसला सही और अनिवार्य था. चुनौती थी और उपाय स्पष्ट था, या तो कुछ कीजिए या फिर उसे एक मुद्दा बनाए रखिए.

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काले धन के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 4 जुलाई, 2011 को जब एसआईटी के गठन का आदेश दिया, तब जस्टिस सुर्दशन रेड्डी और जस्टिस एसएस निज्जर ने कुछ बातें कही थी, जो गौर करने लायक थीं. उन्होंने कहा कि “काले धन की चुनौती पर रोक लगाने की विफलता देश की सरकारों की कमजोरियों की निशानी है. जिस बड़े पैमाने पर काले धन का कारोबार चल रहा है, यह दर्शाता है कि सरकारी तंत्र कितना कमजोर और खोखला हो चुका है.  “हास्यास्पद यह है कि जिस पार्टी की सरकार ने एसआईटी के गठन का विरोध किया और फैसले को टालते रहे, उन्हें अब जनता की परेशानी समझ में आ रही है. अब कहा जा रहा है कि पूरी तैयारी नहीं की गई, मौका नहीं दिया गया. मुलायम सिंह तो मांग कर गए कि पूरी योजना को एक हफ्ते के लिए टाल दिया जाए और उसके बाद इसके लागू किया जाए. केजरीवाल महोदय तो फैसले को वापस लेने की मांग कर रहे हैं.

अब स्थिति देखिए, सिर्फ चार घंटे की मोहलत मिली तो ज्वैलर की दुकान पर 12 बजे मध्यरात्रि तक सोने की खरीदारी हो गई. सूचना मिली कि लोगों ने लाख रूपए तक देकर 40,000 की कीमत का सोना खरीद लिया. कुछ लोगों ने त्रिवेंदम और कुछ अन्य दूर के स्टेशनों के लिए ट्रेन में एसी फर्स्ट और सेंकेड क्लास की टिकट वेटिंग में बुक करा लिए गए, ताकि बाद में कैंसिल कराकर कैश वापस लेकर उसे व्हाइट बना लिया जाए. कुछ ने रियल एस्टेट में पैसा लगा दिया, यानि जिसे जो उपाय समझ में आया, उसमें पैसा लगाना शुरू कर दिया.

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170 करोड़ रूपए अलग-अलग जन-धन एकाउंट में भी जमा हो गए. अब जहां ऐसी मानसिकता हो, लोग जुगाड़ लगाना जानते हो, ऐसे में घोषणा कर फिर मौका देना या फिर पहले से जानकारी देकर लागू करने की स्थिति में क्या परिणाम निकलता, आसानी से समझा जा सकता है. अब यह अलग बात है कि जिन लोगों ने मौका का फायदा उठाने की कोशिश की, वो अब एक्साइज, ईडी और आयकर विभाग को हिसाब देते फिर रहे हैं. प्रधानमंत्री ने भी पहले काबे और अब गोवा में स्पष्ट कर दिया कि यह कोई आखिरी फैसला नहीं है. काले धन पर कार्रवाई पर बेचैनी कितनी बढ़ी हुई है, यह लगातार देखने को मिल रहा है. अफवाहों का बाजार गर्म है, नमक-चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी के नाम पर दिल्ली, मुंबई, उत्तर प्रदेश के कई जिलों में लूट मच गई. फर्जी लूट के वीडियो जारी किए जा रहे हैं, नकली वीडियो जारी कर अफवाह फैलाया जा रहा है कि 2000 के भी फर्जी नोट मार्केट में आ गए. शुक्रवार को ऐसी भी सूचना फैलाई गई कि कुछ इलाकों में कानून-व्यवस्था की नौबत खड़ी हो गई है. गाजियाबाद में 13 लोग गिरफ्तार किए गए हैं, लिहाजा इन परिस्थितियों पर नजर बनाए रखना जरूरी है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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