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रिलायंस जियो के 49 रु. वाले प्‍लान ने 15 साल पुराना इतिहास दोहरा दिया

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 29 जनवरी, 2018 06:59 PM
  • 29 जनवरी, 2018 06:59 PM
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रिलायंस जियो के आने से पहले जो फोन कान में लगाकर बात करने के लिए हुआ करता था, अब वो फोन चेहरे के सामने आ चुका है. अब बात करते समय घड़ी देखने की जरूरत नहीं है, हां मोबाइल की बैटरी का ध्यान रखिएगा.

एक वक्त वह भी था जब एक फोन करने के लिए पास के एसटीडी बूथ तक जाना होता था. जिसके घर में फोन लगा भी होता था वह मिस कॉल मारकर पैसे बचाता था. मिनट पूरा होने से तुरंत पहले फोन काटने पर ऐसी खुशी मिलती थी मानों लॉटरी लग गई हो. मोबाइल फोन तो इक्का-दुक्का लोगों के पास होते थे, जो पैसे वाले थे. उस वक्त किसी ने ये सोचा भी नहीं था कि हर हाथ में भी मोबाइल हो सकता है. ये सपना देखा मुकेश अंबानी ने, जिसके बाद पान वाले से लेकर रिक्शे वाले तक के हाथ में मोबाइल फोन पहुंच गया. हालांकि, उसके बाद अंबानी परिवार की संपत्ति का दोनों भाइयों में बंटवारा हो गया और धीरे-धीरे महज 500 रुपए के रिलायंस इंफोकॉम के फोन से शुरू हुई क्रांति भी समाप्त हो गई. 14 साल बाद एक बार फिर मुकेश अंबानी ने अपने सपने को नई उड़ान देने का फैसला किया और रिलायंस जियो टेलिकम्युनिकेशन कंपनी शुरू करते हुए जियो फोन बाजार में उतारा.

तब और अब...

अगर बात फोन की कीमत की करें तो धीरूभाई अंबानी के 70वें जन्मदिन पर 28 दिसंबर 2002 को रिलायंस कंपनी की तरफ से जो मोबाइल बाजार में उतारा गया था, उसकी प्रभावी कीमत 'जीरो' थी. उस फोन को खरीदने के लिए 500 रुपए देने पड़े थे. हालांकि, उसके साथ 500 रुपए खर्च करने के लिए भी मिल रहे थे, यानी मोबाइल एकदम मुफ्त में मिल रहा था. उस वक्त मुफ्त में मोबाइल फोन मिलना टेलिकॉम की दुनिया में एक बड़ी क्रांति थी. अब 14 साल बाद मुकेश अंबानी ने जो जियो फोन लॉन्च किया है, उसकी भी प्रभावी कीमत 'जीरो' है. फोन खरीदते समय आपको 1500 रुपए देने होंगे, जो आपको तीन सालों में 500-500 रुपए कर के वापस भी मिल जाएंगे.

वहीं दूसरी ओर, अगर कॉलिंग रेट की बात करें तो 2003 में रिलायंस ने 15 सेंकेड की पल्स रेट का ऑफर पेश किया था. प्रति 15 सेकेंड बात करने के लिए महज 10 पैसे खर्च होते थे यानी एक मिनट बात...

एक वक्त वह भी था जब एक फोन करने के लिए पास के एसटीडी बूथ तक जाना होता था. जिसके घर में फोन लगा भी होता था वह मिस कॉल मारकर पैसे बचाता था. मिनट पूरा होने से तुरंत पहले फोन काटने पर ऐसी खुशी मिलती थी मानों लॉटरी लग गई हो. मोबाइल फोन तो इक्का-दुक्का लोगों के पास होते थे, जो पैसे वाले थे. उस वक्त किसी ने ये सोचा भी नहीं था कि हर हाथ में भी मोबाइल हो सकता है. ये सपना देखा मुकेश अंबानी ने, जिसके बाद पान वाले से लेकर रिक्शे वाले तक के हाथ में मोबाइल फोन पहुंच गया. हालांकि, उसके बाद अंबानी परिवार की संपत्ति का दोनों भाइयों में बंटवारा हो गया और धीरे-धीरे महज 500 रुपए के रिलायंस इंफोकॉम के फोन से शुरू हुई क्रांति भी समाप्त हो गई. 14 साल बाद एक बार फिर मुकेश अंबानी ने अपने सपने को नई उड़ान देने का फैसला किया और रिलायंस जियो टेलिकम्युनिकेशन कंपनी शुरू करते हुए जियो फोन बाजार में उतारा.

तब और अब...

अगर बात फोन की कीमत की करें तो धीरूभाई अंबानी के 70वें जन्मदिन पर 28 दिसंबर 2002 को रिलायंस कंपनी की तरफ से जो मोबाइल बाजार में उतारा गया था, उसकी प्रभावी कीमत 'जीरो' थी. उस फोन को खरीदने के लिए 500 रुपए देने पड़े थे. हालांकि, उसके साथ 500 रुपए खर्च करने के लिए भी मिल रहे थे, यानी मोबाइल एकदम मुफ्त में मिल रहा था. उस वक्त मुफ्त में मोबाइल फोन मिलना टेलिकॉम की दुनिया में एक बड़ी क्रांति थी. अब 14 साल बाद मुकेश अंबानी ने जो जियो फोन लॉन्च किया है, उसकी भी प्रभावी कीमत 'जीरो' है. फोन खरीदते समय आपको 1500 रुपए देने होंगे, जो आपको तीन सालों में 500-500 रुपए कर के वापस भी मिल जाएंगे.

वहीं दूसरी ओर, अगर कॉलिंग रेट की बात करें तो 2003 में रिलायंस ने 15 सेंकेड की पल्स रेट का ऑफर पेश किया था. प्रति 15 सेकेंड बात करने के लिए महज 10 पैसे खर्च होते थे यानी एक मिनट बात करने पर सिर्फ 40 पैसे लगते थे. वह दौर था कॉलिंग रेट में क्रांति वाला. उस समय प्रति मिनट कॉलिंग के लिए लोगों को 2 रुपए तक चुकाने पड़ते थे. 14 साल जुलाई 2017 में मुकेश अंबानी ने जियो फोन लॉन्च किया तो कंपनी ने कॉलिंग को एकदम मुफ्त कर दिया. लोगों को सिर्फ डेटा के पैसे देने पड़ते हैं और वो भी सिर्फ 153 रुपए प्रति महीना. हाल ही में गणतंत्र दिवस पर तो जियो फोन का महज 49 रुपए का भी प्लान आया है. इस ऑफर में आपको 28 दिनों तक मुफ्त कॉलिंग मिलेगी और 1 जीबी इंटरनेट डेटा भी मिलेगा. 49 रुपए में महीना भर... यानी लगभग मुफ्त में ही सब कुछ.

डेटा बन गया 'किंग'

मुकेश अंबानी से जियो फोन से पहले सितंबर 2016 में रिलायंस जियो टेलीम्युनिकेशन कंपनी की शुरुआत की, जिसके बाद तो अन्य कंपनियों की मानों कमर ही टूट गई. जहां एक ओर सभी कंपनियां कॉलिंग के भी पैसे ले रही थीं और महंगा डेटा दे रही थीं, वहीं दूसरी ओर रिलायंस जियो ने लॉन्च होने के बाद करीब 7 महीनों तक सारी सेवाएं मुफ्त में दीं. उसके बाद कंपनी जो प्लान निकाले वो भी इतने सस्ते कि अन्य कंपनियों को भी अपने ग्राहक बचाने के लिए कीमतें गिरानी ही पड़ीं. जियो ने अपने सभी प्लान में मुफ्त कॉलिंग, मुफ्त रोमिंग इन कमिंग, मुफ्त रोमिंग आउटगोइंग जैसी सेवाएं दीं. इसके अलावा 4जी डेटा को 10 रुपए प्रति जीबी तक सस्ता कर दिया, जबकि उसके कुछ समय पहले तक कंपनियां 1 जीबी 3जी डेटा के लिए भी ग्राहकों से 250 रुपए तक वसूल करती थीं.

कैसे बदला लोगों का जीवन?

रिलायंस जियो के आने से पहले जो फोन कान में लगाकर बात करने के लिए हुआ करता था, अब वो फोन चेहरे के सामने आ चुका है. कल तक जिस फोन से सिर्फ दूसरों की आवाज सुनाई देती थी, अब रिलायंस जियो के सस्ते डेटा की बदौलत वीडियो कॉलिंग करना बेहद सस्ता हो चुका है. जियो फोन का 49 रुपए का लेटेस्ट प्लान तो किसी मुफ्त सेवा से कम नहीं है. पहले जहां बात करते वक्त हर सेंकेंड बिल का बोझ पड़ता था, रिलायंस जियो ने उसे भी खत्म कर दिया है. जितना चाहें बात करें. अब बात करते समय घड़ी देखने की जरूरत नहीं है, हां मोबाइल की बैटरी का ध्यान रखिएगा, क्योंकि वह डाउन हो सकती है.

तो क्या अब तक कंपनियां लूट रही थीं?

रिलायंस जियो और फिर जियो फोन के आने के बाद सभी टेलिकॉम कंपनियों में एक प्राइस वॉर शुरू हो चुका है. वित्त वर्ष 2017-18 की दूसरी तिमाही में रिलायंस जियो को 271 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था, लेकिन तीसरी तिमाही में कंपनी को 504 करोड़ रुपए का फायदा हुआ है. इतना सस्ता डेटा और कॉलिंग प्लान देने के बावजूद कंपनी महज 16 महीनों में ही फायदे में आ चुकी है. 'काउंटरपार्ट रिसर्च फर्म' ने तो जियो फोन को 2017 का सबसे लोकप्रिय फोन भी करार दिया है. यहां सवाल ये उठता है कि आखिर जब रिलायंस जियो इतनी सस्ती सेवाएं देने के बावजूद फायदा कमा रहा है, तो इतने सालों से चल रही बाकी टेलीकम्युनिकेशन कंपनियां ग्राहकों को लूट रही थीं?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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