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इन 5 कारणों से सबसे चुनौती भरा रहेगा इस साल का बजट...

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 30 जनवरी, 2017 04:00 PM
  • 30 जनवरी, 2017 04:00 PM
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अरुण जेटली और मोदी सरकार दोनों के लिए ही इस साल का बजट किसी बोर्ड एक्जाम से कम नहीं है. वैसे तो कई बातें हैं, लेकिन इन 5 कारणों से बजट 2017 मोदी सरकार के लिए अग्निपरीक्षा साबित होगा.

1 फरवरी को अरुण जेटली अपने कार्यकाल का चौथा बजट पेश करने जा रहे हैं. जो बजट आएगा वो मोदी सरकार के अच्छे दिनों की कसौटी होगा. आखिर ढाई साल के कार्यकाल में मोदी जी के अच्छे दिनों पर सवाल कई खड़े हुए हैं. ऊपर से नोटबंदी की मार झेल चुके लोगों को विकास की गाड़ी पर चढ़ाना ही होगा. अगर इस बजट में कुछ बेहतर नहीं दिखा तो मोदी जी को अपने अच्छे दिन इसके बाद साबित करने के लिए बड़ी मेहनत करनी होगी. इस बार का बजट हमारे वित्त मंत्री के लिए बड़ा चुनौती भरा है, आखिर ऐसा क्यों? चलिए जानते हैं कुछ कारण...

1. नोटबंदी...

नोटबंदी के बाद पैसा कहां गया? उसका क्या हुआ? और लोगों को इससे क्या फायदा हुआ? इन सवालों के जवाब आना अभी भी बाकी हैं. अगर जेटली के अनुसार नोटबंदी सफल हुई है तो उनके बजट में ये जरूर दिखना चाहिए. टैक्स स्लैब में भी नोटबंदी के बाद राहत मिलनी चाहिए, काले धन का इनवेस्टमेंट दिखना चाहिए, निर्यात नीति में बदलाव दिखने चाहिए जिससे अर्थव्यवस्था मजबूत हो, कन्ज्यूमर डिमांड बढ़नी चाहिए और ये सब इसलिए ताकि नोटबंदी के बाद भारत की जीडीपी ना ही कम हो और ना ही उसकी छवि बिगड़े. कुल मिलाकर ये बजट वह मौका होगा, जिससे सरकार यह साबित करे कि नोटबंदी का फायदा उठाकर, उसने जनहित में कमाल कर दिया है.

2. ट्रंप-

अमेरिकी प्रेसिडेंट ट्रंप का प्रभाव भारत पर भी काफी है. ये कुछ ऐसा है कि IT कंपनियों से लेकर रुपए के घटते और बढ़ते स्तर पर जेटली को ध्यान देना होगा. ट्रंप के राज में आईटी कंपनियों को सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है क्योंकि H1B वीजा को लेकर ट्रंप का रुख कड़ा रहा है और सबसे ज्यादा IT कंपनियां ही इस वीजा का इस्तेमाल करती हैं. NASSCOM की रिपोर्ट के अनुसार IT सेक्टर ने 2015 में ही 147 बिलियल डॉलर (करीब 1 लाख करोड़) का रेवेन्यू दिया था. भारतीय...

1 फरवरी को अरुण जेटली अपने कार्यकाल का चौथा बजट पेश करने जा रहे हैं. जो बजट आएगा वो मोदी सरकार के अच्छे दिनों की कसौटी होगा. आखिर ढाई साल के कार्यकाल में मोदी जी के अच्छे दिनों पर सवाल कई खड़े हुए हैं. ऊपर से नोटबंदी की मार झेल चुके लोगों को विकास की गाड़ी पर चढ़ाना ही होगा. अगर इस बजट में कुछ बेहतर नहीं दिखा तो मोदी जी को अपने अच्छे दिन इसके बाद साबित करने के लिए बड़ी मेहनत करनी होगी. इस बार का बजट हमारे वित्त मंत्री के लिए बड़ा चुनौती भरा है, आखिर ऐसा क्यों? चलिए जानते हैं कुछ कारण...

1. नोटबंदी...

नोटबंदी के बाद पैसा कहां गया? उसका क्या हुआ? और लोगों को इससे क्या फायदा हुआ? इन सवालों के जवाब आना अभी भी बाकी हैं. अगर जेटली के अनुसार नोटबंदी सफल हुई है तो उनके बजट में ये जरूर दिखना चाहिए. टैक्स स्लैब में भी नोटबंदी के बाद राहत मिलनी चाहिए, काले धन का इनवेस्टमेंट दिखना चाहिए, निर्यात नीति में बदलाव दिखने चाहिए जिससे अर्थव्यवस्था मजबूत हो, कन्ज्यूमर डिमांड बढ़नी चाहिए और ये सब इसलिए ताकि नोटबंदी के बाद भारत की जीडीपी ना ही कम हो और ना ही उसकी छवि बिगड़े. कुल मिलाकर ये बजट वह मौका होगा, जिससे सरकार यह साबित करे कि नोटबंदी का फायदा उठाकर, उसने जनहित में कमाल कर दिया है.

2. ट्रंप-

अमेरिकी प्रेसिडेंट ट्रंप का प्रभाव भारत पर भी काफी है. ये कुछ ऐसा है कि IT कंपनियों से लेकर रुपए के घटते और बढ़ते स्तर पर जेटली को ध्यान देना होगा. ट्रंप के राज में आईटी कंपनियों को सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है क्योंकि H1B वीजा को लेकर ट्रंप का रुख कड़ा रहा है और सबसे ज्यादा IT कंपनियां ही इस वीजा का इस्तेमाल करती हैं. NASSCOM की रिपोर्ट के अनुसार IT सेक्टर ने 2015 में ही 147 बिलियल डॉलर (करीब 1 लाख करोड़) का रेवेन्यू दिया था. भारतीय अर्थव्यवस्था में IT सेक्टर का बहुत बड़ा योगदान है. अब अगर आईटी सेक्टर पर इसका प्रभाव पड़ेगा तो सीधे तौर पर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा.

इसके अलावा, मैनुफैक्चरिंग सेक्टर में ट्रंप के विचार हैं कि अमेरिकी कंपनियां किसी अन्य देश में यूनिट ना लगाएं. पहले ही एपल के भारत में यूनिट लगाने की बात कही जा रही थी. अब ऐसे में अगर उन कंपनियों पर ड्यूटी लगने लगी जो बाहरी देशों में अपने यूनिट लगाती हैं तो भारत के लिए भी कहीं ना कहीं ये चिंता की बात होगी. कुल मिलाकर आयात/निर्यात नीति, विदेशों में निवेश और अमेरिकी बिजनेस पर भी जेटली को नजर रखनी होगी. मेक इन इंडिया कैम्पेन कैसे बढ़े और नए मार्केट कैसे तलाशे जाएं इसकी झलक बजट में दिखानी होगी.

3. राजकोषीय घाटा (fiscal deficit)

अक्सर आपने बजट के समय फिस्कल डेफिसिट शब्द सुना होगा. इसका सीधा मतलब है आए हुए पैसे के एवज में सरकार ने कितना खर्च किया इसका लेखा जोखा. (Fiscal Deficit = Total Expenditure – Total Receipts excluding borrowings). इस साल सरकार को फिजूलखर्ची पर ध्यान देना होगा. अगर जीडीपी की तुलना में फिस्कल डेफिसिट ज्यादा है इसका मतलब सरकार पर कर्ज है और ज्यादा खर्च हो रहा है. इससे महंगाई भी बढ़ती है.

बजट 2017 में इसपर काबू करना होगा. इसका मतलब सरकार बिना पैसा प्रिंट किए ज्यादा पैसा कैसे बढ़ाए. नोटबंदी ने वैसे ही नोट प्रिंटिंग प्रेस को काफी मेहनत करनी पड़ी है. कैसे ये साबित किया जाएगा कि सरकार ज्यादा खर्च नहीं कर रही है. पब्लिक इन्वेस्टमेंट बढ़ाना नोटबंदी के बाद सरकार की सबसे अहम जरूरतों में से एक बन चुका है. अगर खर्च ज्यादा हुआ तो एक बार फिर महंगाई बढ़ सकती है. फिस्कल डेफिसिट को काबू में रखना जेटली के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा.

4.  जीएसटी-

वित्त मंत्री इस बात से पूरी तरह से सहमत दिखते हैं कि नोटबंदी के बाद टैक्स रेवेन्यू ज्यादा इकट्ठा होगा. अगर ऐसा है तो यकीनन मोदी सरकार को खर्च करने की थोड़ी छूट मिल जाएगी और साथ ही जीएसटी जो कई सालों से अटका पड़ा है एक कदम और आगे बढ़ पाएगा, लेकिन अभी भी इस बात की पूरी गारंटी भी नहीं है कि जीएसटी लागू हो ही जाए. दूसरी बात कि इनडायरेक्ट टैक्स अभी काटे जा सकते हैं क्योंकि नोटबंदी से छोटे बिजनेसमेन को काफी नुकसान हुआ है. ऐसे में जेटली जी क्या करेंगे? अगर टैक्स नहीं काटे गए और सब्सीडी भी दी गई तो भी सरकार का बोझ बढ़ सकता है. या तो सरकार के पास पैसा ज्यादा आए या फिर सरकार इसके लिए उधार लेगी. पहले ही सरकार का कर्ज बढ़ा हुआ है ऐसे में अगर सरकार और पैसा उधार लेती है तो महंगाई बढ़ेगी और साथ ही ये जीडीपी के लिए भी अच्छा नहीं होगा.

5. रूरल सेक्‍टर

नोटबंदी के बाद से ही ग्रामीण इलाकों में भारी उथल पुथल देखी गई है. बजट में ऐसे इलाकों के लिए विकास का प्रावधान रखना जेटली के लिए जरूरी है. यूपी जैसे प्रदेश के लिए चुनावी माहौल के कारण कोई खास घोषणा नहीं की जा सकती है. 5 राज्यों में चुनाव होने वाले हैं और ऐसे में ये बजट मोदी सरकार को कैसे फायदा दिलाएगा, इसके नतीजे क्या होंगे ये देखना भी जरूरी है.  

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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