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PMC जैसे घोटालों का असल गुनहगार कौन, बैंक या RBI ?

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 12 अक्टूबर, 2019 06:02 PM
  • 12 अक्टूबर, 2019 06:02 PM
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अब अगर RBI की नाक के नीचे ही घोटाले होंगे, तो ऐसे रेगुलेटर का क्या फायदा. ऐसा भी नहीं है कि पहली बार RBI की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लग रहे हैं. इससे पहले नीरव मोदी और विजय माल्या के मामले में भी रिजर्व बैंक की बड़ी लापरवाही सामने आई थी.

पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक यानी पीएमसी बैंक. ये वही बैंक है जो आजकल सबसे अधिक चर्चा में है. वजह है एक बड़ा घोटाला, जिसे इस बैंक के अधिकारियों ने ही साठ-गांठ कर के अंजाम दिया है. अधिकारियों ने नियमों को ताक पर रखकर एक ही रियल एस्टेट कंपनी को करीब 6500 करोड़ का लोन दे दिया है, जो अब एनपीए यानी नॉन परफॉर्मिंग असेट बन चुका है. हैरानी तो इस बात पर होनी चाहिए कि बैंक ने कुल 8,880 करोड़ का कर्ज दिया है. यानी करीब 73 फीसदी लोन सिर्फ एक ही ग्राहक (HDIL) को दे दिया. कोई बैंक किसी कैसे लोन दे रहा है, ये देखना भारतीय रिजर्व बैंक का काम है, तभी तो वह रेगुलेटर कहा जाता है. अब अगर RBI की नाक के नीचे ही घोटाले होंगे, तो ऐसे रेगुलेटर का क्या फायदा. ऐसा भी नहीं है कि पहली बार RBI की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लग रहे हैं. इससे पहले नीरव मोदी और विजय माल्या के मामले में भी रिजर्व बैंक की बड़ी लापरवाही सामने आई थी. पीएमसी के बैंक अधिकारी को ग्राहकों के दोषी हैं ही, रिजर्व बैंक भी ग्राहकों का गुनहगार है.

टाइम्स ऑफ इंडिया में छपा संदीप अधवार्यु का ये कार्टून पीएमसी और आरबीआई पर सीधा वार कर रहा है.

पहले समझिए क्या है पीएमसी मामला

पीएमसी बैंक ने नियम और कायदे-कानून को ताक पर रखकर रीयल एस्टेट कंपनी हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (HDIL) को भारी-भरकम लोन दिया. कंपनी ने कुल 8,880 करोड़ रुपए का लोन दिया है, जिसमें से 6500 करोड़ रुपए तो सिर्फ HDIL को ही दिए हैं, जो अब एनपीए बन चुके हैं. कंपनी के पूर्व मैनेजिंग डायरेक्टर जॉय थॉमस ने ये बात कबूल की है कि रिजर्व बैंक की नजरों से इस घोटाले को बचाने के लिए उन्होंने बैंक के 6 अधिकारियों के साथ मिलकर करीब 21000 फर्जी अकाउंट भी बनाए थे, ताकि एनपीए को छुपाया जा सके. दिलचस्प है कि इनमें...

पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक यानी पीएमसी बैंक. ये वही बैंक है जो आजकल सबसे अधिक चर्चा में है. वजह है एक बड़ा घोटाला, जिसे इस बैंक के अधिकारियों ने ही साठ-गांठ कर के अंजाम दिया है. अधिकारियों ने नियमों को ताक पर रखकर एक ही रियल एस्टेट कंपनी को करीब 6500 करोड़ का लोन दे दिया है, जो अब एनपीए यानी नॉन परफॉर्मिंग असेट बन चुका है. हैरानी तो इस बात पर होनी चाहिए कि बैंक ने कुल 8,880 करोड़ का कर्ज दिया है. यानी करीब 73 फीसदी लोन सिर्फ एक ही ग्राहक (HDIL) को दे दिया. कोई बैंक किसी कैसे लोन दे रहा है, ये देखना भारतीय रिजर्व बैंक का काम है, तभी तो वह रेगुलेटर कहा जाता है. अब अगर RBI की नाक के नीचे ही घोटाले होंगे, तो ऐसे रेगुलेटर का क्या फायदा. ऐसा भी नहीं है कि पहली बार RBI की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लग रहे हैं. इससे पहले नीरव मोदी और विजय माल्या के मामले में भी रिजर्व बैंक की बड़ी लापरवाही सामने आई थी. पीएमसी के बैंक अधिकारी को ग्राहकों के दोषी हैं ही, रिजर्व बैंक भी ग्राहकों का गुनहगार है.

टाइम्स ऑफ इंडिया में छपा संदीप अधवार्यु का ये कार्टून पीएमसी और आरबीआई पर सीधा वार कर रहा है.

पहले समझिए क्या है पीएमसी मामला

पीएमसी बैंक ने नियम और कायदे-कानून को ताक पर रखकर रीयल एस्टेट कंपनी हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (HDIL) को भारी-भरकम लोन दिया. कंपनी ने कुल 8,880 करोड़ रुपए का लोन दिया है, जिसमें से 6500 करोड़ रुपए तो सिर्फ HDIL को ही दिए हैं, जो अब एनपीए बन चुके हैं. कंपनी के पूर्व मैनेजिंग डायरेक्टर जॉय थॉमस ने ये बात कबूल की है कि रिजर्व बैंक की नजरों से इस घोटाले को बचाने के लिए उन्होंने बैंक के 6 अधिकारियों के साथ मिलकर करीब 21000 फर्जी अकाउंट भी बनाए थे, ताकि एनपीए को छुपाया जा सके. दिलचस्प है कि इनमें से अधिकतर खाते मृत लोगों के नाम पर खोले गए थे.

रिजर्व बैंक की नाक के नीचे पीएमसी बैंक का घोटाला भी हो गया.

RBI पर इसलिए सवाल उठाने लाजमी हैं !

भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट 1949 की धारा 35ए के तहत पीएमसी बैंक पर कुछ रेगुलेशन्स लगाई थीं. इसका मकसद ये था कि पीएमसी बैंक के अधिकारी बैंक की गतिविधियों को अपने हित का ध्यान रखते हुए अंजाम ना दें. लेकिन पीएमसी बैंक में वही हुआ, जिससे बैंक को बचाने के लिए केंद्रीय बैंक ने कायदे-कानून बनाए थे. ऐसे में एक बार बैंकिंग सिस्टम पर लागू होने वाले कानून का भी ऑडिट किए जाने की जरूरत है.

वहीं दूसरी ओर, IGC India Programme के डायरेक्टर प्रणब सेन बताते हैं कि 'बैंकिंग सिस्टम में ऑडिट दो लेयर्स में होता है. पहले बैंक का इंटरनल ऑडिट होता है और फिर बाहरी ऑडिट'. यानी जब बैंक के अधिकारी ही मिले हुए हैं तो वह इंटरनल ऑडिट में ही खुद को बचाने की कोशिश करेंगे. वहीं दूसरी ओर, सेन ने ये भी कहा है कि 'ये दोनों ही ऑडिट सिर्फ किसी अनियमितता को सामने ला सकते हैं, ना कि उसकी छानबीन कर सकते हैं.' यानी ये तो तय है कि बैंकिंग सिस्टम और कायदे-कानून में कुछ खामियां जरूर हैं, जिनका फायदा उठाया जा रहा है.

RBI को लग चुकी थी भनक

भारतीय रिजर्व बैंक को पीएमसी बैंक में किसी गड़बड़ी का शक तो पिछले ही साल हो गया था, तभी तो उसने बैंक के चेयरमैन वरयाम सिंह को हटाए जाने का सुझाव दिया था. पिछले ही साल रिजर्व बैंक को ये पता चल गया था वरयाम सिंह ने नियमों का उल्लंघन करते हुए HDIL को लोन दिया है. इतना ही नहीं, ये भी पता चला कि HDIL में खुद वरयाम सिंह भी बोर्ड के सदस्य हैं. रिजर्व बैंक के सुझाव के बावजूद वरयाम सिंह को नहीं हटाया गया. साफ है कि बैंक सिर्फ अपने फायदे की सोच रहा था, लेकिन रिजर्व बैंक ने इतना सब होने के बावजूद कोई सख्त कार्रवाई नहीं की और आज नतीजा ये है कि हजारों लोगों के करोड़ों रुपयों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.

नीरव मोदी मामला भी तो रिजर्व बैंक की कमी का ही नतीजा था !

हीरा कारोबारी नीरव मोदी के नाम तो देश का सबसे बड़ा बैंक घोटाला दर्ज है. उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक को करीब 13-14 हजार करोड़ रुपए का चूना लगाया. इस घोटाले को अंजाम देने में इस्तेमाल हुआ लेटर ऑफ अंडरटेकिंग यानी एलओयू, जो एक तरह की गारंटी होती है, जिसके आधार पर दूसरे बैंक अकाउंटहोल्डर को पैसे देते हैं. बैंक के दो अधिकारियों ने चोरी-चोरी एलओयू बनाकर नीरव मोदी को दिए, जिससे धीरे-धीरे कर के इतना बड़ा घोटाला किया गया. इन अधिकारियों के पास स्विफ्ट तकनीक की पहुंच थी, जिसके जरिए दुनियाभर के बैंक आपस में जुड़े रहते हैं. इस सिस्टम के जरिए किसी भी बैंक को दूसरे बैंक द्वारा संदेश मिलने को पुख्ता प्रमाण माना जाता है. उस मामले में भी बैंक कर्मचारी लिप्त थे, लेकिन गुनहगार था RBI.

नीरव मोदी मामले में तो रिजर्व बैंक ने 9 साल तक पंजाब नेशनल बैंक का ऑडिट नहीं किया था.

जिस पंजाब नेशनल बैंक में नीरव मोदी ने इतना बड़ा घोटाला किया, रिजर्व बैंक ने करीब 9 सालों से उसका ऑडिट ही नहीं किया था. स्विफ्ट के जरिए ट्रांजेक्शन के लिए हर बार एक नया रेफेरेंस नंबर चाहिए होता है, लेकिन पंजाब नेशनल बैंक घोटाले में एक ही नंबर 7 सालों तक इस्तेमाल किया गया. यानी RBI देखता रहा और उसकी नाक के नीचे से नीरव मोदी 14 हजार करोड़ लेकर रफूचक्कर हो गया.

विजय माल्या को कैसे भूल सकते हैं?

वही विजय माल्या, जिनके कांग्रेस और भाजपा दोनों से नजदीकी रिश्ते थे. माल्या ने 13 बैंकों को करीब 9500 करोड़ रुपए का चूना लगाया और विदेश फरार हो गया. अब उसे वापस देश लाकर सजा देने को लेकर राजनीति तो खूब हो रही है, लेकिन कोई ये नहीं पूछ रहा कि आखिर रिजर्व बैंक जैसे रेगुलेटर की नाक के नीचे ये सब हुआ कैसे. रिजर्व बैंक को ये कैसे पता नहीं चला कि बैंकों की ओर से एक ऐसे शख्स को लगातार लोन दिए जा रहे हैं, जो अपना पुराना बकाया ही नहीं चुका पा रहा है. देखा जाए तो जैसे-जैसे बैंक घोटाले सामने आते जा रहे हैं, रिजर्व बैंक की शाख पर सवाल गहराते जा रहे हैं. सबसे जेहन में सवाल जरूर उठाता है कि इन घोटालों का असल गुनहगार कौन?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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