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पीएनबी घोटाला: RBI की निगरानी पर सवाल खड़ा हो गया है

    • आईचौक
    • Updated: 05 अप्रिल, 2018 11:02 AM
  • 04 अप्रिल, 2018 08:25 PM
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इस घोटाले के लिए भले ही लोग नीरव मोदी और बैंक अधिकारियों को दोषी ठहरा रहे हों, लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक और भारत सरकार भी इस घोटाले के लिए समान रूप से जिम्मेदार है. चलिए जानते हैं क्यों है ऐसा.

नीरव मोदी से पीएनबी घोटाले के पैसे रिकवर करने की सरकार लगातार कोशिशें कर रही है, लेकिन हाथ कुछ नहीं लग रहा है. इस घोटाले के होने के बाद उस पर जितनी आक्रामकता दिखाई जा रही है, अगर वह समय रहते दिखा दी जाती तो घोटाला नहीं होता या फिर इतना बड़ा तो बिल्कुल नहीं होता. इस घोटाले के लिए भले ही लोग नीरव मोदी और बैंक अधिकारियों को दोषी ठहरा रहे हों, लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक और भारत सरकार भी इस घोटाले के लिए समान रूप से जिम्मेदार है. चलिए जानते हैं क्यों है ऐसा.

9 साल से नहीं किया ऑडिट

भारतीय रिजर्व बैंक ने पंजाब नेशनल बैंक का ऑडिट पिछले 9 सालों से नहीं किया था. आखिरी बार RBI की तरफ से 31 मार्च 2009 को पीएनबी का ऑडिट हुआ था, जिससे इस मामले में RBI की गलती साफ होती है. पीएनबी की मध्यम वर्ग की ब्रैडी हाउस जैसी ब्रांच का साल भर में कम से कम एक बार ऑडिट होना जरूरी है, लेकिन 9 साल तक किसी ने बैंक की सुध नहीं ली. अब वित्तीय सेवाओं के विभाग और मुख्य सतर्कता आयोग इस लापरवाही के लिए RBI से पूछताछ कर रही है.

ये भी दिक्कतें आईं सामने

हर SWIFT ट्रांजेक्शन के लिए एक नया रेफेरेंस नंबर चाहिए होता है. इस मामले में एक ही रेफेरेंस नंबर को लगातार 7 सालों तक इस्तेमाल किया गया. पीएनबी के अधिकारियों का कहना है कि SWIFT और CBS सिस्टम जुड़े हुए न होने की वजह से इसका पता नहीं चल सका. बैंक अधिकारी बैंकिंग सॉफ्टवेयर के अपग्रेडेड वर्जन (Finacle) का इंतजार कर रहे थे. वित्त मंत्रालय को दी गई रिपोर्ट में यह भी चौंकाने वाला कारण बताया गया है. राहत की बात तो ये है कि ऐसा सब पीएनबी की सिर्फ एक ब्रांच के साथ हुआ, जबकि पूरे देश में करीब 200 अधिकारियों के पास SWIFT का एक्सेस है. बैंक अधिकारियों ने तो यहां तक माना है कि जो इजाजत भारत में देना मुमकिन...

नीरव मोदी से पीएनबी घोटाले के पैसे रिकवर करने की सरकार लगातार कोशिशें कर रही है, लेकिन हाथ कुछ नहीं लग रहा है. इस घोटाले के होने के बाद उस पर जितनी आक्रामकता दिखाई जा रही है, अगर वह समय रहते दिखा दी जाती तो घोटाला नहीं होता या फिर इतना बड़ा तो बिल्कुल नहीं होता. इस घोटाले के लिए भले ही लोग नीरव मोदी और बैंक अधिकारियों को दोषी ठहरा रहे हों, लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक और भारत सरकार भी इस घोटाले के लिए समान रूप से जिम्मेदार है. चलिए जानते हैं क्यों है ऐसा.

9 साल से नहीं किया ऑडिट

भारतीय रिजर्व बैंक ने पंजाब नेशनल बैंक का ऑडिट पिछले 9 सालों से नहीं किया था. आखिरी बार RBI की तरफ से 31 मार्च 2009 को पीएनबी का ऑडिट हुआ था, जिससे इस मामले में RBI की गलती साफ होती है. पीएनबी की मध्यम वर्ग की ब्रैडी हाउस जैसी ब्रांच का साल भर में कम से कम एक बार ऑडिट होना जरूरी है, लेकिन 9 साल तक किसी ने बैंक की सुध नहीं ली. अब वित्तीय सेवाओं के विभाग और मुख्य सतर्कता आयोग इस लापरवाही के लिए RBI से पूछताछ कर रही है.

ये भी दिक्कतें आईं सामने

हर SWIFT ट्रांजेक्शन के लिए एक नया रेफेरेंस नंबर चाहिए होता है. इस मामले में एक ही रेफेरेंस नंबर को लगातार 7 सालों तक इस्तेमाल किया गया. पीएनबी के अधिकारियों का कहना है कि SWIFT और CBS सिस्टम जुड़े हुए न होने की वजह से इसका पता नहीं चल सका. बैंक अधिकारी बैंकिंग सॉफ्टवेयर के अपग्रेडेड वर्जन (Finacle) का इंतजार कर रहे थे. वित्त मंत्रालय को दी गई रिपोर्ट में यह भी चौंकाने वाला कारण बताया गया है. राहत की बात तो ये है कि ऐसा सब पीएनबी की सिर्फ एक ब्रांच के साथ हुआ, जबकि पूरे देश में करीब 200 अधिकारियों के पास SWIFT का एक्सेस है. बैंक अधिकारियों ने तो यहां तक माना है कि जो इजाजत भारत में देना मुमकिन नहीं होता था, उसकी इजाजत विदेशी ब्रांचों से ले ली जाती थी.

अब बात सरकार की...

ये जरूर सवाल उठाया जा सकता है कि आखिर सरकार की इसमें क्या गलती है? ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कॉन्फेडेरेशन यानी AIBOC ने माना है कि मोदी सरकार ने नेशनल बैंकों के बोर्ड में ऑफिसर/वर्कमैन डायरेक्टर नियुक्त नहीं किए थे. 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से करीब दर्जन भर बैंकों में ऐसे डायरेक्टर नहीं हैं. यह डायरेक्टर या ऑफिसर एक वॉचडॉग की भूमिका निभाता है और बैंक के हित को ध्यान में रखता है, जबकि अन्य सभी डायरेक्टर सरकार द्वारा अप्वाइंट किए गए होते हैं.

एक पूर्व अधिकारी ने साधा मोदी सरकार पर निशाना

AIBOC के पूर्व जनरल सेक्रेटरी हरविंदर सिंह ने पीएम मोदी पर आरोप लगाते हुए कहा है कि इसके बारे में उन्होंने कई बार पत्रों के जरिए सरकार को आगाह भी किया था. केन्द्र सरकार को यह नॉमिनेशन RBI से सलाह-मशवरा करके लेना था, जिसके तहत कर्मचारी और अधिकारी, दोनों में से एक-एक ऑफिसर हर नेशनल बैंक में नियुक्त किया जाना था. उन्होंने कहा कि वर्कमैन और ऑफिसर को पब्लिक सेक्टर बैंकों के बोर्ड में नियुक्त न करने का एक कारण ये हो सकता है कि सरकार इन बैंकों में अपना एजेंड़ा थोपना चाहती है और एनपीए को लेकर पॉलिसी में बदलाव करना चाहता है. सिंह ने आरोप लगाया कि इन पब्लिक सेक्टर बैंकों में बिना किसी रोक टोक के काम करना चाहती है और बोर्ड पर अपने फैसले थोपना चाहती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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