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बेहद खास न्यूक्लियर डील के किनारे खड़े हैं भारत-जापान

    • आलोक रंजन
    • Updated: 11 नवम्बर, 2016 04:54 PM
  • 11 नवम्बर, 2016 04:54 PM
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पीएम मोदी अपने दूसरे जापान दौरे पर हैं. उम्मीद है कि वह एक साल से अटकी पड़ी सिविल न्यक्लियर डील करने में सफल हों...

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों जापान की यात्रा कर रहे हैं. वे जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अाबे से भारत और जापान के बीच होने वाले वार्षिक शिखर स्तरीय बैठक में मुलाकात करेंगे. इस मुलाकात से दोनों देशों को काफी उम्मीदे है. इस दौरान दोनों देश सिविल परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर कर सकते हैं.

इससे पहले 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी जापान गए थे. उसके बाद दिसंबर 2015 में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे भारत आए थे. उसी दौरान दोनों देशों ने सिविल न्यूक्लियर समझौते  का फैसला किया था और इस समझौते को एक रूपरेखा प्रदान की थी, लेकिन अंतिम संधि पर हस्ताक्षर नहीं हो पाया था क्योंकि कुछ तकनीकी एवं कानूनी मुद्दों को सुलझाया जाना बाकी था.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कुछ दिन पहले ही कहा था कि दोनों देशों ने करार के मसौदे से जुड़े कानूनी एवं तकनीकी पहलुओं समेत आंतरिक प्रक्रियाओं को पूरा कर लिया है. अब ये संभावनाएं बनती नजर आ रही है की भारत और जापान में असैन्य परमाणु समझौता होना मात्र खानापूर्ति से कम नहीं है.

इसे भी पढ़ें: उत्तर कोरिया को पाकिस्तान और ए क्यू खान का शुक्रिया अदा करना चाहिए

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अाबे जहाँ एक ओर सिविल परमाणु समझौता मुद्दे पर अंतिम दौर की बातचीत करने जा रहे है वहीं सबकी की निगाहें इस पर भी रहेगी कि भारत क्या 'नलिफिकेशन' या 'टर्मिनेशन' क्लॉज़ को स्वीकारता है या नहीं. यह समझौता इस क्लॉज़ के कारण कई सालों से अटका हुआ है. इस क्लॉज़ के अनुसार अगर भारत किसी भी तरह का न्यूक्लियर टेस्ट करता है तो ये डील कैंसिल हो जाएगी. भारत खुद स्वैच्छिक तौर पर ही न्यूक्लियर टेस्ट पर रोक लगाए हुए है लेकिन वह एनपीटी (न्यूक्लियर नॉन-प्रोलिफेरेशन ट्रीटी) पर हस्ताक्षर करने से कतराता रहा है.

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों जापान की यात्रा कर रहे हैं. वे जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अाबे से भारत और जापान के बीच होने वाले वार्षिक शिखर स्तरीय बैठक में मुलाकात करेंगे. इस मुलाकात से दोनों देशों को काफी उम्मीदे है. इस दौरान दोनों देश सिविल परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर कर सकते हैं.

इससे पहले 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी जापान गए थे. उसके बाद दिसंबर 2015 में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे भारत आए थे. उसी दौरान दोनों देशों ने सिविल न्यूक्लियर समझौते  का फैसला किया था और इस समझौते को एक रूपरेखा प्रदान की थी, लेकिन अंतिम संधि पर हस्ताक्षर नहीं हो पाया था क्योंकि कुछ तकनीकी एवं कानूनी मुद्दों को सुलझाया जाना बाकी था.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कुछ दिन पहले ही कहा था कि दोनों देशों ने करार के मसौदे से जुड़े कानूनी एवं तकनीकी पहलुओं समेत आंतरिक प्रक्रियाओं को पूरा कर लिया है. अब ये संभावनाएं बनती नजर आ रही है की भारत और जापान में असैन्य परमाणु समझौता होना मात्र खानापूर्ति से कम नहीं है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अाबे जहाँ एक ओर सिविल परमाणु समझौता मुद्दे पर अंतिम दौर की बातचीत करने जा रहे है वहीं सबकी की निगाहें इस पर भी रहेगी कि भारत क्या 'नलिफिकेशन' या 'टर्मिनेशन' क्लॉज़ को स्वीकारता है या नहीं. यह समझौता इस क्लॉज़ के कारण कई सालों से अटका हुआ है. इस क्लॉज़ के अनुसार अगर भारत किसी भी तरह का न्यूक्लियर टेस्ट करता है तो ये डील कैंसिल हो जाएगी. भारत खुद स्वैच्छिक तौर पर ही न्यूक्लियर टेस्ट पर रोक लगाए हुए है लेकिन वह एनपीटी (न्यूक्लियर नॉन-प्रोलिफेरेशन ट्रीटी) पर हस्ताक्षर करने से कतराता रहा है.

 एक अहम न्यूक्लियर डील की कवायद

जापान के एक प्रमुख अख़बार ने भी इस खबर की पुष्टि की है की भारत और जापान बैठक के दौरान न्यूक्लियर डील पर मुहर लगा सकते है और जो विवादपूर्ण कैंसलेशन क्लॉज़ है वो अलग डॉक्यूमेंट का हिस्सा हो सकता है.

भारत और जापान के बीच मीटिंग ऐसे महत्वपूर्ण समय में भी हो रही है जब न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) के सलाहकार समूह वियना में होने वाली बैठक में नॉन एनपीटी (न्यूक्लियर नॉन-प्रोलिफेरेशन ट्रीटी) देशों को एनएसजी में शामिल करने के लिए टू स्टेज प्रक्रिया का प्रस्ताव दे सकते हैं. इससे भारत जैसे देशों का समूह में शामिल होना आसान हो सकता है.

भारत के लिए अहम क्यों --

-- जापान एकमात्र देश है जो न्यूक्लियर अटैक का शिकार हुआ है. जापान पहली बार किसी ऐसे देश के साथ न्यूक्लियर डील करेगा, जिसने एनपीटी (न्यूक्लियर नॉन-प्रोलिफेरेशन ट्रीटी) पर साइन नहीं किए हैं. इससे दुनिया में ये सन्देश जायेगा की जापान, भारत को कितना महत्व देता है. दोनों देशों का सम्बन्ध नए उचाईयों को छुएगा.

-- न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) मेम्बरशिप के लिए भारत की दावेदारी को मजबूती मिलेगी. जापान द्वारा भारत में भरोसा करना एनएसजी मेम्बरों के लिए एक महत्वपूर्ण सन्देश है.

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-- भारत अब तक अमेरिका समेत कई देशों के साथ सिविल न्यूक्लियर डील कर चुका है. लेकिन जापान से डील इसलिए खास है क्योंकि न्यूक्लियर एनर्जी प्लांटों में सेफ्टी के लिहाज से जापान के इंतजामों को दुनिया में बेहतरीन माना जाता है. उसकी अग्रणी टेक्नोलॉजी भारत की न्यूक्लियर एनर्जी जरूरतों को एक डायरेक्शन दे सकती है.

-- साथ ही साथ भारतीय न्यूक्लियर रिएक्टर के महत्वपूर्ण भागो का निर्माण जापानी कंपनिया करती है और भारत इसके लिए उन पर ही निर्भर है.

2008 से ही सिविल परमाणु समझौता को लेकर बातचीत चल रही है. 2011 की फुकूशिमा परमाणु संयंत्र आपदा के बाद भारत के साथ परमाणु करार पर अस्थायी तौर पर कुछ विलम्ब होने लगा था. कुछ दिनों के गतिरोध के बाद  इस मुद्दे को लेकर फिर से बातचीत चालू हो गयी थी लेकिन जापान में विरोध के स्वर कम नहीं हो रहे थे. 2014 से इस मुद्दे को लेकर दोनों देश काफी गंभीर हुए. बातचीत का दौर चला और आखिरकर मोदी और अबे  ने सारी दूरियों को खत्म करते हुए इसे समझौते के द्धार तक पहुंचा ही दिया.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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