• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
इकोनॉमी

अर्थशास्त्र का नोबेल कैसे रोक पाएगा हमारी फिजूलखर्ची

    • राहुल लाल
    • Updated: 11 अक्टूबर, 2017 09:44 PM
  • 11 अक्टूबर, 2017 09:44 PM
offline
रिचर्ड थेलर ने अर्थशास्त्र और मनोविज्ञान के बीच की खाई पाटने की कोशिश की. थेलर का शोध 'व्यवहार संबंधी अर्थशास्त्र'पर केन्द्रित है. जो बताता है कि वित्तीय व आर्थिक बाजारों में व्यक्ति द्वारा किए गए फैसलों पर मनोवैज्ञानिक और समाजिक कारकों का क्या असर रहता है.

अर्थशास्त्र को मनोविज्ञान से जोड़कर उसे मानवीय चेहरा प्रदान करने हेतु अमेरिकी अर्थशास्त्री रिचर्ड थेलर को सोमवार को वर्ष 2017 के अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार की घोषणा की गई. रिचर्ड थेलर ने अपनी रिसर्च के जरिए यह दिखाया कि आर्थिक एवं वित्तीय फैसले हमेशा तार्किक नहीं होते बल्कि ज्यादातर वे मानवीय हदों से बंधे होते हैं. रिचर्ड थेलर का नाम 'बिहेवियरल इकॉनॉमिक्स' यानी व्यवहार अर्थशास्त्र का विचार देने वालों में शुमार होता है.

रिचर्ड थेलर ने अपनी रिसर्च में मानवीय हदों को प्रमुखता दी है 

परंपरागत आर्थिक सिद्धांत में यह माना जाता है कि उपभोक्ता हमेशा समझदारी से फैसले लेता है. थेलर ने इसी मान्यता को खारिज किया है. 2008 में 'नज' नामक किताब लिखने वाले अमेरिकी अर्थशास्त्री का मानना है कि लोग विवेक को ताक पर रखकर भी कई आर्थिक फैसले लेते हैं. प्रोफेसर थेलर ने यह किताब आर स्नस्टीन के साथ मिलकर लिखी है. किताब आदमी की सोच और खर्च करने के उसके तौर तरीके के बीच के रिश्ते की पड़ताल करती है. 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' अखबार से थेलर ने कहा कि बेहतर अर्थव्यवस्था के लिए हमें इस बात को समझना चाहिए कि उपभोक्ता भी इंसान होता है.

थेलर के अनुसार लोग एक समान तरीके से तार्किक स्थिति से दूर जाते हैं, ऐसे में उनके व्यवहार के बारे में पता लगाया जा सकता है. उन्होंने एक उदाहरण द्वारा से इसे स्पष्ट करने की कोशिश की. थेलर कहते हैं कि गैस की कीमत कम होने की स्थिति में अर्थशास्त्र के मान्य सिद्धांतों के तहत उपभोक्ता बचे हुए पैसे बहुत जरूरी सामान ही खरीदेगा. हकीकत यह है कि वह इस हालत में भी बचे हुए धन को गैस पर खर्च करेगा. उन्होंने यह सिद्ध किया कि लोग आमतौर पर उस वस्तु के लिए ज्यादा खर्च करते हैं जो उनके पास पहले से मौजूद है. उन्होंने इसे 'एंडोवमेंट इफेक्ट' की...

अर्थशास्त्र को मनोविज्ञान से जोड़कर उसे मानवीय चेहरा प्रदान करने हेतु अमेरिकी अर्थशास्त्री रिचर्ड थेलर को सोमवार को वर्ष 2017 के अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार की घोषणा की गई. रिचर्ड थेलर ने अपनी रिसर्च के जरिए यह दिखाया कि आर्थिक एवं वित्तीय फैसले हमेशा तार्किक नहीं होते बल्कि ज्यादातर वे मानवीय हदों से बंधे होते हैं. रिचर्ड थेलर का नाम 'बिहेवियरल इकॉनॉमिक्स' यानी व्यवहार अर्थशास्त्र का विचार देने वालों में शुमार होता है.

रिचर्ड थेलर ने अपनी रिसर्च में मानवीय हदों को प्रमुखता दी है 

परंपरागत आर्थिक सिद्धांत में यह माना जाता है कि उपभोक्ता हमेशा समझदारी से फैसले लेता है. थेलर ने इसी मान्यता को खारिज किया है. 2008 में 'नज' नामक किताब लिखने वाले अमेरिकी अर्थशास्त्री का मानना है कि लोग विवेक को ताक पर रखकर भी कई आर्थिक फैसले लेते हैं. प्रोफेसर थेलर ने यह किताब आर स्नस्टीन के साथ मिलकर लिखी है. किताब आदमी की सोच और खर्च करने के उसके तौर तरीके के बीच के रिश्ते की पड़ताल करती है. 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' अखबार से थेलर ने कहा कि बेहतर अर्थव्यवस्था के लिए हमें इस बात को समझना चाहिए कि उपभोक्ता भी इंसान होता है.

थेलर के अनुसार लोग एक समान तरीके से तार्किक स्थिति से दूर जाते हैं, ऐसे में उनके व्यवहार के बारे में पता लगाया जा सकता है. उन्होंने एक उदाहरण द्वारा से इसे स्पष्ट करने की कोशिश की. थेलर कहते हैं कि गैस की कीमत कम होने की स्थिति में अर्थशास्त्र के मान्य सिद्धांतों के तहत उपभोक्ता बचे हुए पैसे बहुत जरूरी सामान ही खरीदेगा. हकीकत यह है कि वह इस हालत में भी बचे हुए धन को गैस पर खर्च करेगा. उन्होंने यह सिद्ध किया कि लोग आमतौर पर उस वस्तु के लिए ज्यादा खर्च करते हैं जो उनके पास पहले से मौजूद है. उन्होंने इसे 'एंडोवमेंट इफेक्ट' की संज्ञा दी.

जहाँ तक व्यवहारात्मक अर्थशास्त्र का सवाल है है तो यह व्यक्ति और संस्थानों की आर्थिक निर्णय प्रक्रिया से जुड़ा है. अर्थात् यह बताता है कि ये फैसले कैसे किए जाते हैं. दरअसल थेलर ने अर्थशास्त्र और मनोविज्ञान के बीच की खाई पाटने की कोशिश की. थेलर का शोध 'व्यवहार संबंधी अर्थशास्त्र' पर केन्द्रित है जो यह पड़ताल करता है कि वित्तीय व आर्थिक बाजारों में किसी व्यक्ति, व्यक्तियों या समूहों द्वारा किए गए फैसलों पर मनोवैज्ञानिक और समाजिक कारकों का क्या असर रहता है.

थेलर ने रिसर्च में फिजूलखर्ची पर प्रकाश डाला है

रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने सोमवार को थेलर के नाम का एलान किया. एकेडमी ने कहा, थेलर के योगदान ने निर्णय की प्रक्रिया में आर्थिक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के बीच सेतु का काम किया है. इससे सीमित तर्कसंगतता, सामाजिक प्रातमिकताएं और स्व नियंत्रण की कमी के परिणामों की पड़ताल करते हुए उन्होंने दिखाया है कि ये मानवीय गुण व्यक्तिगत फैसलों और बाजार के परिणामों को किस प्रकार प्रभावित करते हैं. उनका अनुभव आधारित शोध परिणाम और सैद्धांतिक परख नए और तेजी से फैलते व्यवहारिक अर्थशास्त्र के क्षेत्र के लिए मददगार साबित हुआ है. थेलर को 11 लाख डॉलर अर्थात् करीब 7.15 करोड़ रुपये नकद और प्रतीक चिह्न प्रदान किए जाएंगे.

थेलर का आर्थिक मनोविज्ञान के लिए हमलोगों के जीवन के ज्वलंत उदाहरण--

थेलर ने आर्थिक मनोविज्ञान के जिस गुत्थी को सुलझाया है, उसे हम अपने रोजमर्रा के उदाहरणों से भी समझ सकते हैं. कई बार आक्रामक विज्ञापनों से प्रभावित होकर हमलोग अतार्किक तरीके से खर्च कर सकते हैं. उदाहरण के लिए आपके पास पहले से ही कोई अति बेहतर स्मार्ट फोन हो,परंतु विज्ञापन से प्रभावित होकर आप पुन: किसी दूसरी कंपनी का खरीद लें. यहाँ पर विज्ञापन आपको पुन: उसी तरह का दूसरी कंपनी का स्मार्ट फोन खरीदने के लिए अतार्किक फैसला लेने के लिए बाध्य कर सकता है. इस उदाहरण में विज्ञापन आपके मनोविज्ञान को प्रभावित कर अतार्किक निर्णय दिला रहा है.

इसी तरह से उपभोक्ता कई बार अपने पड़ोसी अथवा मित्र से प्रतिस्पर्धा के कारण भी कोई अतार्किक खर्च करने का फैसला ले लेता है. यहाँ पर भी परंपरागत अर्थशास्त्र का वह सिद्धांत मान्य नहीं रहा कि उपभोक्ता सदैव तार्किक फैसले लेते हैं. उदाहरण के लिए आपके पड़ोसी ने 55 इंच टीवी का स्मार्ट टीवी अपने लिए खरीदा और अब आप भी इस प्रतिस्पर्धा में अपने सभी कक्ष के लिए इसी तरह का टीवी खरीद लेते हैं.

थेलर का काम निर्णय की प्रक्रिया में आर्थिक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण पर बल देता है

खर्च के इसी अतार्किक मनोवैज्ञानिक पहलू को थेलर ने 'एंडोवमेंट इफेक्ट' का नाम दिया, जिसके अंतर्गत उपभोक्ता आमतौर पर उस वस्तु के लिए ज्यादा खर्च करते हैं, जो उनके पास पहले से मौजूद हो. नोबेल एकेडमी ने थेलर का परिचय देने वाले प्रपत्र में कहा है कि 72 वर्षीय थेलर व्यवहार संबंधी अर्थशास्त्र का अध्ययन करने वाले अग्रणी अर्थशास्त्री हैं. यह शोध का ऐसा क्षेत्र है जहाँ आर्थिक निर्णय निर्माण की प्रक्रिया के दौरान मनोवैज्ञानिक अनुसंधानों का अनुपालन करने का अध्ययन किया जाता है. इससे व्यक्तियों के आर्थिक निर्णय लेते समय सोच और व्यवहार का अधिक वास्तविक आकलन करने में मदद मिलती है.

अब प्रश्न उठता है कि आर्थिक मनोविज्ञान के गुत्थी सुलझने से सामान्य लोगों को क्या लाभ होगा? इस बारे में नोबेल सम्मान का फैसला करने वाले जजों ने थेलर के बारे में बताया कि उनके दिए तरीके से लोग खुद पर बेहतर तरीके से नियंत्रण रख सकते हैं. आपने कई लोगों को देखा होगा कि वे अत्यधिक अतार्किक निणर्य से खर्च करते हैं, फलत: उनका बजट भी बिगड़ जाता है. थेलर का आर्थिक मनोविज्ञान आपको फिजूलखर्ची का वजह बताकर फिजूलखर्ची रोकने में अत्यंत सहायक है.

हमलोगों को बचपन से घर के बुजुर्ग प्राय:थेलर के अर्थव्यवस्था के बारे में सिखाते रहते हैं,परंतु समय के साथ हमलोग प्राय:उसे विस्मरित कर देते हैं. लेकिन वर्ष 2017 के अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार ने पुन: हमें तार्किक उपभोक्ता बनने तथा फिजूलखर्ची पर रोक लगाने के लिए प्रेरित किया है.

ये भी पढ़ें -

कहानी नॉर्वे के पाकिस्तानियों की...

ऐसे अवार्ड दिए जाएंगे तो विवाद तो होगा ही...

सही पकड़े हैं श्रीश्री, मलाला ने वाकई कुछ नहीं किया

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    Union Budget 2024: बजट में रक्षा क्षेत्र के साथ हुआ न्याय
  • offline
    Online Gaming Industry: सब धान बाईस पसेरी समझकर 28% GST लगा दिया!
  • offline
    कॉफी से अच्छी तो चाय निकली, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग दोनों से एडजस्ट कर लिया!
  • offline
    राहुल का 51 मिनट का भाषण, 51 घंटे से पहले ही अडानी ने लगाई छलांग; 1 दिन में मस्क से दोगुना कमाया
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲