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नोटबंदी का विरोध करने वाले क्या माफी मांगेंगे ?

    • राजीव कुमार
    • Updated: 14 अप्रिल, 2017 05:59 PM
  • 14 अप्रिल, 2017 05:59 PM
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पूर्वाग्रह के ही कारण नोबेल पुरस्कार विजेता और अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को 'तानाशाह' घोषित कर दिया और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस कदम को 'संगठित लूट' की संज्ञा दे डाली थी.

11 अप्रैल को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राज्यसभा को बताया कि 8 नवंबर की नोटबंदी की घोषणा के बाद से 5,400 करोड़ रुपये की अघोषित आय का पता चला है. इस नोटबंदी में बाजार चल रही 86 फीसदी मुद्रा को बंद करने की घोषणा की गई थी.

नोटबंदी की आलोचना करने वाले 5400 करोड़ की इस राशि को निश्चित रूप बहुत ही कम बताकर इसकी निंदा करेंगे. और कहेंगे कि नोटबंदी का मकसद था लोगों के पास 'अवैध तरीके से रखे गए पैसे' को निकालना और सरकार इसमें असफल रही है. नोटबैन की ऐसी आलोचना सिर्फ वही लोग करेंगे जिनका वैचारिक झुकाव अलग है और जिनको राजनीतिक तौर पर विरोध करना है.

काला धन निकलना चाहिए

पूर्वाग्रह

इस पूर्वाग्रह के ही कारण नोबेल पुरस्कार विजेता और अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को 'तानाशाह' घोषित कर दिया और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस कदम को 'संगठित लूट' की संज्ञा दे डाली. कुछ अर्थशास्त्रियों ने तो कैश पर निर्भर रहने वाले कई लघु उघोगों के खत्म हो जाने की घोषणा कर दी थी.

कौशिक बसु और अरुण कुमार जैसे कुछ अन्य लोगों ने नोटबंदी के बाद पूर्वानुमान लगाया था कि देश की अर्थव्यवस्था बर्बाद हो जाएगी और गहरी मंदी की चपेट में आ जाएगा. इस मंदी का प्रभाव भी देश में लंबे समय तक रहने वाला है. प्रभात पटनायक और उनके सह-लेखक ने 1990 में पूर्व सोवियत संघ के टूटने के पीछे इसी तरह की कार्रवाई की ओर इशारा करते हुए कहा था कि ये कदम भारत के लिए अशुभ साबित होगा.

आलोचकों ने संगठित लूट से लेकर देश के टूटने तक की हर निगेटिव संभावना को व्यक्त कर डाला था. लेकिन नोटबंदी के बाद देश में हुए विकास और प्रगति को देखते हुए क्या अब ये आलोचक लोगों से सार्वजनिक तौर पर मांगी मांगेंगे.

मोदी और उनकी नीतियों के विरूद्ध की गई हर...

11 अप्रैल को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राज्यसभा को बताया कि 8 नवंबर की नोटबंदी की घोषणा के बाद से 5,400 करोड़ रुपये की अघोषित आय का पता चला है. इस नोटबंदी में बाजार चल रही 86 फीसदी मुद्रा को बंद करने की घोषणा की गई थी.

नोटबंदी की आलोचना करने वाले 5400 करोड़ की इस राशि को निश्चित रूप बहुत ही कम बताकर इसकी निंदा करेंगे. और कहेंगे कि नोटबंदी का मकसद था लोगों के पास 'अवैध तरीके से रखे गए पैसे' को निकालना और सरकार इसमें असफल रही है. नोटबैन की ऐसी आलोचना सिर्फ वही लोग करेंगे जिनका वैचारिक झुकाव अलग है और जिनको राजनीतिक तौर पर विरोध करना है.

काला धन निकलना चाहिए

पूर्वाग्रह

इस पूर्वाग्रह के ही कारण नोबेल पुरस्कार विजेता और अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को 'तानाशाह' घोषित कर दिया और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस कदम को 'संगठित लूट' की संज्ञा दे डाली. कुछ अर्थशास्त्रियों ने तो कैश पर निर्भर रहने वाले कई लघु उघोगों के खत्म हो जाने की घोषणा कर दी थी.

कौशिक बसु और अरुण कुमार जैसे कुछ अन्य लोगों ने नोटबंदी के बाद पूर्वानुमान लगाया था कि देश की अर्थव्यवस्था बर्बाद हो जाएगी और गहरी मंदी की चपेट में आ जाएगा. इस मंदी का प्रभाव भी देश में लंबे समय तक रहने वाला है. प्रभात पटनायक और उनके सह-लेखक ने 1990 में पूर्व सोवियत संघ के टूटने के पीछे इसी तरह की कार्रवाई की ओर इशारा करते हुए कहा था कि ये कदम भारत के लिए अशुभ साबित होगा.

आलोचकों ने संगठित लूट से लेकर देश के टूटने तक की हर निगेटिव संभावना को व्यक्त कर डाला था. लेकिन नोटबंदी के बाद देश में हुए विकास और प्रगति को देखते हुए क्या अब ये आलोचक लोगों से सार्वजनिक तौर पर मांगी मांगेंगे.

मोदी और उनकी नीतियों के विरूद्ध की गई हर भविष्यवाणी ना सिर्फ गलत साबित हुई है बल्कि सच्चाई से उनका दूर-दूर तक कोई रिश्ता दिखाई भी नहीं पड़ता. मेरे अनुमान के हिसाब से 2017-18 में जीडीपी विकास दर, 2016-17 के मुकाबले अधिक ही रहेगा. क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था फिर से उठ रही है और घरेलू निवेश भी बढ़ेगा. निर्यात के क्षेत्र में असंगठित क्षेत्र का योगदान महत्वपूर्ण होता है और अक्टूबर 2016 से निर्यात में बढ़ोतरी हो रही है.

देश तरक्की कर रहा है

नवंबर 2016 में रुपए की कीमत 70 रुपये प्रति डॉलर तक पहुंच गई थी. लेकिन अमेरिकी फेडरल के दरों में बढ़ोतरी के बावजूद जनवरी 2017 के बाद से रुपए ने डॉलर के मुकाबले 6 फीसदी से अधिक की मजबूती हासिल की है. इस साल रबी की फसल भी सामान्य रहने की संभावना है. मुद्रास्फीति चार प्रतिशत से नीचे है; राजकोषीय घाटा एफआरबीएम के लक्ष्य के अनुरूप ही है और चालू खाता घाटा भी काबू में है.

मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों में रियल एस्टेट की कीमतों में चढ़ाव शुरु हो गया है. वहीं सरकार के किफायती आवास के प्रचार के बाद से निर्माण कार्य में भी मजबूती आ रही है. नोटबंदी के बाद ना सिर्फ भारतीय अर्थव्यवस्था मजूबती से वापस आई बल्कि संभवतः विकास के लिए और बेहतर तरीके से तैयार हो गया है.

अवैध

हालांकि अवैध धन के खिलाफ ये लड़ाई इतनी जल्दी तो खत्म नहीं होने वाली ये बात तो तय है. वित्त मंत्री ने बताया कि- 'आईटी विभाग ने 1.8 लाख बैंक खातों की पहचान की है. इन खातों में जमा राशि इनकी घोषित आय से बहुत ज्यादा है. और इन खातों में जमा की कई औसत राशि लगभग 3.01 करोड़ रुपये है. ये रकम 2.5 लाख रुपए की सुरक्षित राशि से कहीं ज्यादा है.

इन खातेदारों को अब संपर्क किया जा रहा है और उम्मीद है कि उनसे पूछताछ भी की जाएगी. आधार नंबर से सभी बैंक खातों को जोड़ने और बेनामी संपत्ति अधिनियम के निर्देशों के बाद आशा है कि सरकार देश में छुपे अवैध धन को निकालने में मदद मिलेगी. नकद लेनदेन पर लिमिट लगाना, आधार नंबर को पैन नंबर के साथ जोड़ने से निश्चित रूप से बड़ी संख्या में फर्जी जमाकर्ताओं की पहचान हो सकेगी. ठीक वैसे ही जैसे अज्ञात गैस कनेक्शन और केरोसिन उपयोगकर्ता की पहचान हुई है.

राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने वाली रकम की सीमा को कम करना भी अवैध धन पर लगाम लगाएगा. अच्छी खबर ये है कि भ्रष्टाचार के प्रति अपनी वचनबद्धता का संकेत देने और उसके लिए कई कठोर उपाय करने के बाद अब प्रधानमंत्री मोदी और उनके मंत्रियों के पास नरम होने का ऑप्शन नहीं है.

रियल एस्टेट के भी अच्छे दिन आएंगे

भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और अघोषित-अवैध पैसे हमारे देश की रगों में समा चुके हैं और अब इनको जड़ से उखाड़ना पहाड़ तोड़ने जैसा है.

भ्रष्टाचार

हालांकि अब आत्मसंतोष की कोई जगह नहीं है. पैसे के बंटवारे की वजह से आर के नगर निर्वाचन क्षेत्र का उप-चुनाव स्थगित हो गया. ये इस बात को साबित करने के लिए काफी है कि हमारे देश में भ्रष्टाचार किस हद तक और कितने गहरे तक अपनी जड़ें जमा चुका है. राजनीति में भ्रष्टाचार और अवैध कामों को खत्म करने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी होगी.

यही समय है जब चुनावों में पार्टियों की फंडिंग के मुद्दे पर जनता के सामने खुली बहस हो. हो सकता है इससे गहरे तक बैठे भ्रष्टाचार से निपटने के लिए कुछ आइडिया आए जिससे भ्रष्टाचार भले खत्म ना हो पर उसे कम तो किया जा सके. हालांकि एक बड़ा खतरा ये सामने आया है कि ईमानदार लोगों और कॉरपोरेट करदाताओं को टैक्स डिपार्टमेंट की तरफ से परेशान किया जा रहा है.

मोदी सरकार ने जनता की सकारात्मक प्रतिक्रिया से सीख ली है और निरंतर काम कर रही है. अब उन्हें टैक्स अधिकारियों के रवैए में सुधार करने के साथ-साथ घरेलू और विदेशी निवेशकों के लिए देश में निवेश का बेहतर माहौल बनाने की ओर काम करना होगा. उसके बाद ही देश में नोटबंदी के जरिए जिस साफ-सुथरी आर्थिक गतिविधि को हमारे जीवन का हिस्सा बनाने की कोशिश की गई है.

मेल टुडे से साभार

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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