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2016 की नोटबंदी और सरकार की विफलता!

    • नरेन्द्र कुमार
    • Updated: 03 अप्रिल, 2017 05:58 PM
  • 03 अप्रिल, 2017 05:58 PM
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31 मार्च को नोटबंदी का पर्व खत्म हो गया. अब मोदीजी की नैतिक जिमेदारी है कि वो जनता द्वारा नीचे किए प्रश्नों का ईमानदारी से जवाब दें.

8 नवंबर 2016 को माननीय प्रधानमंत्री जी ने अचानक नोटबंदी का फैसला आम जनता पर थोप दिया था. इस घोषणा के साथ ही उन्होंने जनता से 50 दिनों की मोहलत देने की गुजारिश की. इन पचास दिनों में सरकार ने आरबीआई को पचासों बार नियम बदलने का निर्देश दिया.  नोटबंदी के दौरान आरबीआई, सरकार के सामने घुटने टेकती नज़र आ रही थी. यही नहीं आरबीआई के गवर्नर उर्जीत पटेल असहाय और लाचार नज़र आ रहे थे.

इस नोटबंदी ने कई लोगो की जान ले ली! कई लोगों की नौकरियां छीन ली! कई छोटे-मोटे लघु उद्योग बंद हो गए. लोग सारा काम छोड़कर, घंटों एटीएम की लाइन में नज़र आने लगे. पूरा नजारा ऐसा लग रहा था मानो देश में इमरजेंसी लग गई हो. मोदी जी ने नोटबंदी को लेकर जो दावे किए थे, वो खुद उससे भी मुकरते नज़र आये. और अपनी शैली में कभी काला धन ख़त्म करने, कभी आतंकवाद पर नकेल कसने तो कभी जाली नोटों पर पाबंदी की बातें करने लगे.

नोटबंदी के बाद जनता के सवाल

जैसे जैसे समय बीतता गया सरकार को भी अपनी गलती का अहसास होने लगा. इसके बाद सरकार लीपा-पोती में लग गयी. नतीजतन कभी लेस कैश, तो कभी कैश लेस इकोनॉमी की बातों से लोगो को गुमराह करने लगी. शायद इसलिए ही सरकार भी कहने लगी कि नोटबंदी का असर बड़े-बड़े अर्थशास्त्री भी नहीं समझ पाए. इस बात से मैं भी सहमत हूं की सच में बड़े-बड़े अर्थशात्री भी नोटबन्दी को समझ नहीं पाए.

31 मार्च को नोटबंदी का पर्व खत्म हो गया. अब मोदीजी की नैतिक जिमेदारी है कि वो जनता द्वारा नीचे किए प्रश्नों का ईमानदारी से जवाब दें.

जनता का मोदी से नोटबन्दी को लेकर सवाल.

1. 500 और 1000 के कितने नोट सरकारी खजाने में जमा हुए?

2. नए 2000 और 500 के कितने नोट सरकार ने छापे और उसके लिए सरकार ने कितनी रकम...

8 नवंबर 2016 को माननीय प्रधानमंत्री जी ने अचानक नोटबंदी का फैसला आम जनता पर थोप दिया था. इस घोषणा के साथ ही उन्होंने जनता से 50 दिनों की मोहलत देने की गुजारिश की. इन पचास दिनों में सरकार ने आरबीआई को पचासों बार नियम बदलने का निर्देश दिया.  नोटबंदी के दौरान आरबीआई, सरकार के सामने घुटने टेकती नज़र आ रही थी. यही नहीं आरबीआई के गवर्नर उर्जीत पटेल असहाय और लाचार नज़र आ रहे थे.

इस नोटबंदी ने कई लोगो की जान ले ली! कई लोगों की नौकरियां छीन ली! कई छोटे-मोटे लघु उद्योग बंद हो गए. लोग सारा काम छोड़कर, घंटों एटीएम की लाइन में नज़र आने लगे. पूरा नजारा ऐसा लग रहा था मानो देश में इमरजेंसी लग गई हो. मोदी जी ने नोटबंदी को लेकर जो दावे किए थे, वो खुद उससे भी मुकरते नज़र आये. और अपनी शैली में कभी काला धन ख़त्म करने, कभी आतंकवाद पर नकेल कसने तो कभी जाली नोटों पर पाबंदी की बातें करने लगे.

नोटबंदी के बाद जनता के सवाल

जैसे जैसे समय बीतता गया सरकार को भी अपनी गलती का अहसास होने लगा. इसके बाद सरकार लीपा-पोती में लग गयी. नतीजतन कभी लेस कैश, तो कभी कैश लेस इकोनॉमी की बातों से लोगो को गुमराह करने लगी. शायद इसलिए ही सरकार भी कहने लगी कि नोटबंदी का असर बड़े-बड़े अर्थशास्त्री भी नहीं समझ पाए. इस बात से मैं भी सहमत हूं की सच में बड़े-बड़े अर्थशात्री भी नोटबन्दी को समझ नहीं पाए.

31 मार्च को नोटबंदी का पर्व खत्म हो गया. अब मोदीजी की नैतिक जिमेदारी है कि वो जनता द्वारा नीचे किए प्रश्नों का ईमानदारी से जवाब दें.

जनता का मोदी से नोटबन्दी को लेकर सवाल.

1. 500 और 1000 के कितने नोट सरकारी खजाने में जमा हुए?

2. नए 2000 और 500 के कितने नोट सरकार ने छापे और उसके लिए सरकार ने कितनी रकम खर्च की?

3. पूरे देश में कितने छापे मारे गए या फिर हर राज्य से कितने पुराने नोट पकड़े गए. साथ ही कितने लोगों को सजा हुई? राज्यवार डेटा लोगों को बताया जाए.

4. टैक्स छूट प्राप्त राज्यों में कितने पुराने नोट जमा हुए और साथ ही उन खातेधारकों के नामों का भी खुलासा हो?

5. नोटबंदी से पूरे देश में कितनी कंपनियों को नुकसान हुआ और पूरे देश में कितने लोगों की नौकरियां गईं.

जनता को कितना हुआ फायदा

6. सर्राफा व्यापारियों पर क्या कार्यवाही हुई और उनके नामों का सरकार खुलासा करे?

7. भ्रष्टाचार और आतंकवाद पर कितनी लगाम लगी. साथ ही ये भी हमारे माननीय मोदीजी इसका खुलासा करे भविष्य में नोटबंदी का आम जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा.

8. जिन लोगों की जान और नौकरियां नोटबंदी की वजह से गई उनके लिए सरकार क्या कदम उठा रही है?

9. नोटबंदी से कितना काला धन सरकार ने बरामद किया इसका भी खुलासा किया जाना चाहिए.

मोदी जी यदि आप सच में जनता के सेवक हैं, तो फिर आप जनता द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब दें. और एक बार फिर 8 अप्रैल को जनता को संबोधित करें.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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