• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
इकोनॉमी

सरसों का तेल नहीं जनाब अब इसे परफ्यूम कहिए, 224 रुपए लीटर पहुंचा दाम!

    • ज्योति गुप्ता
    • Updated: 04 जून, 2021 03:41 PM
  • 03 जून, 2021 10:21 PM
offline
जिस तरह हम परफ्यूम की दो-चार बूंद छिड़ककर उसकी खुशबू लेते हैं उसी तरह अब सरसोंं के तेल की एक बॉटल (mustard oil) ले आइए और अनुलोम-विलोम कीजिए तब जाकर इसकी खुशबू आप तक पहुंचेगी.

इस समय में अगर सरसों के तेल (Mustard oil price) को आप परफ्यूम की उपाधि देते हैं तो यह बिल्कुल सूट करता है. जिस तरह हम परफ्यूम की दो-चार बूंद छिड़ककर उसकी खुशबू लेते हैं उसी तरह अब सरसोंं के तेल की एक बॉटल (mustard oil) ले आइए और अनुलोम-विलोम कीजिए तब जाकर इसकी खुशबू आप तक पहुंचेगी..

अब परफ्यूम की स्मेल तो काफी स्ट्रांग होती है. दो बूंद लगाते से ही पूरे रूम में महक फैल जाती है और दिन भर कपड़े से आप खुशबू लेते रहते हैं. परफ्यूम को हम ज्यादा इस्तेमाल भी नहीं करते. अब अगर सरसों की बात की जाए तो जब बच्चे का जन्म होता है तब से उसे सरसों तेल की आदत हो जाती है. इसलिए सरसों तेल की खुशबू लेने के लिए एकदम बाबा रामदेव की तरह सांस खींचिए.

सरसों तेल के दाम बढ़ने की वजह क्या है

जिस तरह सरसों का तेल (जिसे कड़वा तेल भी कहा जाता है) का दाम आसमान छू रहा है, यही हिसाब रहा तो कोई खाने में तेल डालेगा नहीं बल्कि तेल के डिब्बे को खाने के टेबल या किचन में रखेगा और देखकर खुश होगा. यह सोचकर संतोष करेगा कि हमारे घर में सरसों का तेल है. भाई जब सरसों का तेल 224 रूपए प्रति लीटर मिल रहा है तो यही करना पड़ेगा ना? अब तो लोगों के घर में सरसों का तेल होना एक प्रतिष्ठा की बात हो जाएगी.

भइया आज ही मस्टराईन बता रही थीं कि आज लॉकडाउन खुला तो मास्टर जी कहे कि बताओ का-का सामान लाना है. बहुत दिन हो गए किराने का सामान नहीं लाए. रसोई में तुम्हारा कोई जवाब नहीं है, लिस्ट बनाओ और आज रात खाने में कुछ पकवान बन जाता तो मजा आ जाता. मास्टर जी गए थे बाजार, उधर से आए तो गुस्से में टमाटर की तरह लाल.

मस्टराईन को लगा कि किसी से लड़ के आए होंगे. पूछने पर वे मस्टराइन पर ही चिल्ला पड़े कि, महीने में तुमको 5 लीटर सरसों का तेल खपत करने की का जरूरत है. मंहगाई के मारे...

इस समय में अगर सरसों के तेल (Mustard oil price) को आप परफ्यूम की उपाधि देते हैं तो यह बिल्कुल सूट करता है. जिस तरह हम परफ्यूम की दो-चार बूंद छिड़ककर उसकी खुशबू लेते हैं उसी तरह अब सरसोंं के तेल की एक बॉटल (mustard oil) ले आइए और अनुलोम-विलोम कीजिए तब जाकर इसकी खुशबू आप तक पहुंचेगी..

अब परफ्यूम की स्मेल तो काफी स्ट्रांग होती है. दो बूंद लगाते से ही पूरे रूम में महक फैल जाती है और दिन भर कपड़े से आप खुशबू लेते रहते हैं. परफ्यूम को हम ज्यादा इस्तेमाल भी नहीं करते. अब अगर सरसों की बात की जाए तो जब बच्चे का जन्म होता है तब से उसे सरसों तेल की आदत हो जाती है. इसलिए सरसों तेल की खुशबू लेने के लिए एकदम बाबा रामदेव की तरह सांस खींचिए.

सरसों तेल के दाम बढ़ने की वजह क्या है

जिस तरह सरसों का तेल (जिसे कड़वा तेल भी कहा जाता है) का दाम आसमान छू रहा है, यही हिसाब रहा तो कोई खाने में तेल डालेगा नहीं बल्कि तेल के डिब्बे को खाने के टेबल या किचन में रखेगा और देखकर खुश होगा. यह सोचकर संतोष करेगा कि हमारे घर में सरसों का तेल है. भाई जब सरसों का तेल 224 रूपए प्रति लीटर मिल रहा है तो यही करना पड़ेगा ना? अब तो लोगों के घर में सरसों का तेल होना एक प्रतिष्ठा की बात हो जाएगी.

भइया आज ही मस्टराईन बता रही थीं कि आज लॉकडाउन खुला तो मास्टर जी कहे कि बताओ का-का सामान लाना है. बहुत दिन हो गए किराने का सामान नहीं लाए. रसोई में तुम्हारा कोई जवाब नहीं है, लिस्ट बनाओ और आज रात खाने में कुछ पकवान बन जाता तो मजा आ जाता. मास्टर जी गए थे बाजार, उधर से आए तो गुस्से में टमाटर की तरह लाल.

मस्टराईन को लगा कि किसी से लड़ के आए होंगे. पूछने पर वे मस्टराइन पर ही चिल्ला पड़े कि, महीने में तुमको 5 लीटर सरसों का तेल खपत करने की का जरूरत है. मंहगाई के मारे तेल का दाम आसमान छू रहा है और तुम सब्जी में भर-भर के तेल डालती फिर रही हो. मस्टराईन भी तमतमताएं बोल पड़ी, आप ही को तो तैरते हुए तेल वाली सब्जी खानी होती है. कभी पकौड़ा तो कभी कचौरी.

मास्टर जी बोले तो ठीक है अब सिर्फ 2 लीटर तेल लाएं हैं, सब्जी में अब तेल कम डालना और पूरा महीना चलाना. मस्टराईन भी तपाक से बोल पड़ीं, हां पानी में छौंक कर दे देंगे, खा लेना बस. अब सुबह से दोनों में बातचीत बंद हैं. अब काहे का पकवान और काहे की पूरी.

असल में हमारे यहां आज भी सबसे ज्यादा लोग सरसों के तेल में खाना पकाते हैं. यह तेल खाने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है. अब सबके घर में रोज ऑलिव ऑयल में खाना तो नहीं बन सकता. वो भी ज्वाइंट फैमिली में. वैसे बाकी तेल के दाम भी बढ़ गए हैं. रिफाइंड भी महंगा हो गया है. सरसों का तेल करीब डेढ़ साल पहले तक 80 रुपए प्रति लीटर मिलता था अब वहीं इसकी कीमत 224 रुपए प्रति लीटर पहुंच गई है. सरसों तेल का हम भारत के लोग तो खूब इस्तेमाल करते हैं.

गांवों में तो बिना इस तेल के लोगों का काम नहीं चल सकता. बच्चों की मालिश करनी हो. उनके सिर पर तेल रखना हों. कान-नाक में तेल डाला जाता है. पैर के तलवे में तेल की मालिश की जाती है. ठंड लग गई तो लहसुन साथ सरसों तेल गर्म करके खिला दिया जाता है. देश के आधे से अधिक लोगों का इलाज आज भी घरेलू नुस्खों से होता है. किसी का पेट दर्द हुआ तो हींग और अजवाइन से लोग ठीक हो जाते हैं. गैस या अपच हुआ तो काला नमक, जीरा और अजवाइन काफी है. कोरोना में ही घरों में सबने काढ़ा बनाकर पीना शुरू कर दिया, बुखार में का काढ़ा अलग, सिर दर्द का काढ़ा अलग. गांव के लोग नहाए और तेल लगा लिया. उनका क्रीम और मॉइस्चराइजर दोनों यही है.

लड़कियां सरसों का तेल स्किन और हेयर केयर में इस्तेमाल करती हैं. लोग रात में नाभि में सरसों का तेल डालते हैं ताकि होठ ना फटे. सिर्फ इतना ही नहीं मंदिर में दिया जलाना हो या शनि महाराज को तेल चढ़ाना हो, लोग सरसों तेल का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में कहां-कहां कटौती करेंगे. हां एक उपाय कर सकते हैं कि आई ड्रॉप की तरह दो बूंद डालें और काम चलाएं, क्योंकि महिलाओं को अगर तेल के नाम पर ताना दिया तो फिर एक निवाला भी नसीब नहीं होगा...

अक्सर रिक्शा वाले और मजदूर दिन भर काम करने के बाद 100-200 कमाते हैं. उसमें से वे कुछ बचाते हैं और शाम को 50 रुपए में 10 का आटा और 10 रुपए का तेल और नमक मिर्च से खरीद कर कहीं भी रोटी बनाकर खा लेते हैं. सोचिए अब जब वे 10 रूपए का तेल मांगेंगे तो उन्हें क्या आई ड्रॉप जैसे नहीं मिलेगा. वो भी दुकान वाले दयावान निकला तो वरना भगा भी सकता है.

वहीं जो लोग नॉनवेज खाने के शौकीन है उनकी अलग मुसीबत है. बिना टमाटर के काम तो चल जाएगा लेकिन बिना तेल क्या होगा. सिर्फ सरसों के तेल में चिकन, मछली फ्राई करके खाने वाले लोग शायद कम तेल में कुकर में सीटी लगाने लगे या फिर खाना ही कम कर दें.

माफ कीजिए, हम यहां पैसों वाले लोगों की बात नहीं कर रहे. हम यहां उन लोगों की बात कर रहे जो भारत की पहचान हैं. एक मिडिल क्लास परिवार, जिसमें असली भारत बसता है. जिन्हें डाइट के नाम पर टाइम से रोटी मिल जाना चाहिए बस. उन्हें नहीं पता कि कीटो डाइट क्या है.

सरसों के आज के दाम की बात करें बारां मंडी में भाव न्यूनतम 6550 और अधिकतम 6706 प्रति क्विंटल है. वहीं पिछले साल कच्ची घानी सरसों तेल 110-115 रुपये लीटर उपलब्ध था. छोटे तेल व्यापारी जो गांवों में घूमकर तेल बचने का काम करते थे अब वे पैसे से नहीं बल्कि सरसो लेकर तेल देना मुनासिब समझते हैं. उससे जो खरी निकलती है वे बेचकर अपनी इनकम करते हैं.

आलम यह है कि घर में कोई भाई-भाई में तेल को लेकर लड़ाई हो रही है. लोग अपना-अपना डिब्बा खरीद कर ला रहे हैं और हिसाब रख रहे हैं कि मेरा वाला तेल किसी ने इस्तेमाल तो नहीं किया. अगर कोई घर में सरसों के तेल से माउथ पुलिंग करता दिख जाए तब तो संग्राम होना तय है. बालों में तेल लगाने वाली बहन झल्का कर बोल सकती है कि, यहां लगाने को नहीं है और तुम मुंह में कुल्ली करके नुकसान कर रहे हो. शुद्ध तेल से कुल्ला करने का इतना ही शौक है तो पानी से कर लो.

अगर आलम यही रहा तो वो दिन दूर नहीं जब तेल बचाओ अभियान की शुरूआत हो जाए. लोग उबला खाने लगे लेकिन इस खाने को आप सेहत से जोड़कर ज्ञान देने की गलती मत कीजिएगा, क्योंकि जो 220 रुपए लीटर तेल खरीद कर लाएगा उसका दिमाग पहले से ही गर्म होगा. खासकर तब जब सब्सिडी के नाम पर पहले से ही 65 रुपए आ रहे हैं. इसलिए सरसों के तेल को बस दूर से देखिए और खुश रहिए.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    Union Budget 2024: बजट में रक्षा क्षेत्र के साथ हुआ न्याय
  • offline
    Online Gaming Industry: सब धान बाईस पसेरी समझकर 28% GST लगा दिया!
  • offline
    कॉफी से अच्छी तो चाय निकली, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग दोनों से एडजस्ट कर लिया!
  • offline
    राहुल का 51 मिनट का भाषण, 51 घंटे से पहले ही अडानी ने लगाई छलांग; 1 दिन में मस्क से दोगुना कमाया
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲