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ये रहा मोदी सरकार के चार साल का लेखा जोखा

    • अंशुमान तिवारी
    • Updated: 28 मई, 2018 07:56 PM
  • 28 मई, 2018 04:57 PM
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मोदी सरकार के चार साल- क्या किया, क्या नहीं और क्या करना बाकी है. एक नजर इस बीजेपी सरकार और उसकी नीतियों के परफॉर्मेंस पर...

नरेंद्र मोदी सरकार ने चार साल पूरे कर लिए हैं. तो आइए उनके इन चार सालों के कामकाज का मूल्यांकन करते हैं-

मुख्य सफलताएं

1) वित्तीय बचत और खुदरा निवेश में वृद्धि हुई है.

2) विमानन नीति में बदलाव से लोगों को फायदा हुआ है. खासकर सरकार के हस्तक्षेप ने सही काम किया. सस्ते विमानन टरबाइन ईंधन ने बहुत मदद की.

3) उर्वरकों की कमी को कम किया गया.

4) ई-गवर्नेंस अभियान को तेजी मिलने पासपोर्ट और भविष्य निधि सेवाओं में सुविधायें बढी .

आम आदमी पर मार

1) पिछले चार वर्षों में इनडाइरेक्टत टैक्स और सेस में बड़ी संख्या में बढ़ोत्तरी

2) नोटबंदी ने सताया और अर्थव्यकवस्था बिगड़ी

3) आधार-लिंक कराने में लोगों को परेशानी हुई.

4) तेल की मंहगाई वापस आ गई.

लचर शुरुआत और कठिन डगर

1) दिवालिया और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) - संशोधन जारी हैं

2) गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) - बार बार संशोधन किए गए; राजस्व नहीं बढ़ा कर चोरी में इजाफा

3) रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (आरईआरए) - परिणाम आने बाकी हैं.

4) प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण - एलपीजी के सफल कार्यान्वयन के बाद आगे नहीं बढ़ा अभियान

संकट प्रबंधन

1) बैंकिंग - ऋण संकट बद से बदतर होता जा रहा है. एनपीए 15 फीसदी बढ़कर 7.31 लाख करोड़ रुपये हो गया.

2) उदय योजना - बिजली वितरण करने वाली कंपनियों का कर्ज और बढ़ गया है जिससे राज्यों की हालत खस्ता हो गई.

3) सड़कें - मंदी के शिकार डेवलपर्स को परियोजनायें छोडने का रास्ता मिला ताजा निजी निवेश अभी तक आना बाकी...

नरेंद्र मोदी सरकार ने चार साल पूरे कर लिए हैं. तो आइए उनके इन चार सालों के कामकाज का मूल्यांकन करते हैं-

मुख्य सफलताएं

1) वित्तीय बचत और खुदरा निवेश में वृद्धि हुई है.

2) विमानन नीति में बदलाव से लोगों को फायदा हुआ है. खासकर सरकार के हस्तक्षेप ने सही काम किया. सस्ते विमानन टरबाइन ईंधन ने बहुत मदद की.

3) उर्वरकों की कमी को कम किया गया.

4) ई-गवर्नेंस अभियान को तेजी मिलने पासपोर्ट और भविष्य निधि सेवाओं में सुविधायें बढी .

आम आदमी पर मार

1) पिछले चार वर्षों में इनडाइरेक्टत टैक्स और सेस में बड़ी संख्या में बढ़ोत्तरी

2) नोटबंदी ने सताया और अर्थव्यकवस्था बिगड़ी

3) आधार-लिंक कराने में लोगों को परेशानी हुई.

4) तेल की मंहगाई वापस आ गई.

लचर शुरुआत और कठिन डगर

1) दिवालिया और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) - संशोधन जारी हैं

2) गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) - बार बार संशोधन किए गए; राजस्व नहीं बढ़ा कर चोरी में इजाफा

3) रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (आरईआरए) - परिणाम आने बाकी हैं.

4) प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण - एलपीजी के सफल कार्यान्वयन के बाद आगे नहीं बढ़ा अभियान

संकट प्रबंधन

1) बैंकिंग - ऋण संकट बद से बदतर होता जा रहा है. एनपीए 15 फीसदी बढ़कर 7.31 लाख करोड़ रुपये हो गया.

2) उदय योजना - बिजली वितरण करने वाली कंपनियों का कर्ज और बढ़ गया है जिससे राज्यों की हालत खस्ता हो गई.

3) सड़कें - मंदी के शिकार डेवलपर्स को परियोजनायें छोडने का रास्ता मिला ताजा निजी निवेश अभी तक आना बाकी है.

नाम बड़े और दर्शन छोटे तो नहीं हो गए?

बड़े मिशन, छोटे परिणाम

1) नमामि गंगे - इस परियोजना के लिए विशाल आवंटन किए और नौकरशाहों की फौज तैनात की गई. कोई परिणाम सामने नहीं आया.

2) स्किल इंडिया - मिशन कामयाब नहीं हुआ मंत्री बदले गए, मंत्रालय का दर्जा कम किया गया.

3) आदर्श ग्राम योजना - सांसदों की उदासीनता का शिकार.

4) स्मार्ट सिटी - स्पनष्ट नीतियों और दिशा का इंतजार.

दावों पर किंतु परंतु

1) माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी बैंक (मुद्रा) - बड़े दावे, लेकिन आंकडो में झोल, एनपीएन बढ़ने का खतरा.

2) स्वच्छता - आंकड़ो और जमीनी हकीकत में अंतरविरोध.

3) उज्जवला - कुछ राज्यों में इस योजना ने काम किया. लेकिन दूसरे सिलेंडर नहीं लिये जा रहे.

4) ग्रामीण विद्युतीकरण - दावे भरपूर लेकिन आंकडो में गफलत.

विदेशी निवेश नहीं आया

1) रक्षा

2) रेलवे

3) निर्माण और रियल एस्टेट

4) ब्राउनफील्ड फार्मा और हवाई अड्डे

कोशिशें लेकिन कामयाबी कम

1) बिजली - कोयला उत्पादन बढ़ गया. लेकिन कोयले की कमी फिर से होने लगी है. ऋण संकट का खतरा मंडरा रहा है.

2) दूरसंचार - महंगी स्पेक्ट्रम नीलामी के कारण संचार कंपनियों को एक और बेलआउट देना पड़ा.

3) एयर इंडिया विनिवेश - देर से शुरुआत कोई खरीददार नहीं मिल रहा.

4) फसल बीमा - बीच रास्ते में ही भटक गया.

सबसे बड़ा रहस्य

1) नोटबंदी के दौरान जन धन खातों में जमा हुई अकूत राशि.

2) 2जी घोटालों में आरोपियों का बरी हो जाना.

3) अहमदाबाद के महेश शाह ने 13,000 करोड़ से अधिक का काला धन घोषित किया था.

संरचनात्मक सुधार जो शोर में खो गए

1) आम बजट के साथ रेलवे बजट का विलय.

2) योजना आयोग का समापन उर्फ नीति अयोग का उदय .

3) बैंकिंग सेवा बोर्ड.

4) योजना और गैर-योजना व्यय का विलय.

शोर के बाद गुम

1) सोना मुद्रीकरण योजना.

2) अमृत - अटल शहरी कायाकल्प मिशन.

3) ह्रदया - विरासत शहरों का विकास.

4) पांच औद्योगिक गलियारे.

5) स्टार्टअप इंडिया.

बद से जो बदतर

1) रेलवे - ट्रेनों का देरी से चलना, कैंसिल होना और दुर्घटनाएं.

2) मोबाइल सेवाएं - खराब नेटवर्क और दूरसंचार कंपनियों को नुकसान.

3) शिक्षा - शिक्षकों की कमी. उच्च शिक्षा में पैसों की कमी और छात्रों की अशांति.

जहां के तहां

1) विदेश व्यापार उदारीकरण - कोई एफटीए न ही कोई नया अंतरराष्ट्री य समझौता

2) लोकपाल

3) विनियामक सुधार

आगे कठिन चढ़ाई है

1) मांग में वृद्धि से पहले महंगाई लौट आई.

2) निवेश में वृद्धि से पहले ही ही ब्याज की दरें बढ़ने की नौबत.

3) पूंजी खर्च बढ़ने से पहले ही घाटा बढ़ने लगा.

4) विदेशी ऋण की देनदारी और जिंसों की महंगाई सर पर खड़ी है और रुपये पिघलने लगा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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