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मोदी सरकार ने कैसे मिडिल क्‍लास की जिंदगी मुश्किल बना दी !

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 26 मई, 2018 01:28 PM
  • 26 मई, 2018 01:28 PM
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जिसे मोदी सरकार ने सबसे अधिक परेशान किया है वो है मिडिल क्लास का आदमी. यह अमीर तो नहीं होता, लेकिन एक नौकरी करके या छोटा-मोटा बिजनेस करके अपना घर चलाता है और कभी-कभी कुछ पैसे भविष्य के लिए जमा करता है.

इन दिनों डीजल-पेट्रोल की कीमतों को लेकर मोदी सरकार की चौतरफा आलोचना हो रही है. लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि ये कौन लोग हैं जो मोदी सरकार की आलोचना कर रहे हैं? ये लोग गरीब तबके से आते हैं या फिर अमीर होते हैं? दरअसल, ये वो तबका है, जिसे मिडिल क्लास कहा जाता है. यह अमीर तो नहीं होता, लेकिन एक नौकरी करके या छोटा-मोटा बिजनेस करके अपना घर चलाता है और कभी-कभी कुछ पैसे भविष्य के लिए जमा करता है. ये वही मिडिल क्लास है जो नाराज हुआ तो देश की सरकार बदल गई, जिसने यूपीए को हराकर मोदी सरकार को सत्ता दिला दी. और मोदी सरकार ने सबसे अधिक इस मिडिल क्लास के आदमी की जिंदगी को ही मुश्किल बना दिया है. चलिए जानते हैं मोदी सरकार ने किन चीजों को लेकर और कैसे मिडिल क्लास के लोगों को जिंदगी को मुश्किल में डाला है.

पेट्रोल की कीमतें

ताजा उदाहरण तो पेट्रोल की कीमतें ही हैं. जो गरीब हैं, उन्हें पेट्रोल की जरूरत ही नहीं होती है और जो अमीर हैं, उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि पेट्रोल के दाम 2 रुपए बढ़ गए या 20 रुपए. इन कीमतों से फर्क पड़ता है तो मिडिल क्लास को. कोई बाइक से ऑफिस जाता है तो कोई कार से. सभी को जरूरत होती है पेट्रोल की. वो हर महीने का बजट पहले से निर्धारित कर लेता है कि कितने रुपए का पेट्रोल खर्च होगा और कितने रुपए की सब्जी आएगी. लेकिन पेट्रोल की कीमत में 1-2 रुपए का इजाफा भी महीने के उसके बजट को हिला देता है. ऐसे में जैसी आग पेट्रोल में इन दिनों लगी है, उससे तो मिडिल क्लास वालों को परेशानी होना लाजमी है. आपको बता दें कि 24 मई को दिल्ली में डीजल की कीमत 68.53 रुपए पर पहुंच गई है और पेट्रोल की कीमत 77.47 रुपए हो गई है.

लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्‍स

मिडिल क्लास का ही शख्स होता है जो कुछ अतिरिक्त पैसे कमाने के लिए शेयर...

इन दिनों डीजल-पेट्रोल की कीमतों को लेकर मोदी सरकार की चौतरफा आलोचना हो रही है. लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि ये कौन लोग हैं जो मोदी सरकार की आलोचना कर रहे हैं? ये लोग गरीब तबके से आते हैं या फिर अमीर होते हैं? दरअसल, ये वो तबका है, जिसे मिडिल क्लास कहा जाता है. यह अमीर तो नहीं होता, लेकिन एक नौकरी करके या छोटा-मोटा बिजनेस करके अपना घर चलाता है और कभी-कभी कुछ पैसे भविष्य के लिए जमा करता है. ये वही मिडिल क्लास है जो नाराज हुआ तो देश की सरकार बदल गई, जिसने यूपीए को हराकर मोदी सरकार को सत्ता दिला दी. और मोदी सरकार ने सबसे अधिक इस मिडिल क्लास के आदमी की जिंदगी को ही मुश्किल बना दिया है. चलिए जानते हैं मोदी सरकार ने किन चीजों को लेकर और कैसे मिडिल क्लास के लोगों को जिंदगी को मुश्किल में डाला है.

पेट्रोल की कीमतें

ताजा उदाहरण तो पेट्रोल की कीमतें ही हैं. जो गरीब हैं, उन्हें पेट्रोल की जरूरत ही नहीं होती है और जो अमीर हैं, उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि पेट्रोल के दाम 2 रुपए बढ़ गए या 20 रुपए. इन कीमतों से फर्क पड़ता है तो मिडिल क्लास को. कोई बाइक से ऑफिस जाता है तो कोई कार से. सभी को जरूरत होती है पेट्रोल की. वो हर महीने का बजट पहले से निर्धारित कर लेता है कि कितने रुपए का पेट्रोल खर्च होगा और कितने रुपए की सब्जी आएगी. लेकिन पेट्रोल की कीमत में 1-2 रुपए का इजाफा भी महीने के उसके बजट को हिला देता है. ऐसे में जैसी आग पेट्रोल में इन दिनों लगी है, उससे तो मिडिल क्लास वालों को परेशानी होना लाजमी है. आपको बता दें कि 24 मई को दिल्ली में डीजल की कीमत 68.53 रुपए पर पहुंच गई है और पेट्रोल की कीमत 77.47 रुपए हो गई है.

लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्‍स

मिडिल क्लास का ही शख्स होता है जो कुछ अतिरिक्त पैसे कमाने के लिए शेयर बाजार में पैसे लगा देता है. लेकिन इस बार के बजट में मोदी सरकार ने लॉन्ग टर्म गेन टैक्स लगाकर मिडिल क्लास की जेब पर डाका डालने जैसा काम किया है. अब अगर किसी शख्स को शेयर्स से 1 लाख रुपए से अधिक की कमाई होती है, तो उसे 10 लॉन्ग टर्म गेन टैक्स देना होगा. बड़े निवेशकों को तो इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन छोटे निवेशकों के लिए यह किसी बुरी खबर से कम नहीं है. आपको बता दें कि अगर किसी शेयर को 1 साल तक रखने के बाद बेचा जाता है तो उससे होने वाली कमाई लॉन्ग टर्म गेन कहलाती है, जबकि अगर इसे 1 साल से पहले ही बेच दिया जाता है तो वह शॉर्ट टर्म गेन कहलाता है. पहले भी 2005 तक लॉन्ग टर्म गेन टैक्स लगा करता था, लेकिन लोगों की शेयर बाजार में भागीदारी बढ़ाने के लिए सरकार ने इसे हटा दिया था.

इनकम टैक्‍स स्‍लैब

अगर टैक्स स्लैब की ओर ध्यान दें तो 2.5 लाख रुपए तक कोई टैक्स नहीं लगता, लेकिन सैलरी उससे अधिक होते ही आप पर टैक्स लगना शुरू हो जाता है. अगर सातवें वेतन आयोग की बात करें तो उसके अनुसार न्यूनतम सैलरी 18,000 रुपए प्रति महीना निर्धारित है. अगर किसी शख्स तो न्यूनतम से 3 हजार रुपए भी अधिक मिल गए, तो वह टैक्स के दायरे में आ जाएगा. हालांकि, 5 लाख तक की सैलरी वालों को दिक्कत ना हो इसलिए सरकार ने उन्हें 5 फीसदी की अतिरिक्त छूट दी है, जिससे 5 लाख तक उन पर कोई टैक्स नहीं लगेगा, लेकिन जैसे ही कमाई 5 लाख से ऊपर गई, तो न सिर्फ आपको 5 लाख के ऊपर की कमाई पर टैक्स देना होगा, बल्कि 2.5-5 लाख वाले स्लैब का 5 फीसदी भी टैक्स के रूप में देना होगा. बजट में मोदी सरकार ने गरीबों के लिए तो अपना पिटारा खोल दिया, लेकिन उस पिटारे से मि़डिल क्लास के लिए कुछ नहीं निकला.

तत्‍काल टिकट

एक और बड़ी दिक्कत है तत्काल टिकट की. कभी ट्रेन से घर जाना हो तो रिजर्वेशन काउंटर पर तो टिकट मिलना नामुमकिन ही समझिए. इंतजार करना पड़ता है तत्काल का. एडवांस होती तकनीक के साथ आईआरसीटीसी ने भी खुद को इतना एडवांस कर लिया है कि चुटकी में हजारों टिकट बुक हो जाती हैं. यहां फिर मारा जाता है मिडिल क्लास. जिसे टिकट मिल गई वो तो खुशनसीब है, लेकिन जिसे टिकट नहीं मिली उसे प्रीमियम तत्काल की ओर मुड़ना पड़ता है, जिसकी टिकट के दाम सामान्य की तुलना में दोगुने तक होते हैं. ये वो प्रीमियम सुविधा है जो पहले सिर्फ हवाई यात्रा करने वालों को झेलनी होती थी, लेकिन अब उसे भी झेलनी पड़ती है, जिसे ट्रेन की तत्काल टिकट नहीं मिल पाती और घर जाना बेहद जरूरी होता है.

देखा जाए तो मोदी सरकार की तरफ से मिडिल क्लास को कई तरीकों से ठगा गया है. और विकल्प भी क्या है? आखिर मिडिल क्लास जाए तो जाए कहां? दिन भर नौकरी कर के घर पहुंचता है फिर घर को संभालता है और थोड़ा समय अपने लिए निकाल कर कभी फिल्म देख लेता है तो कभी कहीं घूम आता है. लेकिन फिल्म देखने जाए या घूमने, पेट्रोल को लगेगा ही. कहीं दूर घूमने जाए तो ट्रेन की तत्काल का बवाल झेलेगा. यानी देखा जाए तो आम आदमी को चौतरफा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार है मोदी सरकार.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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