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कार खरीदते वक्त क्रैश टेस्ट की रेटिंग क्यों नहीं देखते हैं लोग?

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 29 अक्टूबर, 2018 11:45 AM
  • 29 अक्टूबर, 2018 11:45 AM
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भारत जैसे देश में करीब डेढ़ लाख लोग हर साल सड़क हादसों में मारे जाते हैं. ऐसे में, बिना क्रैश टेस्ट की कारें या क्रैश टेस्ट में फेल हो चुकी कारों को सड़कों पर चलने देना हादसों को न्योता देने जैसा है.

जब कोई कार लेकर सड़क पर निकलता है तो उसे ये नहीं पता होता कि अगर कोई दुर्घटना हो जाती है तो कार की क्या हालत होगी. कार तो छोड़िए, उसका जो होगा वो होगा, जरा सोचिए अंदर बैठे लोगों का क्या होगा. हाल ही में मारुति सुजुकी की कार स्विफ्ट का क्रैश टेस्ट किया गया और क्रैश टेस्ट करने वाली संस्था ग्लोबल एनसीएपी (Global New Car Assessment Programme) से उसे सिर्फ 2 स्टार की रेटिंग मिली है. यानी ये कार क्रैश टेस्ट में फेल हो गई है.

कार लेने से पहले लोग उसके तमाम फीचर देखते हैं, ब्लूटूथ से लेकर जीपीएस तक देख लेते हैं, लेकिन क्रैश टेस्ट की रेटिंग नहीं देखते. ना ही कोई कार निर्माता कार बेचते समय इस रेटिंग की बात करता है. लेकिन क्यों? जिंदगी प्यारी क्यों नहीं है? किसी भी कार के बनने पर उसका क्रैश टेस्ट होता है, जिसके बाद उसे रेटिंग भी मिलती है. लेकिन कंपनियां लोगों को सिर्फ कार के शानदार फीचर और डिजाइन दिखाती हैं और ग्राहक भी उन पर मर मिटते हैं. लेकिन जब एक्सिडेंट होता है तो कार की हालत नीचे दिख रही तस्वीर जैसी हो जाती है. तस्वीर ये बताने के लिए काफी है कि इसमें बैठे लोगों का क्या हाल हुआ होगा. ऐसे में ये बेहद जरूरी है कि हर ग्राहक कोई भी कार खरीदने से पहले उसकी क्रैश-टेस्ट रेटिंग भी पूछे.

भारत जैसे देश में करीब डेढ़ लाख लोग हर साल सड़क हादसों में मारे जाते हैं.

सरकार भी है जिम्मेदार

कार क्रैश के भयानक हादसों के लिए सरकार भी काफी हद तक जिम्मेदार है. कार खरीदने वाले को पता ही नहीं होता कि उसकी कार कितनी सुरक्षित है. सरकार को इसके लिए नियम बनाने चाहिए और ये सुनिश्चित करना चाहिए कि कार वही बने, जो क्रैश टेस्ट में फेल ना हो. यानी उसमें सारे सुरक्षा उपकरण लगे हों, जिससे जान बच सके. अगर कार क्रैश टेस्ट में फेल होती है तो उसकी बिक्री पर रोक लगाई...

जब कोई कार लेकर सड़क पर निकलता है तो उसे ये नहीं पता होता कि अगर कोई दुर्घटना हो जाती है तो कार की क्या हालत होगी. कार तो छोड़िए, उसका जो होगा वो होगा, जरा सोचिए अंदर बैठे लोगों का क्या होगा. हाल ही में मारुति सुजुकी की कार स्विफ्ट का क्रैश टेस्ट किया गया और क्रैश टेस्ट करने वाली संस्था ग्लोबल एनसीएपी (Global New Car Assessment Programme) से उसे सिर्फ 2 स्टार की रेटिंग मिली है. यानी ये कार क्रैश टेस्ट में फेल हो गई है.

कार लेने से पहले लोग उसके तमाम फीचर देखते हैं, ब्लूटूथ से लेकर जीपीएस तक देख लेते हैं, लेकिन क्रैश टेस्ट की रेटिंग नहीं देखते. ना ही कोई कार निर्माता कार बेचते समय इस रेटिंग की बात करता है. लेकिन क्यों? जिंदगी प्यारी क्यों नहीं है? किसी भी कार के बनने पर उसका क्रैश टेस्ट होता है, जिसके बाद उसे रेटिंग भी मिलती है. लेकिन कंपनियां लोगों को सिर्फ कार के शानदार फीचर और डिजाइन दिखाती हैं और ग्राहक भी उन पर मर मिटते हैं. लेकिन जब एक्सिडेंट होता है तो कार की हालत नीचे दिख रही तस्वीर जैसी हो जाती है. तस्वीर ये बताने के लिए काफी है कि इसमें बैठे लोगों का क्या हाल हुआ होगा. ऐसे में ये बेहद जरूरी है कि हर ग्राहक कोई भी कार खरीदने से पहले उसकी क्रैश-टेस्ट रेटिंग भी पूछे.

भारत जैसे देश में करीब डेढ़ लाख लोग हर साल सड़क हादसों में मारे जाते हैं.

सरकार भी है जिम्मेदार

कार क्रैश के भयानक हादसों के लिए सरकार भी काफी हद तक जिम्मेदार है. कार खरीदने वाले को पता ही नहीं होता कि उसकी कार कितनी सुरक्षित है. सरकार को इसके लिए नियम बनाने चाहिए और ये सुनिश्चित करना चाहिए कि कार वही बने, जो क्रैश टेस्ट में फेल ना हो. यानी उसमें सारे सुरक्षा उपकरण लगे हों, जिससे जान बच सके. अगर कार क्रैश टेस्ट में फेल होती है तो उसकी बिक्री पर रोक लगाई जानी चाहिए. सरकार को कार कंपनियों को आदेश देना चाहिए कि वह कार के सारे फीचर बताने के साथ-साथ उसकी क्रैश टेस्ट रेटिंग भी बताएंगे, ताकि ग्राहक ये समझ सकें कि जो कार वह लेने जा रहे हैं वह कितनी सुरक्षित है. कंपनियां तो लोगों की कारों के आगे-पीछे बंपर तक लगा कर बेच देती हैं, लेकिन उन्हें ये नहीं बताती हैं कि बंपर लगाकर वह लोगों की जान को खतरे में डाल रहे हैं. जिस तरह दिल्ली सरकार ने बंपर को लेकर सख्त नियम बनाए हैं, ठीक उसी तरह पूरे देश में होना चाहिए. बल्कि इससे भी सख्त नियम होने चाहिए. लेकिन यहां एक सवाल ये खड़ा होता है कि क्या ऐसा करने से कारें महंगी नहीं हो जाएंगी?

अमेरिका-यूरोप में हैं सख्त कानून

अगर अमेरिका और यूरोप की नियमों के मुताबिक कार बेची जाए तो बिना एयरबैग की मारुति स्विफ्ट (जिसे जीरो रेटिंग मिली है) तो वहां बिक भी नहीं सकेगी. कंपनियां इस तरह की जीरो रेटिंग वाली कारों को उन बाजारों में बेचती हैं, जहां का बाजार तेजी से बढ़ रहा है, जैसे भारत और चीन. अमेरिका यूरोप में किसी कार को बेचने से पहले उसे कुछ जरूरी नियमों का पालन करना होता है, जिनमें फेल होने की स्थिति में कार को बाजार में उतारने की इजाजत नहीं मिलती है. अमेरिका में National Highway Traffic Safety Administration (NHTSA) और Insurance Institute of Highway Safety (IIHS) कारों की क्रैश टेस्ट रेटिंग का ध्यान रखते हैं और ग्राहकों को भी इस बारे में आगाह करते हैं, लेकिन भारत की सरकार अभी ऐसा कुछ नहीं कर रही है. हालांकि, Global NCAP की तरफ से भारत को भी यह सुझाव दिया गया है कि सभी कारों में एयरबैग होने जरूरी हैं.

क्रैश टेस्ट में मारुति स्विफ्ट को सिर्फ 2 स्टार की रेटिंग मिली है.

खतरनाक कारों के बनने की ये है वजह

भारत जैसे देश में हर कोई कार नहीं खरीद पाता. ऐसे देश में अगर सभी सुरक्षा उपकरण वाली कार बनाई जाएगी, तो वह क्रैश टेस्ट में तो बेशक पास हो जाएगी, लेकिन जब बारी आएगी उसके बिकने की तो अधिक कीमत के चलते शायद उसका बिकना मुश्किल हो जाए. वहीं दूसरी ओर, कार कंपनियों के बीच में चल रही प्रतिस्पर्धा भी कारों को खतरनाक बना रही है. कार को सस्ता और सुंदर करने के चक्कर में कंपनियां बहुत सारा ऐसा सामान इस्तेमाल करती हैं, जो उच्च क्वालिटी के नहीं होते. नतीजा आप ऊपर तस्वीर में देख ही चुके हैं. खैर, जो भी हो, गाड़ी महंगी पड़े या सस्ती, लेकिन जान से अधिक कीमती तो नहीं है. कार में जीवन रक्षक उपकरण जैसे एयरबैग आदि जरूर होने चाहिए, वो भी नियमों के अनुरूप.

टॉप 10 कारों की क्या है क्रैश टेस्ट रेटिंग?

अगर हम पिछले महीने में बिकी कारों की संख्या के हिसाब से सबसे लोकप्रिय कारों की लिस्ट देखें तो उसमें भी मारुति स्विफ्ट पहले नंबर पर है. आपको बता दें कि मारुति स्विफ्ट 13 सालों से नंबर-1 है.

 नंबर  कार  स्टार
 1  मारुति स्विफ्ट   2 स्टार
 2  मारुति अल्टो  0 स्टार
 3  मारुति डिजायर  2 स्टार
 4  मारुति बलेनो  3 स्टार
 5  मारुति ब्रीजा  4 स्टार
 6  मारुति वेगन-आर  0 स्टार
 7  हुंडई आई-20  4 स्टार
 8  हुंडई ग्रैंड आई-10  0 स्टार
 9  हुंडई क्रेटा  4 स्टार
 10  मारुति सेलेरियो  0 स्टार

कैसे होता है क्रैश टेस्ट?

क्रैश टेस्ट ये पता करने के लिए किया जाता है कि किसी दुर्घटना की स्थिति में अंदर बैठे व्यक्ति को कितनी चोट लग सकती है. इसके लिए कार में डमी का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें सेंसर लगे होते हैं. इन सेंसर की मदद से पता चलता है कि व्यक्ति को कितनी चोट लग सकती है. क्रैश टेस्ट में दो टेस्ट होते हैं, एक सामने से और दूसरा साइड से. पहले टेस्ट में गाड़ी को 64 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से एक बैरियर को टक्कर मारी जाती है, जिसे सामने से आ रही दूसरी कार समझा जाता है. इस टक्कर में कार के आगे का 40 फीसदी हिस्सा टकराना चाहिए. दूसरे टेस्ट में एक ट्रॉली को 40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गाड़ी के साइड से टकराया जाता है और ये टक्कर सीधे ड्राइवर सीट के हिस्से पर मारी जाती है. इन सभी के प्वाइंट होते हैं, जिन्हें आपस में जोड़ने के बाद रेटिंग निकाली जाती है. आपको बता दें कि अगर कार में सीट बेल्ट अलर्ट जैसे फीचर भी शामिल होते हैं, तो उनसे प्वाइंट और बढ़ते हैं यानी वह भी रेटिंग बढ़ाने में काम आते हैं.

भारत जैसे देश में करीब डेढ़ लाख लोग हर साल सड़क हादसों में मारे जाते हैं. यानी रोजना 400 से भी अधिक लोग सड़क हादसों का शिकार होते हैं. ऐसे में, बिना क्रैश टेस्ट की कारें या क्रैश टेस्ट में फेल हो चुकी कारों को सड़कों पर चलने देना हादसों को न्योता देने जैसा है. सरकार को अहम कदम उठाते हुए कार कंपनियों को सख्त हिदायत देनी चाहिए कि वह किसी कार में ब्लूटूथ और जीपीएस देने से पहले एयरबैग्स जैसी जिंदगी बचाने वाली चीजें लगाएं. इसकी रेटिंग 1 से 5 तक मिलती है. कम से कम 3 स्टार की रेटिंग वाली कारें सही होती हैं. अब इस स्थिति में अगर पिछले महीने बिकी टॉप 10 कारों की ऊपर दी गई लिस्ट देखें तो पता चलता है कि 6 कारें क्रैश टेस्ट में फेल हो गई हैं. बल्कि 4 तो ऐसी हैं, जिन्हें जीरो रेटिंग मिली है, लेकिन बिक धड़ल्ले से रही हैं. यहां जिंदगी कितनी सस्ती हो चुकी है, इसकी दास्तां सबसे अधिक बिकने वाली कारों की लिस्ट और उन्हें मिली क्रैश टेस्ट रेटिंग ही बयां कर रही है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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