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...तो कोई भी मोबाइल वॉलेट पूरा 'भारतीय' नहीं !

    • ऑनलाइन एडिक्ट
    • Updated: 29 नवम्बर, 2016 09:16 PM
  • 29 नवम्बर, 2016 09:16 PM
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पेटीएम के फाउंडर और सीईओ विजय शेखर शर्मा ने ये बयान दिया है कि उनका ये मोबाइल वॉलेट मारुति की तरह ही इंडियन है, लेकिन विदेशी पैसे का क्या? क्यों ये कंपनियां खुद को पूरी तरह इंडियन साबित करने पर तुली हैं.

हाल ही में पेटीएम के फाउंडर और सीईओ विजय शेखर शर्मा ने ये बयान दिया है कि उनका ये मोबाइल वॉलेट मारुती की तरह ही इंडियन है. एक बार जिस मारुती को सरकार कंट्रोल करती थी अब वही कंपनी जापानी कारमेकर सुजुकी मोटर कॉर्प की हो गई है. सुजुकी की मारुती में 56.21 प्रतिशत हिस्सेदारी है.

दरअसल बात ये है कि पेटीएम ने मोदी जी की फोटो के साथ डीमॉनिटाइजेशन के बाद एक बड़ा विज्ञापन छापा था. उसी के बाद से विवाद पेटीएम के साथ चल रहे हैं. लोगों को इस बात से आपत्ती है कि पेटीएम का सबसे बड़ा स्टेकहोल्डर ही चाइनीज है. मोबाइल वॉलेट्स जो भारत को कैशलेस बनाने की बात कर रहे हैं वो खुद विदेशी फंडिंग पर निर्भर हैं. चलिए देखते हैं कौन सा मोबाइल वॉलेट कहां से फंडिंग लेता है.

ये भी पढ़ें- जनता के 1100 करोड़ खर्च, मगर विज्ञापन में !

- Paytm

पेटीएम में सबसे बड़ा स्टेक चीनी ईकॉमर्स कंपनी अलीबाबा का है. सितंबर 2015 में अलीबाबा और One97 कम्युनिकेशन (जो पेटीएम की पेरेंट कंपनी है) ने एक घोषणा की थी कि अलीबाबा और आंट फाइनेंशियल पेटीएम में इंवेस्टमेंट करेंगे. करीब 500 मिलिय डॉलर (343 करोड़ रुपए) के आस-पास का इनवेस्टमेंट हुआ और अलीबाबा One97 का 40 प्रतिशत हिस्सेदार बन गया. यही पैसा पेटीएम में इस्तेमाल हुआ.

 पेटीएम का विज्ञापन

- Freecharge

फ्रीचार्ज मोबाइल रीचार्ज, डीटीएच रीचार्ज और बिल पेमेंट वॉलेट...

हाल ही में पेटीएम के फाउंडर और सीईओ विजय शेखर शर्मा ने ये बयान दिया है कि उनका ये मोबाइल वॉलेट मारुती की तरह ही इंडियन है. एक बार जिस मारुती को सरकार कंट्रोल करती थी अब वही कंपनी जापानी कारमेकर सुजुकी मोटर कॉर्प की हो गई है. सुजुकी की मारुती में 56.21 प्रतिशत हिस्सेदारी है.

दरअसल बात ये है कि पेटीएम ने मोदी जी की फोटो के साथ डीमॉनिटाइजेशन के बाद एक बड़ा विज्ञापन छापा था. उसी के बाद से विवाद पेटीएम के साथ चल रहे हैं. लोगों को इस बात से आपत्ती है कि पेटीएम का सबसे बड़ा स्टेकहोल्डर ही चाइनीज है. मोबाइल वॉलेट्स जो भारत को कैशलेस बनाने की बात कर रहे हैं वो खुद विदेशी फंडिंग पर निर्भर हैं. चलिए देखते हैं कौन सा मोबाइल वॉलेट कहां से फंडिंग लेता है.

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- Paytm

पेटीएम में सबसे बड़ा स्टेक चीनी ईकॉमर्स कंपनी अलीबाबा का है. सितंबर 2015 में अलीबाबा और One97 कम्युनिकेशन (जो पेटीएम की पेरेंट कंपनी है) ने एक घोषणा की थी कि अलीबाबा और आंट फाइनेंशियल पेटीएम में इंवेस्टमेंट करेंगे. करीब 500 मिलिय डॉलर (343 करोड़ रुपए) के आस-पास का इनवेस्टमेंट हुआ और अलीबाबा One97 का 40 प्रतिशत हिस्सेदार बन गया. यही पैसा पेटीएम में इस्तेमाल हुआ.

 पेटीएम का विज्ञापन

- Freecharge

फ्रीचार्ज मोबाइल रीचार्ज, डीटीएच रीचार्ज और बिल पेमेंट वॉलेट फ्रीचार्ज को स्नैपडील ने खरीद लिया था. ET की एक रिपोर्ट के मुताबिक मई 2016 में स्नैपडील और उसकी पेरेंट कंपनी जैस्पर इन्फोटेक चीनी फर्म्स से बात कर रहे थे ताकी फ्रीचार्ज के लिए पैसे जुटाए जा सकें. स्नैपडील के सबसे बड़े इन्वेस्टर्स में से लक्जेम्बर्ग की कंपनी Clouse SA है. इसके अलावा, कनाडा की ओनटारियो टीचर्स पेंशन प्लान नाम की कंपनी है, अलीबाबा का भी इसमें शेयर है. इसके अलावा, फॉक्सकॉन और सॉफ्टबैंक टेलिकॉम ग्रुप भी शामिल हैं.

- Mobikwik

क्रंचबेस के डेटा के अनुसार मोबीक्विक में अमेरिकन एक्सप्रेस, सिस्को इंवेस्टमेंट्स, ताइवान की मीडियाटेक, बिपिन सिंह, कैलिफोर्निया की सेकोइया कैपिटल आदि का इंवेस्टमेंट हुआ है.

 सांकेतिक फोटो

- OLA

ओला में करीब 20 से ज्यादा इंवेस्टर्स का पैसा लगा है. क्रंचबेस के मुताबिक इनमें पेंसिलवेनिया की ABG कैपिटल, कैलिफोर्निया की एक्सेल पार्टनर्स जैसी कई विदेशी कंपनियों का पैसा लगा है.

 सांकेतिक फोटो

तो कुल मिलाकर देश की सबसे बड़ी मोबाइल वॉलेट कंपनियों के पास विदेशी फंडिंग है. तो फिर इनके विज्ञापन में नरेंद्र मोदी और तिरंगे को दिखाना कितना सही है. मेक इन इंडिया अभियान में इन्हें क्यों पूरी तरह से भारतीय नहीं बनाया जाता. दिवाली के समय छोटे दुकनदारों के चीनी सामान का बहिष्कार तो बड़े अच्छे ढंग से किया, लेकिन फिर देश की ना जाने कितनी ही कंपनियों को क्यों नहीं देखा गया जो पैसा भी तो अमेरिका और चीन से ले रही हैं.

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आखिर क्या वजह है कि पेटीएम के सीईओ इतनी तत्परता के साथ खुद को मेड इन इंडिया साबित करने में लगे हुए हैं? शायद वो खुद को देसी बताना चाहते हैं क्योंकि लोग अपने पैसे पेटीएम में रखते हैं. फाइनेंशियल सर्विसेज पर भरोसा करना थोड़ा मुश्किल होता है ऐसे में स्वदेशी हो तो मन को भरोसा हो जाता है. नोटबंदी के बाद से भारत के सभी मोबाइल वॉलेट के यूजर्स बढ़ गए हैं और इस आंकड़े के बढ़ने की उम्मीद भी है. ऐसे में खुद को भारतीय साबित करना शायद यूजर बेस बढ़ाने के लिए अच्छा हो.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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