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संस्कृति

शाकाहारी मगरमच्छ का 70 वर्षीय दैवीय जीवन, ये सब हमारी संस्कृति में ही संभव है

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 11 अक्टूबर, 2022 03:50 PM
  • 11 अक्टूबर, 2022 03:50 PM
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यूं तो मगरमच्छ (Vegetarian Crocodile) एक मांसाहारी जीव है. लेकिन, ये हिंदू धर्म की संस्कृति (Hindu Culture) का ही प्रभाव है कि एक खूंखार और मांसभक्षी जानवर भी ईश्वरीय शक्ति के आगे अपनी पाशविक प्रवृत्तियों को खत्म कर शाकाहारी हो जाता है. बाबिया मगरमच्छ की मौत पर सोशल मीडिया पर लोग श्रद्धांजलि दे रहे हैं.

सोशल मीडिया पर केरल के कासरगौड में एक मगरमच्छ बाबिया की मौत का मामला जमकर वायरल हो रहा है. आप सोच रहे होंगे कि मगरमच्छ की मौत कोई बड़ी बात तो नहीं है. फिर बाबिया मगरमच्छ को लेकर सोशल मीडिया पर इस तरह का रिएक्शन क्यों दिया जा रहा है? दरअसल, बाबिया (Babiya) नाम का ये मगरमच्छ केरल के कासरगौड में स्थित आनंदपद्मनाभ स्वामी मंदिर की झील में रहता था. और, पूरी तरह से शाकाहारी था. आपने बिलकुल ठीक सुना. ये मगरमच्छ शाकाहारी ही था. और, इसी की वजह से आनंदपद्मनाभ स्वामी मंदिर को शाकाहारी मगरमच्छ का मंदिर भी कहा जाता था.

 आनंदपद्मनाभ स्वामी मंदिर का नाम बाबिया की वजह से शाकाहारी मगरमच्छ मंदिर भी पड़ गया था.

रिपोर्ट्स के अनुसार, बाबिया मगरगमच्छ 75 साल से मंदिर की झील में रहता था. और, मांसाहार से दूर केवल मंदिर में पूजा के दौरान चढ़ाया हुआ पके हुए चावल और गुड़ का प्रसाद ही खाता था. सवाल उठना लाजिमी है कि खूंखार और घिनौना सा दिखने वाला ये जीव शाकाहारी कैसे हो सकता है? तो, इसका सीधा सा जवाब हिंदू धर्म और संस्कृति ही है. कहना गलत नहीं होगा कि दुनिया के सबसे जहरीले जानवरों के तौर पर मशहूर सांपों की पूजा करना, जब हमारे देश में संभव है. तो, एक मांसाहारी मगरमच्छ का शाकाहारी हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है.

हिंदू धर्म की संस्कृति में इंसानों समेत पशुओं, पेड़-पौधों तक से प्रेम करना सिखाया गया है. घृणा की दृष्टि से देखा जाना वाला जानवर सुअर भी हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के वराह अवतार के तौर पर देखा जाता है. और, यही कारण है कि मगरमच्छ जैसा खतरनाक जीव भी देवी गंगा का वाहन है. ये हमारी संस्कृति का सुंदरतम रूप ही है, जो पाशविक प्रवृत्तियों के बावजूद मांसाहारी जानवरों को भी पूजनीय बना देता है. दरअसल, पौराणिक कथाओं में पशु-पक्षियों को...

सोशल मीडिया पर केरल के कासरगौड में एक मगरमच्छ बाबिया की मौत का मामला जमकर वायरल हो रहा है. आप सोच रहे होंगे कि मगरमच्छ की मौत कोई बड़ी बात तो नहीं है. फिर बाबिया मगरमच्छ को लेकर सोशल मीडिया पर इस तरह का रिएक्शन क्यों दिया जा रहा है? दरअसल, बाबिया (Babiya) नाम का ये मगरमच्छ केरल के कासरगौड में स्थित आनंदपद्मनाभ स्वामी मंदिर की झील में रहता था. और, पूरी तरह से शाकाहारी था. आपने बिलकुल ठीक सुना. ये मगरमच्छ शाकाहारी ही था. और, इसी की वजह से आनंदपद्मनाभ स्वामी मंदिर को शाकाहारी मगरमच्छ का मंदिर भी कहा जाता था.

 आनंदपद्मनाभ स्वामी मंदिर का नाम बाबिया की वजह से शाकाहारी मगरमच्छ मंदिर भी पड़ गया था.

रिपोर्ट्स के अनुसार, बाबिया मगरगमच्छ 75 साल से मंदिर की झील में रहता था. और, मांसाहार से दूर केवल मंदिर में पूजा के दौरान चढ़ाया हुआ पके हुए चावल और गुड़ का प्रसाद ही खाता था. सवाल उठना लाजिमी है कि खूंखार और घिनौना सा दिखने वाला ये जीव शाकाहारी कैसे हो सकता है? तो, इसका सीधा सा जवाब हिंदू धर्म और संस्कृति ही है. कहना गलत नहीं होगा कि दुनिया के सबसे जहरीले जानवरों के तौर पर मशहूर सांपों की पूजा करना, जब हमारे देश में संभव है. तो, एक मांसाहारी मगरमच्छ का शाकाहारी हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है.

हिंदू धर्म की संस्कृति में इंसानों समेत पशुओं, पेड़-पौधों तक से प्रेम करना सिखाया गया है. घृणा की दृष्टि से देखा जाना वाला जानवर सुअर भी हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के वराह अवतार के तौर पर देखा जाता है. और, यही कारण है कि मगरमच्छ जैसा खतरनाक जीव भी देवी गंगा का वाहन है. ये हमारी संस्कृति का सुंदरतम रूप ही है, जो पाशविक प्रवृत्तियों के बावजूद मांसाहारी जानवरों को भी पूजनीय बना देता है. दरअसल, पौराणिक कथाओं में पशु-पक्षियों को देवी-देवताओं के वाहन के तौर पर दर्शाने के पीछे उनके संरक्षण की उम्मीद थी. क्योंकि, हिंसा एक मानवीय गुण है. और, बेजुबान पशु इसका सबसे ज्यादा शिकार होते हैं. 

बताया जाता है कि ये मगरमच्छ 1940 के आसपास यहां आया था. और, मंदिर के पुजारियों ने मगरमच्छ के इस बच्चे को प्रसाद खिलाना शुरू कर दिया. प्रसाद का गुड़-चावल बाबिया को इतना पसंद आया कि वह मांसाहार की अपनी पाशविक प्रवृत्ति को छोड़कर शाकाहार करने लगा. आनंदपद्मनाभ स्वामी मंदिर में आने वाले भक्तों का कहना है कि उन्होंने भी बिना डरे अपने हाथों से कई बार बाबिया को खाना खिलाया है. वहीं, सोशल मीडिया पर बाबिया मगरमच्छ की कई तस्वीरें शेयर की जा रही हैं. जिनमें एक पुजारी इस मगरमच्छ के जबड़े पर अपना सिर रख अभिवादन कर रहा है. तो, दूसरी तस्वीर में इसे अपने हाथों से खाना खिला रहा है. 

हमारे देश में कहावत है कि 'जल में रहकर मगर से बैर नहीं करते.' और, इस कहावत के बनने की वजह यही है कि पानी में मगरमच्छ से खतरनाक जीव कोई नहीं होता है. पलक झपकते ही किसी के भी शरीर के कई टुकड़ों कर देने वाले भयानक जबड़ों वाला मगरमच्छ को देखते ही सिहरन महसूस होने लगती है. लेकिन, बाबिया मगरमच्छ को देखकर कोई डरता नहीं था. बल्कि, दूर-दूर लोग उसे देखने के लिए आते थे. बाबिया पूरे मंदिर प्रांगण में बिना किसी को कोई नुकसान पहुंचाए टहलता रहता था. और, भक्त भी इसे अपने आसपास देखकर डरते नहीं थे. क्योंकि, उन्हें भरोसा था कि ये दिव्य मगरमच्छ उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा.

बताया जा रहा है कि बाबिया का अंतिम संस्कार हिंदू संस्कृति के अनुसार ही किया जाएगा. और, अंतिम संस्कार के बाद आनंदपद्मनाभ स्वामी मंदिर में ही उसे दफना दिया जाएगा. मंदिर के भक्तों ने बाबिया मगरमच्छ को दिव्य मगरमच्छ का नाम दिया था. क्योंकि, भक्तों का मानना था कि बाबिया मगरमच्छ भगवान का ही दूत था. जो यहां रहकर मंदिर की रक्षा करता था.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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