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संस्कृति

शंकराचार्य परंपरा के प्रोटोकॉल में नीता अंबानी और रामशंकर कठेरिया में भेद नहीं है

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 28 अगस्त, 2022 05:33 PM
  • 28 अगस्त, 2022 05:33 PM
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हिंदू धर्म (Hindu Religion) और उसकी परंपराओं (Tradition) को लेकर मिथ्या प्रचार अपने चरम पर है. सोशल मीडिया पर कुछ स्वघोषित दलित चिंतकों द्वारा शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती (Shankaracharya) के खिलाफ इसी मिथ्या प्रचार को हथियार बनाया जा रहा है. दावा किया जा रहा है कि शंकराचार्य ने दलित भाजपा सांसद (Dalit BJP MP) को पैर छूने से मना कर दिया.

ट्विटर वॉल को स्क्रॉल कर रहा था कि अचानक दो वायरल तस्वीरों पर नजर रुक गई. इन तस्वीरों के साथ दावा किया जा रहा है कि भाजपा सांसद रामशंकर कठेरिया को शंकाराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने पैर नहीं छूने दिया. क्योंकि, कठेरिया दलित जाति से आते हैं. खैर, पहली तस्वीर में भाजपा सांसद रामशंकर कठेरिया शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती को कुछ भेंट देते दिख रहे हैं. और, दूसरी तस्वीर में वो शंकराचार्य को प्रणाम करते नजर आ रहे हैं. जिसमें शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती अपने पैरों को भाजपा सांसद से दूर खींचते हुए दिख रहे हैं. इन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए हिंदू धर्म से चिढ़ रखने वाले बहुत से यूजर्स ने लिखा है कि शंकराचार्य छुआछूत को बढ़ावा दे रहे हैं. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि शंकराचार्य ने ऐसा आखिर क्यों किया? 

राष्ट्रपति से मिलने जाएं, तो भी करना पड़ता है प्रोटोकॉल का पालन

वैसे, इस मामले को सामान्य तरीके से समझना हो, तो भारत के राष्ट्रपति का उदाहरण सबसे सही कहा जा सकता है. क्योंकि, भारतीय संविधान के हिसाब से भारत के राष्ट्रपति का पद सबसे सर्वोच्च माना जाता है. तो, अगर कोई शख्स भारत के राष्ट्रपति से मिलने जाता है, तो उसे तमाम तरह के प्रोटोकॉल का पालन करना पड़ता है. उसके लिए मिलने वाले शख्स को बाकायदा प्रोटोकॉल का एक नोट दिया जाता है. जिसमें मुलाकात के दौरान राष्ट्रपति को छूने की मनाही, एक खास दूरी पर बैठने की हिदायत, एडीसी के इशारा करते ही तत्काल खड़े होने जैसी कई बातों का पालन करने के नियम लिखे होते हैं.

अब अगर इसे शंकराचार्य की वायरल हो रही तस्वीरों के संबंध में देखें. तो, स्पष्ट है कि हिंदू धर्म में शंकराचार्य की पदवी सबसे सर्वोच्च यानी राष्ट्रपति के तौर पर ही मानी जाती है. आसान शब्दों में कहें, तो हिंदू धर्म के मानने वाले सभी लोग सनातन परंपराओं को एक प्रोटोकॉल की तरह ही...

ट्विटर वॉल को स्क्रॉल कर रहा था कि अचानक दो वायरल तस्वीरों पर नजर रुक गई. इन तस्वीरों के साथ दावा किया जा रहा है कि भाजपा सांसद रामशंकर कठेरिया को शंकाराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने पैर नहीं छूने दिया. क्योंकि, कठेरिया दलित जाति से आते हैं. खैर, पहली तस्वीर में भाजपा सांसद रामशंकर कठेरिया शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती को कुछ भेंट देते दिख रहे हैं. और, दूसरी तस्वीर में वो शंकराचार्य को प्रणाम करते नजर आ रहे हैं. जिसमें शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती अपने पैरों को भाजपा सांसद से दूर खींचते हुए दिख रहे हैं. इन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए हिंदू धर्म से चिढ़ रखने वाले बहुत से यूजर्स ने लिखा है कि शंकराचार्य छुआछूत को बढ़ावा दे रहे हैं. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि शंकराचार्य ने ऐसा आखिर क्यों किया? 

राष्ट्रपति से मिलने जाएं, तो भी करना पड़ता है प्रोटोकॉल का पालन

वैसे, इस मामले को सामान्य तरीके से समझना हो, तो भारत के राष्ट्रपति का उदाहरण सबसे सही कहा जा सकता है. क्योंकि, भारतीय संविधान के हिसाब से भारत के राष्ट्रपति का पद सबसे सर्वोच्च माना जाता है. तो, अगर कोई शख्स भारत के राष्ट्रपति से मिलने जाता है, तो उसे तमाम तरह के प्रोटोकॉल का पालन करना पड़ता है. उसके लिए मिलने वाले शख्स को बाकायदा प्रोटोकॉल का एक नोट दिया जाता है. जिसमें मुलाकात के दौरान राष्ट्रपति को छूने की मनाही, एक खास दूरी पर बैठने की हिदायत, एडीसी के इशारा करते ही तत्काल खड़े होने जैसी कई बातों का पालन करने के नियम लिखे होते हैं.

अब अगर इसे शंकराचार्य की वायरल हो रही तस्वीरों के संबंध में देखें. तो, स्पष्ट है कि हिंदू धर्म में शंकराचार्य की पदवी सबसे सर्वोच्च यानी राष्ट्रपति के तौर पर ही मानी जाती है. आसान शब्दों में कहें, तो हिंदू धर्म के मानने वाले सभी लोग सनातन परंपराओं को एक प्रोटोकॉल की तरह ही देखते हैं. और, इसे भेदभाव या छुआछूत का पर्याय नहीं मानते हैं. शंकराचार्य की पदवी प्राप्त करने वाले साधू को छूने की मनाही होती है. ये परंपरा यानी प्रोटोकॉल का वो हिस्सा है, जिसका सभी हिंदू पालन करते हैं. और, इसमें केवल दलित ही नहीं, ब्राह्मण जाति के लोग भी आते हैं. आसान शब्दों में कहें, तो ब्राह्मणों को भी शंकराचार्य को छूने की मनाही होती है.

हिंदू धर्म की परंपराओं को साजिशन बदनाम करने की कोशिश लगातार की जाती रही है.

अब शंकराचार्य के बारे में बताती एक फेसबुक पोस्ट

फेसबुक पर आदित्य वाहिनी नाम के एक पेज ने मुकेश अंबानी की पत्नी नीता अंबानी का एक वीडियो शेयर किया है. जिसमें कांची कामकोटि पीठ के डंडी संन्यासी दूर से ही नीता अंबानी को प्रसाद देते नजर आ रहे हैं. आदित्य वाहिनी ने इस वीडियो को शेयर करते हुए लिखा है कि सोशल मीडिया में पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य महाभाग के बारे में सेकुलरों के बीच विषय बना हुआ है कि भाजपा के दलित सांसद रामशंकर कठेरिया को उन्होंने अपने चरणस्पर्श नहीं करने दिए. हालांकि, सांसद कठेरिया ने इस विषय का स्वयं खंडन किया है. लेकिन, आजम खान को शंकराचार्य मानने वाले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव जी ने इस विषय को तूल दे दिया है.

वीडियो में साफ देख सकते हैं कि भारत ही नहीं विश्व के सबसे अमीरों में शामिल आदमी मुकेश अंबानी की पत्नी नीता अंबानी कांची कामकोटि पीठ में डंडी सन्यासी आचार्य के सामने प्रसाद के लिए झोली फैलाए हुई हैं. दृश्य वैसा ही है, जैसे किसी भिखारिन ने धनकुबेर के आगे हाथ फैलाया हो. मैंने जब यह वीडियो किसी के प्रोफाइल पर देखा. तभी कहा कि नीता अंबानी अगर वैश्य परिवार के बजाए दलित या शूद्र वर्ग की होतीं. तो, अभी मीडिया बवाल कर रहा होता. लेकिन, आचार्य के द्वारा दिए गए एक सेब के सामने समस्त संसार की दौलत छोटी लगी नीता अंबानी को. इसीलिए, तो उनके यहां लक्ष्मी स्वयं विराजती हैं. 

अब आती है वर्तमान में घटी हुई बात. तो, एक सच्ची घटना सुना रहा हूं. जब मैं 2014 में पुरी पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज के दिल्ली में पदार्पण के कार्यक्रम के आयोजन में लगा था. तो, कार्यक्रम के मुख्य आयोजन समिति में होने के कारण पीठ परिषद पुरी से संदेशों का आदान प्रदान मेरे साथ हो रहा था. कार्यक्रम से ठीक पहले पीठ परिषद की तरफ से एक संदेश आया, जिससे मेरी श्रद्धा शंकराचार्य के प्रति चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई.

उस संदेश में पहला नियम था कि भगवतपाद शंकराचार्य के आगमन पश्चात कोई भी उन पर फूल नहीं फेंकेगा. क्योंकि, शंकराचार्य नहीं चाहते हैं कि पूजन योग्य फूलों पर उनका पैर पड़े. दूसरा नियम था कि कोई भी व्यक्ति भगवतपाद के पैर नहीं छुएगा. क्योंकि, वो किसी को भी व्यक्तिगत आशीर्वाद नहीं देते हैं. सब पर उनका आशीर्वाद समान रुप से मिलता है. तीसरा नियम किसी भी धर्मोपदेशक के द्वारा सबसे महत्वपूर्ण और अविश्वसनीय था कि कोई भी भक्त उनसे चमत्कार की उम्मीद ना करे. जैसे कि वो किसी को बेटा होने का आशीर्वाद नहीं दे सकते. किसी के व्यक्तिगत समस्याओं का निराकरण नहीं है उनके पास.

हां, अगर धर्म और राष्ट्र संबंधित कोई समस्या है. तो, अपनी जिज्ञासा रखें. पता नहीं ये नियम सुनकर मुझे क्या हो गया. मुझे लगा कि ये सच में जगदगुरु हैं. मैंने अपने हृदय में उनके लिए राष्ट्रनिर्माता की छवि बनाई. कार्यक्रम के दूसरे चरण में मैंने अपनी जिज्ञासा भी उनसे राष्ट्रनिर्माण से संबंधित ही की. भगवतपाद ने भी उस प्रश्न को अब तक उनसे पूछे गए प्रश्नों में सर्वश्रेष्ठ बताया और मुक्त कंठ से उस प्रश्न की प्रशंसा की. मैं देश-विदेश के सभी सनातन धर्माचार्यों से निवेदन करुंगा कि भक्तों से पैर छूकर पूजा कराने, अपने पर पुष्प वर्षा करवाने और व्यक्तिगत स्वार्थ-सिद्धि के लिए हठ की राह छोड़कर समाज निर्माता की भूमिका में आएं. एक स्वस्थ समाज और राष्ट्र का निर्माण कर व्यक्ति तथा समाज को सही रास्ते पर लाएं. हर हर महादेव.  

मेरी राय

भारत में हिंदू धर्म और उसकी परंपराओं को बदनाम करने की कोशिशें लंबे समय से जारी हैं. जातियों में भेदभाव के लिए ब्राह्मणों को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है. जबकि, दलित जातियों में भी आपस में रोटी-बेटी के संबंध नहीं हैं. लेकिन, इन सामाजिक बुराईयों को खत्म करने की जगह सोशल मीडिया पर खुद को दलित चिंतक घोषित करने वाले लोग बस हिंदू धर्म को नीचा दिखाने के लिए वेदों और पुराणों में कही गई बातों का अपने हिसाब से संदर्भ निकालकर मिथ्या प्रचार में जुटे रहते हैं. शंकराचार्य द्वारा दलित भाजपा सांसद को पैर छूने से मना करने की तस्वीरें इसी मिथ्या प्रचार की एक कड़ी भर है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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