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संस्कृति

Janmashtami 2020: अपने भक्त के लिए भगवान कम दोस्त ज्यादा हैं श्री कृष्ण!

    • सिद्धार्थ अरोड़ा सहर
    • Updated: 12 अगस्त, 2020 01:44 PM
  • 12 अगस्त, 2020 01:44 PM
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Janmashtami Special: आज भले ही श्रीराम (Lord Ram) का नाम हमारे ह्रदय में बसा है, भोलेनाथ (Lord Shiva) सदैव हमारे अराध्य हैं पर मोहन यानी कृष्ण (Lord Krishna) एक ऐसे भगवान हैं जो दोस्त प्रतीत होते हैं. ये कृष्ण की खूबी ही है जिसके चलते जब कभी भी हम परेशान होते हैं लगता है कि मदद के लिए कृष्ण हमारे आस पास ही खड़े हैं.

विश्व भर में हिन्दुओं (Hindu) द्वारा पूजे जाने वाले मुख्य तीन देवता पुरुष हैं. प्रथम प्रभु श्रीराम (Lord Ram). श्रीराम वो हैं जिन्हें हर वर्ग समभाव से अपना मानता है. श्रीराम का ही नाम है जिसके सदके चारों वर्ण एक स्वर में सहमत हो जाते हैं. राम कर्म से क्षत्रिय रहे, पर उनका व्यहवार शूद्रों, वैश्यों और ब्राह्मणों के प्रति इतना कोमल, इतना निर्मल रहा है कि राम के नाम पर कभी कोई बहस नहीं हुई कि ये हमारे नहीं है, ये तुम्हारे हैं. पर राम एक वक़्त हुआ करते थे, अब बस उनका नाम रह गया है जिसे भले ही लोग जपते दिखें पर उन्हें समझते नहीं दिखते. उनके जैसा दूसरा कोई हो ही नहीं सकता. काल्पनिक बात हो गयी है अब किसी का मर्यादा पुरुषोत्तम हो सकना. राम नाम जपते लोग, अयोध्याजी (Ayodhya) की DP लगाए कुछ social media Warriors श्रीराम जी के सारे कांसेप्ट को ही पलट देते हैं. संख्या में उंगलियों पर गिने जाने के काबिल ये टुकड़ी सारे राम भक्तों की मर्यादा पर बट्टा लगाने के लिए पर्याप्त होती है. यही वजह है कि राम को पूजना आसान है पर राम जैसा एक रत्ती बनना भी impossible है. वो एक थे, वो गए, अब उनका नाम है जिसका सबने अपना-अपना अर्थ बना लिया है.

फिर उपासना भगवान शिव की होती है. इनका औघड़ स्वभाव विरलों में कहीं किसी एक के पास मिलता है.आए दिन गांजा-चरस पीने वाले ख़ुद को शिवभक्त कहकर भगवान शिव का और उनके भक्तों का भद्दा मज़ाक बनाते हैं. जबकि भगवान शिव वो हैं जो शांत भी हैं और क्रोधी भी, वो तपस्या में लीन भी हैं और प्रेम में लिप्त भी. वो इस संसार का तराजू हैं. वो वरदान भी देते हैं और वो संहार भी करते हैं. वो देवताओं के देव होते हुए भी राक्षसों से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दे देते हैं और सनक जाएं तो कहो ससुर का सिर ही काटकर भस्म कर देते हैं.

भगवान कृष्ण का जैसा स्वरूप है...

विश्व भर में हिन्दुओं (Hindu) द्वारा पूजे जाने वाले मुख्य तीन देवता पुरुष हैं. प्रथम प्रभु श्रीराम (Lord Ram). श्रीराम वो हैं जिन्हें हर वर्ग समभाव से अपना मानता है. श्रीराम का ही नाम है जिसके सदके चारों वर्ण एक स्वर में सहमत हो जाते हैं. राम कर्म से क्षत्रिय रहे, पर उनका व्यहवार शूद्रों, वैश्यों और ब्राह्मणों के प्रति इतना कोमल, इतना निर्मल रहा है कि राम के नाम पर कभी कोई बहस नहीं हुई कि ये हमारे नहीं है, ये तुम्हारे हैं. पर राम एक वक़्त हुआ करते थे, अब बस उनका नाम रह गया है जिसे भले ही लोग जपते दिखें पर उन्हें समझते नहीं दिखते. उनके जैसा दूसरा कोई हो ही नहीं सकता. काल्पनिक बात हो गयी है अब किसी का मर्यादा पुरुषोत्तम हो सकना. राम नाम जपते लोग, अयोध्याजी (Ayodhya) की DP लगाए कुछ social media Warriors श्रीराम जी के सारे कांसेप्ट को ही पलट देते हैं. संख्या में उंगलियों पर गिने जाने के काबिल ये टुकड़ी सारे राम भक्तों की मर्यादा पर बट्टा लगाने के लिए पर्याप्त होती है. यही वजह है कि राम को पूजना आसान है पर राम जैसा एक रत्ती बनना भी impossible है. वो एक थे, वो गए, अब उनका नाम है जिसका सबने अपना-अपना अर्थ बना लिया है.

फिर उपासना भगवान शिव की होती है. इनका औघड़ स्वभाव विरलों में कहीं किसी एक के पास मिलता है.आए दिन गांजा-चरस पीने वाले ख़ुद को शिवभक्त कहकर भगवान शिव का और उनके भक्तों का भद्दा मज़ाक बनाते हैं. जबकि भगवान शिव वो हैं जो शांत भी हैं और क्रोधी भी, वो तपस्या में लीन भी हैं और प्रेम में लिप्त भी. वो इस संसार का तराजू हैं. वो वरदान भी देते हैं और वो संहार भी करते हैं. वो देवताओं के देव होते हुए भी राक्षसों से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दे देते हैं और सनक जाएं तो कहो ससुर का सिर ही काटकर भस्म कर देते हैं.

भगवान कृष्ण का जैसा स्वरूप है हमेशा ही उनमें एक दोस्त की झलक दिखती है

शिव जैसा कोई करोड़ों में एक होता हैं पर होता ज़रूर है, पर वो मैं नहीं हूं, शायद आप नहीं हैं. हर शख्स शिव को किसी दूसरे में तो देख सकता है पर ख़ुद को शिव स्वरुप ढालने की कल्पना करना भी असहज कर देता है. शिव कहीं मिलते नहीं, शिव को प्राप्त करना पड़ता है, शिव को अपनाने के लिए ख़ुद को, अपने आप को पूरी तरह भुलाना पड़ता है. शिव होना सम्पूर्ण हो जाने जैसा है जो करोड़ों में कोई एक ही हो सकता है.

शायद इसीलिए दुनियाभर में सबसे लोकप्रिय मेरे बाल गोपाल हैं. मुरलीधर ठीक वैसे हैं जैसा हर कोई है. एक मां अपने बच्चे में माखनचोर देखती है तो वही बच्चा बड़ा होकर अपनी मां के जीवन का सार समझाने पर उसमें केशव की झलक पा लेता है. कहीं ग़लती होने पर बैकफुट पर आकर हम आप सब ही कभी न कभी रणछोड़दास बन जाते हैं, मित्रता निभाते वक्त भी हम द्वारकाधीश कहलाने लगते हैं और छल करते वक़्त हम छलिया रुपी हो जाते हैं.

हमारे पिता जब हमारी ख़ातिर किसी बुराई का अंत करें तो उनमें सुदर्शनधारी दिखता है न. एक भाई को अपने छोटे भाई में नंदलाल नज़र आता है. जहां नज़र जाए आपकी, वहां आपको मुरलीवाले का एक न एक रूप ज़रूर दिखता है. श्रीराम का नाम हमारे ह्रदय में बसा है, भोलेनाथ सदैव हमारे अराध्य हैं पर मोहन, मोहन तो दोस्त हैं हमारे. सखा हैं. यशोदानंदन हर नर-मादा के अन्दर हैं, गोविंद होने के लिए हमें किसी effort की ज़रूरत ही नहीं पडती.

ज़रा गौर कीजिए, लड्डूगोपाल ने चोरी भी की, प्रेम भी किया, स्वांग भी रचाया, त्याग भी किया, अपमान भी सहा, कटाक्ष भी किया, ज्ञान लिया भी और ज्ञान दिया भी. माधव हर एक आम इंसान जैसे ही तो हैं, हर आम इंसान मनोहर ही तो है. मैं सच बताऊं, जब भी किसी बुरी स्थिति में फंसता हूं तो मन में बसी श्रीकृष्ण की छवि बचा लेती है.

ये फील होता है कि वो मेरे साथ ही नहीं है, वो मेरे अन्दर ही है. वो मैं ही हूं, मुझमें वो ही तो है. बुराई, अपमान, उदासी या कोई भी नकारात्मक भाव भी ज़िन्दगी का हिस्सा ही तो है, फिर जब ये समझ आ जाए कि ये नकारात्मकता पार्ट ऑफ लाइफ है, तो वो नकारात्मक रह ही कहां जाती है.

जगन्नाथ उसमें से भी ऊर्जा निकालकर दिल में भर देते हैं और मन फिर से उस गोकुल के ग्वाले का मुरीद हो जाता है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी आज है. नन्द के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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