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संस्कृति

...तो हमारे जीवन में ऐसे हुई कृष्ण की एंट्री

    • सुशोभित सक्तावत
    • Updated: 25 अगस्त, 2016 07:57 PM
  • 25 अगस्त, 2016 07:57 PM
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हमारे सामने एक ऐतिहासिक कृष्ण हैं और दूसरे पौराणि‍क कृष्ण, लेकिन इतना तो तय है कि श्रीकृष्ण पिछले दो हजार सालों से भारतीय मानस का अटूट हिस्सा बने हुए हैं.

कहते हैं "महाभारत" का युद्ध कोई पांच हजार साल पहले लड़ा गया था और द्वारकापुरी 3112 ईसा पूर्व में समुद्र में विलीन हो गई थी. महाभारत के युद्ध और द्वारका नगरी के पुरातात्विलक अवशेष जब-तब मिलते रहते हैं. सिंधु घाटी सभ्यता की मुहरों पर भी कृष्ण के मिथक से संबंधित आकृतियां पाई गई हैं.

हमारे सामने एक "ऐतिहासिक" कृष्ण हैं और दूसरे "पौराणि‍क" कृष्ण, लेकिन इतना तो तय है कि श्रीकृष्ण पिछले दो हजार सालों से भारतीय मानस का अटूट हिस्सा बने हुए हैं.

 पिछले दो हजार सालों से भारतीय मानस का अटूट हिस्सा बने हुए हैं श्रीकृष्ण

"महाभारत" एक रणनीति-कुशल कृष्ण का बखान करती है, "गीता" एक दार्शनिक का तो "भागवत पुराण" एक प्रेमी का. "हरिवंश" एक गोपालक के रूप में उनका वर्णन करता है. राधा उनकी संगिनी हैं, लेकिन बारहवीं सदी में जयदेव द्वारा रचे गए "गीत गोविंद" से पहले तक उनका कोई वर्णन ग्रंथों में नहीं मिलता. "तमिल संगम साहित्य" में अवश्य किसी "पिनाई" का वर्णन है, जो कि कृष्ण की अटूट प्रेयसी थीं.

ये भी पढ़ें- दास्तान-ए-महाभारत: द्रौपदी का पहला प्यार कौन था?

कहते हैं "महाभारत" का युद्ध कोई पांच हजार साल पहले लड़ा गया था और द्वारकापुरी 3112 ईसा पूर्व में समुद्र में विलीन हो गई थी. महाभारत के युद्ध और द्वारका नगरी के पुरातात्विलक अवशेष जब-तब मिलते रहते हैं. सिंधु घाटी सभ्यता की मुहरों पर भी कृष्ण के मिथक से संबंधित आकृतियां पाई गई हैं.

हमारे सामने एक "ऐतिहासिक" कृष्ण हैं और दूसरे "पौराणि‍क" कृष्ण, लेकिन इतना तो तय है कि श्रीकृष्ण पिछले दो हजार सालों से भारतीय मानस का अटूट हिस्सा बने हुए हैं.

 पिछले दो हजार सालों से भारतीय मानस का अटूट हिस्सा बने हुए हैं श्रीकृष्ण

"महाभारत" एक रणनीति-कुशल कृष्ण का बखान करती है, "गीता" एक दार्शनिक का तो "भागवत पुराण" एक प्रेमी का. "हरिवंश" एक गोपालक के रूप में उनका वर्णन करता है. राधा उनकी संगिनी हैं, लेकिन बारहवीं सदी में जयदेव द्वारा रचे गए "गीत गोविंद" से पहले तक उनका कोई वर्णन ग्रंथों में नहीं मिलता. "तमिल संगम साहित्य" में अवश्य किसी "पिनाई" का वर्णन है, जो कि कृष्ण की अटूट प्रेयसी थीं.

ये भी पढ़ें- दास्तान-ए-महाभारत: द्रौपदी का पहला प्यार कौन था?

 'गीत गोविंद' से पहले तक राधा का कोई वर्णन ग्रंथों में नहीं मिलता

किंतु कृष्ण को किसी एक परिभाषा में बांधा नहीं जा सकता. मथुरा में वे "कान्हा" हैं, राजस्थान में "श्रीनाथजी", महाराष्ट्र में "विठोबा", पुरी में "जगन्नाथ".

कृष्ण की अकुंठ जीवन-शैली हमें दुविधा में भी डालती रही है. यही कारण है कि पंढरपुर, उडुपी, गुरुवायूर के मंदिरों में कृष्ण तो हैं लेकिन राधा नहीं हैं. जगन्नाथ पुरी में भाई-बहन कृष्ण-बलदेव-सुभद्रा हैं, जबकि उसी मंदिर में "भोग-मंडप", "आनंद-बाज़ार" भी हैं.

ये भी पढ़ें- ‘दही-हांडी’ की राजनीति का धार्मिक रूप

कृष्ण बहुधा हमारे विरोधाभासों के प्रतीक बन जाते हैं और हमारे भीतर कभी रामानुज और मध्व जैसे तपी-संयमी तो कभी वल्लभ और चैतन्य जैसे भक्ति‍योगी को रचते रहते हैं. लेकिन कृष्ण अपने सभी स्वरूपों का समुच्चय हैं. वे अंश नहीं पूर्ण हैं. राम "मर्यादा पुरुषोत्तम" कहलाए, लेकिन "पूर्णावतार" की कीर्ति कृष्ण को इसीलिए मिली है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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