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World Post Day 2021: बॉलीवुड की इन 5 फिल्मों में 'चिट्ठियों' ने निभाई अहम भूमिका!

    • मुकेश कुमार गजेंद्र
    • Updated: 09 अक्टूबर, 2021 05:18 PM
  • 09 अक्टूबर, 2021 05:18 PM
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हर साल 9 अक्टूबर को यूनिवर्सिल पोस्टल यूनियन के स्थापना दिवस पर दुनिया भर में विश्व पोस्ट दिवस भी मनाया जाता है. इसके साथ ही भारत में 9 से 15 अक्टूबर तक राष्ट्रीय डाक सप्ताह भी मनाया जाता है. ऐसे मौके पर आइए हम आपको उन फिल्मों के बारे में बताते हैं, जिनमें 'चिट्ठियों' की अहम भूमिका है.

''चिट्ठी आई है आई है चिट्ठी आई है, बड़े दिनों के बाद, हम बेवतनों को याद, वतन की मिट्टी आई है, चिट्ठी आई है''...संजय दत्त स्टारर फिल्म 'नाम' की ये गजल पंकज उधास ने गाई है, जिसे सुनकर आज भी लोगों की आंखों में बरबस आंसू छलक उठते हैं. गजल की ये पंक्तियां चिट्ठियों के उस संसार से रूबरू कराती है, जो कभी मानव सभ्यता का अहम हिस्सा थीं. मां के प्यार, पिता के दुलार, परिवार की परंपरा और पत्नी का प्रेम लिए, समस्त इंसानी भावनाओं को समेटे, जब ये चिट्ठी किसी सुदूर बैठे इंसान को मिलती, तो उसे ऐसा लगता कि मानो पूरा संसार मिल गया है. वो उसे बार-बार पढ़ता, उसमें छिपे प्यार और एहसास को महसूस करता है.

''ऊपर मेरा नाम लिखा हैं, अंदर ये पैगाम लिखा है; ओ परदेस को जाने वाले, लौट के फिर ना आने वाले; सात समुंदर पार गया तू, हमको ज़िंदा मार गया तू; खून के रिश्ते तोड़ गया तू, आंख में आंसू छोड़ गया तू; कम खाते हैं कम सोते हैं, बहुत ज़्यादा हम रोते हैं''...उसी गजल की आगे कि इन लाइनों को जरा गौर से पढ़िए, आपको एक परिवार की व्यथा-कथा महज चंद लाइनों में समझ में आ जाएगी. ये उस चिट्ठी की ताकत है, जिसे आज हम भूल गए हैं. आने वाली पीढियों के लिए तो चिट्ठी का मतलब महज ई-मेल ही रह जाएगा. कबूतर से संदेश भेजने से लेकर ई-मेल के इस जमाने तक की यात्रा में मानव सभ्यता ने बहुत कुछ पाया तो बहुत खोया भी है.

विश्व पोस्ट दिवस पर उन फिल्मों के बारे में जानिए, जिनमें 'चिट्ठियों' ने भी अहम भूमिका निभाई है.

'चिट्ठियों' की दुनिया बहुत अजीबो-गरीब रही है. पहले जमाने में कबूतर और घोड़े के जरिए संदेश भेजे जाते थे. व्यक्तिगत या सरकारी बातें पहुंचाने का माध्यम या तो कबूतर या फिर घोड़े, हाथी थे. पर एक जमाना आया जब डाकिए होने लगे, चिट्ठियां लिखी जाने लगीं. एक जगह से दूसरी जगह...

''चिट्ठी आई है आई है चिट्ठी आई है, बड़े दिनों के बाद, हम बेवतनों को याद, वतन की मिट्टी आई है, चिट्ठी आई है''...संजय दत्त स्टारर फिल्म 'नाम' की ये गजल पंकज उधास ने गाई है, जिसे सुनकर आज भी लोगों की आंखों में बरबस आंसू छलक उठते हैं. गजल की ये पंक्तियां चिट्ठियों के उस संसार से रूबरू कराती है, जो कभी मानव सभ्यता का अहम हिस्सा थीं. मां के प्यार, पिता के दुलार, परिवार की परंपरा और पत्नी का प्रेम लिए, समस्त इंसानी भावनाओं को समेटे, जब ये चिट्ठी किसी सुदूर बैठे इंसान को मिलती, तो उसे ऐसा लगता कि मानो पूरा संसार मिल गया है. वो उसे बार-बार पढ़ता, उसमें छिपे प्यार और एहसास को महसूस करता है.

''ऊपर मेरा नाम लिखा हैं, अंदर ये पैगाम लिखा है; ओ परदेस को जाने वाले, लौट के फिर ना आने वाले; सात समुंदर पार गया तू, हमको ज़िंदा मार गया तू; खून के रिश्ते तोड़ गया तू, आंख में आंसू छोड़ गया तू; कम खाते हैं कम सोते हैं, बहुत ज़्यादा हम रोते हैं''...उसी गजल की आगे कि इन लाइनों को जरा गौर से पढ़िए, आपको एक परिवार की व्यथा-कथा महज चंद लाइनों में समझ में आ जाएगी. ये उस चिट्ठी की ताकत है, जिसे आज हम भूल गए हैं. आने वाली पीढियों के लिए तो चिट्ठी का मतलब महज ई-मेल ही रह जाएगा. कबूतर से संदेश भेजने से लेकर ई-मेल के इस जमाने तक की यात्रा में मानव सभ्यता ने बहुत कुछ पाया तो बहुत खोया भी है.

विश्व पोस्ट दिवस पर उन फिल्मों के बारे में जानिए, जिनमें 'चिट्ठियों' ने भी अहम भूमिका निभाई है.

'चिट्ठियों' की दुनिया बहुत अजीबो-गरीब रही है. पहले जमाने में कबूतर और घोड़े के जरिए संदेश भेजे जाते थे. व्यक्तिगत या सरकारी बातें पहुंचाने का माध्यम या तो कबूतर या फिर घोड़े, हाथी थे. पर एक जमाना आया जब डाकिए होने लगे, चिट्ठियां लिखी जाने लगीं. एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाई जाने लगीं. इनकी उपयोगिता हमेशा बनी रहेगी क्योंकि हम चिट्ठियों के द्वारा पुराने समय के बारे में जान सकते है. पत्र जो काम कर सकते है, वह संचार के नए साधन नहीं कर सकते. वाट्सअप, मैसेंजर और टेलीग्राम जैसे नए आधुनिक साधनों का इस्तेमाल भले ही बढ़ गया है, लेकिन फिर भी चिट्ठियां अपनी जगह हैं. उनके जैसा संतोष इन साधनों में कहां है.

एक वक्त वो भी था, जब गली में डाकिया किसी के घर का दरवाजा खटखटाकर चिट्ठी देता, तो दूसरे पड़ोसी भी पूछ बैठते, 'भइया क्या हमारी चिट्ठी भी आई है?' क्योंकि अपनों के हाल जानने का एक मात्र माध्यम चिट्ठी ही था. लोग बेसब्री से चिट्ठी का इंतजार करते थे. वैसे देखा जाए तो वो गलियां और वहां रहने वाले लोग अब भी हैं, डाकिए भी हैं और पोस्ट ऑफिस भी है, लेकिन कुछ नहीं है तो वो हैं चिट्ठियां. क्योंकि मोबाइल और इंटरनेट की दुनिया ने चिट्ठियों को गुजरे जमाने की बात बना दिया और उनका चलन लगभग खत्म सा हो गया. आलम ये है कि आज की पीढ़ी से यदि चिट्ठियों का जिक्र किया जाए तो वे हैरान हो जाते हैं.

आज विश्व पोस्ट दिवस (World Post Day 2021) है, जो हर साल 9 अक्टूबर को यूनिवर्सिल पोस्टल यूनियन के स्थापना दिवस पर दुनिया भर में मनाया जाता है. इसके साथ ही अपने देश में 9 से 15 अक्टूबर तक राष्ट्रीय डाक सप्ताह मनाया जाता है. इसका उद्देश्य लोगों में डाक सेवाओं और उनके महत्व के प्रति जागरुकता फैलाना है, जिससे कि लोग इन सेवाओं के कार्यों में लगे लोगों की अहमियत को जान सकें. इस खास दिन पर हम आपको बताने जा रहे हैं, बॉलीवुड की उन फिल्मों के बारे में जिनमें 'चिट्ठियों' ने अहम भूमिका निभाई है. या यूं कहें कि ये सारी फिल्में 'चिट्ठियों' के बगैर अधूरी थीं. कभी पूरी नहीं हो सकती थीं.

आइए जानते हैं, बॉलीवुड की उन 5 फिल्मों के बारे में, जिनमें 'चिट्ठियों' ने निभाई अहम भूमिका...

1. फिल्म- लंच बॉक्स (The Lunch Box)

स्टारकास्ट- इरफान खान, निमरत कौर, नवाजुद्दीन सिद्दीकी और नकुल वैद्य

डायरेक्टर- रितेश बत्रा

फिल्म 'लंच बॉक्स' दो अजनबियों की एक ऐसी अनोखी प्रेम कहानी है, जिसमें एक युवा महिला और रिटायरमेंट की दहलीज पर खड़ा एक शख्स 'लंच बॉक्स' में छिपा कर भेजे जाने वाले 'चिट्ठियों' के जरिए एक दूसरे को जानते हैं और प्यार कर बैठते हैं. इला (निमरत कौर) एक हाउस वाइफ है. उसके पति (नकुल वैद्य) का किसी दूसरी महिला के साथ अवैध संबंध है. इला अपने पति के लिए बेहतरीन खाना बना ऑफिस भेजकर उसका प्यार पाने की कोशिश करती है. दूसरी तरफ साजन फर्नांडीज़ (इरफान ख़ान) सरकारी ऑफिस में काम करते हैं. उनकी पत्नी का निधन हो चुका है. वो अपने ऑफिस में टिफिन सर्विस से खाना मंगवाते हैं. गलती से इला का भेजा टिफिन उनको मिल जाता है. इस तरह दोनों के बीच टिफिन के जरिए प्यार का रोमांचक सफर शुरू होता है. दोनों एक-दूसरे को 'चिट्ठियां' भेजते हैं. इन 'चिट्ठियों' में अपना सुख-दुख बाटंते-बांटते एक-दूसरे से प्यार कर बैठते हैं. इस फिल्म में इरफान खान, निमरत कौर और नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने अपनी दमदार परफॉर्मेंस दी है.

2. फिल्म- बॉर्डर (Border)

स्टारकास्ट- सनी देओल, जैकी श्रॉफ, सुनील शेट्टी, अक्षय खन्ना, पूजा भट्ट, तबु, कुलभूषण खरबंदा और सुदेश बेरी

डायरेक्टर- जेपी दत्ता

''संदेशे आते हैं हमें तड़पाते हैं, तो चिट्ठी आती है वो पूछे जाती है, के घर कब आओगे, के घर कब आओगे, लिखो कब आओगे, के तुम बिन ये घर सूना सूना है''...साल 1997 में रिलीज हुई जेपी दत्ता की वॉर फिल्म बॉडर्र के ये गाना चिट्ठी और संदेश के महत्व को बहुत ही साजिंदगी से रेखांकित करता है. देश की रक्षा के लिए सीमा पर तैनात एक सैनिक के लिए अपने घर-परिवार के बारे में जानने का इकलौता माध्यम चिट्ठी हुआ करती थी. पोस्टकार्ड और अंतर्देशीय पत्रों में लिखे अपनों का हाल जानने के लिए सैनिक और उनके घरवाले हर वक्त उत्साहित रहते थे. सनी देओल और सुनील शेट्टी की इस फिल्म में 'चिट्ठियों' के महत्व को बखूबी बताया गया है. संदेश और 'चिट्ठियों' पर लिखे और गाए गए इस फिल्म के गाने बहुत लोकप्रिय हुए थे. 15 अगस्त हो या 26 जनवरी आज भी ये गाने गलियों में गूंजते हैं.

3. फिल्म- दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (DDLJ)

स्टारकास्ट- शाहरुख़ ख़ान, काजोल, अमरीश पुरी, अनुपम खेर और सतीश शाह

डायरेक्टर- आदित्य चोपड़ा

भारतीय सिने इतिहास की यादगार फिल्मों में से एक दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे के नाम कई सारे रिकॉर्ड हैं. इस फिल्म ने न सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर कई सारे रिकॉर्ड बनाए, बल्कि बतौर कलाकार शाहरुख खान और काजोल को हमेशा के लिए अमर कर दिया. बाऊजी के किरदार में अमरीशपुरी को भला कौन भूल सकता है. फिल्म की कहानी लंदन से पंजाब तक के सफर में कई दिलचस्प मोड़ लेती है, लेकिन आखिरकार जीत प्यार की होती है. लेकिन क्या आपको पता है फिल्म में असली मोड़ तब आता है, जब बाऊजी को अपने हिंदुस्तानी दोस्त अजीत का एक खत मिलता है, जिसमें सिमरन (काजोल) और कुलजीत (परमीत सेठी) की शादी की बात लिखी होती है. इसी के बाद बाऊजी सिमरन को लेकर अपने देश चले आते हैं. उनके पीछे-पीछे राज भी चला आता है. इस तरह राज और सिमरन की प्रेम कहानी अमर हो जाती है.

4. फिल्म- कुछ कुछ होता है (Kuch Kuch Hota Hai)

स्टारकास्ट- शाहरुख खान, काजोल, रानी मुखर्जी और सना सईद

डायरेक्टर- करण जौहर

फिल्म कुछ कुछ होता है एक रोमांटिक इमोशनल लव स्टोरी है, जिसमें एक मां-बेटी के पवित्र प्यार के साथ प्रेमी जोड़े के इश्क को भी दिखाया गया है. यदि आपने ये फिल्म देखी होगी, तो आपको पता होगा कि टीना (रानी मुखर्जी) की मौत के बाद उसकी बेटी अंजलि (सना सईद) को उसके हर जन्मदिन पर उसका एक खत मिलता है, जिसमें मां-बेटी के बीच की बहुत सारी बातें लिखी होती हैं. जरा सोचिए यदि टीना ने वो खत न लिखे होते तो क्या होता? क्या राहुल (शाहरुख खान) और अंजलि (काजोल) फिर कभी मिल पाते? यदि दोनों नहीं मिल पाते, तो क्या फिल्म की कहानी उतनी दिलचस्प हो पाती, जिसके लिए कुछ कुछ होता है को याद किया जाता है.

5. फिल्म- मैंने प्यार किया (Maine Pyaar Kiya)

स्टारकास्ट- सलमान खान, भाग्य श्री और आलोकनाथ

डायरेक्टर- सूरज बड़जात्या

राजश्री प्रोडक्शन्स के बैनर तले बनी फिल्म मैंने प्यार किया का निर्देशन सूरज बड़जात्या ने किया था, जो साल 1989 में रिलीज हुई थी. इस फिल्म के जरिए सुपरस्टार सलमान खान ने अपना बॉलीवुड डेब्यू किया था. इस रोमांटिंक प्रेम कहानी में सलमान और भागश्री लीड रोल में थे. दोनों के बीच प्यार को बहुत ही अनोखे अंदाज में दिखाया गया था, जिनके बीच कबूतर के जरिए बातचीत हुआ करती थी. पुराने जमाने जैसा कबूतर उनके बीच संदेश वाहक का काम करता है. उनके प्रेम पत्र एक-दूसरे के पास पहुंचाता है. इस फिल्म के जरिए संदेश के महत्व को बहुत ही अनोखे तरीके से समझाया गया है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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