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जब सब तरफ बुराई है, हर ओर पाप है तो बॉलीवुड का ही बॉयकॉट क्यों?

    • Ahanna Archana Pandey
    • Updated: 13 जनवरी, 2023 02:11 PM
  • 13 जनवरी, 2023 02:11 PM
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दौर बॉयकॉट बॉलीवुड का है.लेकिन कोई यह क्यों नहीं सोचता कि एक फिल्म में कितने लोगों की मेहनत, पैसे और धैर्य लगा होता है. ऐसे में बायकॉट से कितने लोगों की जिदंगियां बर्बाद होती होंगी. बॉलीवुड एक परिवार है और परिवार में अच्छे, बुरे दोनों प्रकार के लोग होते हैं.

बॉयकॉट शब्द लगता है जैसे एक ट्रेंड सा बन गया है. एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद, बॉलीवुड की फिल्में रिलीज होने से पहले ही बॉयकॉट मुहिम के हत्थे चढ़ जाती हैं. कभी धर्म के नाम पर, तो कभी उल्लंघन के नाम पर अधिकांश फिल्मों को बॉयकॉट का निशाना बना दिया जाता है. ऐसे में सवाल यह है कि बॉलीवुड का ही बॉयकॉट क्यों ? क्योंकि वहां कुछ ऐसे लोग हैं जो नशे के आदि हैं ? या कुछ ऐसे जो अश्लील हैं ? या फिर कुछ ऐसे जो अपनी पावर का गलत इस्तेमाल कर गलत कामों में शामिल हैं ? गलत चीजों का विरोध करना अच्छी बात है. गलत चीजों का बॉयकॉट होना ही चाहिए. लेकिन बॉलीवुड में ही क्यों हमारे समाज में भी बहुत से गलत लोग हैं. जिनकी सोच गलत है जिनका नजरिया गलत है. आखिर हमारे समाज में आपके अंदर बैठे शैतानों का बॉयकॉट क्यों नहीं?

वो तमाम लोग जो बॉयकॉट बॉलीवुड को हलके में ले रहे हैं उन्हें गंभीर हो जाना चाहिए

आप में से कितने ही लोग शराब व सिगरेट के आदि हैं. कितने ही लोग हैं जो गलत धंधों में शामिल हैं. कितने ही युवक, युवतियां अश्लील हैं. और कितने ही अपने स्वार्थ के लिए दूसरों का इस्तेमाल करते हैं और धोखा देते हैं. आपके अंदर इतनी बुराईयां होने के बावजूद आपको अपनी बुराईयों का बॉयकॉट नहीं करना है. क्योंकि आप सब को तो बॉलीवुड का बॉयकॉट करना है.

बात दर असल यह है कि हमारा समाज तो मनोरंजन का आदि है. यदि दो पड़ोसी आपस में झगड़ा कर रहे हों तो वहां भी हमारा समाज मनोरंजन के लिए आग में घी डाल देता है. जिससे झगड़े की आंच तेज हो सके और उससे हाथ सेंका जा सके. तो फिर बॉलीवुड तो मनोरंजन के लिए ही बना है.

अब फिल्मों से मनोरंजन तो मिलता ही है तो बॉयकॉट के ट्रेंड से भी लोगों को मनोरंजन मिल रहा है. तभी तो लोग अपने अंदर बैठीबुराईयों को बॉयकॉट करने के बजाय फिल्मों का...

बॉयकॉट शब्द लगता है जैसे एक ट्रेंड सा बन गया है. एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद, बॉलीवुड की फिल्में रिलीज होने से पहले ही बॉयकॉट मुहिम के हत्थे चढ़ जाती हैं. कभी धर्म के नाम पर, तो कभी उल्लंघन के नाम पर अधिकांश फिल्मों को बॉयकॉट का निशाना बना दिया जाता है. ऐसे में सवाल यह है कि बॉलीवुड का ही बॉयकॉट क्यों ? क्योंकि वहां कुछ ऐसे लोग हैं जो नशे के आदि हैं ? या कुछ ऐसे जो अश्लील हैं ? या फिर कुछ ऐसे जो अपनी पावर का गलत इस्तेमाल कर गलत कामों में शामिल हैं ? गलत चीजों का विरोध करना अच्छी बात है. गलत चीजों का बॉयकॉट होना ही चाहिए. लेकिन बॉलीवुड में ही क्यों हमारे समाज में भी बहुत से गलत लोग हैं. जिनकी सोच गलत है जिनका नजरिया गलत है. आखिर हमारे समाज में आपके अंदर बैठे शैतानों का बॉयकॉट क्यों नहीं?

वो तमाम लोग जो बॉयकॉट बॉलीवुड को हलके में ले रहे हैं उन्हें गंभीर हो जाना चाहिए

आप में से कितने ही लोग शराब व सिगरेट के आदि हैं. कितने ही लोग हैं जो गलत धंधों में शामिल हैं. कितने ही युवक, युवतियां अश्लील हैं. और कितने ही अपने स्वार्थ के लिए दूसरों का इस्तेमाल करते हैं और धोखा देते हैं. आपके अंदर इतनी बुराईयां होने के बावजूद आपको अपनी बुराईयों का बॉयकॉट नहीं करना है. क्योंकि आप सब को तो बॉलीवुड का बॉयकॉट करना है.

बात दर असल यह है कि हमारा समाज तो मनोरंजन का आदि है. यदि दो पड़ोसी आपस में झगड़ा कर रहे हों तो वहां भी हमारा समाज मनोरंजन के लिए आग में घी डाल देता है. जिससे झगड़े की आंच तेज हो सके और उससे हाथ सेंका जा सके. तो फिर बॉलीवुड तो मनोरंजन के लिए ही बना है.

अब फिल्मों से मनोरंजन तो मिलता ही है तो बॉयकॉट के ट्रेंड से भी लोगों को मनोरंजन मिल रहा है. तभी तो लोग अपने अंदर बैठीबुराईयों को बॉयकॉट करने के बजाय फिल्मों का बायकॉट करने में लगे हैं.

लेकिन कोई यह क्यों नहीं सोचता कि एक फिल्म में कितने लोगों की मेहनत, पैसे और धैर्य लगा होता है. ऐसे में बायकॉट से कितने लोगों की जिदंगियां बर्बाद होती होंगी. बॉलीवुड एक परिवार है और परिवार में अच्छे, बुरे दोनों प्रकार के लोग होते हैं .

तो एक का दंड पूरे परिवार को क्यों दिया जाए. भारत के कानून में भी दोषी के परिवार को सजा देने का प्रावधान नहीं है. लेकिन लोगों ने तो भारत के कानून को भी पछाड़ दिया है. लोगों को यह सोचना चाहिए कि आप जिसका बॉयकॉट कर रहे हैं, उस पर किसी की जिदंगी व करियर दांव पर लगा है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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