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भोजपुरी फ़िल्मों और गानों में कैसे शुरू हुआ अश्लीलता का तड़का लगाने का खेल, जानिए...

    • ओम प्रकाश धीरज
    • Updated: 19 अगस्त, 2020 10:15 PM
  • 19 अगस्त, 2020 08:16 PM
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भोजपुरी फ़िल्मों और गानों में (Vulgarity in ‌Bhojpuri Film and Songs) अश्लीलता, फूहड़ता और एक्ट्रेस को सेक्स सिंबल के तौर पर पेश करने का चलन कब शुरू हुआ, इस पर लंबे समय से बहस चल रही है. जानें कब और कैसे भोजपुरी सिनेमा का स्वरूप बदला...

इंटरनेट और स्मार्टफोन के जमाने में भले पवन सिंह (Pawan Singh), रवि किशन (Ravi Kishan), दिनेश लाल यादव निरहुआ (Dinesh Lal Yadav Nirahua), रितेश पांडे (Ritesh Pandey), खेसारी लाल यादव (Khesari Lal Yadav) और अरविंद अकेला कल्लु (Arvind Singh Akela Kallu) समेत अन्य भोजपुरी स्टार्स के गानों को यूट्यूब पर लाखों-करोड़ों व्यूज मिले हों, लेकिन ये गाने हेडफोन लगाकर ही सुनने लायक होते हैं और इन स्टार्स की फ़िल्में अकेले ही देखने लायक होती हैं. आप अपनी फैमिली के साथ भोजपुरी गाने सुनने या फ़िल्में देखने से बचने की कोशिश करते होंगे, क्योंकि आपको ऐसे-ऐसे डायलॉग और गाने सुनने को मिलेंगे कि आपको हैरानी होगी. भोजपुरी फ़िल्मों या गानों का जब जिक्र छिड़ता है तो लोगों के दिमाग में सबसे पहले यही आता है कि भोजपुरी फ़िल्मों या गानों में कितनी अश्लीलता और फूहड़ता होती है. साथ ही डबल मीनिंग डायलॉग्स और गीत ऐसे कि लोग अपनी फैमिली के साथ भोजपुरी फ़िल्में और गाने तो देख ही नहीं सकते.

ये भोजपुरी सिनेमा की हकीकत है और इसका स्वरूप कॉमर्शियलाइजेशन के दौर में और बिगड़ता ही जा रहा है. कुल मिलाकर भोजपुरी सिनेमा और गानों को सॉफ्ट पॉर्न समझा जाने लगा है, जिसमें मांसल हीरोइनों को दिखाकर लाखों-करोड़ों दर्शकों की इच्छाएं शांत की जाती हैं. बिहार, यूपी, झारखंड, पश्चिम बंगाल, गुजरात, मध्य प्रदेश और मुंबई समेत मॉरीशस जैसे देशों में भी भोजपुरी सिनेमा और गानों के चाहने वाले वाले करोड़ों लोग हैं. एक गौरवशाली संस्कृति के प्रतीक के रूप में जिस भोजपुरी भाषा में फ़िल्म बनाने की भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने लेखक और निर्देशक नाजिर हुसैन से सिफारिश की थी और साल 1963 में ‘गंगा मैया तोहे पीयरी चढ़ईबो’ नाम से सुपरहिट फिल्म बनी थी, उस भोजपुरी सिनेमा इंडस्ट्री का स्वरूप अगले 50 साल में इतना विकृत हो चुका है कि यह सिनेमा के नाम पर अश्लीलता परोसने का माध्यम हो गया है.

बीते 20 वर्षों में भोजपुरी सिनेमा इंडस्ट्री ने तेजी से विकास किया है और कई राज्यों में पैर...

इंटरनेट और स्मार्टफोन के जमाने में भले पवन सिंह (Pawan Singh), रवि किशन (Ravi Kishan), दिनेश लाल यादव निरहुआ (Dinesh Lal Yadav Nirahua), रितेश पांडे (Ritesh Pandey), खेसारी लाल यादव (Khesari Lal Yadav) और अरविंद अकेला कल्लु (Arvind Singh Akela Kallu) समेत अन्य भोजपुरी स्टार्स के गानों को यूट्यूब पर लाखों-करोड़ों व्यूज मिले हों, लेकिन ये गाने हेडफोन लगाकर ही सुनने लायक होते हैं और इन स्टार्स की फ़िल्में अकेले ही देखने लायक होती हैं. आप अपनी फैमिली के साथ भोजपुरी गाने सुनने या फ़िल्में देखने से बचने की कोशिश करते होंगे, क्योंकि आपको ऐसे-ऐसे डायलॉग और गाने सुनने को मिलेंगे कि आपको हैरानी होगी. भोजपुरी फ़िल्मों या गानों का जब जिक्र छिड़ता है तो लोगों के दिमाग में सबसे पहले यही आता है कि भोजपुरी फ़िल्मों या गानों में कितनी अश्लीलता और फूहड़ता होती है. साथ ही डबल मीनिंग डायलॉग्स और गीत ऐसे कि लोग अपनी फैमिली के साथ भोजपुरी फ़िल्में और गाने तो देख ही नहीं सकते.

ये भोजपुरी सिनेमा की हकीकत है और इसका स्वरूप कॉमर्शियलाइजेशन के दौर में और बिगड़ता ही जा रहा है. कुल मिलाकर भोजपुरी सिनेमा और गानों को सॉफ्ट पॉर्न समझा जाने लगा है, जिसमें मांसल हीरोइनों को दिखाकर लाखों-करोड़ों दर्शकों की इच्छाएं शांत की जाती हैं. बिहार, यूपी, झारखंड, पश्चिम बंगाल, गुजरात, मध्य प्रदेश और मुंबई समेत मॉरीशस जैसे देशों में भी भोजपुरी सिनेमा और गानों के चाहने वाले वाले करोड़ों लोग हैं. एक गौरवशाली संस्कृति के प्रतीक के रूप में जिस भोजपुरी भाषा में फ़िल्म बनाने की भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने लेखक और निर्देशक नाजिर हुसैन से सिफारिश की थी और साल 1963 में ‘गंगा मैया तोहे पीयरी चढ़ईबो’ नाम से सुपरहिट फिल्म बनी थी, उस भोजपुरी सिनेमा इंडस्ट्री का स्वरूप अगले 50 साल में इतना विकृत हो चुका है कि यह सिनेमा के नाम पर अश्लीलता परोसने का माध्यम हो गया है.

बीते 20 वर्षों में भोजपुरी सिनेमा इंडस्ट्री ने तेजी से विकास किया है और कई राज्यों में पैर पसारे हैं. लेकिन फ़िल्मों और गानों की क्वॉलिटी उतनी ही खराब हुई है. भोजपुरी सिनेमा इंडस्ट्री को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है गानों ने. छोटे-बड़े सभी एक्टर और सिंगर ने अपने म्यूजिक एल्बम में डबल मीनिंग गाने गाकर और अश्लील डांस कर पॉप्युलैरिटी तो हासिल कर ली, लेकिन भोजपुरी सिनेमा इंडस्ट्री की छवि खराब कर दी.

अश्लीलता सफलता का पैमाना?

सवाल ये उठता है कि क्या बीते 15 वर्षों में ही भोजपुरी फ़िल्मों और गानों में अश्लीलता, डबल मीनिंग बातें या फूहड़ता आई है या भोजपुरी सिनेम का इतिहास ही ऐसा है. भोजपुरी सिनेमा के महानायक और 300 से ज्यादा भोजपुरी फ़िल्मों में एक्टिंग कर चुके कुणाल ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि भोजपुरी फ़िल्मों को अश्लीलता का प्रतीक समझे जाने के पीछे कई कारण हैं, एक तो साल 2003 के बाद भोजपुरी फ़िल्मों की सफलता ने कई छोटे और बी-सी ग्रेड फिल्म निर्माताओं को अपनी ओर आकर्षित किया. निर्माताओं को लगा कि चूंकि भोजपुरी फ़िल्में कम बजट में बन जाती है और इसकी सफलता की गारंटी होती है, ऐसे में क्यों न भोजपुरी फ़िल्में बनाकर ही कमाई की जाए. ऐसी स्थिति में उन्होंने भोजपुरी संस्कृति को समझे बगैर बी और सी ग्रेड की हिंदी फ़िल्मों के फॉर्म्युले पर भोजपुरी फ़िल्में बनानी शुरू कीं, जिसमें महिलाओं को सेक्स सिंबल के रूप में दिखाया गया और उनसे खूब अंग प्रदर्शन कराए गए. साथ ही फ़िल्मों को हिट कराने में द्विअर्थी संवादों का खूब सहारा लिया गया, जिससे भोजपुरी सिनेमा का स्तर काफी गिर गया. बाकी कसर छोटू छलिया, गुड्डू रंगीला समेत अन्य गायकों ने पूरी कर दी और इतने घटिया-घटिया गाने और म्यूजिक वीडियो बनाए कि अच्छे लोगों की नजरों में भोजपुरी सिनेमा की इज्जत कम होने लगी. बिना सेंसर के अश्लील प्राइवेट भोजपुरी एल्बमों ने भी प्रोड्यूसर्स को अपनी ओर आकर्षित किया और इसका नतीजा ये हुआ कि अश्लील गानें और डबल मीनिंग डायलॉग भोजपुरी फ़िल्मों की सफलता की गारंटी मानी जाने लगी. कुणाल ने साफ तौर पर कहा कि भोजपुरी सिनेमा को अश्लीलता का प्रतीक बनाने में प्राइवेट एल्बमों का सबसे ज्यादा हाथ है. छोटे-बड़े कलाकार भी जल्दी फेमस होने के चक्कर में अश्लील गाने करने लगे.

गाने ऐसे-ऐसे कि आप सोच नहीं सकते

ऐसा नहीं है कि पहले के लोकगीतों में अश्लीलता नहीं दिखती थी, लेकिन वहां आंशिक अश्लीलता थी, जो गांव में भाभी-देवर या जीजा-साली समेत अन्य रिश्तों में होने वाले मजाक को गीतों के माध्यम से प्रस्तुत करते थे. वर्तमान समय की तरह पहले नायिकाओं से इतने अंग प्रदर्शन नहीं कराए जाते थे और न ही गीतों में द्विअर्थी और अश्लील बातें कही जाती थीं. साल 2000 के बाद भोजपुरी गायकों ने अति कर दी और ऐसे-ऐसे गाने बनाए, जिसका जिक्र करने में भी शर्म आती है. उदाहरण के तौर पर कुछ गाने आपकी नजर कर रहा हूं- जा झार के, हमरा हौ चाही, लगाय दीहो चोलिया के हूक राजा जी, राते दीया बुताके पिया क्या-क्या किया, पिया बबुआ के बिया अब पेट में डाल दी, चोली में घुस गेला चूहा, हिलेला हिलेला गोरी जोबनवा, ललैया चूसो राजा जी, लहंगा उठी त गोली चल जाई, लहंगा में चिकन सामान बा, मरद अभी बच्चा बा, होली में चोली के हुक ना खुली, डाले द भितरिया ए जान, सेनेटाइजर सामान पर लगाके अइहे रे, लहंगा में कोरोना, तनी सा जींस ढीला करो समेत सैकड़ों गाने.

भोजपुरी सिनेमा की शक्ल बिगाड़ दी गई

एक जमाना था, जब अमिताभ बच्चन, अजय देवगन और मिथुन चक्रवर्ती जैसे बॉलीवुड स्टार्स भी भोजपुरी फ़िल्मों में नजर आए थे, लेकिन समय के साथ भोजपुरी सिनेमा इंडस्ट्री में इतनी अश्लीलता फैल गई कि अब हिंदी सिनेमा के बड़े स्टार्स भोजपुरी फ़िल्म करने से कतराते हैं. पहले जमाने की भोजपुरी फ़िल्मों में गांव, सामाजिक विषमता, लैंगिक भेदभाव और लोगों से जुड़ी समस्याओं को दिखाया जाता था, जो सामाजिक और भावनात्मक होने के साथ ही लोगों के दिलों को छूती थी, लेकिन अब तो ज्यादातर फ़िल्मों में अश्लीलता, फूहड़पन का बोलबाला रहता है, जिसका झंडा उठाए खेसारी लाल यादव, रवि किशन, प्रदीप पांडे, रितेश पांडे, खेसारी लाल यादव, दिनेश लाल यादव निरहुआ, पवन सिंह, रवि किशन और अरविंद अकेला ‘कल्लू’ जैसे भोजपुरी स्टार्स अपनी दुकान चला रहे हैं. आलम ये है कि 100 भोजपुरी गानों में 90 से ज्यादा अश्लील ही होते हैं और आम्रपाली दुबे, रानी चटर्जी, पूनम दुबे, मोनालिसा, काजल राधवानी, अंजना सिंह, संभावना सेठ, अनारा गुप्ता, पाखी हेगड़े समेत अन्य पॉप्युलर भोजपुरी एक्ट्रेस भी अंग प्रदर्शन से नहीं हिचकतीं, क्योंकि भोजपुरी सिनेमा इंडस्ट्री की इमेज ही ऐसी बन गई है.

2000 करोड़ रुपये की भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री

बिहार, यूपी समेत कई राज्यों में फैली भोजपुरी सिनेमा इंडस्ट्री लगभग 2000 करोड़ रुपये की है, जिसमें हर साल 60 से ज्यादा फ़िल्में बनती है. इतनी बड़ी फ़िल्म इंडस्ट्री होने के बावजूद यह अश्लीलता और डबल मीनिंग डायलॉग और गानों के बल पर सफल होने की कोशिश करती दिखती है. साल 2000 के बाद जब भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री दोबारा जिंदा होने की कोशिश कर रही थी, तब मनोज तिवारी अपने चरम पर थे. मनोज तिवारी के गाने और फ़िल्में दोनों सुपरहिट होती थीं और तब तक भोजपुरी फ़िल्मों में उतनी अश्लीलता नहीं दिखती थी. हालांकि, सुनील छैला बिहारी, गुड्डू रंगीला, छोटू छलिया जैसे भोजपुरी सिंगर्स के अश्लील गाने पान दुकानों और चौक चौराहों पर जरूर बजते रहते थे. साल 2004 में मनोज तिवारी की फ़िल्म ससुरा बड़ा पईसावाला के बाद तो भोजपुरी सिनेमा इंडस्ट्री की तकदीर ही बदल गई. उस समय रवि किशन भी भोजपुरी सिनेमा के पॉप्युलर एक्टर थे. साल 2004 के बाद जब सीडी का दौर शुरू हुआ तो म्यूजिक एल्बम भी बनने लगे और फिर भोजपुरी गानों में अश्लीलता दिखने लगी, जहां अर्ध नग्न हीरोइन अजीबोगरीब तरीके से अंग प्रदर्शन करतीं और डबल मीनिंग गानों पर नाचती नजर आने लगीं. बाद में दिनेश लाल यादव निरहुआ, पवन सिंह, खेसारी लाल यादव के आने के बाद तो जैसे भोजपुरी सिनेमा का स्वरूप ही बदल गया और गानों के साथ ही फ़िल्मों में भी खूब अश्लीलता दिखने लगी. साल 2010 के बाद जब इंटरनेट तक लोगों की पहुंच बढ़ी तो फिर इसका स्वरूप और बदल गया.






इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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