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ऐसा प्रॉमिस, जो कभी पूरा न हो! सुन तो लीजिये क्या कहते हैं फिल्मी गीत

    • मनीष जैसल
    • Updated: 14 फरवरी, 2018 05:49 PM
  • 14 फरवरी, 2018 05:49 PM
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प्रॉमिस की बातें केवल वैलेंटाइन वीक तक सीमित नहीं हैं. यदि बॉलीवुड को देखें तो मिलता है कि प्रॉमिस करना लम्बे समय से फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा रहा है.

चॉकलेट डे (9 फरवरी) वाले दिन रिलीज हुई फ़िल्म पैडमैन को देखने पहुंचा तो उसकी शुरुआत ही प्रॉमिस डे वाले कंटेन्ट से होती दिखी. नायक, नायिका से एक गीत के माध्यम से प्रॉमिस कर रहा है. गाने के बोल आज से तेरी, जिसे गाया है अरिजीत सिंह ने, कौसर मुनीर ने इसे लिखा और संगीत दिया अमित त्रिवेदी ने. गीत के दृश्य में नायक नायिका की शादी हो रही है और वह 7 वचनों के बहाने वह कुछ कह रहा है, जिसे हम सभी को ध्यान से सुन लेने की जरूरत है. स्त्री मुद्दे पर बनी फ़िल्म में इस गीत का सामाजिक संदर्भ क्या है इसे देखना हमें आज प्रासंगिक लगता है. और सिनेमा में गीतों का फ़िल्म के साथ कितना जुड़ाव होता रहा है यह भी देखने की जरूरत है.

फिल्म पैडमैन के टाइटल ट्रैक में भी प्रॉमिस डे की झलक दिखती है

आइये पहले गीत सुने फिर आगे कुछ और बातें की जाएं.

पसंद आया? क्यों नहीं. एक नायक अपनी प्रेमिका को जब प्रॉमिस करे, उसके दुख दर्द, गली चौबारे, बिजली बिल, पिन कोड का नंबर, सब अपना बनाते हुए उसे सर्दी में आम, गर्मी में मूंगफली, बारिश में धूप, चांद-तारे सूरज सब झटकते हुए प्रेमिका की गोद में रख देने का वचन करने लगे तो समझिए स्त्री विमर्श के मुद्दे पर बनी फ़िल्म में मसाला का लेप लगा दिया जा चुका है. वैसे तो फ़िल्म का सामाजिक संदर्भ आप सभी को पता है लेकिन फिल्मों के गीत का फ़िल्म की कहानी से संदर्भ कितना बचा रह जाता है यह एक निर्देशक के लिए बड़ी चुनौती होती है.

एक समय था जब फिल्मों के गीत उसकी कहानी के साथ मेल खाते हुए चलते थे. उन गीतों के सहारे फ़िल्म की कहानी को आगे बढ़ाते हुए निर्देशक काफी मेहनत करते थे. के आसिफ की मुगले आजम का एक गीत उसकी कहानी को आगे बढ़ता हुआ हमें आज भी दिखता है. सुनिए पूरा गीत और लीरिक्स पर ध्यान देते हुए फ़िल्म की कहानी को समझिए.

चॉकलेट डे (9 फरवरी) वाले दिन रिलीज हुई फ़िल्म पैडमैन को देखने पहुंचा तो उसकी शुरुआत ही प्रॉमिस डे वाले कंटेन्ट से होती दिखी. नायक, नायिका से एक गीत के माध्यम से प्रॉमिस कर रहा है. गाने के बोल आज से तेरी, जिसे गाया है अरिजीत सिंह ने, कौसर मुनीर ने इसे लिखा और संगीत दिया अमित त्रिवेदी ने. गीत के दृश्य में नायक नायिका की शादी हो रही है और वह 7 वचनों के बहाने वह कुछ कह रहा है, जिसे हम सभी को ध्यान से सुन लेने की जरूरत है. स्त्री मुद्दे पर बनी फ़िल्म में इस गीत का सामाजिक संदर्भ क्या है इसे देखना हमें आज प्रासंगिक लगता है. और सिनेमा में गीतों का फ़िल्म के साथ कितना जुड़ाव होता रहा है यह भी देखने की जरूरत है.

फिल्म पैडमैन के टाइटल ट्रैक में भी प्रॉमिस डे की झलक दिखती है

आइये पहले गीत सुने फिर आगे कुछ और बातें की जाएं.

पसंद आया? क्यों नहीं. एक नायक अपनी प्रेमिका को जब प्रॉमिस करे, उसके दुख दर्द, गली चौबारे, बिजली बिल, पिन कोड का नंबर, सब अपना बनाते हुए उसे सर्दी में आम, गर्मी में मूंगफली, बारिश में धूप, चांद-तारे सूरज सब झटकते हुए प्रेमिका की गोद में रख देने का वचन करने लगे तो समझिए स्त्री विमर्श के मुद्दे पर बनी फ़िल्म में मसाला का लेप लगा दिया जा चुका है. वैसे तो फ़िल्म का सामाजिक संदर्भ आप सभी को पता है लेकिन फिल्मों के गीत का फ़िल्म की कहानी से संदर्भ कितना बचा रह जाता है यह एक निर्देशक के लिए बड़ी चुनौती होती है.

एक समय था जब फिल्मों के गीत उसकी कहानी के साथ मेल खाते हुए चलते थे. उन गीतों के सहारे फ़िल्म की कहानी को आगे बढ़ाते हुए निर्देशक काफी मेहनत करते थे. के आसिफ की मुगले आजम का एक गीत उसकी कहानी को आगे बढ़ता हुआ हमें आज भी दिखता है. सुनिए पूरा गीत और लीरिक्स पर ध्यान देते हुए फ़िल्म की कहानी को समझिए.

फिल्मों में भी वादे करना कोई आज की बात नहीं है

गीत के दौरान सभी पात्रों के भाव भंगिमाओं पर नज़र रखते हुए फ़िल्म की कहानी का आपसी जुड़ाव भी आसानी से समझा जा सकता है. गीत की एक-एक लाइन से फ़िल्म की कहानी को आगे बढ़ते हुए देख सकते हैं. मधुबाला यह कहते हुए कि “पर्दा नहीं जब कोई खुदा से तो अपनों से पर्दा करना क्या” के बाद पृथ्वीराज कपूर की आंखें नीची हो जाती हैं. पूरी फ़िल्म को देखने वाले इस दृश्य को आसानी से समझ सकेंगे.

पैडमैन के उपरोक्त गीत में जिस तरह के प्रॉमिस किए गए हैं उसे पूरा करने में नायक को कई जन्म और लेने पड़ सकते हैं. ऐसा वो खुद भी जानते हैं. लेकिन सामाजिक संदर्भ वाली फिल्मों के बहाने मसाला पेश कर निर्देशक निर्माता आखिर अपने दर्शकों में क्या परोसना चाहते हैं? यह भी बड़े सवाल मौजूदा संदर्भ में उठने चाहिए. बौद्धिकता के सहारे आज जिस पैडमैन को आम जनमानस में बेचा जा रहा हैं उसी में आप बेतुका लीरिक्स पेश करते हुए कहीं से भी सफल होते नहीं दिखते. पैडमैन से पहले बन चुकी इसी मुद्दे पर अभिषेक सक्सेना की फुल्लू का यहां जिक्र इसलिए भी जरूरी हैं कि ताकि आपको पता चले कि हिन्दी सिनेमा में गीतों का अपना समाजशास्त्र रहा है. उसे यूं ही कही भी लगा देने भर से काम नहीं चलता.

फ़िल्म फुल्लू इस संदर्भ की एक बेहतरीन फ़िल्म है जिस पर अलग से चर्चा की जा सकती है. फिलहाल इस फ़िल्म के एक गीत से उसकी कहानी के बढ़ते रूप को समझ लेते है. फिलहाल पूरे गीत को यहाँ सुनिए और जानिए कैसे मन मतंगा फुल्लू अपने गाँव में जीवन यापन करता है. फ़िल्म का यह टाइटल ट्रैक है और फ़िल्म की जान भी.

सीधे तौर पर कहा जा सकता है कि फिल्मों के लिए लिखे गीतों में उसकी कहानी से सीधे जुड़ाव भले ही न हो किन्तु उसमें कहे गए संदेश का सामाजिक संदर्भ भी तो कहीं न कहीं पेश किया ही जाना चाहिए.  जब आप खुद एक सामाजिक विषय पर फ़िल्म बना रहे होते है तो निर्माता निर्देशक पर यह चुनौती और भी प्रखर होती हैं. फिलहाल प्रोमिस डे मना चुके लोगों से निवेदन है कि बीते दिनों आपके प्रियवर ने  जो भी प्रोमिस किया उसे एक बार सही से सुन तो ले.  उसका सामाजिक संदर्भ भी खोज लें... हमने पैडमैन वाले इस गीत से खोज लिया अब आप भी अन्य गीतों में खोजिए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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