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ऊंचाई ही नहीं, 1964 में राजश्री ने दोस्ती के रूप में भी बिना स्टार्स के बनाई थी एक भावुक कहानी!

    • आईचौक
    • Updated: 13 नवम्बर, 2022 04:49 PM
  • 13 नवम्बर, 2022 04:49 PM
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ऊंचाई से कई-कई साल पहले राजश्री प्रोडक्शन ने प्यार और दोस्ती को लेकर एक म्यूजिकल ब्लॉकबस्टर बनाई थी. इस फिल्म ने तब ना सिर्फ दर्शकों का मनोरंजन किया बल्कि कमाई के ढेरों कीर्तिमान बनाए और ना जाने कितने अवॉर्ड्स हासिल किए.

प्यार और भावुकता में डूबी चार दोस्तों की कहानी राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म ऊंचाई चर्चा में है. फिल्म में अमिताभ बच्चन, अनुपम खेर, बोमन ईरानी और डैनी ने दोस्तों की भूमिकाएं निभाई हैं. राजश्री बैनर की पहचान घरेलू और मूल्य आधारित फ़िल्में बनाने की रही है. उन्होंने अपनी इसी पहचान में सफलता के परचम लहराए हैं. वैसे चार बूढ़े दोस्तों की कहानी ऊंचाई से पहले भी राजश्री ने दो बच्चों की एक भावुक कहानी को परदे पर दिखाया था जिसे तब बेशुमार प्यार मिला था. एक स्टार विहीन फिल्म की कामयाबी बेमिसाल है. दो बाल कलाकारों की मुख्य भूमिका से सजी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म ने उस जमाने में टिकट खिड़की पर करीब दो करोड़ से ज्यादा का कारोबार किया था. यह फिल्म जिस साल रिलीज हुई थी, उस साल सबसे ज्यादा कमाई करने वाली टॉप तीन फिल्मों में शुमार थी. इसे ना जाने कितने अवॉर्ड भी मिले थे.

फिल्म थी- दोस्ती. इसका निर्देशन सत्येन बोस ने किया था. और यह आई थी साल- 1964 में. तब ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों का ज़माना था और यह फिल्म भी श्वेत श्याम ही थी. फिल्म में कोई कलाकार ऐसा नहीं था जिसे स्टार कहा जाए. और टिकट खिड़की पर दो करोड़ की कमाई ब्लॉकबस्टर थी. वह ज़माना ही अलग था. तब स्टारडम के मायने अलग थे. फ़िल्में अपने कॉन्टेंट और गीत संगीत की वजह से हिट होती थीं. सत्येन बोस के निर्देशन में बनी दोस्ती में सबकुछ था. प्यार, भावना, रिश्ते, विवशता, अमीरी, गरीबी, सुर और संगीत. यही वजह है कि जब यह फिल्म आई- इसके जादू से कोई बच नहीं पाया. यह फिल्म उस वक्त बहुत लंबे वक्त तक सिनेमाघरों में चली थी. भावना का ज्वार ऐसा कि शायद ही इसे देखने वाला कोई दर्शक जी भरकर रोया ना हो.

दोस्ती का सीन. फोटो राजश्री यूट्यूब.

दो दोस्तों की कहानी जिसने दर्शकों को हिलाकर रख दिया था

असल में दोस्ती...

प्यार और भावुकता में डूबी चार दोस्तों की कहानी राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म ऊंचाई चर्चा में है. फिल्म में अमिताभ बच्चन, अनुपम खेर, बोमन ईरानी और डैनी ने दोस्तों की भूमिकाएं निभाई हैं. राजश्री बैनर की पहचान घरेलू और मूल्य आधारित फ़िल्में बनाने की रही है. उन्होंने अपनी इसी पहचान में सफलता के परचम लहराए हैं. वैसे चार बूढ़े दोस्तों की कहानी ऊंचाई से पहले भी राजश्री ने दो बच्चों की एक भावुक कहानी को परदे पर दिखाया था जिसे तब बेशुमार प्यार मिला था. एक स्टार विहीन फिल्म की कामयाबी बेमिसाल है. दो बाल कलाकारों की मुख्य भूमिका से सजी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म ने उस जमाने में टिकट खिड़की पर करीब दो करोड़ से ज्यादा का कारोबार किया था. यह फिल्म जिस साल रिलीज हुई थी, उस साल सबसे ज्यादा कमाई करने वाली टॉप तीन फिल्मों में शुमार थी. इसे ना जाने कितने अवॉर्ड भी मिले थे.

फिल्म थी- दोस्ती. इसका निर्देशन सत्येन बोस ने किया था. और यह आई थी साल- 1964 में. तब ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों का ज़माना था और यह फिल्म भी श्वेत श्याम ही थी. फिल्म में कोई कलाकार ऐसा नहीं था जिसे स्टार कहा जाए. और टिकट खिड़की पर दो करोड़ की कमाई ब्लॉकबस्टर थी. वह ज़माना ही अलग था. तब स्टारडम के मायने अलग थे. फ़िल्में अपने कॉन्टेंट और गीत संगीत की वजह से हिट होती थीं. सत्येन बोस के निर्देशन में बनी दोस्ती में सबकुछ था. प्यार, भावना, रिश्ते, विवशता, अमीरी, गरीबी, सुर और संगीत. यही वजह है कि जब यह फिल्म आई- इसके जादू से कोई बच नहीं पाया. यह फिल्म उस वक्त बहुत लंबे वक्त तक सिनेमाघरों में चली थी. भावना का ज्वार ऐसा कि शायद ही इसे देखने वाला कोई दर्शक जी भरकर रोया ना हो.

दोस्ती का सीन. फोटो राजश्री यूट्यूब.

दो दोस्तों की कहानी जिसने दर्शकों को हिलाकर रख दिया था

असल में दोस्ती की कहानी दो लड़कों रामू और मोहन की है, जो लगभग किशोर होने की दहलीज पर खड़े हैं. इनमें एक दिव्यांग है. उसके पैर खराब हैं. दूसरा- देख नहीं पाता. रामू के पिता फैक्ट्री में मजदूर हैं. एक हादसे में उनकी जान चली जाती है. फैक्ट्री मुआवजा नहीं देती. रामू की मां सदमे में मर जाती हैं. बदनसीबी रामू का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं है. एक हादसे में वह पैर गंवा बैठता है. एक ठीक ठाक बचपन अनहोनियों का शिकार होकर दिव्यांग-अनाथ बन जाता है. अब उसका कोई खैरख्वाह नहीं. दोषी किसे माना जाए. बेघर और असहाय रामू बैसाखी के सहारे मुंबई की सड़कों की ख़ाक छान रहा है. तभी उसकी मुलाक़ात दूसरे किशोर मोहन से होती है.

मोहन की बेबसी रामू से कुछ अलग नहीं है. मोहन गांव का है. बचपन में ही आंखों की रोशनी गंवा बैठा है. उसकी एक बहन है. बहन को भरोसा है कि अगर बेहतर इलाज हो तो भाई के आंखों की रोशनी वापस आ सकती है. एक उम्मीद लेकर मोहन की बहन गांव से शहर नर्स बनने आई है. उम्मीद यही है कि किसी तरह भाई के आंखों की रोशनी लौट आए. असल में हालात ऐसे बनते हैं कि मोहन को बहन के पीछे पीछे उसकी तलाश मुंबई खींच लाती है जहां सड़कों पर रामू से मोहन की मुलाक़ात होती है. दो अनंत पीड़ाएं जब साथ मिलती हैं तो एक दूसरे का सहारा बन जाती हैं. रामू और मोहन मुंबई की सड़कों पर अब एक-दूसरे का सहारा हैं. एक गाता है दूसरा बेहतरीन माउथ ऑर्गन बजाता है. दोनों गा बजाकर सड़कों पर गुजारा करते हैं. मोहन बहन को खोज रहा है. इस दौरान उन्हें महानगरों की तमाम अमानवीयता से दो चार होना पड़ता है. कुछ अच्छी चीजें भी होती हैं, लेकिन वे अस्थायी हैं.

संजय खान भी हैं सपोर्टिंग किरदार में

इत्तेफाक से दोनों की मुलाक़ात एक छोटी लड़की से होती है. असल में वह एक अमीर परिवार की है और बीमार है. वह दोनों को पैसा देना चाहती है- लेकिन रामू और मोहन उसे छोटी बहन कहकर पैसे लेने से इनकार कर देते हैं. दोनों में से एक पढ़ाई करना चाहते है. स्कूल खर्च के लिए उन्हें कुछ पैसों की जरूरत है और वह अपनी इस जरूरत के लिए मुंहबोली बहन के पास पहुंचते हैं. मुंहबोली बहन का भाई के किरदार में संजय खान हैं. संजय खान की पहचान तब स्टार की नहीं थी और असल में वह सपोर्टिंग भूमिका में ही हैं. जो रामू और मोहन को पांच रुपये देकर आइंदा ना आने की हिदायतें देते हैं. मजेदार ट्विस्ट तब आता है जब बीमार लड़की की नर्सिंग के लिए मोहन की बहन अमीर परिवार में पहुंचती है. इसके बाद कहानी में प्यार रिश्ते की जो भावुकता दिखती है वह दर्शकों को हिलाकर रख देती है. फिल्म में जबरदस्त ट्विस्ट और टर्न्स हैं. यह फिल्म ओटीटी पर मिल जाएगी.

दोस्ती की ख़ास बात यह भी है इसके सभी गाने बेजोड़ और भावुकता से सराबोर हैं. आज भी सभी गाने दोहराए जाते हैं. संगीत लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का है. ज्यादातर गाने मोहम्मद रफ़ी ने गाए हैं जो बॉलीवुड क्लासिक में शुमार हैं. एक गाना लता मंगेशकर ने भी गाया है. चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे, जानेवालों ज़रा मुड़ के देखो मुझे, राही मनवा दु:ख की चिंता सुपर डुपर हिट गाने हैं. रामू की भूमिका सुशील कुमार ने और मोहन की भूमिका सुधीर कुमार ने निभाई थी. बॉलीवुड के अबतक के इतिहास में शायद ही किशोर दोस्ती पर केंद्रित इससे भावपूर्ण कोई दूसरी फिल्म नजर आए. 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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