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विनोद खन्ना, जिन्होंने हसरतों का कोई हिसाब न किया

    • शंभु नाथ चौधरी
    • Updated: 06 अक्टूबर, 2019 05:09 PM
  • 21 सितम्बर, 2017 08:08 PM
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फिल्मी दुनिया के कई समीक्षक मानते हैं कि अगर विनोद खन्ना अपना सफर नहीं छोड़ते तो आज जिस जगह पर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन विराजमान हैं, उनकी जगह विनोद खन्ना होते.

कामयाबी और शोहरत की बुलंदियां हासिल हों तो कौन होगा जो सबकुछ एक झटके में छोड़कर गुमनामियों का कोना चुनना चाहेगा? किसे गवारा होगा कि मेहनत-मशक्कत से कमाई गई मकबूलियत और शानो-शौकत खुद ही मुट्ठी की रेत की मानिंद फिसल जाने दे? विनोद खन्ना ऐसी ही अजीम शख्सियत का नाम था.

उनके स्टारडम का जादू जब शबाब पर था, लाखों-करोड़ों लोगों पर उनकी अदाकारी का सम्मोहन तारी थी, तभी उन्होंने अचानक सितारों-सी झिलमिल दुनिया को अलविदा कह संन्यास की राह पकड़ ली थी. नसीब को ठोकर मारकर चल देने की उनकी इस अदा पर हर कोई चौंक पड़ा था. दीगर बात है कि संन्यास की यह दुनिया भी उन्हें ज्यादा दिनों तक रास नहीं आई और पांच साल बाद वो एक बार फिर छूटे हुए सफर में एक मुसाफिर की तरह आ खड़े हुए थे.

ओशो को साथ विनोद खन्ना

किस्मत ने अगर उनका किरदार ग्लैमर और शोहरत की जिंदगी के लिए ही गढ़ा था तो शायद इस बात से ज्यादातर लोग इत्तेफाक रखेंगे कि उन्हें उनका वो मुकाम नहीं मिला, जिसके वो वाकई हकदार थे. इसे यूं भी कह सकते हैं कि इस मुकाम की दहलीज पर पांव रखकर वो खुद ही पीछे की ओर लौट आए थे. फिल्मी दुनिया के कई समीक्षक मानते हैं कि वह अपना सफर नहीं छोड़ते तो आज जिस जगह पर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन विराजमान हैं, वहां उनकी जगह विनोद खन्ना होते.

फिर भी तमाम अगर-मगर के बावजूद विनोद खन्ना जहां तक पहुंचे, वहां तक किसी एक जिंदगी में...

कामयाबी और शोहरत की बुलंदियां हासिल हों तो कौन होगा जो सबकुछ एक झटके में छोड़कर गुमनामियों का कोना चुनना चाहेगा? किसे गवारा होगा कि मेहनत-मशक्कत से कमाई गई मकबूलियत और शानो-शौकत खुद ही मुट्ठी की रेत की मानिंद फिसल जाने दे? विनोद खन्ना ऐसी ही अजीम शख्सियत का नाम था.

उनके स्टारडम का जादू जब शबाब पर था, लाखों-करोड़ों लोगों पर उनकी अदाकारी का सम्मोहन तारी थी, तभी उन्होंने अचानक सितारों-सी झिलमिल दुनिया को अलविदा कह संन्यास की राह पकड़ ली थी. नसीब को ठोकर मारकर चल देने की उनकी इस अदा पर हर कोई चौंक पड़ा था. दीगर बात है कि संन्यास की यह दुनिया भी उन्हें ज्यादा दिनों तक रास नहीं आई और पांच साल बाद वो एक बार फिर छूटे हुए सफर में एक मुसाफिर की तरह आ खड़े हुए थे.

ओशो को साथ विनोद खन्ना

किस्मत ने अगर उनका किरदार ग्लैमर और शोहरत की जिंदगी के लिए ही गढ़ा था तो शायद इस बात से ज्यादातर लोग इत्तेफाक रखेंगे कि उन्हें उनका वो मुकाम नहीं मिला, जिसके वो वाकई हकदार थे. इसे यूं भी कह सकते हैं कि इस मुकाम की दहलीज पर पांव रखकर वो खुद ही पीछे की ओर लौट आए थे. फिल्मी दुनिया के कई समीक्षक मानते हैं कि वह अपना सफर नहीं छोड़ते तो आज जिस जगह पर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन विराजमान हैं, वहां उनकी जगह विनोद खन्ना होते.

फिर भी तमाम अगर-मगर के बावजूद विनोद खन्ना जहां तक पहुंचे, वहां तक किसी एक जिंदगी में पहुंच पाना एक ख्वाब जैसा ही है. मायानगरी की निष्ठुर दुनिया में जब हर रोज हजारों-लाखों ख्वाब चकनाचूर होते हैं, तब विनोद खन्ना जैसी जिंदगी के मायने क्या हैं, यह बताने की जरूरत है क्या ! शायद इसीलिए ज़ाती तौर पर उन्हें अपनी जिंदगी से कोई शिकायत नहीं रही. न तो वो अपने फैसलों पर कभी पछताए और न ही वो कभी अपनी हसरतों का हिसाब करने बैठे.

कहते हैं ना, कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता. मुकद्दर तो सिकंदर को भी मुकम्मल नहीं मिला था. हकीकत सिर्फ एक है और वो ये कि इक दिन सबको माटी के मोल बिक जाना है. आज गहरी नींद में सो गए इस महानायक को भी शायद इस हकीकत का एहसास रहा हो.

अलविदा विनोद !

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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